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Friday, 22 November, 2024
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पहले आर्टिकल 370, फिर COVID- तीन साल से अमरनाथ यात्रा न होने के कारण सोनमर्ग के घोड़ावालों पर पड़ी मार

सोनमर्ग में घोड़ेवाले ही दुर्गम इलाकों में स्थित पर्यटक स्थलों तक पहुंचाने के लिए घोड़ों की सवारी कराते हैं. वे बालटाल आधार शिविर और अमरनाथ गुफा मंदिर के बीच 15 किलोमीटर की यात्रा करने में तीर्थयात्रियों की मदद करते हैं.

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सोनमर्ग: कश्मीर के सोनमर्ग के घोड़ावाला फारूक अहमद भट्ट (40) एक चट्टान पर बैठकर बीड़ी पी रहा है- उसकी नजरें इलाके में आने वाली कारों पर टिकी है. जैसे ही एक जोड़ा कार से नीचे उतरता है और चारों ओर देखना शुरू करता है, भट्ट अपनी बीड़ी छोड़कर उसी तरफ दौड़ पड़ता है. वह अपने 10 साल के बेटे को भी साथ चलने का इशारा करता है.

वह कहता है, ‘इस घोड़े पर बैठिए, आपको सबसे खूबसूरत स्पॉट पे ले चलूंगा.’ यह युगल थोड़ा हिचकिचाता है और फिर आगे बढ़ जाता है.

भट्ट फिर उसी चट्टान पर आकर बैठ जाता है और अगली कार की प्रतीक्षा करने लगता है, उसके चेहरे पर उदासी छा जाती है. उसका बेटा- जो इसी तरह निराश दिख रहा है- पिता के बगल में बैठ जाता है और उसके अगले निर्देश की प्रतीक्षा करने लगता है.

बेहद खूबसूरत जगह सोनमर्ग में भट्ट जैसे तमाम घोड़ावाले पर्यटकों को घोड़े की सवारी की पेशकश करते हैं और दुर्गम क्षेत्रों में स्थित पर्यटन स्थलों तक ले जाते हैं जिनमें झरने से लेकर झीलों तक सब है. वे तीर्थयात्रियों को बालटाल आधार शिविर और अमरनाथ गुफा के बीच करीब 15 किलोमीटर की यात्रा करने में भी मदद करते हैं.

आमतौर पर जुलाई- जिस दौरान अमरनाथ यात्रा का सीजन (जून से अगस्त) होता है- सोनमर्ग के घोड़ावालों के लिए कमाई बढ़ने का एक मौका होता है.

लेकिन 2021 में यह लगातार तीसरा सीजन है जब यात्रा रद्द की गई है- 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म करने के सरकार के फैसले के कारण सुरक्षा संबंधी आशंकाओं को लेकर यात्रा रद्द की गई थी और उसके बाद से लगातार दो साल से कोविड महामारी इसकी वजह बनी हुई है. इस सबका असर यह हुआ है कि सोनमर्ग के घोड़ावालों- जिनकी संख्या करीब 250 है- को आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

दूसरी लहर के बाद देशभर में लॉकडाउन में कुछ ढील दिए जाने बाद कुछ कारोबार शुरू तो हुआ है, लेकिन यह लगभग ना के बराबर ही है.

सोनमर्ग में ग्राहकों का इंतजार करता घोड़ावाला। प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

भट्ट ने बताया, ‘तीन साल पहले यात्रा के समय हम एक दिन में 5,000 रुपये तक कमा लेते थे और बाकी वर्ष खासकर गर्मियों में इस क्षेत्र में पर्यटक आते रहते थे. हालांकि, अब हम महीने में 2,000 रुपये भी नहीं कमा रहे और भारी कर्ज में हैं. कभी-कभी तो ऐसा होता है कि हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं होता है.’

गंदरबल के स्थानीय उपायुक्त फारूक अहमद ने दिप्रिंट से बातचीत में माना कि समस्या हो रही है, लेकिन कहा कि पूरे देश के लिए ही स्थिति खराब है और सोनमर्ग कोई अपवाद नहीं हो सकता. यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार की तरफ से इन लोगों के लिए कोई राहत पैकेज दिया गया, अहमद का जवाब ‘ना’ था.


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उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 ने पूरे देश को प्रभावित किया है, दरअसल पूरी दुनिया पर ही असर डाला है. दो साल से कोविड के कारण यात्रा रद्द हो रही और एक साल सुरक्षा चिंताओं के कारण इसे रद्द कर दिया गया था, जिससे भारी नुकसान हुआ है. लेकिन अब हालात थोड़े बदल रहे हैं. हम कोविड के मद्देनजर जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ धीरे-धीरे पर्यटकों को आने दे रहे हैं.’

‘मेरे पिता ने मुझे सिखाया, मैं बेटे को प्रशिक्षण दे रहा हूं’

भट्ट 10 साल के थे जब उन्होंने पहली बार बालटाल आधार शिविर से अमरनाथ गुफा तक की यात्रा की थी. उनके पिता, जो खुद एक घोड़ावाला थे और यात्रा के लिए आए श्रद्धालुओं को ले जाते थे, ने उन्हें छोटी उम्र में ही इस काम के लिए प्रशिक्षित किया था.

भट्ट ने बताया, ‘यह मेरा पुश्तैनी काम है. मेरे पिता ने मुझे पहले सोनमर्ग में घोड़े की सवारी का प्रशिक्षण दिया. उस समय मैं 8 या 9 साल का था. जब मैं 10 साल का हुआ तो उन्होंने मुझसे कहा कि अब तुम्हें यात्रा पर ले जाने का समय आ गया है.’

बकौल भट्ट ‘उन्होंने मुझे रास्ता दिखाया, मुझे गुर सिखाए और एक साल तक मुझे प्रशिक्षित किया. अगले वर्ष से मैंने खुद अपना घोड़ा लिया, और तीर्थयात्रियों को ले जाना शुरू कर दिया. हालांकि, मेरे पिता मेरे पीछे ही चलते थे.’

उसने आगे बताया, ‘पहले, इस मार्ग पर यात्रा करना बहुत कठिन हुआ करता था, भूस्खलन होता रहता था, और बहुत अधिक चट्टानी इलाका था. लेकिन तबसे स्थिति बहुत ही बेहतर हो गई है.’

कश्मीर के सोनमर्ग में घुड़सवारी करते पर्यटक। प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

अब, भट्ट के पिता काफी उम्रदराज हो चुके हैं और लोगों को यात्रा कराने में असमर्थ हैं. इसलिए वह अपने 10 साल के बेटे इमरान को इस पुश्तैनी धंधे के गुर सिखा रहा है.

भट्ट ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने उसे सवारी करना सिखाया है और कुछ पर्यटन स्थल भी दिखाए हैं. वह बहुत उत्साही और अच्छा पर्वतारोही हैं. उसने कहा, ‘मैंने सोचा था कि इस साल मैं उसे अमरनाथ यात्रा के लिए भी ले जाऊंगा, ताकि अगले साल से वह पर्यटकों को स्वतंत्र रूप से ले जा सके और घर में कुछ और पैसे आ सकें. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.’

यह पूछे जाने पर कि उसने अपने बेटे को स्कूल क्यों नहीं भेजा, भट्ट के चेहरे पर उदासी भरी मुस्कान नजर आई.

उसने कहा, ‘हम तो बस यही सब करते हैं. मेरे पिता ने यह मुझे दिया, मैं इसे अपने बेटे को दूंगा. बहुत ज्यादा गरीबी है. यदि मैं अकेले ही ऐसा करता हूं, तो अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पाऊंगा.’

वैकल्पिक पेशा अपनाना

तीन साल से कारोबार ठप होने के मद्देनजर कई घोड़ावालों ने वैकल्पिक पेशा अपना लिया है. कुछ निर्माण स्थलों पर काम कर रहे हैं, मोर्टार उठाते हैं, अन्य कृषि संबंधी कार्यों में लगे हैं. फिर भी, उनके लिए जीवन कठिन बना हुआ है.

सोनमर्ग के एक अन्य घोड़ावाला बशारा अहमद ठिकरी ने कहा, ‘हम सभी बेरोजगार थे, कुछ नहीं था. हमारे पास कोई बचत न होने और राशन वगैरह भी खत्म हो जाने के कारण हमें आसपास के क्षेत्र में छोटी-मोटी मजदूरी वाले काम करने पड़े. हमने कुछ बाग मालिकों और जमींदारों से कुछ काम देने का अनुरोध किया. हमें बहुत सारा पैसा उधार भी लेना पड़ा और अब हम बड़े कर्ज में घिरे हैं.’

उसने आगे कहा, ‘कभी-कभी तो हमें एक दिन के खाने के लिए तक चीजें उधार लेनी पड़ती थीं. हालात ऐसे हो गए हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो हममें से कोई भी जीवित नहीं रह पाएगा.’


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हालांकि, भट्ट को पूरी उम्मीद है कि कोविड-19 प्रतिबंधों में और ढील के बाद और ज्यादा संख्या में पर्यटक आने लगेंगे और अगले साल अमरनाथ यात्रा आयोजित हो सकेगी.

भट्ट ने कहा, ‘पिछले दो हफ्तों से कुछ पर्यटक आने लगे हैं. यह एक अच्छा संकेत है, और हमें उम्मीद है कि पर्यटकों की संख्या जल्द ही पहले के स्तर पर पहुंच जाएगी. हम इस बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, लेकिन इसने हम सभी को बुरी तरह प्रभावित किया है और हम बस यही उम्मीद करते हैं कि इसका असर घटे और सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाए.’

जब भट्ट ने ऐसा कहा, तभी एक अच्छा संकेत मिला और एक पर्यटक उनके पास पहुंचा जो उन स्थानीय पर्यटन स्थलों के बारे में जानना चाहता था जो घोड़े पर जाकर देखा जा सकता हो.

पोर्टर का एक समूह पर्यटकों को सोनमर्ग के दर्शनीय स्थलों के आसपास ले जाता है। प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

भट्ट ने एक ही सांस में उन स्थानों के नाम और जिन फिल्मों के कारण वे प्रसिद्ध हुए, के बारे में बताना शुरू कर दिया, ‘राम तेरी गंगा मैली’ झरना, ‘सत्ते पे सत्ता’ ग्राउंड, एक स्पॉट जहां ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग हुई थी, आपको सब दिखाएंगे.’

जब पर्यटक ने शुल्क के बारे में पूछा, तो भट्ट ने तुरंत जवाब दिया, ‘मैं कुछ नहीं मांग रहा. जो आपकी इच्छा हो वो दे देना.’

भट्ट ने तुरंत अपने बेटे को बिना समय बर्बाद किए घोड़े लाने का इशारा. उन्होंने पर्यटकों को घोड़ों पर बैठाया और ट्रेकिंग शुरू कर दी. उनका पहला गंतव्य स्थल था एक झील, जिसके लिए एक घंटे तक चढ़ाई करनी पड़ती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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