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Sunday, 17 November, 2024
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‘होरी की धनिया चली गई’- कैरेक्टर एक्टिंग को एक अलग मुकाम देने वाली सुरेखा सीकरी

तमस, मम्मो और बधाई हो के लिए सुरेखा सीकरी को तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. 1989 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड भी मिला.

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तीन बार की राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता और जानी-मानी अभिनेत्री सुरेखा सीकरी ने मुंबई में 75 साल की उम्र में शुक्रवार को आखिरी सांस ली. लेकिन वो अपने पीछे सिनेमाई पर्दे पर एक समृद्ध और परिपक्व विरासत छोड़ गई हैं जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा. आत्मविश्वास, सहजता, आंखों की चमक ने उनकी अदाकारी को खूब निखारा और वो समय के साथ लोगों के दिलों में जगह बनाती चली गईं.

1945 में जन्मीं सुरेखा सीकरी ने थिएटर, फिल्मों और टेलीविजन पर लंबे समय तक काम किया और तीनों ही माध्यम में उन्होंने अपनी अदाकारी के अलग-अलग रंगों को प्रदर्शित किया.

एक्टिंग में बरती जानी वाली सहजता और शब्दों में ठहराव ने उन्हें बतौर चरित्र अभिनेत्री स्थापित किया. 2008 से 2016 तक छोटे पर्दे पर आने वाला धारावाहिक बालिका वधू ने उन्हें करोड़ों घरों तक पहुंचा दिया और लोगों ने उनकी भूमिका को खूब सराहा.

सुरेखा सीकरी के मैनेजर ने उनके निधन की सूचना देते हुए शुक्रवार को बताया कि तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली अभिनेत्री सुरेखा सीकरी का निधन सुबह हृदय गति रुकने से हो गया. उन्होंने बताया कि दूसरे मस्तिष्काघात (ब्रेन स्ट्रोक) के बाद से उन्हें काफी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो रही थीं.


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दमदार अभिनेत्री

1978 में आई फिल्म किस्सा कुर्सी का  से उन्होंने फिल्मी दुनिया में शुरुआत की. अमृत नहाटा की इस फिल्म में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर जोरदार कटाक्ष किया गया था जिन्होंने उस समय देश में आपातकाल लगाया था. इस फिल्म पर उस समय पाबंदी भी लगा दी गई थी और इमरजेंसी हटने के बाद इसे रिलीज किया गया.

सुरेखा सीकरी ने ‘तमस’, ‘मम्मो’, ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’, ‘ज़ुबेदा’, ‘बधाई हो’ जैसी फिल्में की हैं और धारावाहिक ‘बालिका वधू’ में निभाए उनके ‘दादी सा’ के किरदार को भी काफी लोक्रपियता मिली थी. आखिरी बार 2020 में ‘नेटफ्लिक्स’ की फिल्म ‘घोस्ट स्टोरीज़’ में वो नजर आई थीं.

2018 में आई बधाई हो के लिए उन्हें तीसरी बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. इस फिल्म की कहानी काफी अलग थी जिसमें एक उम्रदराज महिला जब गर्भवती होती है और इसे लेकर एक दंपति के जीवन में जो बदलाव आते हैं, उसे बताया गया. इस फिल्म में सीकरी के किरदार को लोगों ने खूब पसंद किया.

तमस, मम्मो और बधाई हो के लिए उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. 1989 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड भी मिला. दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) ड्रामा से सीकरी ने 1971 में एक्टिंग सीखी और लंबे समय तक थिएटर किया.

समानांतर फिल्मों में श्याम बेनेगल के साथ उन्होंने मम्मो (1994), सरदारी बेगम (1996), हरिभरी (2000) और जुबैदा (2001) में काम किया. मशहूर फिल्मकार सईद मिर्जा के साथ उन्होंने सलीम लंगड़े पे मत रो (1989) और नसीम (1995) में काम किया.


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समानांतर सिनेमा

जिस समय सुरेखा सीकरी ने फिल्मी पर्दे पर शुरुआत की वो भारत में समानांतर फिल्मों का दौर था. श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी जैसे फिल्मकार सामाजिक-आर्थिक परिदृष्य को फिल्मी पर्दे पर उकेर रहे थे. 1980 के बाद समानांतर फिल्मों का एक लंबा दौर रहा जो उस दौर से अलग था जिसमें सिर्फ अभिनेताओं का बोल-बाला हुआ करता था. पहली बार भारतीय सिनेमा में चरित्र अभिनेताओं पर जोर दिया जा रहा था और उनके द्वारा सिनेमाई पर्दे पर समाज की हकीकत को लाया जा रहा था.

ऐसे समय में सुरेखा सीकरी ने अपनी अदाकारी के जरिए चरित्र एक्टिंग को एक अलग मुकाम दिया और ऐसी भूमिकाएं निभाईं जो आज भी लोगों के जेहन में बसी हैं.

ऐसी ही एक फिल्म गोविंद निहलानी की तमस है जिसे पहले डीडी नेशनल पर लाया गया और फिर बाद में उसे एक फिल्म का रूप दिया गया. इसमें सुरेखा सीकरी ने एक मुस्लिम महिला का किरदार निभाया है जो एक बुजुर्ग सिख दंपति को अपने घर में सहारा देती है जब बंटवारे के कारण हो रहे बलवे (दंगों) में लोग बेघर हो रहे होते हैं और महिला का पति और बेटा खुद दंगाइयों में शामिल होता है. इस फिल्म में उनकी संवेदनशीलता और सहजता जिस रूप में उभरती है वो सामाजिक तौर पर इंसानी जज्बात का ही प्रदर्शन है जिसे बड़े एहतराम के साथ उन्होंने अदा किया.

तमस भीष्म साहनी के हिन्दी उपन्यास ‘तमस’ पर आधारित फिल्म थी जो 1988 में बनी थी.

बड़े पर्दे पर लंबे समय तक काम करने के साथ उन्होंने टीवी के छोटे पर्दे पर भी यादगार भूमिकाएं अदा की हैं. 1990 के दशक में डीडी नेशनल पर कई लोकप्रिय धारावाहिकों में उन्होंने काम किया.

फैज़ अहमद फैज़ की मशहूर नज़्म ‘मुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब न मांग ‘ को भी उन्होंने अपनी आवाज़ दी और जिस सलाहियत से उन्होंने इसे पढ़ा है वो बड़ा ही दिलचस्प है.

‘होरी की धनिया चली गई’

मुंशी प्रेमचंद का आखिरी उपन्यास गोदान लाखों-करोड़ों लोगों को आकर्षित करता रहा है क्योंकि जिस समाज को प्रेमचंद ने इस उपन्यास के सहारे रचा है और उसमें शहरी और ग्रामीण परिवेश के फासले को दर्शाया है वो हर दौर की सच्चाई सी लगती है. लेकिन उनके उपन्यास के किरदारों ने अगर लोकमानस में जगह पाई तो उसमें गुलजार द्वारा निर्देशित धारावाहिक गोदान की अहम भूमिका है.

होरी और धनिया इस उपन्यास के मुख्य किरदार हैं. गुलजार निर्देशित धारावाहिक में होरी का किरदार पंकज कपूर और धनिया की भूमिका सुरेखा सीकरी ने निभाई है.

धनिया ने जो सजीवता और सहजता अपनी अदाकारी में निभाई वो दर्शकों के मन में आज तक बसी है. उनके सभी धारावाहिकों में गोदान में उनकी अदाकारी बेमिसाल है.


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बहुमुखी एक्टर

कई राजनीतिक और फिल्म जगत के लोगों ने सुरेखा सीकरी को याद किया.

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, ‘बहुत कम ही एक्टर सुरेखा सीकरी जी की तरह बहुमुखी होते हैं. नए अभिनेताओं को उनके कामों को देखना चाहिए.’

इतिहासकार एस इरफान हबीब ने कहा, ‘वो सच में एक संस्थान थीं और कई किरदारों में उन्होंने बेमिसाल भूमिका निभाई.’

फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी ने कहा कि वो अपने पीछे सिनेमा और थिएटर में कई बेहतरीन भूमिकाएं छोड़ गई हैं. उन्हें स्टेज पर देखना सुखद होता था.

और अंत में उनकी वो तस्वीर बरबस याद आ जाती है जब उन्हें तीसरी बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया जा रहा था और वो व्हीलचेयर पर बैठी थीं. उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने जब उन्हें ये पुरस्कार दिया, तब उनकी आंखों में जो चमक दिख रही थी वो ठीक उनके द्वारा अदा किए गए तमाम किरदारों जैसी ही थी. एकदम आत्मविश्वास और दृढ़ता से लबरेज.


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