नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 3-9 आयु वर्ग के बच्चों की फॉउंडेशनल लिटरेसी एंड नुमरेसी (एफएलएन) स्किल्स अथवा मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान कौशल को सुदृढ़ करने के लिए सोमवार को एक नई योजना शुरू की है.
शिक्षा मंत्रालय द्वारा तय की गई परिभाषा के अनुसार, एफएलएन स्किल्स का अर्थ कक्षा 3 के किसी बच्चे द्वारा पाठ को उसके अर्थ के साथ पढ़ने और बुनियादी गणित की समस्याओं को हल करने की क्षमता से संदर्भित है. यह योजना, नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एंड न्यूमरेसी (निपुण (एनआईपीयूएन) भारत), नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप है जो एफएलएन स्किल्स को काफी अधिक महत्व देती है.
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार ये वे महत्वपूर्ण बुनियादी कौशल हैं जो बच्चों को जीवन में सफल होने में मदद करते हैं.
इस योजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक बच्चा 2026-27 तक बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल प्राप्त कर ले. इसमें पाठ्यक्रम में शामिल पाठों के अलावा कक्षा के बाहर की गतिविधियों के माध्यम से भी पाठ पढ़ाना शामिल है.
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नई शिक्षा नीति के अनुरूप है निपुण
शिक्षा मंत्री निशंक ने एक वर्चुअल कार्यक्रम के द्वारा इस योजना का शुभारंभ करते हुए कहा, ‘हमारी नई शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य न केवल छात्रों को स्कूली शिक्षा प्रदान करना है बल्कि यह उनके समग्र विकास पर भी ध्यान केंद्रित करता है. निपुण भारत उस दिशा में एक मजबूत कदम है.’
उन्होंने यह भी बताया कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के तहत इस योजना के लिए 2,688.18 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है.
ऑनलाइन कार्यक्रम में बोलते हुए, शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव मनीष गर्ग ने कहा, ‘छात्रों को शैक्षणिक सफलता के लिए आवश्यक मूलभूत कौशल हासिल करने के लिए तैयार किया जाएगा. मूलभूत साक्षरता में मौखिक भाषा का विकास, डिकोडिंग, प्रवाह के साथ मौखिक पाठन, पाठ को समझ के साथ पढ़ना और लेखन कौशल शामिल हैं. मूलभूत संख्यात्मकता, संख्यात्मक विधियों और विश्लेषण का उपयोग करके दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने की क्षमता पर आधारित है.’
उन्होंने आगे कहा कि ‘एनईपी 2020 कहता है कि हमारा उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का ज्ञान प्रदान करना होना चाहिए, जिसे सीखने के परिणामों (लर्निंग आउटकम) के आधार पर आंका जाना चाहिए. हमारा लक्ष्य 2026-27 तक प्राथमिक विद्यालय के प्रत्येक बच्चे के लिए इसे लागू करना है.’
निपुण योजना के तहत गतिविधि-आधारित, कथा-आधारित और कला-आधारित पाठ प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण का एक हिस्सा होंगे.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने शिक्षण के विभिन्न तरीकों के लिए अध्ययन सामग्री विकसित की है जो जल्द ही स्कूलों को उपलब्ध कराई जाएगी.
मंत्रालय ने यह भी कहा कि निपुण योजना के अनुसार शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए अगस्त में एक अलग मॉड्यूल शुरू किया जाएगा.
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पिछली गलतियों को सुधारने वाला कदम
शिक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सभी राज्यों और सीबीएसई, केंद्रीय विद्यालय संगठन और नवोदय विद्यालय समिति के विशेषज्ञों से विस्तृत परामर्श के बाद हीं निपुण भारत के लिए दिशानिर्देश और रूपरेखा तैयार की गई है.
यह योजना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में प्राथमिक विद्यालय के बच्चों पर हर साल किये जा रहे सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वे मूल अक्षरों और संख्याओं को पढ़ने और लिखने में अथवा बुनियादी जोड़ और घटाव करने में सक्षम नहीं हैं.
स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) प्रथम द्वारा किए गए एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) सर्वेक्षण से पता चला है कि 2018 में कक्षा 3 के केवल 28.1 प्रतिशत बच्चे बुनियादी घटाव करने में सक्षम थे, जो 2008 के 38.8 प्रतिशत के आंकड़े से काफी कम था.
इसी तरह, 2019 के एएसईआर सर्वेक्षण से पता चला है कि 26 ग्रामीण जिलों में केवल 16 प्रतिशत बच्चे ही निर्धारित स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं और उनमें से 40 प्रतिशत बच्चे अक्षरों को पहचान भी नहीं पाते.
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