जम्मू में रविवार को एयर फोर्स स्टेशन पर हुआ ड्रोन हमला भारत में आतंक फैलाने के तरीकों में एक बड़ा बदलाव है. भारतीय रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठानों को आशंका है कि यह केवल एक बार की घटना नहीं है बल्कि इस बात का संकेत है कि आगे क्या हो सकता है.
सबसे खतरनाक पहलू यह है कि विशिष्ट महत्व के ठिकानों—सैन्य या गैर-सैन्य संपत्तियों—को निशाना बनाने के लिए एक साथ कई ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है.
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हमें पहले से ही आशंका थी
रविवार को जो हुआ, कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक नहीं है. इस तरह के हमलों की आशंका 2018 से ही जताई जाती रही है. 2019 में इस चर्चा ने तब जोर पकड़ा जब यमन के हाउथी विद्रोहियों ने यमन की भूमि से लगभग 500 मील दूर सऊदी के दो प्रमुख तेल ठिकानों पर हमला किया.
इस हमले से पहले तक ड्रोन हमलों को व्यापक स्तर पर सैन्य क्षेत्र का हिस्सा माना जाता था, जिसमें अमेरिका की अगुआई में ईरान के सैन्य अधिकारियों के अलावा इराक, अफगानिस्तान और अन्य स्थानों पर आतंकियों को निशाना बनाने के लिए इस तरह के अभियान चलाए जाते थे.
2018 में जब वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो पर एक ड्रोन से हमला हुआ तो महसूस किया गया कि उड़ती वस्तुओं से हमला हकीकत में एक बड़ा खतरा बन गया है. भारत में, 2016 में रक्षा प्रतिष्ठान के अंदर विचार-विमर्श के दौरान भी इस पर चर्चा हुई थी कि आतंकवादी वाहन-आधारित इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) का उपयोग कर सकते हैं. यह आशंका 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के दौरान सही भी साबित हुई.
2018 में रक्षा प्रतिष्ठान के भीतर एक चर्चा के दौरान ड्रोन के संभावित इस्तेमाल—कामिकेज स्टाइल के हमले—पर बात की गई. 2019 के अंत में एक खुफिया अलर्ट में सूचना मिली कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा आईईडी के इस्तेमाल वाले एक ड्रोन हमले की साजिश रच रहा है.
रविवार के हमले की जिस बात ने सुरक्षा प्रतिष्ठान को सबसे ज्यादा चौंकाया वो यह कि उन्होंने आतंकी खतरे का यह रूप इतनी जल्दी सामने आने के बारे में नहीं सोचा था.
ड्रोन-रोधी उपाय करने और ऐसी प्रणालियों की व्यापक स्तर पर खरीद की जरूरत को लेकर अब एक बार फिर आवाजें उठेंगी.
एक बार फिर, भारत उस मामले में सक्रियता दिखाने में नाकाम रहा है जहां उसे ऐसा करना चाहिए था. एक ऐसे खतरे से निपटने के लिए बहुत पहले कदम उठाए जाने चाहिए थे, जिसकी सभी को आशंका थी.
यह जानकारी काफी परेशान करने वाली है कि जम्मू एयरफोर्स स्टेशन, जो कि एक संवेदनशील स्थान है, में गैर-सैन्य ड्रोन हमले से भी निपटने का कोई सिस्टम नहीं था. बेशक, अब जबकि एक हमला हो चुका है तो इस घटना के मद्देनजर एंटी-ड्रोन सिस्टम और अधिक लाइटें लगाई गई हैं.
डीआरडीओ पहले ही एक प्रणाली विकसित कर चुका है जो ड्रोन को निष्क्रिय करने और लेजर के जरिये उन्हें मार गिराने दोनों की क्षमता रखती है. लेकिन यदि ये प्रणाली, जिसे पिछले साल लाल किले पर प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान इस्तेमाल किया गया, इतनी अच्छी है तो उसे खरीदा क्यों नहीं गया? क्या हम इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए किसी हमले का इंतजार कर रहे थे?
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भारत के लिए बहुत कुछ करना बाकी
लगभग सभी प्रमुख देशों ने न केवल बड़े सैन्य ड्रोन से मुकाबला करने बल्कि व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध तमाम तरह के छोटे ड्रोन, जो सस्ते और विभिन्न पेलोड ले जाने में सक्षम हैं, से निपटने के उपाय करने शुरू कर दिए हैं.
दिलचस्प बात यह है कि 2016 में छोटे ड्रोन के मुकाबले के लिए बाजों को प्रशिक्षित करने की डच पुलिस की पहल इंटरनेट पर काफी सुर्खियों में रही थी. हालांकि, डच पुलिस ने 2017 में यह रणनीति अपनाना बंद कर दिया, लेकिन यह कवायद अपने आप में प्रासंगिक ही थी. इससे पता चलता है कि अन्य देशों को ड्रोन के खतरों का एहसास पहले ही हो गया था और उन्होंने जो उचित समझा, उसके मुताबिक कदम उठाने शुरू कर दिए.
जैसी मिलिट्री डॉट कॉम ने पिछले साल रिपोर्ट दी थी, अमेरिकी सेना ने काउंटर ड्रोन टेक्नोलॉजी की एक प्रारंभिक सूची तैयार की है जो विदेशों में उसके सैनिकों और ठिकानों के लिए खतरा बनने वाले क्वाडकॉप्टर और अन्य अनमैन्ड सिस्टम को नष्ट या नाकाम करने के लिए बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल में लाई जा सकती हो. यह ड्रोन हमले से निपटने के लिए अमेरिकी सेना के पास पहले से मौजूद सिस्टम के अलावा है.
नवंबर 2019 में दुश्मनों के ड्रोन का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी सेना को काउंटर-स्मॉल अनमैन्ड एयरक्राफ्ट सिस्टम या सी-एसयूएएस की जिम्मेदारी संभालने वाला प्राथमिक बल बनाया गया.
अमेरिकी सेना ने तब कहा था कि ये सिस्टम तीन श्रेणियों में आते हैं—फिक्स्ड और सेमी-फिक्स्ड, मोबाइल-माउंटेड और हैंडहेल्ड डिसमाउंटेड सिस्टम.
सेना के प्रत्येक अंग को शॉर्टलिस्ट किए गए सिस्टम में से एक पर फोकस करने की जिम्मेदारी सौंपी गई ताकि एक संयुक्त दृष्टिकोण अपनाया जा सके.
अमेरिका नौसेना ने कोरियन या काउंटर-रिमोट कंट्रोल मॉडल एयरक्राफ्ट इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस नेटवर्क का जिम्मा संभाला जिस प्रणाली को सीएसीआई इंटरनेशनल इंक ने विकसित किया है.
विचाराधीन 40 से ज्यादा प्रणालियों में से रक्षा विभाग ने कोरियन को तीन फिक्स्ड/सेमी-फिक्स्ड सिस्टम में से एक के तौर पर चुना.
कंपनी ने कोरियन का ब्योरा ‘एक मॉड्यूलर, स्केलेबल मिशन टेक्नोलॉजी सिस्टम के तौर दिया है जो सटीक न्यूट्रलाइजेशन टेक्नीक का इस्तेमाल करके यूएएस (मानव रहित एरियल सिस्टम) संबंधी खतरों का पता लगाता है, उनकी पहचान करता है, ट्रैक करता है और खतरा दूर करता है और आसपास के रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) स्पेक्ट्रम और मौजूदा कम्युनिकेशन को कम से कम या बिल्कुल भी कोई क्षति न होना सुनिश्चित करता है.’
अमेरिकी वायु सेना ने वह प्रणाली अपनाई जिसे निंजा सिस्टम कहा जाता है, यानी नेगेशन ऑफ इंप्रोवाइज्ड नॉन-स्टेट ज्वाइंट एरियल थ्रेट, और इसे एयर फोर्स रिसर्च लैबोरेट्ररी (एएफआरएल) ने विकसित था.
एयरफोर्स मैगजीन में बताया गया है, ‘जैसा कि पता है निंजा एक दो-हिस्सों वाली ड्रोन-रोधी प्रणाली है जिसे एएफआरएल विकसित कर रहा है. यह या तो दुश्मन के यूएएस संचार को बाधित कर सकता है और फ्रैंडली टेरिटरी से यूएएस को दूर कर सकता है या फिर दुश्मन के यूएएस को पकड़ने के लिए एक वास्तविक नेट के साथ एक मानव रहित यान भेज सकता है, जिसके फ्लैप नेट के छेदों में फंस जाते हैं.’
इसके अलावा एलएमएडीआईएस या लाइट-मोबाइल एयर डिफेंस इंटीग्रेटेड सिस्टम नामक मोबाइल-माउंटेड एंटी-ड्रोन सिस्टम भी है जिसका इस्तेमाल अमेरिकी नौसेना पोर्टेबल जैमर की तरह करती है.
वहीं, स्पेशल ऑपरेशंस कमांड और ड्रोन बस्टर और इजरायली स्मार्ट शूटर सिस्टम की तरफ से इस्तेमाल किए जाने वाले बाल छतरी जैसे हैंडहेल्ड सिस्टम हैं, जिन्हें भारतीय नौसेना ने भी खरीदा है.
रूस भी इस मामले में पीछे नहीं है. उसने भी ड्रोन-रोधी कई उपायों को अपनाया है. वह एक ड्रोन ‘एरियल माइनफील्ड’ पर भी काम कर रहा है जो दुश्मन का ड्रोन रोकने में सक्षम है.
सीरिया में अपने अभियानों और सैन्य के अलावा छोटे यूएवी से हमलों के खतरे को देखते हुए रूस ने ड्रोन-रोधी प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया है.
दिलचस्प बात यह है कि 2019 की शुरुआत में सभी प्रमुख मिलिट्री एक्सरसाइज और ड्रिल के दौरान पोर्टेबल और व्हील वाले इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम के जरिये बड़े पैमाने पर ड्रोन हमलों से बचाव को शामिल किया गया.
रूसी सेना ने अपने नवीनतम क्रासुखा-सी4 ईडब्ल्यू और अन्य उपकरणों के साथ स्टिलेट और स्तूपर पोर्टेबल काउंटर-यूएएस राइफलों का भी इस्तेमाल किया.
रूस नए काउंटर-ड्रोन रडार और ‘कार्निवोरा’ जैसे यूएवी सिस्टम में भी भारी निवेश कर रहा है जो अन्य ड्रोन और यूएवी पर हमला करने और उन्हें निष्क्रिय कर देने में सक्षम है.
रूस के विरोधी यूक्रेन ने भी ड्रोन काउंटरमेजर सिस्टम विकसित किया है और भारत को उसकी पेशकश भी की है.
इजराइल ने भी ड्रोन डोम नामक एक बड़ा ड्रोन-रोधी सिस्टम विकसित किया है, जो प्रसिद्ध आयरन डोम की तरह काम करता है.
ड्रोन डोम के निर्माता राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स का कहना है कि यह ‘अज्ञात लक्ष्यों की पहचान करने, अलर्ट भेजने और विशिष्ट जैमर बैंडविड्थ और एक एडवांस्ड डायरेक्शनल एंटीना का उपयोग करके निशाने पर न रहने वाले किसी हवाई उपकरण में कोई बाधा डाले बिना संचालित किए जाने में सक्षम है.’ सिस्टम सॉफ्ट और हार्ड किल दोनों विकल्पों को सक्षम बनाता है.
यह भारत के लिए अपनी तकनीकी क्षमताओं को दर्शाने और उन्हें बढ़ाने का समय है. यद्यपि नई दिल्ली तत्कालिक खतरों को दूर करने के लिए आवश्यक प्रणालियों की आपात खरीद करेगी लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि आला दर्जे की प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए एक दीर्घकालिक नीति बनाई जाए.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
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