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Friday, 22 November, 2024
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कांग्रेस में सुखपाल खैरा की घर वापसी अमरिंदर सिंह की राजनीति के बारे में क्या बताती है

सुखपाल खैरा को वापस लाकर अमरिंदर सिंह ने संभवत: एक तीर से दो निशाने साधे हैं- एसजीपीसी प्रमुख जागीर कौर की सीट पर एक मजबूत उम्मीदवार खड़ा करना और आप के फिर से मजबूती से उभरने के प्रयासों की धार कुंद करना.

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नई दिल्ली: पंजाब की राजनीति में यद्यपि कुछ लोग इस घर वापसी या पूर्व दलबदलू के कांग्रेस में लौटने पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा कर रहे हैं. लेकिन इस माह के शुरू में मुख्यमंत्री अमिरंदर सिंह द्वारा कांग्रेस में वापस लाए जाने के बाद से पंजाब विधानसभा में विपक्ष के पूर्व नेता सुखपाल सिंह खैरा ने राज्य के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रखी है.

पार्टी आलाकमान की तरफ से विरोधियों का साथ दिए जाने के कारण अलग-थलग पड़ते नज़र आ रहे 79 वर्षीय मुख्यमंत्री ने वह किया जो कई लोगों के लिए अकल्पनीय तो नहीं था लेकिन अप्रत्याशित जरूर था— पंजाब की राजनीति में कभी आम आदमी पार्टी (आप) का चेहरा रहे खैरा को कांग्रेस में वापस लाना.

और मुख्यमंत्री के इस कदम को आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय मानने की कई वजहें हैं: खैरा ने अतीत में कैप्टन अमरिंदर सिंह पर जबर्दस्त हमले किए हैं, उनकी निजी जिंदगी पर राजनीतिक कीचड़ उछालने में भी पीछे नहीं रहे हैं.

आप विधायक के तौर पर वह एक मंत्री के इस्तीफे के लिए जिम्मेदार रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री के लिए शर्मिंदगी की स्थिति खड़ी हो गई थी. प्रवर्तन निदेशालय ने गत मार्च में कथित ड्रग तस्करी कांड में खैरा के परिसरों पर छापा मारा था. और उन्होंने सिखों के अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसजेएफ) की ओर से प्रस्तावित रेफरेंडम 2020 का भी समर्थन किया था.

फिर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस आलाकमान द्वारा नियुक्त एक समिति, जिसका गठन उनके नवजोत सिद्धू की अगुआई वाले असंतुष्टों की शिकायतों पर गौर करने के लिए किया गया है, के समक्ष बयान देने के लिए दिल्ली रवाना होने से पहले दो आप विधायकों के साथ कांग्रेस में उनकी वापसी का स्वागत किया.

तो, क्या यही वजह है कि कैप्टन अपने ऐसे आलोचक का समर्थन हासिल करना चाहते थे, जिसने करीब पांच साल पहले एक प्रेस कांफ्रेंस में उनके बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी?

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पंजाब के मुख्यमंत्री ने एक तीर से दो शिकार किए हैं— कपूरथला के भोलाथ निर्वाचन क्षेत्र में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की प्रमुख बीबी जागीर कौर को इससे कड़ी चुनौती मिलेगी और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत चमकाने के आप के प्रयासों की धार भी कुंद हो जाएगी.

भोलाथ पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के मजबूत गढ़ों में से एक है, जिस निर्वाचन क्षेत्र में पिछले नौ विधानसभा चुनावों में से छह में पार्टी ने जीत हासिल की है.

खैरा और बीबी जागीर कौर के बीच 1997 से अब तक पांच बार चुनावी टक्कर हो चुकी है— जिसमें 2017 की वह चुनावी जंग भी शामिल है जब एसएडी ने उनके दामाद भूपिंदर सिंह को मैदान में उतारा था.

खैरा ने यहां पहली बार 2007 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी और 2017 में बतौर आप प्रत्याशी जीते थे. अगले चुनाव के लिए वह कांग्रेस का एक बेहतरीन दांव हैं.

कांग्रेस नेताओं के मुताबिक, भोलाथ निर्वाचन क्षेत्र में केवल खैरा ही बीबी जागीर कौर को कड़ी टक्कर दे सकते हैं.

राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘उन्हें वहां पर व्यापक समर्थन हासिल है और पंजाब कांग्रेस अभी इसका बेहतर फायदा उठा सकती है.’

कांग्रेस के लिए खैरा की वापसी इसलिए और भी ज्यादा अहमियत रखती है क्योंकि वह कभी आप का चेहरा थे, जिसने 2017 के चुनावों में एसएडी को पीछे छोड़कर प्रमुख विपक्षी दल का स्थान हासिल कर लिया था. हालांकि, खैरा ने जनवरी 2019 में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और खुद अपना संगठन पंजाब एकता पार्टी का गठन कर लिया था, जिसका अब कांग्रेस में विलय हो चुका है.

लेकिन उनकी कांग्रेस में वापसी ने आम आदमी पार्टी के फिर से मजबूती से उभरने की संभावनाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

पंजाब कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि इस हफ्ते के शुरू में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल का पंजाब दौरा अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का घटता मनोबल बढ़ाने का एक हताशा भरा प्रयास था क्योंकि खैरा ने अपने साथ पार्टी के दो विधायकों को भी कांग्रेस में शामिल करा दिया है.


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‘अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी’

हालांकि, कांग्रेस से जुड़े सूत्रों और यहां तक कि सुखपाल खैरा के करीबियों का मानना है कि उनके पार्टी में लौटने के फैसले से बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है.

खैरा के एक करीबी सहयोगी ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने 2017 में विपक्ष के नेता के तौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह पर हमला बोला था और यहां तक कि उनके निजी जीवन को भी राजनीति के अखाड़े में घसीटा था.’

उनके सहयोगी दरअसल 2017 की एक प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र कर रहे थे, जिसे खैरा ने अपना नाम कथित तौर पर ड्रग्स मामले से जुड़ने के बाद बुलाया था.

खैरा ने खुद को फंसाए जाने का दावा करते हुए इसके लिए कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराया और कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि अमरिंदर और संसदीय कार्य मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा ‘इतना ज्यादा नीचे गिर सकते हैं.’

लेकिन सबसे ज्यादा हलचल मची थी उस असंसदीय भाषा को लेकर जो खैरा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ इस्तेमाल की थी, जब वह अमरिंदर की एक पाकिस्तानी पत्रकार मित्र का जिक्र कर रहे थे.

वह तब भी नहीं रुके जब उनके तत्कालीन साथी आप विधायक कंवर संधू और अमन अरोड़ा ने प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी की महिला विधायकों की मौजूदगी का हवाला देते हुए उन्हें अपनी भाषा संयत रखने के लिए समझाने की कोशिश की.

तब उन्होंने कहा था, ‘मुझे जो महसूस हो रहा है, वो कहने दो. मैं बेकार की बातें नहीं कर रहा. केवल तथ्य बता रहा हूं.’

खैरा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि प्रेस कांफ्रेंस के दौरान गुस्से में कुछ ज्यादा ही बोल गए थे. उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि मैंने उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री के प्रति अपशब्दों का इस्तेमाल किया था, लेकिन यह नाराजगी का नतीजा था क्योंकि मुझे एनडीपीएस (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट) के झूठे मामले में फंसाया गया था. मैं भी इंसान हूं और कोई गलती न होने पर गुस्सा आता है.’

उन्होंने दिप्रिंट को यह भी बताया कि कांग्रेस में उनकी वापसी पर बात चल रही थी और यहां तक कि 2017 के पंजाब चुनावों से पहले भी राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उनसे मुलाकात की थी और उनसे कांग्रेस में लौटने को कहा था.

खैरा ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब वह (प्रशांत किशोर) मुझसे मिले तो पार्टी आलाकमान फोन कॉल पर ही थे और मुझे यहां तक कहा गया कि कैबिनेट मंत्री का पद दिया जाएगा.’ लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि चुनाव एकदम नजदीक होने के दौरान आप को छोड़ना ठीक नहीं था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंजाब में पार्टी के प्रभारी रह चुके हरीश चौधरी, जिन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है, ने कहा कि खैरा के शामिल होने से पार्टी को मजबूती मिलेगी. चौधरी ने कहा, ‘प्रस्ताव कैप्टन अमरिंदर की तरफ से भेजा गया था क्योंकि पार्टी को पता है कि खैरा को एनआरआई का समर्थन हासिल है और वह मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं. हर पार्टी को ऐसे लोगों की जरूरत होती है.’

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि खैरा की वापसी मुख्यमंत्री की जीत है.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में फेलो और द चेंजिंग पार्टी सिस्टम के सह-लेखक राहुल वर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं इस पर तो निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता कि उनकी वापसी से कांग्रेस को कोई फायदा होगा या नहीं लेकिन कैप्टन को इसकी जरूरत थी. उनके लिए तो किसी भी तरह का समर्थन (सिद्धू के साथ विवाद के संदर्भ में) स्वागत योग्य होगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वैसे भी ऐसे समय में जुबानी विवाद पीछे ही छूट जाते हैं क्योंकि कैप्टन को अपने पाले में लोगों की जरूरत है और खैरा का आप छोड़ना भी एक तरह से कांग्रेस की जीत को ही दर्शाता है. कौन जाने कि एक बार सिद्धू और आप का मामला ठीक से निपटा लेने के बाद कैप्टन खैरा के साथ भी अपना हिसाब-किताब बराबर कर लें.’

हालांकि, कांग्रेस में हर कोई खैरा की घर वापसी से उत्साहित नहीं है. कपूरथला के पूर्व कांग्रेस विधायक राणा गुरजीत सिंह के समर्थक भी नाराज होने वालों में शामिल हैं.

खैरा ने 2018 में रेत खदानों के आवंटन में कथित अनियमितताओं का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठाया था, जिसके बाद अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाने वाले राणा गुरजीत सिंह को राज्य के बिजली मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘इसी आदत ने खैरा के राजनीतिक जीवन में दोस्तों से ज्यादा दुश्मन बना दिए हैं.’

हालांकि, खैरा को इन सब बातों से कोई खास फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने कहा, ‘लोगों को अपनी-अपनी राय रखने का हक है. मेरे लिए तो यह अपने घर लौटने जैसा है, जिस पार्टी में लोग मेरे साथ खड़े हैं और मुझे बस इसी बात से मतलब है.’


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विपक्ष ने बताया अवसरवादी

विपक्ष का कहना है कि खैरा का बार-बार पार्टी बदलना अवसरवादिता को दिखाता है.

अकाली दल के नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा, ‘उनमें वफादारी जैसी कोई बात नहीं है. इसके अलावा, उन्होंने पंजाब एकता पार्टी का गठन किया, जबकि वह आप के टिकट पर चुनाव लड़े थे. इसलिए उनकी पार्टी ही कानूनन अवैधानिक है.’

आप के ही एक असंतुष्ट नेता कंवर संधू, जिन्हें पार्टी ने नवंबर 2018 में सुखपाल सिंह खैरा के साथ निलंबित कर दिया गया था, ने खैरा को ‘कैरियर केंद्रित राजनेता’ बताया.

संधू ने कहा, ‘वह जिन लोगों का प्रतिनिधित्व कर उनकी सेवा करने का दावा करते हैं, उन्हीं की कीमत पर बतौर राजनेता अपना कैरियर चमकाने में लगे हैं.’

आप विधायक हरपाल चीमा ने भी इस राय का समर्थन किया. आप विधायक ने दिप्रिंट से कहा, ‘वह केवल अपने बारे में सोचते हैं और सत्ता का साथ चाहते हैं. वह सत्ता के इतने भूखे हैं कि इसीलिए किसी विचारधारा के लिए कोई जगह नहीं है.’

पंजाब से बाहर रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और कॉलमिस्ट जतिंदर पन्नू ने दिप्रिंट को बताया कि जब आम आदमी पार्टी की कमान एक ही व्यक्ति के हाथों में होने के खिलाफ खैरा मुखर थे, तब भी वह राज्य में पार्टी की बागडोर संभालना चाहते थे.

पन्नू ने कहा, ‘उनकी नजर राज्य के नेता पद पर थी, लेकिन मान (आप सांसद और राज्य इकाई के प्रमुख भगवंत मान) एक राजनीतिक दिग्गज हैं, जिसका आप को अच्छा इस्तेमाल करने की जरूरत थी और यह साबित भी हो चुका है.’

पन्नू ने यह भी कहा कि खैरा ने दिल्ली में आप के केंद्रीय नेतृत्व को ‘उन्हें कोई भूमिका नहीं देने’ का जिम्मेदार ठहराया था.

पन्नू ने कहा, ‘वह हमेशा से यही चाहते थे कि फैसले उनके नेतृत्व में लिए जाएं क्योंकि उन्हें लगता था कि दिल्ली वालों को यह पता ही नहीं कि पंजाब के लोग क्या चाहते हैं. लेकिन अब उनके कांग्रेस में शामिल होने से यह सब कैसे बदलेगा क्योंकि कुछ फैसले तो फिर से दिल्ली में बैठे नेताओं की तरफ से ही लिए जाएंगे.’

बहरहाल, खुद खैरा का मानना है कि आप में शामिल होना उनकी गलती थी. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘2015 में आप में शामिल होना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. अरविंद केजरीवाल एक तानाशाह हैं, यह मुझे तब समझ आया जब मैंने पार्टी में रहकर काम किया.’

उन्होंने अपने ऊपर लगे राजनीतिक अवसरवादी होने के आरोपों को भी सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘आजकल कौन अवसरवादी नहीं है? तो सिर्फ मुझ पर ही यह लेबल क्यों लगाया जा रहा. इसके अलावा, अपनी पूरी यात्रा में मैं कम से कम भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं रहा हूं.’


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विवादों से नाता नया नहीं

एक अनुभवी अकाली नेता और पंजाब के पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय सुखजिंदर सिंह खैरा के घर जन्मे खैरा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1994 में अपने गृह जिले कपूरथला से की थी.

1997 में युवा कांग्रेस में शामिल होने और इसके उपाध्यक्ष नियुक्त होने से पहले वह रामगढ़ ग्राम पंचायत के सदस्य के रूप में चुने गए थे.

बिशप कॉटन स्कूल, शिमला और चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्र रहे इस 56 वर्षीय राजनेता का विवादों से नाता कोई नया नहीं है.

2015 में उनका नाम मादक पदार्थों की बरामदगी के एक मामले से जुड़ा था जिसमें अक्टूबर 2017 में नौ लोगों को दोषी ठहराया गया था. उसी आदेश में ट्रायल कोर्ट ने ‘अतिरिक्त आरोपी’ के तौर पर पेशी के लिए उन्हें बुलाया था, हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.

इसी केस के सिलसिले में उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस की थी. इस साल मार्च में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ड्रग्स से जुड़े मामले के संबंध में पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) के प्रावधानों के तहत उनके परिसरों पर छापा मारा था.

खैरा और उनके सहयोगी बार-बार जोर देकर कहते रहे हैं कि ईडी की कार्रवाई मोदी सरकार के कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को उनके समर्थन के कारण की गई थी. वह किसानों के मुखर समर्थक रहे हैं और पिछले साल नवंबर में तो उन्होंने पंजाब के लोगों से नए कृषि कानूनों के विरोध में ‘काली दिवाली’ मनाने की अपील तक कर डाली थी.

कांग्रेस नेता ने 2018 में भी अच्छा-खासा विवाद खड़ा कर दिया था, जब उन्होंने खालिस्तान का अलग राष्ट्र बनाने संबंधी अलगाववादी सिखों के संगठन के रेफरेंडम 2020 का समर्थन किया था.

बाद में उन्होंने यह दावा करते हुए अपना रुख बदला कि वह कभी इसके पक्ष में नहीं थे लेकिन इससे पहले ही वह आप के शीर्ष नेतृत्व को खासा नाराज कर चुके थे.

पंजाब कांग्रेस के कई नेताओं ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री ऐसे विचारों को बर्दाश्त नहीं करेंगे.

पंजाब कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘खैरा को पार्टी लाइन से कदमताल करते हुए अपने तरीके सुधारने होंगे, अलग रुख नहीं चलेगा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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