नई दिल्ली: डेयरी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी अमूल ने डेयरी उद्योग में पशुओं के साथ क्रूरता के आरोपों को लेकर भारत में दूध के विकल्प के तौर पर ‘पौधों पर आधारित पेय’ को बढ़ावा देने की एनजीओ की मांग के जवाब में ईश्वरतुल्य गोवंश का हवाला दिया है.
अमूल ब्रांड को चलाने वाले गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन ने भारत में डेयरी के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए मंगलवार को प्रमुख अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कराया और ‘मिथक तोड़ने वाले’ कई ‘तथ्यों’ को सामने रखा.
विज्ञापन में अमूल ने कहा कि 4,500 साल पहले हड़प्पा सभ्यता के समय से ही दूध भारतीय जीवन का अभिन्न अंग रहा है. इसने यह भी रेखांकित किया कि हिंदू देवता भगवान कृष्ण गायों की देखभाल करने वाले एक लोकप्रिय ‘ग्वाला’ ही थे.
‘कामधेनु’, ‘सुरभि’, ‘गौमाता’ और ‘नंदिनी’ जैसे ईश्वरतुल्य गोवंश का नाम लेते हुए विज्ञापन में कहा गया है कि भारत में गायों की पूजा की जाती है. इसलिए, किसान मानव उपभोग के लिए दूध उत्पादन के लिए गोवंश के साथ क्रूर व्यवहार नहीं कर सकते हैं.
इसमें यह भी कहा गया कि दूध पूरी तरह से प्राकृतिक सुपरफूड और शाकाहारी है, जबकि पौधों पर आधारित पेय पदार्थों में स्टेबलाइजर्स और थिकनिंग एजेंट जैसे यौगिक भी होते हैं और इसकी लागत छह गुना अधिक होती है.
अमूल के प्रबंध निदेशक आर.एस. सोढ़ी ने इस मामले में दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि देश में पशुओं के साथ क्रूरता की ‘कोई गुंजाइश’ नहीं है. सोढ़ी ने कहा, ‘भारत में गायों का बाकायदा नाम रखा जाता है और परिवार के सदस्यों की तरह माना जाता है. परिवार में उन्हें अन्य किसी से भी पहले भोजन दिया जाता है और ठीक से नहलाया-धुलाया जाता है और उनकी देखभाल की जाती है. ऐसे में किसी तरह की क्रूरता का व्यवहार संभव ही नहीं है.’
यह कदम एनजीओ पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) की तरफ से अमूल को शाकाहारी दूध का उत्पादन करने के लिए कहे जाने के करीब एक माह बाद उठाया गया है. पशु अधिकार संगठन ने भारत की दिग्गज कंपनी को लिखे एक पत्र में ‘शाकाहारी दूध’ को लेकर बढ़ती रुचि की ओर इशारा करते हुए कहा था, ‘यदि आप उन्हें पछाड़ नहीं सकते तो उनके साथ जुड़ जाएं.’
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‘भारतीय डेयरी उद्योग की गलत छवि’
सोढ़ी के अनुसार, डेयरी क्षेत्र भारत की पारिस्थितिकी से जुड़ा और ‘आठ लाख करोड़ रुपये का उद्योग’ ग्रामीण जीवन के लिए एक बड़ा सहारा है. उन्होंने दावा किया कि अगर वे पौधों पर आधारित पेय पदार्थों की ओर रुख करते हैं, तो इसकी कीमत ‘24 लाख करोड़ रुपये’ होगी और इसमें भी अधिकांश हिस्सा ‘आयात’ पर आधारित होगा.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम डेयरी मिल्क से दूर होते हैं, तो भूमिहीन किसान अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे और हमारी जरूरत पूरी करने के लिए जैविक खाद कहां से आएगी? 1.35 अरब भारतीयों के लिए दूध सबसे सस्ता और प्राकृतिक पोषक तत्व है.’ साथ ही जोड़ा देश में 20 करोड़ मीट्रिक टन दूध का उत्पादन होता है.
इस दावे पर कि जानवर दूसरे जानवरों का दूध नहीं पीते, सोढ़ी ने कहा कि कुत्ते और बिल्लियां, जो सामान्यत: पालतू जानवरों के तौर पर लोकप्रिय हैं, दूध ही पीते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम शाकाहारी या पौधों पर आधारित पेय पदार्थों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें भारतीय डेयरी उद्योग को बदनाम करने की कीमत पर ऐसा नहीं करना चाहिए. वे इस बात को साबित करने वाला कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं देते हैं कि यह डेयरी उत्पाद से कैसे बेहतर हैं.’
इस क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञ भी एक कथित साजिश की ओर इशारा करते हुए उनके इन विचारों से सहमति जताते हैं.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पशुपालन और डेयरी विभाग के प्रोफेसर गुरु प्रसाद सिंह ने कहा, ‘ये विदेशी एनजीओ भारत की स्थापित मान्यताओं और परंपराओं से परिचित नहीं हैं. वे अपने व्यावसायिक मुनाफे के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारे पर डेयरी को निशाना बना रहे हैं. वे भारत में गहरी जड़ें जमाए डेयरी और पशुधन पालन उद्योग को क्षति पहुंचाने की कोशिशें कर रहे हैं.’
सिंह ने कहा, ‘हम बिना किसी बड़े पूंजी निवेश के दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक हैं, और यही बात उनकी परेशानी की वजह है.’
उन्होंने कहा, ‘वे भारतीय डेयरी उद्योग को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं…यह भारत में दूध और डेयरी के विशाल असंगठित क्षेत्र को तहस-नहस करके विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता खोलने का एक सामूहिक प्रयास है.’ साथ ही जोड़ा कि पोल्ट्री उद्योग में बड़े पैमाने पर क्रूरता होती है, लेकिन उन्होंने कभी उस ओर झांकने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.
रस्साकशी क्यों
शाकाहारी दूध पर यह सारी रस्साकसी अगस्त 2020 में खाद्य नियामक, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की तरफ एक अधिसूचना जारी करने के बाद शुरू हुई, जिसमें बादाम, सोया, राइस और ओट्स से प्राप्त पेय पदार्थों वाले उत्पादों के लिए ‘दूध’ शब्द का इस्तेमाल न करने का प्रस्ताव किया गया था.
फिर इस साल अमूल ने ‘पौधों पर आधारित पेय’ के मिथक तोड़ने वाला एक अभियान चलाया. इस पर पेटा और दो अन्य संगठनों ब्यूटी विदाउट क्रुएल्टी और शरण इंडिया ने इस अभियान के खिलाफ भारतीय विज्ञापन मानक परिषद में याचिका दायर की. मई में ये याचिका खारिज की जा चुकी है.
इसके बाद पेटा ने वह पत्र लिखा जिसका ऊपर जिक्र किया गया है और जिसमें अमूल को शाकाहारी दूध की तरफ स्विच करने को कहा गया है—इस आइडिया को सोढ़ी ने सिरे से नकार दिया है. यही नहीं, डेयरी कोऑपरेटिव के उपाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि ‘विदेशी साजिश’ के तहत उद्योग की छवि खराब करने के लिए पेटा पर प्रतिबंध लगाया जाए.
गोवंश से जुड़े एनजीओ डियर काउज के सह-संस्थापक और निदेशक सर्वेश पांडे कहते हैं, ‘भारतीय कृषि में अर्थव्यवस्था का चक्का घुमाने में गाय बेहद उपयोगी मानी जाती हैं….यदि हम पौधों पर आधारित पेय पदार्थों की ओर रुख करते हैं तो अलमांड मिल्क अमेरिका से आयात किया जाएगा, जहां से पेटा का संबंध है और यह भारतीय कृषि का सहारा छीनने जैसा होगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘बादाम को शिपलोड करके आयात किया जाएगा, इन बादामों की खेती की प्रक्रिया हजारों मधुमक्खियों की जान लेती है…पेटा भारत में पशुओं के लिए अभियान चलाता है लेकिन जानवरों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई सिस्टम नहीं बनाता.’
भारत में कई कंपनियों जैसे सोफिट, एपिगैमिया और अर्बन प्लैटर ने दूध के लिए शाकाहारी विकल्प शुरू किए हैं लेकिन वे डेयरी क्षेत्र की तुलना में बहुत छोटे हैं. हालांकि, महंगे उत्पादों के बावजूद इन कंपनियों ने शहरों में अपना अहम मुकाम हासिल कर लिया है. अमूल दूध के एक टेट्रा पैक की कीमत 50 रुपये प्रति लीटर है, जबकि सोफिट सोया दूध का दाम 140 रुपये प्रति लीटर से अधिक है.
भारतीय डेयरी का वैकल्पिक बाजार 2018 में 20.9 मिलियन डॉलर था और फिटनेस एक्टीविटीज में युवाओं की बढ़ती भागीदारी और लो फैट वाले दुग्ध पेय के प्रति उपभोक्ताओं के रुझान के कारण इसके 2024 तक 20.7 प्रतिशत सीएजीआर के साथ बढ़कर 63.9 मिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
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