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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशनोटबंदी के दौरान 2.5 लाख रुपए से कम जमा कराने वाली गृहिणियों पर नहीं लगेगा टैक्स: I-T ट्रिब्युनल

नोटबंदी के दौरान 2.5 लाख रुपए से कम जमा कराने वाली गृहिणियों पर नहीं लगेगा टैक्स: I-T ट्रिब्युनल

ट्रिब्युनल का कहना है कि महिलाओं ने वो नक़द पैसा, विभिन्न स्रोतों से जमा किया था, जिसे नोटबंदी के दौरान उन्हें बैंक खातों में जमा करना पड़ा, इसलिए उसे कर योग्य आमदनी नहीं माना जा सकता.

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नई दिल्ली: आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण ने शुक्रवार को फैसला दिया कि ऐसी गृहिणियों पर कोई टैक्स नहीं लगेगा जिन्होंने नोटबंदी के दौरान 2.5 लाख से कम नक़द राशि बैंकों में जमा कराई थी.

ट्रिब्युनल की आगरा बेंच ने, जिसमें ललित कुमार (न्यायिक सदस्य) और डॉ मीठा लाल मीना (अकाउंटेंट सदस्य) शामिल थे, ज़ोर देकर कहा कि दिश भर में महिलाओं ने वो नक़द पैसा, विभिन्न स्रोतों से जमा किया था, जिसे नोटबंदी के दौरान उन्हें बैंक खातों में जमा करना पड़ा. ट्रिब्युनल का विचार था कि इस पैसे को, कर योग्य आमदनी नहीं माना जा सकता.

ट्रिब्युनल ने कहा, ‘देश भर की महिलाएं वो नक़दी जमा करती आ रहीं थीं, जिसे उन्होंने अपने घरेलू बजट में ख़ुद, सब्ज़ी विक्रेताओं, टेलर्स, किराना विक्रेताओं, और अलग-अलग व्यवसायियों से मोल-भाव करके बचाया था, रिश्तेदारों से मिले छोटे-छोटे नक़द उपहार जमा करके रखे थे, उन पैंटों की जेब से निकली रेज़गारी जमा की थी, जिन्हें वो रोज़ाना धोती थीं. लेकिन, फिर अचानक उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा, सिवाय इसके कि 500 और 1,000 रुपए के नोटों को बैंकों में जमा कर दें, क्योंकि 2016 की नोटबंदी स्कीम के तहत, ये नोट अब वैध मुद्रा नहीं रहे थे.

ट्रिब्युनल ने मनुस्मृति का ये कहते हुए हवाला दिया, कि ‘भारतीय संस्कृति में महिलाओं का एक विशेष स्थान है’. उसने कहा कि 1927 में महात्मा गांधी ने महिलाओं को प्रोत्साहित किया था, कि अपने स्त्रीधन और अन्य बचत का दान करके, स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दें. उसने कहा कि एक ‘ऐसा ही आह्वान पूर्व पीएम पंडित नेहरू ने, 1962 के युद्ध के दौरान किया था, जब उन्होंने महिलाओं से इस काम के लिए, अपने गहने दान करने की अपील की थी’

ट्रिब्युनल ने कहा कि ऐसा ‘सिर्फ ये दिखाने के लिए दर्ज किया जा रहा है, कि भारत की महिलाएं हमेशा से परिवार के लिए, कुछ पैसा जमा करती आईं हैं’.

उसने आगे कहा कि 18 नवंबर 2016 को, सरकार ने गृहिणियों, कामगारों, और कारीगरों को आश्वस्त किया था, कि 2.5 लाख रुपए तक जमा की गई रक़म पर, कोई सवाल नहीं किया जाएगा.

इसके अलावा, 21 फरवरी 2017 को केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की ओर से जारी एक आदेश के अनुसार, निर्धारण अधिकारी को नोटबंदी स्कीम 2016 के दौरान, बैंक खातों में जमा की गई नक़दी पर कर लगाने का अधिकार नहीं है, अगर वो रक़म 2.5 लाख से कम थी.

ट्रिब्युनल फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचा, कि इस मामले में नोबंदी के दौरान जमा कराई गई रक़म, आमदनी नहीं मानी जा सकती, और उस पर इस तरीक़े से टैक्स नहीं लगाया जा सकता. उसने कहा कि इस फैसले को ऐसे मामलों में नज़ीर के तौर पर लिया जा सकता है, जहां नोटबंदी स्कीम के दौरान गृहिणियों ने, 2.5 लाख रुपए की सीमा तक नक़द नोट जमा कराए थे.


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नक़द जमा को आय माना गया था

ट्रिब्युनल की आगरा बेंच ग्वालियर स्थित उमा अग्रवाल की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें नक़द जमा को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 69ए के तहत, अस्पष्टीकृत पैसा माना गया था.

धारा 69ए का संबंध ऐसी स्थिति से है, जिसमें पाया जाता है कि किसी वित्त वर्ष में निर्धारिती के पास, आय के स्रोत के तौर पर, कोई पैसा, सोना-चांदी, गहने, या बहुमूल्य वस्तु है, और निर्धारिती ने उसे न तो अपने बही-खातों में दर्ज किया है, और न ही उसकी प्राप्ति की प्रकृति और स्रोत को लेकर कोई स्पष्टीकरण दिया है. प्रावधान में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में, निर्दिष्ट क़ीमती सामान को, उस विशेष वित्तीय वर्ष के लिए, निर्धारिती की आय मान लिया जाता है.

ऐसे अस्पष्टीकृत पैसे पर आयकर की, बहुत ऊंची, 83.25 प्रतिशत (60 प्रतिशत टैक्स+15 प्रतिशत सरचार्ज+6 जुर्माना+2.25 प्रतिशत एजुकेशन सेस) दर लगती है.

अग्रवाल ने निर्धारण वर्ष 2017-18 के लिए, 1.3 लाख रुपए की कुल आय घोषित की थी. नोटबंदी के दौरान उन्होंने अपने बैंक खाते में, 2,11,500 रुपए जमा कराए थे, और कहा था कि उन्होंने ये बचत उस पैसे से की थी, जो उनके पति, बेटे और रिश्तेदारों ने उन्हें दिया था.

लेकिन, निर्धारण अधिकारी और आयकर आयुक्त (अपील्स) ने, उनके स्पष्टीकरण को संतोषजनक नहीं माना, और इस रक़म को आमदनी क़रार दिया, जिसपर टैक्स देनदारी बनती थी.


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‘कैश उन्हें आज़ादी देता है’

ट्रिब्युनल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनवरी में दिए गए, एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें बीमा दावों के मामले में लैंगिक असमानता पर प्रकाश डाला था और आदेश दिया था कि ऐसे मामलों में, बिना-कमाई वाली ग्रहिणियों की, एक काल्पनिक आय निर्धारित की जाए.

उसने कहा कि भारत में बहुत सी महिलाओं के बैंक खाते नहीं होते, और ‘महिलाएं (सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों में) अक्सर पुरुष रिश्तेदारों के साथ आती हैं, और वो ही अपनी महिला रिश्तेदारों की ओर से, नया खाता खोलने, या पैसा जमा करने आदि के काम में, बैंक अधिकारियों से डील करते हैं’.

उसने आगे कहा, ‘इसलिए, संक्षेप में, औपचारिक वित्तीय चैनलों तक पहुंचने के लिए, महिलाओं को पुरुष रिश्तेदारों की सहमति चाहिए होती है, जबकि नक़दी उन्हें एक हद तक आज़ादी देती है.


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