चीन के साथ जारी लद्दाख गतिरोध ने हमें एक बात सिखाई है, राजनयिक और आर्थिक उपायों के साथ-साथ एकीकृत सैन्य कमान का दृष्टिकोण ही आगे बढ़ने का रास्ता है.
एक साल पूर्व जब गलवान संघर्ष शुरू हुआ था तो भारत ने जवाब में कुछ आर्थिक कदम उठाने और कूटनीतिक प्रयास तेज करने के अलावा वायु सेना और नौसेना दोनों को पूरी तरह ऑपरेशनल मोड में डाल दिया था. तीनों सेना प्रमुख और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल बिपिन रावत हर दिन बैठक करते थे और जो भी कदम उठाने जरूरी होते थे उन पर संयुक्त रूप से काम करते थे.
नतीजा यह हुआ कि चीन ने महसूस किया कि भारत को पीछे नहीं धकेला जा सकता, यद्यपि गतिरोध जारी है और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने अभी भी उन क्षेत्रों पर कब्जा बना रखा है जिन पर भारत अपना दावा जताता है.
चीन के साथ जारी तनाव के बीच ही भारतीय सेना में सुधार के लिए चुपचाप कार्य चलता रहा और 18 सैन्य कमानो (अंडमान और निकोबार त्रिसेवा कमान सहित) को कुछ संयुक्त कमान या थिएटर कमांड में बदलने का प्रस्ताव इसी का नतीजा है.
सैन्य मामलों के विभाग के सचिव के रूप में जनरल रावत को ‘संयुक्त/थिएटर कमान की स्थापना के साथ-साथ संयुक्त रूप से अभियानों को अंजाम देने के दौरान संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए सैन्य कमानों के पुनर्गठन की व्यवस्था करने का भी जिम्मा सौंपा गया है.’
यह व्यापक बदलाव, जो सेना में नजर आने वाला सबसे बड़ा सुधार होगा, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना को एक सुसंगत और सशक्त संयुक्त युद्धक इकाई के तौर पर स्थापित करेगा. यह दीर्घकालिक अवधि में लागत में कटौती करने वाला भी साबित होगा क्योंकि प्रत्येक सैन्य सेवा के लिए अलग-अलग खर्च के बजाये संसाधनों और लॉजिस्टिक्स का साझे तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा.
लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं. कॉन्सेप्ट नोट पर पिछले हफ्ते एक अहम बैठक के दौरान यह बात सामने आई कि इसमें शामिल सभी पक्ष, तीनों सैन्य सेवाओं समेत, संयुक्त कमान या थिएटर कमांड की वास्तविक संरचना पर एकमत नहीं हैं. नरेंद्र मोदी सरकार का मानना है कि इस पर और चर्चा होनी चाहिए.
सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने अक्टूबर 2020 में एकीकृत थिएटर कमान का स्वागत करते हुए कहा था कि प्रक्रिया को ‘सोच-समझकर, विचारशीलता और सुविचारित ढंग से आगे बढ़ाने की जरूरत है. इसके पूरी तरह आकार लेने में कई साल लगेंगे.’
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चूंकि संयुक्त या थिएटर कमांड का भविष्य में सेना की युद्धक रणनीति पर बड़ा और दूरगामी असर पड़ेगा, इसलिए जरूरी है कि सभी पक्ष पूरी तरह से एकराय हों.
मौजूदा योजना
मौजूदा योजना के मुताबिक, 18 कमानों को पांच थिएटर—नॉर्दन लैंड थिएटर (जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और सेंट्रल सेक्टर), वेस्टर्न लैंड थिएटर (पाकिस्तान केंद्रित), ईस्टर्न लैंड थिएटर, मैरीटाइम थिएटर कमांड और एयर डिफेंस कमांड के तहत एक साथ लाया जाना है. रसद और प्रशिक्षण के मामलों के लिए एक या दो अतिरिक्त कमान हो सकती हैं.
शुरुआत में सबसे पहले दो कमान मैरीटाइम थिएटर कमांड (एमटीसी) और एयर डिफेंस कमांड (एडीसी) को रोल-आउट किया जाएगा.
एमटीसी में पूर्वी और पश्चिमी नौसैनिक कमानों का विलय होगा, साथ ही सेना और वायुसेना दोनों के अधिकारी शामिल किए जाएंगे. सभी पांच क्षेत्रों से तटरक्षक बल के संसाधनों को इस भी इसके ऑपरेशनल कंट्रोल में लाने की योजना है. एमटीसी का नेतृत्व नौसेना का एक थ्री-स्टार अधिकारी करेगा. इसमें भारतीय वायुसेना का एक टू-स्टार अधिकारी और सेना का एक थ्री-स्टार अधिकारी भी होगा.
इसी तरह, एडीसी का संचालन एक थ्री-स्टार वायुसेना अधिकारी के साथ एक थ्री-स्टार थल सेना अधिकार और एक टू-स्टार नौसेना अधिकारी के नेतृत्व में होगा.
योजना के मुताबिक, अन्य थिएटर का नेतृत्व भारतीय सेना के थ्री-स्टार अधिकारी के अलावा वायुसेना और नौसेना के अधिकारियों के जिम्मे होगा.
इसके अलावा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को नॉर्दन लैंड थिएटर और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) को ईस्टर्न लैंड थिएटर का हिस्सा बनाने की योजना है.
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चिंताएं जताई जा रहीं
थिएटर कमांड की संरचना को लेकर रक्षा प्रतिष्ठान के भीतर तीखी बहस चल रही है.
कई तरह के मुद्दे उठाए गए हैं. क्या थिएटर कमांड भारत की चुनौतियों (चीन और पाकिस्तान) पर आधारित होगी या पूरे देश के लिए एक थिएटर कमांड होगी?
इससे भी बड़ी आशंका यह है कि ‘लैंड’ जैसे नामकरण के साथ इसका झुकाव थल सेना की ओर ज्यादा लगता है जो इसके उद्देश्यों पर खरा नहीं उतरता.
इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि पाकिस्तान के साथ जंग की स्थिति में कम से कम चार थिएटर हरकत में आएंगे. वहीं, चीन के साथ युद्ध की स्थिति में कम से कम चार थिएटर सक्रिय होंगे जबकि पांचवां, वेस्टर्न लैंड थिएटर हाई अलर्ट पर रहेगा.
हालांकि, चीन की तरफ से वेस्टर्न थिएटर कमांड भारत से लगने वाली पूरी सीमाओं पर नजर रखेगी. इसमें शामिल होने वाली एकमात्र अतिरिक्त थिएटर कमांड नौसेना की होगी—या तो पूर्वी, दक्षिणी या उत्तरी थिएटर.
इस डर कि भारत के समक्ष युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने पर कई थिएटर इसमें शामिल हो जाएंगे, के जवाब में तर्क यह है कि हमेशा युद्ध के लिए प्राइमरी थिएटर और एक सेकेंडरी थिएटर होगा और योजना बनाते समय इसे ध्यान में रखा गया है,
थिएटराइजेशन योजना के तहत सभी कमान में तीनों सैन्य सेवाओं के अधिकारी शामिल होंगे. नौसेना के संसाधनों को साझा करने की गुंजाइश तो काफी कम है लेकिन आईएएफ के उपकरणों के मामले में ऐसा हो सकेगा. अभी आईएएफ की संपत्तियां वायु सेना मुख्यालय के माध्यम से केंद्रीय रूप से नियंत्रित और संचालित होती है, यद्यपि कई एयर कमान हैं.
मौजूदा योजना के मुताबिक, प्रत्येक थिएटर को अपनी आईएएफ संपत्ति मिलेगी. माना जा रहा है कि इससे ऑपरेशनल क्षमता प्रभावित हो सकती होगी क्योंकि संसाधन तो सीमित ही हैं और लड़ाकू स्क्वाड्रन की ताकत पहले से ही बहुत कम है—42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत क्षमता के मुकाबले 30 स्क्वाड्रन ही हैं.
पूर्व वायु सेना प्रमुख एसीएम बी.एस. धनोआ ने पद पर रहने के दौरान कहा था कि केवल एक ही थिएटर हो सकता है—भारत—और तीनों सेनाओं की तरफ से संयुक्त योजनाओं के संस्थागत ढांचे पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.
यद्यपि नौसेना मैरीटाइम थिएटर कमांड बनाने के पक्ष में है, लेकिन सैन्य बल के अंदर ही इस तरह की आवाजें उठती रहती हैं कि स्वतंत्र रूप से पश्चिमी नौसेना कमान और पूर्वी नौसेना कमान तो पहले से ही मौजूद हैं जो अपने अभियान संबंधी विशिष्ट क्षेत्रों को ठीक से संभाल रही हैं.
एक सूत्र ने कहा, ‘हर सैन्य बल के हथियार/संपत्तियां इतनी ज्यादा नहीं है कि उसे थिएटर के स्तर पर रखा और बांटा जा सके. भारतीय वायुसेना को भूल ही जाइए, जिसके पास पहले से ही विमानों और निगरानी वाले सैन्य उपकरणों की कमी है, सेना को भी चीन के साथ जारी गतिरोध के दौरान उत्तरी कमान में अतिरिक्त रिजर्व संसाधन और सैन्य उपकरण पहुंचाने पड़े थे.
एक अन्य सूत्र ने बताया कि चीन 1980 के दशक से ही एक नई युद्धक रणनीति पर ध्यान केंद्रित कर रहा था और इसकी शुरुआत मिसाइलों, जहाजों और विमानों के लिए स्वदेशी तकनीक बढ़ाने के साथ-साथ सैन्य कर्मियों की क्षमता और उन पर खर्च में धीरे-धीरे कटौती के साथ हुई थी.
लेकिन चीन के पास अधिक सैन्य उपकरणों पर खर्च करने के लिए जरूरी आंकड़े और पैसा है और विशिष्ट थिएटर भी हैं, इस मामले में भारत उसकी बराबरी नहीं कर सकता है.
संयोग से लगभग 14 लाख सैन्य कर्मियों के साथ भारतीय सेना चीन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे बड़ी थल सेना बन गई है, जिसने अपनी ताकत घटाकर आधी कर दी है और इसके अपनी नौसेना, वायु सेना और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
कुछ सेवानिवृत्त शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने थिएटर कमान को मौजूदा फॉरमेट में शुरू किए जाने के खिलाफ संबंधित सरकारी अधिकारियों को लिखा है.
चिंता का एक और विषय यह है कि इन थिएटर कमान का नेतृत्व कौन करेगा. मौजूदा योजना के मुताबिक थिएटर कमांडर सीडीएस को रिपोर्ट करेंगे और संबंधित सेना के प्रमुख का कार्य प्रशासनिक और प्रशिक्षण केंद्रित अधिक होगा.
अमेरिका और चीन में थिएटर कमांडर राजनीतिक नेतृत्व को रिपोर्ट करते हैं.
कुछ ने यह देखने के लिए कि पूरी प्रक्रिया कितनी प्रभावी या निष्प्रभावी साबित होगी, युद्धक योजना बनाए बिना एक अवधारणा के साथ आगे बढ़ने को लेकर भी चिंता जताई है.
एक अन्य वर्ग का विचार यह है कि एकीकृत सैन्य कमान की दिशा में पहला कदम संयुक्त प्रशिक्षण होना चाहिए. इसके पीछे सोच यह है कि सबसे पहले तो एक साथ योजना बनाने और एक साथ जंग लड़ने के लिए लोगों को एक साथ प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है.
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आशंकाएं अपेक्षित लेकिन आगे के लिए एकीकरण वाला नजरिया ही सही
थिएटर कमान को लेकर विभिन्न हलकों में चिंताएं जताना स्वाभाविक ही है. मोदी सरकार को इसे बहुत सावधानी से संभालने की जरूरत होगी क्योंकि सेनाएं शायद ही कभी किसी बदलाव के लिए तैयार होती हैं.
जैसा हर्ष वी. पंत और जविन आर्यन ने अक्टूबर 2020 में लिखा था, ‘सेना के विभिन्न अंगों के बीच चलने वाली प्रतिस्पर्धा, जिसमें हर एक की तरफ से पूरे उत्साह के साथ अपने संसाधनों पर नजर रखी जाती है और रक्षा बजट में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा हासिल करने की कोशिश होती है, और उनकी अहमियत सेनाओं के बीच तालमेल में बाधा साबित हो सकती है.’
हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं कि जहां तमाम चिंताओं और आशंकाओं को समझने और उन पर ध्यान देने की जरूरत है, वहीं हमारी साइबर और स्पेस वारफेयर क्षमताओं के विस्तार के साथ एकीकृत युद्धक रणनीति ही आगे बढ़ने का एकमात्र विकल्प है.
लेकिन संयुक्त कमान संरचना के साथ भारत के सीमित अनुभव को देखते हुए मैं सेना प्रमुख के बयान को दोहराना चाहूंगा, ‘प्रक्रिया सोची-समझी, विचारशील और सुविचारित होनी चाहिए.’
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस प्रक्रिया के दौरान बीच-बीच में कुछ सुधारों की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन एक मजबूत नींव तैयार करना उतना ही जरूरी है.
व्यक्त विचार निजी है.
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