नई दिल्ली: मोदी सरकार ने भले ही तेज़ी के साथ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भारत में मौतों की संख्या की ‘अटकलों’ को ख़ारिज कर दिया हो, लेकिन उसे चिंता सता रही है कि कोविड से हो रही रोज़ाना मौतों में घटते मामलों के अनुपात में गिरावट नहीं आई है.
केंद्र सरकार अब राज्यों को मौतों का ऑडिट कराने के लिए ठेल रही है, ताकि एक ज़्यादा वास्तविक अनुमान पर पहुंचा जा सके और उसने स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) से सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) की ओर से मिले, मौतों के ताज़ा आंकड़ों पर नज़र डालने के लिए कहा है, जिसमें सभी मौतों का हिसाब रखा जाता है.
1 जून से 15 जून के बीच दो सप्ताह की अवधि में रोज़ाना के पॉज़िटिव मामलों में आधे से ज़्यादा (53%) गिरावट आई है, जो 1,32,788 से घटकर 62,224 पर आ गई है. लेकिन, रोज़ाना की मौतों में इस अनुपात से कमी नहीं हुई है- कोविड से हुई मौतें 3,207 से घटकर 2542 पर आई हैं, जो क़रीब 20 प्रतिशत की गिरावट है.
सीआरएस डेटा दूसरी कोविड-19 लहर के दौरान हुई अतिरिक्त मौतों का अनुमान तो दे सकता है, लेकिन उन्हें महामारी से जोड़ना तभी संभव होगा, जब सभी राज्य मौतों की संख्या का पूरी बारीकी और विस्तार के साथ ऑडिट करेंगे.
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआई) ऑफिस के सूत्रों का कहना है कि महामारी से पहले भी उसके पास केवल 22 प्रतिशत मौतों के चिकित्सा कारणों की जानकारी थी.
आरजीआई ऑफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हम फिलहाल 2019 की रिपोर्ट्स संकलित कर रहे हैं. अभी हमारे पास 2021 का डेटा नहीं है; वो अभी राज्य सरकारों के पास है. लेकिन ये अनुमान लगा लेना सही नहीं होगा कि सभी अतिरिक्त मौतें कोविड-19 की वजह से हुई होंगी, क्योंकि महामारी से पहले भी मौतों के चिकित्सा कारणों को, अच्छे से दर्ज नहीं किया जाता था’.
‘हमारे पास केवल 22 प्रतिशत मौतों के चिकित्सा कारणों के बारे में जानकारी है. और ये आंकड़े भी महामारी से पहले के हैं’.
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ऊंची संख्या के पीछे ‘शेष रह गईं’ मौतों को जोड़ने की आशंका
अभी तक केवल दो राज्यों, बिहार और महाराष्ट्र ने अधिकारिक रूप से शेष रह गई मौतों को- जो पहले हुईं थीं लेकिन जिन्हें कोविड-19 से नहीं जोड़ा गया था- महामारी से हुई मौतों में जोड़ा है.
लेकिन, अधिकारियों ने कहा कि इस बात की आशंका जताई जा रही है कि बहुत से राज्य मौतों की बक़ाया संख्या को, खुलकर ज़ाहिर किए बिना मौतों के दैनिक आंकड़ों में जोड़ रहे हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘आपको समझना होगा कि मौतों की हमारी रोज़ाना की संख्या, दैनिक मामलों में आई गिरावट के अनुपात से कम नहीं हुई है. अगर आप 15 दिन के विलंब (रोग निदान और मौत के बीच की औसत अवधि) को ध्यान में रखें, तो भी ये आंकड़े मेल नहीं खाते)’.
‘इसीलिए हमने राज्यों को अपने यहां, मौतों का ऑडिट कराने के लिए लिखा है. हमने महाराष्ट्र और बिहार से भी कहा है कि मौतों को जोड़ते समय, तिथि और ज़िले आदि का विवरण दिया जाना चाहिए. उससे हम बीमारी के व्यवहार को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और उनका विश्लेषण करके भविष्य के लिए योजना बना पाएंगे’.
स्वास्थ्य मंत्रालय सूत्रों ने कहा कि जिन छह राज्यों के आंकड़ों को लेकर विशेष चिंता है, और जिनके व्यवस्थित ऑडिट की सख़्त ज़रूरत है, वो हैं पश्चिम बंगाल, तमिनाडु, केरल, कर्नाटक, बिहार, और महाराष्ट्र.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘हम ये नहीं कह रहे हैं कि वो संख्या में हेराफेरी कर रहे हैं. हम केवल ये कह रहे हैं कि अगर हमें महामारी के प्रभाव का सही मूल्यांकन करना है तो रिपोर्टिंग और ऑडिटिंग में सुधार लाना होगा’.
दि इकॉनमिस्ट को सरकार का जवाब
इस बीच, दि इकॉनमिस्ट में छपे एक लेख का खंडन करते हुए, जिसमें कहा गया है कि भारत में कोविड-19 मौतों का आंकड़ा, आधिकारिक अनुमानों से कई गुना अधिक हो सकता है, मोदी सरकार ने लेख को ‘काल्पनिक’ क़रार दिया, जिसका ‘कोई आधार नहीं है, और जो ग़लत सूचना देता है’.
एक प्रेस नोट में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार अपने दृष्टिकोण में पारदर्शी रही है.
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी नियमित रूप से, एक मज़बूत रिपोर्टिंग प्रणाली की आवश्यकता पर बल देता रहा है, जिससे कि रोज़ाना के आधार पर, ज़िलावार मामलों, और मौतों पर नज़र रखी जा सके. जो राज्य रोज़ाना मामलों की संख्या, लगातार कम बता रहे थे, उन्हें अपने आंकड़ों को फिर से जांचने को कहा जाता था’.
‘इसका एक उदाहरण वो है, जिसमें केंद्र सरकार ने बिहार से कहा था कि वो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को, मौतों की मिलान की गई संख्या का विस्तृत विवरण भेजें, जिसमें तिथि और ज़िलेवार ब्यौरा दिया गया हो. ये एक जाना-माना तथ्य है कि कोविड महामारी जैसे गंभीर, और लंबे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान दर्ज हुईं मौतों, और अतिरिक्त मौतों के अच्छे से किए गए शोध अध्ययन के बीच हमेशा अंतर रहेगा, जो आमतौर पर घटना के बाद किए जाते हैं, जब विश्वस्त सूत्रों से मौतों के आंकड़े उपलब्ध हो जाते हैं’.
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