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Friday, 22 November, 2024
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जितिन प्रसाद के BJP में जाने पर क्या सोचते हैं उनकी कंस्टीट्यूएंसी के लोग, सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे

पूर्व कांग्रेस सांसद जितिन प्रसाद के चुनाव क्षेत्रों में कराए गए, प्रश्नम सर्वेक्षण से पता चलता है, कि उनके बीजेपी में जाने पर राष्ट्रीय मीडिया में हुआ प्रचार निरर्थक ही था.

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अगर किसी ने पिछले दो दिनों में राजनीतिक ख़बरें पढ़ी हैं, या ‘राष्ट्रीय’ मीडिया पर देखी हैं, तो उनमें सबसे बड़ी ख़बर थी, पूर्व कांग्रेस सांसद जितिन प्रसाद का बीजेपी में शामिल होना. लगभर हर ‘राष्ट्रीय’ अख़बार ने उसे अपने पहले पन्ने पर जगह दी थी, और टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों पर, ये दिन भर चलने वाली ‘ब्रेकिंग’ ख़बर थी. और जैसा कि उम्मीद थी, ‘एक्सपर्ट्स’ ने फौरन संपादकीय लेख लिखने शुरू कर दिए, और विश्लेषक विवेचना करने लगे कि इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम का, उत्तर प्रदेश और भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर क्या असर पड़ेगा.

इस सबके बीच शायद एक मुनासिब सवाल ये खड़ा होता है, कि जितिन प्रसाद के चुनाव क्षेत्र के मतदाता, उनके इस फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? वो इसका समर्थन करते हैं कि नहीं? कोई हैरानी की बात नहीं, कि ‘राष्ट्रीय’ मीडिया में किसी ने, इस बात की अहमियत या ज़रूरत नहीं समझी, कि इस राजनीतिक घटनाक्रम पर, वास्तविक मतदाताओं के विचार जाने जाएं, या शायद उनके पास ऐसा करने के साधन नहीं थे. प्रश्नम ने ये करने का फैसला किया.


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जितिन प्रसाद का चुनाव क्षेत्र

जितिन प्रसाद दो बार उत्तर प्रदेश से कांग्रेस सांसद रहे- 2004 में शाहजहांपुर से, और 2009 में धौरहरा से. 2014 और 2019 में वो धौरहरा से हार गए. 2017 विधान सभा चुनावों में भी, उन्होंने तिलहर से चुनाव लड़ा, जो शाहजहांपुर संसदीय चुनाव क्षेत्र में एक विधान सभा सीट है. ग़ौरतलब है, कि एक लोकसभा चुनाव क्षेत्र, कई विधान सभा सीटों में बटा होता है.

हमने उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर और धौरहरा के, दस विधानसभा क्षेत्रों में तक़रीबन 1,500 लोगों से जितिन प्रसाद के क़दम के बारे में उनके विचार पूछे. ये 1,500 मतदाता, वैज्ञानिक नमूना तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए, बेतरतीब ढंग से चुने गए थे. पहले हमने लोगों से पूछा कि क्या वो जानते हैं, कि जितिन प्रसाद कौन हैं. सिर्फ उन लोगों से, जो उन्हें ठीक से पहचानते थे, हमने एक अगला सवाल पूछा- जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने को लेकर आपका क्या विचार है?

आंखें खोलने वाला

चौंका देने वाली बात थी, कि जितिन प्रसाद के अपने इलाक़े में, इन 10 चुनाव क्षेत्रों के 72 प्रतिशत लोग, एक राजनेता के तौर पर उन्हें पहचान भी नहीं सके. बाक़ी लोगों में, जो जानते थे कि वो कौन हैं, अधिकांश (52 प्रतिशत) ने या तो ये कहा, कि बीजेपी में जाकर उन्होंने ग़लती की, या फिर ये कहा, कि इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता.

इस तरह, वास्तव में भारी 87 प्रतिशत (72 प्रतिशत+28 प्रतिशत का 52 प्रतिशत) लोग, जिनका जितिन प्रसाद के लोकसभा चुनाव क्षेत्रों की विधान सभा सीटों पर सर्वे किया गया, या तो जानते नहीं थे कि जितिन कौन हैं, या समझते हैं कि दल बदलकर, बीजेपी में जाना उनकी ग़लती है, या फिर उन्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ता. जो लोग सर्वे परिणामों को सत्यापित करना चाहते हैं, या उसका आगे विश्लेषण करना चाहते हैं, उनके लिए कच्चा डेटा यहां उपलब्ध है.

जब अंदरूनी उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद के चुनाव क्षेत्रों के, तक़रीबन 90 प्रतिशत मतदाता, इस राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर संशयवादी थे, तो ऐसे में ‘नेशनल’ मीडिया का इस मामूली सी घटना को लेकर उन्मत हो जाना, निरर्थक ही लगता है. लेकिन, राजनीतिक ख़बरों पर ‘नेशनल’ मीडिया के संपादकीय फैसलों, और धरातल से लोगों के वास्तविक फीडबैक के बीच ये मतभेद, भारतीय राजनीति और उसके मीडिया की एक स्थायी विशेषता रही है.

अत्यधिक ‘दिल्लीकरण’ हो जाने की वजह से, मीडिया भारत के राजनीतिक प्रवचन में अप्रासंगिक हो गया है, और निश्चित रूप से लगता है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे तेज़ी से समझ लिया है, जैसा कि ‘नेशनल’ मीडिया के प्रति उनके बेपरवाही के रवैये से ज़ाहिर होता है. लेकिन, फिर एक सवाल भी खड़ा होता है- कांग्रेस पार्टी ने एक वरिष्ठ राजनेता के तौर पर, जितिन प्रसाद को इतनी अहमियत क्यों दी, जबकि स्पष्ट नज़र आता है कि अपने मतदाताओं के बीच भी, उनकी कोई ख़ास पहचान या अहमियत नहीं है? कांग्रेस पार्टी के मौजूदा दुखों की वजह शायद यही है.

राजेश जैन प्रश्नम के संस्थापक हैं, जो एक एआई टेक्नॉलजी स्टार्ट-अप है, जिसका लक्ष्य राय शुमारी को, ज़्यादा वैज्ञानिक, आसान, तेज़ और सस्ता बनाना है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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