scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमदेशप्रदर्शनकारी किसान कहते हैं- कोविड हमें छू नहीं सकता, हरियाणा के गांवों में मौत के आंकड़े अलग कहानी बता रहे हैं

प्रदर्शनकारी किसान कहते हैं- कोविड हमें छू नहीं सकता, हरियाणा के गांवों में मौत के आंकड़े अलग कहानी बता रहे हैं

हरियाणा पुलिस ने किसानों को प्रदर्शन स्थलों पर भेजने वाले गांवों से जो आंकड़े जुटाए हैं, वो बताते हैं कि बड़ी संख्या में कोविड पॉजिटिव पाए गए लोगों की मृत्यु हुई है. हालांकि, किसान यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कोविड जानलेवा है.

Text Size:

झज्जर: क्या दिल्ली की सीमा पर विरोध कर रहे किसान जानलेवा कोरोनावायरस को अपने गांवों तक पहुंचा रहे हैं?

वे इस तरह की संभावनाओं का पुरजोर खंडन करते हैं लेकिन उनके गांवों में होने वाली मौतों का आंकड़ा इस भरोसे पर खरा नहीं उतरता.

दो घातक लहरों के बाद भी किसानों का मानना है कि प्रदर्शन स्थल महामारी से अछूते हैं.

हालांकि, तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए किसानों को भेजने वाले कई गांवों में कोविड के कारण बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं. उदाहरण के तौर पर झज्जर जिले के रोहड़ गांव में पिछले दो महीनों में 70 मौतें हुई हैं. इसकी आबादी लगभग 10,000 है.

रोहड़ के बाहर टोल गेट पर बिना मास्क के बैठे किसान इस बात से तो सहमत हैं कि ‘महामारी चल रही है’ लेकिन कहते हैं कि ‘हममें से किसी को भी बुखार तक नहीं हुआ है.’ किसान वजीर सिंह ने बताया कि वह पिछले छह महीनों से प्रदर्शन स्थल पर थे, टिकरी बॉर्डर पर और भी तमाम लोग थे. लेकिन ‘महामारी से सुरक्षित’ हैं.

हालांकि, मौतों का आंकड़ा कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है.

झज्जर पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, मई में कोविड के कारण 88 मौतों में से 51 उन गांवों में हुई हैं, जहां के किसानों ने विरोध प्रदर्शन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया.

इसके अलावा, 10 हॉटस्पॉट गांवों में से सात के किसान नियमित रूप से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन स्थलों तक आते-जाते रहे हैं.

हरियाणा पुलिस ने मई मध्य में रोहतक, सोनीपत, झज्जर, जींद और हिसार जिलों में मृत्यु दर का सर्वेक्षण किया था. पुलिस महानिदेशक मनोज यादव ने बताया कि अधिकतर ऐसे गांवों को चुना गया जहां से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के पास कुंडली और टिकरी स्थित प्रदर्शन स्थलों पर जाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसी अवधि में 2020 की तुलना में इस वर्ष मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा. लगभग 15 प्रतिशत मृतक जांच के दौरान कोविड पॉजिटिव पाए गए. टेस्ट की कमी के कारण सही तस्वीर तो सामने नहीं आ पा रही लेकिन संख्या इससे कहीं अधिक है.’

यादव ने कहा कि प्रदर्शन स्थल राज्य में संक्रमण के पीछे ‘एकमात्र वजह’ नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘प्रदर्शनकारी किसानों में जागरूकता का अभाव है. वे धरना स्थलों पर टेस्ट नहीं करने देते हैं, यही नहीं कोविड संबंधी दिशानिर्देशों के अनुरूप सुरक्षा उपाय भी नहीं करते हैं. किसान अपने नेताओं की बात सुनते हैं और इन लोगों को उनकी भलाई सुनिश्चित करने वाले कदम उठाने चाहिए ताकि स्थिति में सुधार हो.’


यह भी पढ़ें: ‘दरवाजा खटखटाया है, अब ड्राइंग रूम में घुसेंगे’- एंटी-नक्सल कैंप पर पुलिस और आदिवासी नेताओं के बीच टकराव


तथ्य और कल्पना

हालांकि, आंदोलनकारी किसान अपने इस विश्वास पर अडिग हैं कि धरने के कारण कोविड के मामले नहीं बढ़े हैं.

रोहड़ के सरपंच सतीश कुमार ने माना कि पिछले एक महीने में कोविड या कोविड जैसे लक्षणों के कारण 70 लोगों की मौत हुई है. गांव प्रदर्शन स्थलों पर नियमित रूप से सब्जियां, दूध और अन्य आवश्यक सामान भेजता है. उन्होंने कहा, ‘कोविड यहां जंगल की आग की तरह फैल गया है. लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रामीणों ने लॉकडाउन दिशानिर्देशों को नहीं समझा. प्रदर्शन की इन मामलों में तेजी में कोई भूमिका नहीं रही है.’

कुछ किसान यह भी मानते हैं कि महामारी एक साजिश है. 58 वर्षीय दयानंद कहते हैं, ‘रोहड़ में अधिकांश लोगों की मौत वृद्धावस्था और अन्य बीमारियों के कारण हुई है. कोविड ने टिकरी प्रदर्शन स्थल को छुआ तक नहीं है.’

दिप्रिंट ने रोहड़ में जसबीर से मुलाकात की, जिसने कोविड के कारण अपनी पत्नी मूर्ति को गंवा दिया है. ऐसा डॉक्टरों ने भी उन्हें बताया था. दोनों बीमार पड़ने से पहले हर दिन रोहड़ और टिकरी प्रदर्शन स्थल तक जाते थे.

Jasbir at his home with his grandchildren. His wife Murti dies of Covid-19 in April 2021 | Siraj Singh Bisht | ThePrint
अपने पोते-पोतियों के साथ घर में मौजूद जसबीर जिनकी पत्नी मूर्ति की अप्रैल 2021 में कोविड-19 से मृत्यु हुई थी | सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

लेकिन खुद और अपनी तीन वर्षीय पोती के कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बावजूद जसबीर ऐसा नहीं मानते हैं. उनका कहना है, ‘अब तो अगर बाइक हादसे में भी किसी की मृत्यु हो जाती है, लोग सोचते हैं कि यह कोविड है. डॉक्टरों का कहना है कि मेरी पत्नी इस बीमारी के कारण ही गुजर गई है लेकिन मुझे यकीन नहीं है. कौन जाने? लेकिन धरना स्थल पर निश्चित रूप से कोविड जैसा कुछ नहीं है.’

किसान वैक्सीन लेने से भी परहेज कर रहे हैं. झज्जर में मुख्य चिकित्सा अधिकारी की टीम वैक्सीनेशन के 10 सेशन आयोजित करने के बावजूद, 31 मई तक टिकरी में केवल छह और डांसा प्रदर्शन स्थल पर केवल 40 टीके लगा पाई थी.

प्रदर्शनकारियों में शामिल सुमित ग्रेवाल ने कहा कि उनका भाई एम्स में काम करता है और हर दिन सैकड़ों लोगों को टीके लगाता है. सुमित का दावा है कि उनके भाई ने उन्हें टीका न लगवाने की सलाह दी है. हालांकि उसने इस बात का जवाब नहीं दिया और कहा कि उसने कभी अपने भाई से इसका कारण नहीं पूछा.

कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें यह डर सता रहा था कि टीके लगवाने के बाद कोमोर्बिडिटी के कारण उनकी जान खतरे में पड़ सकती है. हरियाणा में बिजली बोर्ड के एक सेवानिवृत्त अधिकारी नरदेव सिंह कहते हैं, ‘डॉक्टर हमें टीका नहीं लगाते हैं. यह काम आशा वर्कर, नर्स और दाइयों के हवाले होता है. उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं कि हम बीमार हैं. वे तो हमें बस इंजेक्शन लगा देंगे. यह असुरक्षित है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: दिल्ली के अस्पताल ने मलयालम में बात करने से नर्सों को रोकने वाला आदेश वापस लिया


 

share & View comments