नई दिल्ली: वाम दलों ने भारत में रहने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता के आवेदन को स्वीकृति देने संबंधी केंद्र सरकार के कदम की आलोचना करते हुए शनिवार को कहा कि केंद्र पिछले दरवाजे से संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लेकर आया है और यह उसके ‘फासीवादी चरित्र’ को बेनकाब करता है.
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, ‘सीएए-2019 के नियम तय नहीं हुए हैं, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने इसे लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी. सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब तक सुनवाई नहीं हुई है. आशा करता हूं कि उच्चतम न्यायालय त्वरित संज्ञान लेगा और सीएए को पिछले दरवाजे से लागू करने पर रोक लगाएगा.’
भाकपा महासचिव डी राजा ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के इस कदम से उसका ‘फासीवादी चरित्र’ बेनकाब हो गया है.
उन्होंने कहा कि सरकार उस वक्त अपना राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ा रही है जब रोजाना कोरोना महामारी से हजारों लोगों की मौत हो रही है.
भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने सवाल किया कि जब सीएए के नियम तैयार नहीं हुए तो फिर इस तरह का आदेश कैसे पारित हो गया?
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 के 2009 के नियमों के तहत एक अधिसूचना जारी करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के उन गैर-मुसलमानों से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए कहा है जो गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रह रहे हैं.
यह नया आदेश किसी भी तरह से 2019 में पारित संशोधित नागरिकता अधिनियम से जुड़ा नहीं है क्योंकि सरकार ने इसके तहत नियम अभी तैयार नहीं किए हैं.
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