टिटोली (रोहतक): हरियाणा में रोहतक ज़िले के टिटोली गांव में मौतों की ऐसी बाढ़ पहले कभी नहीं देखी गई जिसने 40 दिन में 60 ज़िंदगियां लील ली हैं. ये सब मौतें तेज़ बुखार, सीने में दर्द, सांस फूलने या ह्रदय गति रुकने से हुईं. और इस मुसीबत के लिए गांव वाले, जो कोरोनावायरस या इसके प्रकोप के बारे में ज़्यादा नहीं जानते, एक ही चीज़ को दोष देते हैं- एक 5जी मोबाइल टावर.
गांव के हर दूसरे घर में मरने वालों के लिए प्रार्थना सभाएं एक आम नज़ारा है, जहां आधिकारिक रूप से कोविड-19 से केवल आठ मौतें दर्ज हुई हैं.
94 वर्षीय उमे सिंह, जो पिछले 30 दिन से सिर्फ मरने वालों का अफसोस जताने के लिए लोगों के घर जा रहे हैं, का कहना है कि गांव ‘विशालकाय टावर’ की वजह से मुसीबत झेल रहा है.
उन्होंने पूरे विश्वास के साथ कहा, ‘ये कोई टावर नहीं है, ये एक शैतान है… इससे एक घातक वायरस निकल रहा है, जो सबकी जान ले रहा है. कोई चाहे कुछ भी कहे, मैं जानता हूं कि यही टावर दोषी है’.
रानी, जिसके पति की तेज़ बुखार से मौत हुई, का कुछ अलग मानना है. उसे लगता है कि तेज़ हवा की वजह से टावर से निकलकर वायरस घरों में फैल रहा है.
उसने कहा, ‘उस रात (30 अप्रैल) जिस दिन तेज़ हवा थी, गांवों में बहुत मौतें हुईं. हम सब को छाती में बेचैनी होनी शुरू हो गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हवा ने टावर के वायरस को फैला दिया. पक्षी तथा जानवर भी प्रभावित हो रहे हैं’.
जैसे ही रोहतक के गांवों में मोबाइल टावर्स के ज़रिए किसी वायरस या कोविड के फैलने की अफवाहें शुरू हुईं, रोहतक के उपायुक्त और ज़िला पुलिस प्रमुख को सख्त कार्रवाई के निर्देश दे दिए गए हैं.
अतिरिक्त उपायुक्त महेंदर पाल ने इन सब सिद्धांतों को ‘निराधार’ करार दिया और कहा कि लोगों के बीच ‘जानकारी के अभाव’ में ऐसा हो रहा है. लेकिन इलाके के निवासी ज़ोर देकर कहते हैं कि और अधिक मौतों को रोकने के लिए टावर की बिजली सप्लाई को काट दिया जाना चाहिए.
पिछले दो दिन में अपने दो भतीजों को कोविड जैसे लक्षणों में गंवा देने वाली एक 63 वर्षीय निवासी शीला ने कहा, ‘हमारी खातिर वो टावर को कुछ दिन के लिए बंद क्यों नहीं कर देते?’.
उन्होंने आगे कहा, ‘एक दिन हमारे विरोध करने के बाद उन्होंने एक दिन के लिए टावर को बंद किया. उस दिन गांव में कोई मौत नहीं हुई. अगले दिन जब वो फिर चालू हुआ, तो नौ लोगों की मौत हो गई’. उन्होंने ये भी कहा, ‘हमें इस गांव में हवन कराने की ज़रूरत है’.
ऐसी घटना सिर्फ हरियाणा या भारत में ही नहीं हुई है. पिछले साल युनाइटेड किंग्डम में अगली पीढ़ी के वायरलैस कम्यूनिकेशन को संभव बनाने वाले टेलिकॉम मॉस्ट को कुछ ऐसे लोगों ने जला दिया, जो इस सिद्धांत में विश्वास रखते थे कि टेक्नोलॉजी से कोरोनावायरस के फैलने में मदद मिलती है. इस साज़िश को सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया और बेलफास्ट, लिवरपूल तथा बरमिंघम से मॉस्ट जलाने की बहुत सी घटनाएं सामने आईं.
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5G टावर नहीं है समस्या
हालांकि हरियाणा के कई गांवों से स्थानीय लोगों द्वारा मोबाइल टावरों को नुकसान पहुंचाने या जलाए जाने की कई घटनाओं की खबरें आईं लेकिन हरियाणा पुलिस महानिदेशक मनोज यादव ने दिप्रिंट को बताया कि कैथल और जींद ज़िलों के कुछ हिस्सों में तीन टावरों को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचाया गया.
यादव ने कहा, ‘कैथल और जींद के कुछ हिस्सों में सिर्फ 2-3 टावर क्षतिग्रस्त हुए हैं लेकिन बड़े पैमाने पर नहीं…स्थिति अब नियंत्रण में है चूंकि हमने गांव वालों को समझाने के लिए टीमें भेजी है कि कोविड, उससे जुड़ी मौतों और इन टावरों के बीच कोई संबंध नहीं है. हमने उन्हें ये भी बताया कि 5जी की तो अभी टेस्टिंग भी शुरू नहीं हुई है’.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि ऐसी अफवाहें वही लोग फैला रहे हैं, जो पिछले साल तक सितंबर में केंद्र सरकार के लाए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे. इन टावरों को उन लोगों ने क्षतिग्रस्त किया, जो उद्योगपतियों मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का विरोध कर रहे थे क्योंकि उनका मानना था कि ये दोनों व्यवसायी, कृषि सुधारों से मुनाफा कमाने जा रहे हैं.
यादव ने कहा, ‘ये अफवाहें वो नेता फैला रहे हैं, जो कृषि कानूनों के विरोधी होने का दावा करते हैं. पिछले साल नवंबर-दिसंबर में हमने ऐसे लोगों के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किए थे, जिन्होंने किसानों के समर्थन में स्थानीय लोगों को इन टावरों को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाया था. इस बार भी ये वही लोग हैं, जो ऐसी अफवाहें फैला रहे हैं. उन्हें चेतावनी दी गई है’.
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चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में समस्या बढ़ी
मौतों की संख्या बढ़ने और ज़्यादा लोगों के बीमार पड़ने के साथ ही आपस में मिलकर गांववासियों ने गांव की एक स्कूल बिल्डिंग में ‘आपात स्थिति’ से निपटने के लिए 10 बिस्तरों का एक कोविड देखभाल केंद्र स्थापित कर लिया.
कागज़ पर ये केंद्र आशाजनक लगता है- इसमें बिस्तर हैं, गद्दे हैं और गांव वालों ने अधिकारियों से दो ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स, दो सिलिंडर्स और कुछ दवाएं भी मंगवा लीं थीं.
लेकिन वास्तविकता में टिटोली पंचायत सदस्य मनोज कुमार के अनुसार ये महज़ एक ‘दिखावा है, बस कागज़ भरने के लिए’.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘ये सुविधा 10 दिन पहले खोली गई थी और एसडीएम (सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट) तथा डीसी (डिप्टी कमिश्नर) आए थे लेकिन यहां पर कोई स्टाफ नहीं है. ऑक्सीजन के लिए सिर्फ दो छोटे सिलिंडर हैं, जिन्हें चलाना किसी को नहीं आता. कोई एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है और केवल एक आयुर्वेद डॉक्टर आया है, जो लोगों को घरेलू इलाज लेने का सुझाव देता है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘जहां कोई एमबीबीएस डॉक्टर ड्यूटी पर होना चाहिए, वहां एक आयुर्वेद डॉक्टर क्या कर रहा है? कोई हमारी परवाह नहीं करता. यहां हमारे पास मरीज़ों की भर्ती की कोई सुविधा नहीं है, भोजन या पानी तक की सुविधा नहीं है’.
केंद्र को चलाने के लिए कोई प्रशिक्षित चिकित्सा स्टाफ नहीं है, न ही परामर्श के लिए कोई डॉक्टर है. साथ ही मरीज़ों की भर्ती की भी सुविधा नहीं है और न ही दवाओं का पर्याप्त भंडार है. इस केंद्र पर रोहतक पीजीआई अस्पताल के केवल दो एमबीबीएस इंटर्न्स और एक आयुर्वेद डॉक्टर उपलब्ध हैं.
कुमार ने आगे कहा, ‘सुविधा खुलने के बाद शुरू के कुछ दिन लक्षणों वाले 20-30 मरीज़ केंद्र में आए थे लेकिन यहां उन्हें कोई राहत नहीं मिली. डॉक्टर ने उन्हें ये कहते हुए वापस कर दिया कि उसके पास किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए साधन नहीं हैं और कोविड लक्षणों के लिए वो कोई दवाएं नहीं सुझा सकते’.
हेल्थकेयर सेंटर स्टाफ की एक सदस्य बबली ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें संदिग्ध मरीज़ों के लिए खुद से दवाओं का प्रबंध करना पड़ा था.
उन्होंने कहा, ‘11,000 से अधिक लोगों के लिए हमें विटामिन सी और ज़िंक की सिर्फ 50-50 गोलियां और कुछ स्टेरॉयड्स मिले थे. यहां पर ज़्यादा लोग आइसोलेशन के लिए नहीं आए हैं क्योंकि उनकी देखभाल के लिए हमारे पास कोई स्टाफ नहीं है. लक्षण वाले जो लोग आए, उन्हें हमने वापस भेज दिया क्योंकि उन्हें देने के लिए हमारे पास कोई दवाएं नहीं हैं. हमारे पास एक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और दो सिलिंडर्स हैं लेकिन किसी को उन्हें चलाना नहीं आता’.
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‘टेस्ट निगेटिव आने के बाद भी मौतें’
समस्या इस कारण और बढ़ जाती है कि टिटोली के निवासी नहीं मानते कि उनके परिजन कोविड-19 से मरे हैं, भले ही उनमें लक्षण दिख रहे थे. कारण- उनके कोविड टेस्ट निगेटिव आए थे.
दिप्रिंट के हाथ लगे आंकड़ों के अनुसार, मई महीने में 703 एंटिजन और 39 आरटी-पीसीआर टेस्ट किए गए थे. इनमें से केवल पांच पॉज़िटिव निकले थे.
पवन सिंह ने बताया, ‘उन्होंने मुझसे टेस्ट कराने के लिए कहा, ताकि उसे सही दवाएं दी जा सकें. मैं तैयार हो गया और उन्हें जांच के लिए ले गया लेकिन क्या हुआ? मेरे सामने ही उनकी सांस फूलने लगी और उनकी मौत हो गई’. पवन सिंह के पिता की रिपोर्ट निगेटिव आई थी.
उसने कहा, ‘मैं कैसे भरोसा करूं कि वो कोरोना था या कुछ और था? ये टेस्ट बेकार हैं’.
बबली ने कहा कि गांव में टेस्टिंग बहुत कम रही है लेकिन अब बढ़ रही है. लेकिन अधिकतर रैपिड एंटिजन टेस्ट हो रहे हैं, जो गलत निगेटिव रिपोर्ट देने के लिए जाने जाते हैं. आरटी-पीसीआर को कोविड जांच का स्वर्ण मानक माना जाता है, लेकिन इसके नमूनों को जांच के लिए लैब को भेजना होता है.
बबली ने कहा, ‘टेस्ट में निगेटिव दिखाया जाता है लेकिन फिर भी इंसान मर जाता है. इस तरह के बहुत सारे मामले हुए हैं और यही वजह है कि लोग, इन टेस्टों पर भरोसा नहीं कर रहे. आरटी-पीसीआर टेस्ट बहुत कम होते हैं, कभी-कभी कुछ टीमें इन्हें करती हैं लेकिन इनकी रिपोर्ट आने में कई दिन लग जाते हैं, कभी-कभी तो ये मरीज़ के मरने के बाद आती हैं’.
ये पूछे जाने पर कि आरटी-पीसीआर टेस्ट क्यों नहीं कराए जा रहे हैं, रोहतक के अतिरिक्त उपायुक्त पाल ने कहा कि ऐसा ‘लोगों की अनिच्छा’ के कारण हो रहा है.
उन्होंने कहा, ‘अगर लोग टेस्ट नहीं कराना चाहते, तो हम क्या कर सकते हैं? वहां लोगों को अपनी सेहत की परवाह नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अब हमने स्वास्थ्यकर्मियों से घर-घर जाकर सर्वे करने के लिए कहा है, ताकि लोगों को राज़ी किया जा सके. एक बार वो जाए तो फिर हम और टीमें भेजेंगे’.
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‘जो भी इंजेक्शन लेता है, मर जाता है’
मरने वालों की बढ़ती संख्या भी लोगों को टीके लगवाने से रोक रही है. टीका लगवाने के बाद भी गांव में तीन लोगों की मौत के बाद कुछ लोगों को लगने लगा है कि टीकाकरण से मौतें हो रही हैं.
अभी तक गांव में 830 लोगों को टीके लग चुके हैं, जो सभी 45 वर्ष से अधिक के हैं. लोगों को टीके लगा रही आशा वर्कर्स के पास निवासियों की एक सूची है, जिन्हें टीकाकरण के लिए केंद्र पर बुलाया जाता है. केंद्र पर एक स्वास्थ्यकर्मी ने दिप्रिंट को बताया कि अनिच्छा के बावजूद टीके के लिए आने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है.
एक स्थानीय निवासी ओम प्रकाश ने कहा, ‘जो भी इंजेक्शन लगवाता है, मर जाता है. पवन के पिता मर गए, एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मर गई. मौत को कौन बुलावा देगा?’ उसने आगे कहा कि वो कभी टीका नहीं लगवाएगा.
एक और निवासी, 62 वर्षीय ओम बीर ने ऐसी आशंकाओं को खारिज कर दिया. ‘मैंने इंजेक्शन लिया है और मैं ठीक हूं. हां, टीकों के बाद मौतें हुईं हैं लेकिन ज़्यादा नहीं हुईं’.
लेकिन, एक और निवासी महेंदर ने प्रशासन पर ढिलाई का आरोप लगाया. ‘वो हर किसी को इंजेक्शन दे रहे हैं, जिन्हें लक्षण है उन्हें भी, जो कोविड पॉज़िटिव हो सकते हैं. हो सकता है कि उसकी वजह से पैदा हुई किसी जटिलता से मर रहे हों. वो सिर्फ अपनी संख्या दर्ज करने के लिए इंजेक्शन्स लगा रहे हैं’.
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