नई दिल्ली: देश जब कोविड-19 महामारी की दूसरी घातक लहर से जूझ रहा है, सशस्त्र सेनाएं न केवल ट्रांसपोर्ट और अस्थायी अस्पताल स्थापित करने जैसे लॉजिस्टिक सपोर्ट में नागरिक प्रशासन की मदद के लिए आगे आईं हैं बल्कि अपने डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल कर्मचारी भी मुहैया करा रही हैं.
सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशालय (डीजीएएफएमएस) कोविड के खिलाफ जंग में चुपचाप सैन्य अभियान का नेतृत्व करता रहा है, लेकिन हाल में दिल्ली में आर्मी बेस अस्पताल के कमांडेंट के स्थानांतरण पर हुए विवाद ने इसे सुर्खियों में ला दिया है.
बेस अस्पताल प्रमुख के तबादले के फैसले ने कई लोगों को चौंका दिया. हालांकि, सरकार के साथ-साथ रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यह तबादला ‘विशुद्ध रूप से प्रशासनिक’ फैसला था और हर दिन बढ़ते संकट के मुताबिक जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया है.
कोविड संकट के बीच बेस अस्पताल के कमांडेंट के ट्रांसफर के फैसले के बीच, एक नजर डालते हैं डीजीएएफएमएस के इतिहास और संगठनात्मक ढांचे पर.
डीजीएएफएमएस का इतिहास
मार्च 1947 में भारत सरकार ने तीनों सेनाओं की चिकित्सा सेवा और मेडिकल रिसर्च को एकीकृत करने पर विचार करने के लिए डॉ. बी.सी. रॉय की अध्यक्षता में ‘सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा और अनुसंधान एकीकरण समिति’ का गठन किया गया था.
कमेटी ने सुझाव दिया कि सेना की तीनों शाखाओं- थल सेना, नौसेना और वायुसेना- के लिए अलग-अलग मेडिकल विंग होनी चाहिए. इसने ये सिफारिश भी की कि तीनों चिकित्सा सेवाओं का एक शीर्ष नियंत्रक- सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशक (डीजीएएफएमएस)- होना चाहिए, जो चिकित्सा संबंधी सैन्य जरूरतों के संदर्भ में सेना के सर्वोच्च कमांडर (राष्ट्रपति) या रक्षा मंत्री का सलाहकार होगा.
डीजीएएफएमएस को सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं का प्रशासनिक प्रमुख बनाया गया था और इस रूप में ही काम करता रहा है.
समिति की सिफारिश के आधार पर सरकार ने 1948 में रॉयल इंडियन नेवी, इंडियन आर्मी और रॉयल इंडियन एयर फोर्स की चिकित्सा सेवाओं को एकीकृत करके सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (एएफएमएस) बना दिया. इसने एएफएमएस को भी थ्री स्टार नियुक्ति वाले सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशक के तहत रखा.
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इसने डीजीएएफएमएस की भूमिका और जिम्मेदारियों की रूपरेखा को भी निर्धारित किया.
जहां तक सशस्त्र बलों से संबंधित समग्र चिकित्सा नीति का मामला है तो डीजीएएफएमए को सीधे रक्षा मंत्रालय के प्रति जवाबदेह बनाया गया था.
यह भी स्पष्ट किया गया कि सेना, नौसेना और वायु सेना की मेडिकल विंग के प्रमुख डीजीएएफएमएस की तरफ से आने वाले किसी भी सामान्य नीति निर्देशों पर संबंधित सेनाओं के प्रमुखों के नेतृत्व में अमल के लिए जिम्मेदार होंगे.
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संगठनात्मक स्वरूप और भर्तियां
आम धारणा के विपरीत डीजीएएफएमएस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ या सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) को रिपोर्ट नहीं करता है बल्कि यह रक्षा सचिव की अध्यक्षता में रक्षा विभाग को रिपोर्ट करता है.
2020 में रक्षा विभाग और नवगठित डीएमए के बीच कामकाज का बंटवारा किया गया, तो चिकित्सा निदेशालय रक्षा विभाग के पास ही रखा गया.
डीजीएएफएमएस का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल या समकक्ष रैंक का कोई अधिकारी करता है और सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (एएफएमएस) का प्रमुख होता है.
थल सेना, नौसेना और वायु सेना तीनों की मेडिकल विंग के महानिदेशक अपनी संबंधित सेना के प्रमुख के चिकित्सा सलाहकार होते हैं और डीजीएएफएमएस के तहत आते हैं.
एएफएमएस में आर्मी मेडिकल सर्विस (एएमसी) के अलावा एएमसी (एनटी), आर्मी डेंटल कोर (एडी कोर) और आर्मी नर्सिंग सर्विस (एमएनएस) शामिल हैं.
सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी) के 55वें (सी3) बैच की 21 महिला कैडेट सहित 110 मेडिकल कैडेट को शनिवार को एएफएमएस में चिकित्सा अधिकारी के रूप में कमीशन मिला है.
इन कैडेट्स को एक मामूली समारोह में कमांडेंट, एएफएमसी लेफ्टिनेंट जनरल नरदीप नैथानी की तरफ से कमीशन मिला.
रक्षा मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि 94 कैडेट को थल सेना में, 10 को वायु सेना में और छह को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है.
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