नई दिल्ली: अहमदाबाद स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी जायडस कैडिला इस माह के अंत तक अपनी कोविड-19 वैक्सीन जायकोव-डी के आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आवेदन कर सकती है.
जायडस को उम्मीद है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के बाद नोवेल कोरोनावायरस के खिलाफ देश में विकसित इस दूसरी वैक्सीन को जून तक मंजूरी मिल जाएगी.
अगर सब कुछ उम्मीद के मुताबिक रहा तो जायकोव-डी देश में कोवैक्सीन, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड और रूस की स्पुतनिक-वी के बाद चौथी स्वीकृत कोविड वैक्सीन होगी.
आइये यहां देखते हैं कि जायकोव-डी कैसे काम करती है और यह अन्य टीकों से कैसे अलग है.
जायकोव-डी कैसे काम करती है
जिनेवा स्थित वैक्सीन एलायंस (गावी) के मुताबिक, कोविड-19 के खिलाफ क्लीनिकल ट्रायल में इस्तेमाल वैक्सीनों की चार श्रेणियां हैं: वायरस आधारित, प्रोटीन सबयूनिट, वायरल वेक्टर और न्यूक्लिक एसिड (आरएनए और डीएनए).
गावी वेबसाइट के मुताबिक, ‘उनमें से कुछ शरीर से एंटीजन लेने की कोशिश करती हैं, अन्य वायरल एंटीजन बनाने के लिए शरीर की अपनी कोशिकाओं को इस्तेमाल करती हैं.’
जायकोव-डी एक ‘प्लाज्मिड डीएनए’ वैक्सीन है जो ‘न्यूक्लिक एसिड’ आधारित टीकों की श्रेणी में आती है.
वैक्सीन जेनेटिकली इंजीनियर्ड प्लास्मिड का उपयोग करती है, जो एक प्रकार का डीएनए मॉलीक्यूल है जो कोशिका के बाहर मौजूद होता है. मॉलीक्यूल एंटीजन के साथ कोडेड होता है, जो शरीर को एंटीबॉडी उत्पन्न करने का संकेत भेजने वाला सबस्टेंस है.
जायडस ने एक डीएनए वैक्सीन प्लेटफॉर्म स्थापित किया है जो गैर-प्रतिकृति वाले प्लास्मिड, जिसमें ‘संबंधित जीन’ होता है. का उपयोग करता है. इसका मतलब है कि शरीर में प्रविष्ट डीएनए सीक्वेंस वायरस के सीक्वेंस पैटर्न से मेल खाएगा और शरीर को इसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करेगा.
प्लेटफॉर्म को आसानी से निर्मित किया जा सकता है क्योंकि इसमें क्षमता क्षीण करके बनाए गए अन्य टीकों की तुलना में न्यूनतम जैव सुरक्षा आवश्यकता (बीएसएल-1) की जरूरत पड़ती है, जबकि अन्य टीकों के लिए शीर्ष जैव सुरक्षा बीएसएल-3 या बीएसएल-4 की जरूरत पड़ती है.
इस प्लेटफॉर्म को कोल्ड चेन की भी जरूरत कम ही पड़ती है जो कि इसे दूरदराज के इलाकों तक पहुंचना और आसान बना देगा.
इसके अलावा, यदि वायरस म्यूटेट होता है तो भी प्लेटफॉर्म को आसानी से संशोधित किया जा सकता है.
यह भी पढ़ें: अगले हफ्ते से देश में लगने लगेगी स्पुतनिक वैक्सीन, एक खुराक की कीमत होगी 995 रुपये : डॉ. रेड्डी
जायकोव-डी भारत में इस्तेमाल अन्य टीकों से कैसे अलग है
हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की कोवैक्सीन वायरस को ‘निष्क्रिय’ करके बनाया गया टीका है जो पूरी तरह ‘वायरस आधारित’ की श्रेणी में आता है जबकि सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड और रूस की स्पूतनिक-वी ‘वायरल-वेक्टर’ प्लेटफॉर्म पर आधारित हैं.
सीरम इंस्टीट्यूट का एक अन्य वैक्सीन कैंडीडेट नोवावैक्स ‘प्रोटीन सबयूनिट’ पर आधारित है.
पुणे स्थित जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स और अमेरिकी दवा और वैक्सीन निर्माता कंपनियां फाइजर और मॉडर्ना एमआरएनए प्लेटफॉर्म वाली वैक्सीन विकसित या निर्मित कर रही हैं—जो कि ‘न्यूक्लिक एसिड’ श्रेणी में आती है. हालांकि, ये टीके अभी भारत में उपलब्ध नहीं हैं.
अन्य वैक्सीन कैसे काम करती हैं
कोवैक्सीन एक ‘निष्क्रिय’ वायरस प्लेटफॉर्म पर काम करती है. यह सार्स-कोव-2 के पार्टिकल का इस्तेमाल करके बनाई गई है जिसकी वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति को संक्रमित करने या अपनी प्रतिकृति तैयार करने की क्षमता खत्म कर दी गई है. शरीर पार्टिकल की पहचान करता है और उसके अनुरूप एंटीबॉडी का उत्पादन करता है और मृत वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा तंत्र विकसित करता है.
वायरल वेक्टर वैक्सीन—कोविशील्ड और स्पूतनिक वी—एक निष्क्रिय वायरस के अंदर एक कोरोनावायरस एंटीजन, जो कोरोनवायरस से अलग है, को डाले जाने पर आधारित है. एक बार एंटीजन के संपर्क में आने के बाद शरीर इसके खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन शुरू कर देता है.
एडेनोवायरस आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला वेक्टर है, जो सामान्य सर्दी-जुकाम का कारण बनता है. स्पूतनिक और कोविशील्ड दोनों ही एडेनोवायरस प्लेटफॉर्म का ही उपयोग करते हैं.
गावी के मुताबिक, वायरल वेक्टर टीके प्राकृतिक वायरल संक्रमण की नकल कर सकते हैं और इसलिए एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ाते हैं. ‘हालांकि, हो सकता है कि कई लोग पहले ही वेक्टर के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे वायरस के संपर्क में आ चुके हों और इससे इम्यून हो गए हों, जो कि टीके के असर का घटा सकता है.’
आरएनए और डीएनए पर आधारित न्यूक्लिक एसिड टीकों में शरीर की कोशिकाओं को सीधे तौर पर आनुवांशिक रूप से एंटीजन के उत्पादन का निर्देश मिलता है. इन टीकों में वास्तविक एंटीजन नहीं होते हैं लेकिन इनके उत्पादन के लिए शरीर की अपनी कोशिकाओं का इस्तेमाल किया जाता है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
य़ह भी पढ़ें: बदहाल अस्पताल, बेदम सप्लायर, बिना तालमेल वाली सरकार—ये है गोवा में ऑक्सीजन संकट के पीछे की कहानी