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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतगंगा नदी भारत का इम्युनिटी बूस्टर हुआ करती थी, हम उसे सेल्फी प्वाइंट बनाकर तस्वीरें खींच रहे हैं

गंगा नदी भारत का इम्युनिटी बूस्टर हुआ करती थी, हम उसे सेल्फी प्वाइंट बनाकर तस्वीरें खींच रहे हैं

उत्तराखंड में गंगा किनारे आकार ले रहे ऑल वेदर रोड पर कई जगह सेल्फी प्वाइंट बनाए गए हैं. ताकि गंगा पर पर्यटन बढ़ाया जा सके. तीर्थाटन से पर्यटन की ओर जाती नीतियां गंगा के हर प्रमुख स्थल पर नजर आती है.

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एक बार फिर बहस तेज हो गई है कि क्या गंगा जल में मौजूद वायरस हमें कोरोना से लड़ने की ताकत दे सकता है. पिछले साल आईसीएमआर ने ऐसी किसी संभावना से इंकार कर दिया था. फिर भी व्यक्तिगत स्तर पर गंगाजल उपयोग और उससे होने वाले फायदों पर अवैज्ञानिक चर्चा होती रही, वैसे भी भारतीय जीवन पद्धति का हर वो ज्ञान अवैज्ञानिक माना जाता है जिसमें ऐलोपैथी का कण शामिल ना हो.

यह स्थापित तथ्य है कि गंगा जल में पाया जाना वाला बैक्टेरियोफाज बीमारी फैलाने वाले बैक्टेरिया को खत्म कर देता है. हालांकि कुछ शोध बताते हैं कि जहां नदी बह नहीं रही वहां स्थिती उलट है. लखनऊ के भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान यानी आईआईटीआर के वैज्ञानिकों ने कानपुर के बिठुर से शुक्लागंज के बीच गंगाजल पर किए अपने प्रयोगों में पाया कि यहां के पानी में डायरिया, खूनी पेचिश और टायफायड पैदा करने वाले बैक्टेरिया तेजी से पैदा हो रहे हैं. लेकिन ये संकेत वहीं मिल रहे हैं जहां नदी सर्वाधिक प्रदूषित है और ठहरी हुई है.

बहाव वाली जगहों पर उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं. इमटेक सीएसआईआर की प्रयोगशालाओं में से एक है. शोध में पाया गया है कि गंगा जल में करीब 20-25 वायरस ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल ट्यूबरोक्लोसिस (टीबी), टॉयफॉयड, न्यूमोनिया, हैजा-डायरिया, पेचिश, मेनिन्जाइटिस जैसे अन्य कई रोगों के इलाज के लिए किया जा सकता है.

गंगा का मतलब आत्मबल

हलांकि, सुपरबग की आहट के बीच एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट बैक्टीरिया दुनिया के वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती हैं. अब गंगा का निंजा वायरस या बैक्टेरियोफाज कोरोना से लड़ने में कितना सक्षम है यह समय आने पर वैज्ञानिक बताएंगे.
लेकिन भारतीय जनमानस के लिए गंगा का मतलब सिर्फ उसका निंजा वायरस नहीं है. उनके लिए गंगा का मतलब है- आत्मबल.

गंगा में एक डुबकी लगाना यानी पाप धोना या मन का मैल धोना या अपने गिल्ट से फ्री हो जाना होता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता शारीरिक और मानसिक दो तरह से बढ़ाई जाती है. शारीरिक इम्युनिटी बढ़ाने की जो राष्ट्रीय जागरुकता व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने फैलाई है वो पहले कभी नहीं थी. लेकिन अकेलापन, काम छूटने का डर, भविष्य को लेकर अनिश्चितता, अपनो को खोने का डर और चिड़चिड़ाहट महानगरी सोसाइटियों के नए चेहरे हैं. इसे कुछ लोग न्यू नार्मल कह कर सरलता से परिभाषित कर रहे हैं. लेकिन पीस ऑफ माइंड के लिए ऑनलाइन कंसलटेंसी के यूट्यूब विज्ञापन और साइकॉलोजिस्ट, स्प्रीचुअल गुरु, वर्चुअल मेडिटेशन का बढ़ता बाजार बता रहा है कि यह नार्मल नहीं है.

ज्यादा पुरानी बात नहीं, सिर्फ दो दशक पहले तक भारत में खासकर गंगापथ पर मनोचिकित्सा का क्षेत्र नहीं था. डिप्रेशन, एनजाइटी, पैनिक अटैक, मूड स्विंग, सुसाइडल टेंडेंसी जैसे शब्द सुने भी नहीं गए थे. ऐसा नहीं कि मन को विचलित करने वाले ऐसे ख्याल ही नहीं आते थे लेकिन गंगा पथ का विशाल समाज अपनी नदी में डुबकी लगाकर खुद को हर पाप से मुक्त कर लेता था, खुद को अवसाद से मुक्त कर लेता, बहती गंगा में डुबकी उसके आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा देती थी और वह अपनी नेगेटिव सोच पर नियंत्रण पा लेता. कुल मिलाकर अध्यात्म, धर्म और गंगा की ताकत ने पश्चिम की इस इंडस्ट्री को यहां पनपने ही नहीं दिया. इस ताकत को थोड़ा समझिए, गंगा यानी जीवनदायिनी पर अटूट आस्था, अध्यात्म यानी जीवन दर्शन और स्वअध्याय का वह स्तर जिस के बल पर कभी हम विश्वगुरु होने का दंभ भरा करते थे और धर्म यानी भगवान के डर से संयमित मानवीय जीवन.

यह ताकतवर गठबंधन कमजोर पड़ा. गंगा और अध्यात्म पर धर्म हावी हो गया. कोरोना दौर में कुंभ का असफल आयोजन बताता है कि धर्म किस तरह उत्तेजित रूप में हमारे सामने है.


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ऑल वेदर रोड पर सेल्फी प्वाइंट

सरकारी रवैये और समाज की लापरवाही ने गंगा के बूस्टर इम्यूनिटी होने की ताकत को छीन लिया. गंगा में रहने वाले जलजीव ही त्राहीमाम कर रहे हैं. गंगा में अब वह ताकत नहीं रही कि बीमारी फैलाने वाले बैक्टेरिया को नष्ट कर सके. गंगा की आत्मबल देने की ताकत नाममात्र की रह गई क्योंकि हमने उसका बहना रोक दिया. ठहरा हुआ पानी किसी को भी किसी भी तरह से ताकतवर नहीं बना सकता.

इतिहास से भी ज्यादा पुराने शहर वाराणसी में महाशमशान है. मणिकर्णिका और राजा हरीशचंद्र घाट पर चिता कभी नहीं बुझती लेकिन एक साल के अंदर ही दो मौकों ने लोगों को डरा दिया. जो कभी नहीं हुआ वह पिछले साल हो गया. घाट पर डेडबॉडी आना बंद हो गई और चिता की आग पूरी तरह ठंडी हो गई. यह उत्तर भारतीय समाज के लिए चिंता की बात थी.

दूसरी घटना इस साल घटी जब इन दोनों घाटों पर शवों की लाइन लग गई. कोरोना से मरे लोग चार कंधों पर नहीं बल्कि एंबुलेंस, ट्राली, ऑटो में डाल कर लाए जा रहे थे. लगातार जलती लाशों के बीच लोगों को रोने का समय भी नहीं मिला, घाट पर जलती चिताओं की तस्वीरों ने लोगों को डरा दिया. लोकमानस हमेशा से यही मानता रहा है कि इन घाटों में लाशों के बीच भी भय नहीं लगता क्योंकि गंगा धारा अंतिम सत्य का एहसास कराती रहती है. इस धारणा का टूटना गंगा के जादू का टूटना है.

इन घटनाओं से अविचलित सरकार नए तकनीकी जादू बुनने में जुटी है. उत्तराखंड में गंगा किनारे आकार ले रहे ऑल वेदर रोड पर कई जगह सेल्फी पॉइंट बनाए गए हैं. ताकि गंगा पर पर्यटन बढ़ाया जा सके. तीर्थाटन से पर्यटन की ओर जाती नीतियां गंगा के हर प्रमुख स्थल पर नजर आती है.

गंगा किनारे घाटों को सुंदर बनाना, वहां सेल्फी पॉइंट विकसित करना यह संकेत करता है कि गंगा के आध्यात्मिक स्वरूप को बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है, उसकी अविरलता और निर्मलता के दावें भी कुछ कदम बढ़कर दम तोड़ देते है. तो बेहतर यही है कि उसे सुंदर बना दिया जाए. नमामि गंगे की वेबसाइट पर गंगा की तस्वीर फोटोशॉप से सुंदर नीले पानी वाली बना दी गई है, इससे क्या फर्क पड़ता है कि गंगा का पानी कहीं भी नीला नहीं है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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