कुशीनगर: शुक्रवार दोपहर गांववासियों का एक छोटा सा समूह, कुशीनगर के सुकरौली ब्लॉक के एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के, एक बंद कमरे के बाहर इंतज़ार कर रहा था. ये जगह उत्तर प्रदेश में गोरखपुर ज़िला मुख्यालय से कोई 45 मिनट की दूरी पर है.
जब उनसे स्वास्थ्य केंद्र पर आने की वजह पूछी गई, तो उनमें से एक ने झिझकते हुए जवाब दिया: ‘कोरोना बुख़ार के लिए’.
सुकरौली ब्लॉक में, कुछ मुट्ठी भर गांववासियों ने ही अपना कोविड टेस्ट कराया है, लेकिन ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) इंचार्ज, डॉ हेमन वर्मा के अनुसार ये स्थिति पिछले साल से बहुत अलग है.
डॉ. वर्मा ने कहा कि ज़्यादातर गांव वाले बुख़ार या ज़ुकाम के लिए चिकित्सा सहायता लेने में झिझकते हैं, जो कोविड-19 के भी लक्षण हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन इस बार कोविड-19 की गंभीरता ने, जिसमें थोड़े ही समय में बहुत से गांववासी गंभीर रूप से बीमार पड़ रहे हैं, एक ख़ौफ पैदा कर दिया है. हालांकि, ये कुल आबादी का एक छोटा सा हिस्सा हैं, लेकिन गांव वाले ख़ुद से अपनी जांच कराने के लिए आगे आ रहे हैं’.
और उनका डर निराधार नहीं है. महामारी की दूसरी आक्रामक लहर की वजह से, पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में, कोविड मामलों में तेज़ी से उछाल देखा जा रहा है.
गोरखपुर डिवीज़न- जिसमें गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महाराजगंज ज़िले आते हैं- के ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी आंकड़ों पर नज़र डालने पर पता चला कि पिछले 10 में से चार दिन में, गोरखपुर डिवीज़न के ग्रामीण इलाक़ों में कोविड मामलों की संख्या शहरी इलाक़ों से ज़्यादा रही.
गोरखपुर प्रशासन की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, 24 अप्रैल को डिवीज़न में कोविड-19 के कुल 1,256 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 601 मामले ग्रामीण इलाक़ों से थे, जबकि 589 शहरी केंद्रों से थे.
यही रुझान 22 अप्रैल को भी देखा गया. कुल 1,092 पॉज़िटिव मामलों में से 543 देहाती इलाक़ों से थे, और 511 शहरी इलाक़ों में दर्ज किए गए थे.
21 अप्रैल को ग्रामीण क्षेत्रों से 484 मामले दर्ज किए गए, जबकि शहरी क्षेत्रों से 445 मामले थे और 18 अप्रैल को कुल 817 पॉज़िटिव मामलों में से 494 ग्रामीण क्षेत्रों में दर्ज हुए और 284 शहरी केंद्रों में सामने आए.
सुकरौली ब्लॉक के सीएचसी डॉक्टर के अनुसार, मामलों में दिख रही बढ़ोत्तरी को, चल रहे पंचायत चुनावों से जोड़कर देखा जा सकता है.
डॉक्टर ने अपना नाम छिपाते हुए कहा, ‘इससे कोई इनकार नहीं किया जा सकता’. उन्होंने ये भी कहा कि ये एक बड़ी समस्या की छोटी सी झलक है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘वास्तविक संख्या कहीं ज़्यादा होगी. बहुत से गांववासी सीएचसी तक नहीं आते और स्थानीय उपचार या गांव के (झोलाछाप) डॉक्टर से सलाह लेना पसंद करते हैं.
शुक्रवार तक, सरकारी आंकड़ों में सुकरौली ब्लॉक में, कोविड मामलों की संख्या 135 बताई गई, जो यहां की आबादी का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है, जो फिलहाल 1,89,203 है.
देवरिया के ज़िला अस्पताल के एक और डॉक्टर ने कहा, ‘ये एक अपराध है कि ग्रामीण इलाक़ों में कोविड मामलों में उछाल के बावजूद, चुनाव प्रक्रिया अभी भी चल रही है’.
इस बीच, गोरखपुर के डिवीज़नल कमिश्नर जयंत नार्लिकर ने दिप्रिंट से कहा: ‘पिछली मरतबा के उलट इस बार मामलों की संख्या ग्रामीण इलाक़ों में बढ़ रही है. इसके कई कारण हो सकते हैं. गांवों के बहुत से लोग जो शहरों में काम कर रहे थे, दिल्ली और मुम्बई में लॉकडाउन घोषित किए जाने के बाद अपने गांवों को लौट आए हैं और अपने साथ संक्रमण लेकर आए हैं’.
यह भी पढ़ें: मामले घटने पर लोग कोविड को भूल गए, वायरस की वापसी को लेकर हम तैयार नहीं थे: UP के स्वास्थ्य मंत्री
कोविड के बावजूद पंचायत चुनावों का प्रचार पूरे ज़ोरों-शोरों पर
लेकिन, कोविड मामलों में उछाल से, पंचायत चुनावों की तैयारियों और प्रचार का उत्साह ठंडा नहीं हुआ है.
कुशीनगर के गांवों में चुनाव प्रचार पूरे ज़ोरों पर है, जहां उम्मीदवार या उनके परिवार के सदस्य, घर-घर जाकर समर्थन मांग रहे हैं.
पोस्टर्स लगे और जोर से संगीत बजाते टैम्पो ट्रक्स, प्रधान पद के उम्मीदवार के लिए समर्थन मांगते हर जगह देखे जा सकते हैं.
बिश्नूपुर कैथवालिया गांव के राकेश सिंह, अपनी मां आरती देवी के लिए घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं, जो सिरसिया ग्राम सभा के लिए प्रधान पद का चुनाव लड़ रही हैं. ग्राम सभा का चुनाव 29 अप्रैल को होना है.
सिंह ने कहा, ‘मैं अपनी मां के लिए सुबह सवेरे और शाम के समय प्रचार करता हूं’. सिंह उन गिने-चुने लोगों में हैं, जिन्होंने गांवों में पूरे समय मास्क पहन कर रखा था.
ज़्यादातर ग्रामीणों ने न तो मास्क पहना हुआ था और न ही वो सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर रहे थे, बल्कि सामान्य तरीक़े से अपने कामों में लगे थे.
एक ऑटो चालक दुर्बल यादव ने कहा, ‘मैं दूसरे गांवों के बारे में नहीं जानता. लेकिन हमारे गांव में कोरोना के कोई मामले नहीं हैं’.
यादव तीन बुज़ुर्ग महिलाओं को एक टीकाकरण केंद्र से वापस ला रहे थे, और उनमें से किसी ने मास्क नहीं पहना था.
चार चरणों का चुनाव, जो 15 अप्रैल को शुरू हुआ था, 29 अप्रैल को ख़त्म होगा और 2 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे.
जर्जर स्वास्थ्य ढांचा, 72 घंटे बाद आती हैं कोविड की रिपोर्ट्स
सरकारी अधिकारियों का भी यही मानना है कि कुशीनगर में कोविड मामलों की वास्तविक संख्या, अधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक हो सकती है.
उन्होंने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि पर्याप्त संख्या में टेस्टिंग नहीं की जा रही है.
ग्रामीण क्षेत्रों में, कोविड टेस्ट केवल ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों में कराए जा रहे हैं.
सुकरौली ब्लॉक में सीएचसी के एक लैब टेक्नीशियन ने कहा, ‘हर दिन, हम क़रीब 50-70 लोगों की जांच कर रहे हैं. किसी दिन ये संख्या इससे भी कम रहती है. हमारा लक्ष्य हर रोज़ 100 लोगों की जांच करना है’.
टेक्नीशियन ने आगे कहा कि सीएचसी ज़्यादातर रैपिड एंटिजन टेस्ट ही कर रही हैं. आरटी-पीसीआर टेस्ट तभी कराया जाता है जब किसी व्यक्ति में कोविड के स्पष्ट लक्षण हों और वो वास्तव में बीमार हो.
इसका कारण ये है कि सीएचसी में आरटी-पीसीआर नमूनों की जांच के लिए कोई सुविधा नहीं है और उन्हें गोरखपुर के एक अस्पताल भेजा जाता है.
डॉ. वर्मा ने कहा, ‘हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है, सिवाय इसके कि सैम्पल्स को गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल भेजा जाए. उनकी रिपोर्ट 72 घंटे के बाद ही आ पाती हैं’.
इस बीच, अगर किसी मरीज़ की हालत बिगड़ती है तो उन्हें पडरौना की सरकारी स्वास्थ्य सुविधा में भेजा जाता है जो ब्लॉक से क़रीब 45 किलोमीटर दूर है.
उन्होंने कहा, ‘मामूली लक्षण वाले मरीज़ों को, घर पर ही अलग रहने को कहा जाता है’.
मामलों में उछाल आने का एक और कारण ये है कि बहुत से गांववासी लक्षण हो जाने पर भी जांच नहीं कराते और दवाओं के लिए गांव के झोलाछाप डॉक्टरों की सलाह लेना पसंद करते हैं.
गांवों में फार्मेसी की दुकानों पर भी, बुख़ार, नज़ला और खांसी की दवाओं की बिक्री में बढ़ोतरी देखी गई है.
संजय मिश्रा ने, जो सुकरौली ब्लॉक ऑफिस के पास एक फार्मेसी चलाते हैं, कहा कि पिछले दो हफ्तों में ऐसे गांववासियों की संख्या बढ़ रही है, जो सीधे उनके पास बुख़ार की दवाएं ख़रीदने आते हैं.
मिश्रा ने कहा, ‘मेरे पास हर रोज़ 20-25 लोग ऐसे आते हैं और कहते हैं कि उन्हें सांस लेने में परेशानी है और बुख़ार और खांसी है, जिसके लिए उन्हें दवाएं चाहिए. उन्हें किसी डॉक्टर ने नहीं भेजा होता. मैं उन्हें बुख़ार की पैरासिटामॉल जैसी बेसिक दवाएं और कफ सिरप दे देता हूं.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : भारत के दूसरे सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य में Covid संकट से कैसे निपट रही है योगी की टीम-11