नई दिल्ली: सिंगूर में 2006 के भूमि अधिग्रहण विरोधी ऐतिहासिक आंदोलन ने पांच साल बाद ममता बनर्जी को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी और पश्चिम बंगाल में 34 साल पुराने वामपंथी शासन को खत्म कर दिया था.
अब 2021 पर आते हैं, सिंगूर अब भूमि अधिग्रहण आंदोलन में ममता बनर्जी का समर्थन करने और टाटा मोटर्स को छोड़कर जाने के लिए मजबूर करने के अपने फैसले पर पछता रहा है. बनर्जी के जमीन देने से इनकार करने के बाद टाटा मोटर्स ने अपनी नैनो कार परियोजना सिंगूर से गुजरात स्थानांतरित कर दी थी.
सिंगूर के किसान अब अपनी बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने में तृणमूल कांग्रेस के अक्षम रहने को लेकर नाराजगी जता रहे हैं, जो कि इस चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा भी बन गया है. इनमें से तमाम लोग फिर से ‘पोरिबोर्तन’ के बारे में भी सोचने लगे हैं.
सिंगूर तीन वजहों से चर्चित रहा है—भूमि आंदोलन, टाटा मोटर्स का यहां से बाहर होना और 88 वर्षीय पूर्व तृणमूल नेता रवींद्रनाथ भट्टाचार्य, जिन्हें स्थानीय स्तर पर ‘मास्टर-मोशाई (शिक्षक)’ के तौर पर जाना जाता है, जो कि अब भाजपा के साथ हैं.
भट्टाचार्य सिंगूर भूमि आंदोलन में ठीक उसी तरह अग्रणी भूमिका निभा रहे थे, जैसी नंदीग्राम आंदोलन में सुवेन्दु अधिकारी की थी. ममता बनर्जी के ये दोनों पूर्व सहयोगी अब भाजपा के साथ हैं.
सिंगूर स्थित बजमेलिया गांव के 67 वर्षीय किसान बनेश्वर मांझी ने कहा कि उनकी जमीन टाटा नैनो कार प्रोजेक्ट के लिए ली गई थी, लेकिन बाद में लौटा दी गई और उनके लिए इसकी कोई कीमत नहीं रह गई है.
उन्होंने आगे कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने जमीन लौटाने का फैसला दिया और राज्य सरकार से कहा है कि उसे खेती योग्य बनाया जाए, लेकिन पिछले पांच सालों में ऐसा नहीं हो पाया है. हमारी जमीन में सांप और गीदड़ घूमते रहते हैं. यही भूमि बारिश के मौसम में एक झील में तब्दील हो जाती है.
उन्होंने बताया, ‘मुख्यमंत्री ने हमें आश्वस्त किया था कि भूमि को कृषि योग्य बनाने के उद्देश्य से स्थानीय प्रशासन वहां नहर बनाने के लिए निविदा जारी करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हमने उस समय तो ममता का समर्थन किया लेकिन अब हमें पछतावा हो रहा है. अगर टाटा यहां होते तो हमारे बच्चों को रोजगार के मौके मिलते. अब नौकरियां हैं नहीं और जमीन खेती के लिहाज से बंजर है. हम करें तो क्या करें?’
मांझी की झोपड़ी के ठीक पीछे सिंगूर के दो शहीदों तापसी मलिक और राज कुमार भुल की कांस्य प्रतिमाएं लगी हैं.
मलिक सेव सिंगूर फार्मलैंड कमेटी की सदस्य थी जिसका बलात्कार किया गया था और उसका शव टाटा मोटर्स की नैनो कार फैक्टरी की इमारत के अंदर मिला था. वहीं स्थानीय ग्रामीण भुल की आंदोलनकारियों पर पुलिस की कार्रवाई के दौरान मौत हो गई थी.
उसी गांव के एक किसान स्वप्न माली ने मलिक के बारे में बात करने में तो हिचकिचाहट दिखाई. उन्होंने कहा, ‘मैं पुरानी यादें ताजा नहीं करना चाहता. लेकिन हमें बदले में मिला क्या? बस कुछ पैसे, लेकिन मुआवजे की रकम से कितने दिन गुजरा चलता?’
उन्होंने कहा, ‘मैं बताना चाहता हूं कि भूमि होना आवश्यक है, लेकिन सबसे ज्यादा जरूरत नौकरियों की है. युवा बिना नौकरी के घूम रहे हैं, टाटा के आने से उम्मीदें बंधी थीं. चुनाव के बाद जो कोई भी आता है, उसे उद्योगों को स्थापित करने पर ध्यान देना चाहिए.’
सिंगूर में 10 अप्रैल को मतदान होना है.
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योजनाएं परिवार चलाने के लिए नाकाफी
सिंगूर के अन्य गांवों में भी लोगों के सुर मांझी और माली के जैसे ही हैं.
कमरकुंडू गांव के हरेश्याम पाल का कहना है, ‘सवाल यह नहीं है कि ममता ने इस क्षेत्र के लिए क्या किया है बल्कि यह है कि उन्होंने युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए क्या किया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उन्होंने लोगों को राशन दिया और गरीबों के लिए कन्याश्री, स्वास्थ्य साथी जैसी कई योजनाओं को लॉन्च किया. उन्होंने उन लोगों को 2,000 रुपये देने की शुरुआत भी की, जिन्होंने अपनी जमीन (टाटा) को नहीं दी. लेकिन मुझे बताइये कि क्या आठ सदस्यों वाले परिवार के लिए यह पर्याप्त है? हमारे बेटे बेरोजगार हैं. हमारा घर कैसे चलेगा?’
उन्होंने कहा, ‘वामपंथियों की एकमात्र समस्या यह थी कि उन्होंने जमीन देने से पहले किसानों से सलाह नहीं ली, लेकिन टाटा को कारखाने स्थापित करने की अनुमति देने का उनका निर्णय न केवल पूरे क्षेत्र, बल्कि पूरे राज्य के लिए सही था.’
सिंगूर की चुनावी जंग पर टिकी नजरें
भट्टाचार्य के भाजपा के साथ जाने के बाद सिंगूर की सीट पर चुनावी मुकाबला काफी रोचक हो गया है.
टीएमसी ने सिंगूर सीट पर इसी से लगे निर्वाचन क्षेत्र हरिपाल के निवर्तमान विधायक बेचराम मन्ना को उतारा है. मन्ना सिंगूर भूमि आंदोलन का एक महत्वपूर्ण चेहरा थे. मन्ना की पत्नी को हरिपाल सीट से मैदान में उतारा गया है.
भट्टाचार्य, जिन्होंने 2001, 2006, 2011 और 2016 में सिंगूर से टीएमसी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता था, ने इस बार अपनी उम्र के कारण टिकट न दिए जाने पर भाजपा का दामन थाम लिया था.
भाजपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने टिकट बांटे जाने से पहले मन्ना से संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन वह टीएमसी छोड़ने को तैयार नहीं थे.
कमरकुंडू गांव के एक किसान बीरेन शारदा ने कहा, ‘मास्टर-मोशाई एक सज्जन व्यक्ति हैं और क्षेत्र में एक नामचीन हस्ती हैं. लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन समस्या केवल एक ही है कि उनकी उम्र काफी ज्यादा हो चुकी है. लोग परिवर्तन के लिए वोट करेंगे, यद्यपि मन्ना एक मजबूत दावेदार हैं, वह सिंगूर में हर गांव-गली को जानते हैं.’
सिंगूर के भाजपा कार्यकर्ताओं ने पहले तो भट्टाचार्य की उम्मीदवारी का विरोध किया था, लेकिन पार्टी के नेताओं का कहना है कि वे अब लड़ाई में एकजुट हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सिंगूर विधानसभा क्षेत्र में 10,000 वोटों की बढ़त हासिल की थी. सिंगूर हुगली लोकसभा सीट में आता है, जहां से भाजपा की लॉकेट चटर्जी ने 2019 का चुनाव जीता था.
इस बार भाजपा ने चटर्जी को इससे लगी चिनसुराह विधानसभा सीट से टीएमसी के असित मजूमदार के खिलाफ मैदान में उतारा है.
अपना नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘चूंकि सिंगूर में अल्पसंख्यक वोट काफी कम हैं, जो कि वाम-कांग्रेस उम्मीदवार और ममता के बीच विभाजित हो जाएंगे, इसलिए भाजपा यह प्रतिष्ठित सीट जीत लेने की पूरी उम्मीद कर रही है, जो कि बंगाल में औद्योगिकीकरण की नई कहानी लिखेगी.’
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