नई दिल्ली: भारत का विमानन उद्योग दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ हो सकता है, लेकिन इसके हेलिकॉप्टर बाज़ार को, बचाए जाने की सख़्त ज़रूरत है.
देश भर में 300 से भी कम चॉपर्स हैं- ब्राज़ील के साओ पोलो में क़रीब 600 हैं- जिस कारण पर्यटन, खनन, कॉर्पोरेट यात्रा और चिकित्सा सेवाओं में, उनकी क्षमता का बहुत कम इस्तेमाल हो रहा है.
इस ग़ायब उद्योग को लेकर उस समय सवाल उठाए गए, जब भारत कोरोनावायरस से उत्पन्न, दुनिया के सबसे कड़े लॉकडाउन से गुज़र रहा था. भारत का नवजात ड्रोन उद्योग, इसी दौरान सामने उभर कर आया, और तब से इसे काफी बढ़ावा मिला है.
पिछले महीने उद्योग निकाय द्वारा आयोजित, एयरो इंडिया 2021 प्रदर्शनी को संबोधित करते हुए, नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, कि भारत में हेलिकॉप्टर का संचालन क्षमता से बहुत कम है. उन्होंने भारत के बेड़े की संख्या की अन्य देशों से तुलना की, जैसे ब्राज़ील जिसके पास क़रीब 1,250 चॉपर्स हैं, ऑस्ट्रेलिया (लगभग 2,000) और अमेरिका (14,000 से अधिक).
उद्योग के एक सूत्र ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘भारत का हेलिकॉप्टर बाज़ार तेज़ी से सिकुड़ रहा है. ज़्यादा से ज़्यादा लोग या तो अपने हेलिकॉप्टर बेंच रहे हैं, या उन्हें उन देशों को वापस भेज रहे हैं, जहां से वो ख़रीदे गए थे’.
सरकारी स्वामित्व की हेलिकॉप्टर सेवा कंपनी, पवन हंस के संयुक्त महाप्रबंधक और सशस्त्र बलों के पूर्व पायलट परमजीत सिंह ने कहा, ‘भारत में जो चीज़ हमें पीछे रोके हुए है, वो ये कि हेलिकॉप्टरों को स्थिर पंखी वायुयान की तरह देखा जाता है. नियमों में कोई लचीलापन नहीं है. हवाई पट्टियों या हवाई अड्डों के अलावा, सरकार हेलिकॉप्टरों को बहुत ज़्यादा जगहों पर उतरने की इजाज़त नहीं देती’.
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हाउस पैनल ने की ‘भविष्यवादी दृष्टिकोण’ की सिफारिश
एक संसदीय पैनल ने भी पिछले हफ्ते, इसी तरह की चिंताएं जताईं थीं. राज्यसभा बीजेपी सांसद टीजी वेंकटेश की अध्यक्षता में, यातायात, पर्यटन, और संस्कृति पर स्थाई समिति ने, 17 मार्च को पटल पर रखी अपनी रिपोर्ट में, नागरिक विमानन मंत्रालय से कहा कि ‘एक भविष्यवादी नज़रिया अपनाते हुए, देश के सभी अहम पर्यटन केंद्रों को, हेलिकॉप्टर सेवाओं के ज़रिए सुनियोजित ढंग से आपस में जोड़े’.
पैनल ने ‘हेलिपोर्ट्स पर पर्याप्त इनफ्रास्ट्रक्चर, आराम और सुख-सुविधाएं मुहैया कराने की आवश्यकता’ पर भी बल दिया.
कमेटी के सामने अपने बयान में, एविएशन सचिव प्रदीप सिंह खरोला ने गिनवाया, कि कैसे नागर विमानन महानिदेशालय, पूरे देश में हेलिपैड्स चिन्हित कर रहा है. उद्योग से जुड़े लोगों का मानना है, कि भारत में हेलिकॉप्टर संचालन को बढ़ावा देने के लिए, ये क़दम उठाना ज़रूरी हैं.
सिंह ने कहा, ‘हेलिकॉप्टर्स को हवाई अड्डों से संचालित किया जा रहा है- जिसका मतलब है कि उसमें उतरने की फीस, और नैविगेशन चार्जेज़ जैसे ख़र्च शामिल हो जाते हैं. इसकी वजह से संचालन का ख़र्च बढ़ जाता है. हम ऐसे हेलिपोर्ट्स चाहिएं, जो एयरपोर्ट्स से कम पैसा लेते हों, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इन सेवाओं का ख़र्च वहन कर सकें’.
खरोला ने पैनल को बताया, कि 33 हेलिकॉप्टर रूट्स और पांच हेलिपैड्स के अलावा, जो उड़ान नाम की एक फ्लैगशिप क्षेत्रीय संयोजकता योजना के तहत अवॉर्ड किए गए हैं, और जिनसे हेलिकॉप्टर संचालन में तेज़ी आएगी, ‘मंत्रालय ने संचालन की मात्रा के हिसाब से, इनफ्रास्ट्क्चर की ज़रूरत को भी कम किया है, और संबंधित राज्य सरकारों से आग्रह किया है, कि एयरपोर्ट्स/हेलिपोर्ट्स/वॉटर एयरोड्रोम्स की पुनरुत्थान योजना के तहत, इनके विकास या सुधार के काम को तेज़ किया जाए’.
लेकिन, सिंह का मानना है कि उड़ान के तहत, हेलिकॉप्टर रूट्स का दिया जाना सिर्फ प्रतीकवाद है.
उन्होंने कहा, ‘सिर्फ कुछ रूट्स, जैसे चंडीगढ़-शिमला-कुल्लू-धर्मशाला जो खुल गए हैं, कनेक्टिविटी बढ़ाने में सहायक साबित हुए हैं. लेकिन उड़ान स्कीम के तहत हेलिकॉप्टर सेवाएं, उस तरह से शुरू नहीं हो पाईं, जैसे होनी चाहिएं थीं. इन रूट्स से वैसा मुनाफा नहीं हो पा रहा है, जो किसी रूट को चालू रखने के लिए चाहिए होता है’.
नीतिगत समस्याएं
2016 में लाई गई राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (एनसीएपी) का उद्देश्य था, कि कई क़दम उठाकर नागरिक हेलिकॉप्टर संचालन को बढ़ावा देना था.
इन उपायों में हेलिकॉप्टरों के लिए, डीजीसीए की ओर से निर्दिष्ट अलग नियम, हेली-हब्स का विकास, एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) की मंज़ूरी के बिना, 5,000 फीट तक के हवाई क्षेत्र में उड़ने की अनुमति, और हेलिकॉप्टर संचालन के लिए एयरपोर्ट चार्जेज़ को युक्तिसंगत बनाना आदि शामिल हैं. लेकिन, तक़रीबन पांच साल बीतने के बाद भी, इनमें से किसी को लागू नहीं किया गया है.
विमानन अनुपालन एवं सुरक्षा फर्म, मार्टिन कंसल्टिंग के संस्थापक तथा सीईओ मार्क मार्टिन ने कहा, ‘मोदी सरकार की विमानन नीति के अंतर्गत, हेलिकॉप्टर्स को अभी भी काफी पाबंदियां झेलनी पड़ती हैं, जिन्हें मंत्रालय की सक्रिय कार्रवाई से सुलझाया जा सकता है’.
मार्टिन कंसल्टिंग की 2018-19 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का 25 प्रतिशत बेड़ा 20 साल से भी पुराना है, और ‘बेड़े का नवीनीकरण लंबित’ श्रेणी में आता है. भारत के सिर्फ 11 प्रतिशत हेलिकॉप्टर ज़ीरो से पांच साल पुराने हैं, 25 प्रतिशत 5-10 साल पुराने हैं- जेन एक्स फ्लीट, जबकि 32 प्रतिशत 10-15 साल की ‘आदर्श आयु’ में हैं.
इसके अलावा, भारतीय बेड़े के 63 प्रतिशत हेलिकॉप्टर्स, दो इंजिन वाले हैं और इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से ऑफशोर कार्यों, वीवीआईपी संचालनों, चुनावों, तथा कॉरपोरेट उड़ानों में किया जाता है. क़रीब 37 प्रतिशत हेलिकॉप्टर्स सिंगल इंजिन वाले हैं, जो धार्मिक पर्यटन उड़ानों, ऊंची उड़ानों, निजी उड़ानों तथा पर्यटन स्थलों के भ्रमण के काम में आते हैं.
लेकिन, चिकित्सा उद्देश्यों के काम में आने वाले हेलिकॉप्टर इनमें नहीं आते.
मार्टिन ने कहा, ‘दुर्भाग्यवश, बहुत सी बाधाओं और अंतर्विभागीय अवरोधों के चलते, हेलिकॉप्टर इमरजेंसी मेडिकल सर्वे, भारत में ठीक से शुरू नहीं हो पाया है, और चूंकि हेलिकॉप्टर सेवाओं को दुनियाभर में, एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा माना जाता है, इसलिए अब समय है कि मंत्रालय और सरकार, समुदाय और आर्थिक विकास में इसके योगदान को, औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिए क़दम उठाएं’.
उन्होंने कहा कि ऐसी नीतियां अपनाने की ज़रूरत है, जो हेलिकॉप्टर के अंतर्निहित लचीलेपन की आवश्यकताओं का ध्यान रख सकें.
उन्होंने कहा, ‘सरकार को आवश्यक यातायात सेवा के तौर पर, हेलिकॉप्टर संचालन को फिर से संगठित करने पर विचार करना चाहिए, और उसके साथ ही शहरों में 500 फीट ऊंचे हवाई क्षेत्र तक पहुंचने की अनुमति देनी चाहिए, सभी प्रमुख मेट्रोपोलिटन शहरों में हेलिपोर्ट्स विकसित करने चाहिएं, और उसके साथ ही छतों पर हैलिपैड्स के एकीकृत नियम, तथा सभी अस्पतालों के लिए हेलिकॉप्टर तक पहुंच को अनिवार्य बनाना चाहिए’.
‘पवन हंस के विनिवेश से वो और सक्षम बनेगी’
पवन हंस के चल रहे निवेश के बारे में बात करते हुए, जो 2021-22 तक पूरा किया जाना है, सिंह ने कहा कि इससे कंपनी और अधिक सक्षम बनेगी.
उन्होंने कहा, ‘पीएसयूज़ के तौर-तरीक़े निजी क्षेत्र जैसे सक्षम नहीं होते. मुझे नहीं लगता कि उसके अलावा कोई बदलाव देखने को मिलेगा. हम पहले ही अपने समकालीनों से मुक़ाबला कर रहे हैं, और अक्षमता की वजह से हमने बाज़ार की बहुत सी हिस्सेदारी खो दी है’.
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