एक ऐसे न्यूज़मेकर के लिए, जो पूरे एक साल से हर रोज़ सुर्ख़ियों में बना हुआ है, एक ख़ास शब्द है. सेलिब्रिटी. यही कारण है कि दिप्रिंट का इस सप्ताह का न्यूज़मेकर, कोई मामूली सुर्ख़ियां समेटने वाला नहीं है, बल्कि एक असली सिलेब्रिटी है, जिसने एक साल से पूरी दुनिया को चिंता में डाला हुआ है, और फिर भी वो विज्ञान से एक क़दम आगे बना हुआ है. ठीक उस समय जब ऐसा लगना शुरू हुआ कि भारत एक सबसे बुरे दौर से निकल आया है, सार्स-सीओवी-2 वायरस पूरी शिद्दत के साथ लौट आया है. दरअसल, सच कहें तो ये कहीं गया ही नहीं था- ये बस हमला करने के मौक़े के इंतज़ार में था और अब इसने हमला कर दिया है. राज्य सरकारें इसके लिए कोविड-19 के शिथिल अनुपालन को ज़िम्मेदार ठहरा रही हैं, जबकि चार राज्यों और एक केंद्र-शासित क्षेत्र में चुनाव हो रहे हैं. केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी है- अब वो चाहती है कि हर एक पॉज़िटिव केस पर, 30 संपर्कों को ट्रेस किया जाए, जो संख्या पहले 20 थी.
इसके अलावा, ये वायरस अब कई म्यूटेंट अवतारों में लौटकर आया है, जिनमें से कुछ वायरस मूल से ज़्यादा संक्रामक हैं. एक महीना पहले, 26 फरवरी को, भारत में एक्टिव मामलों की कुल संख्या 1,59,590 थी और उस दिन 16,488 लोग पॉज़िटिव पाए गए थे. शुक्रवार सुबह को, भारत में पिछले 24 घंटों में 59,118 नए मामले दर्ज किए गए और कुल पॉज़िटिव मामलों की संख्या बढ़कर 4,21,066 पहुंच गई. इसका मतलब है कि रोज़ाना नए मामले 258% बढ़े हैं, जबकि एक्टिव मामलों में 163% का उछाल आया है.
पिछले साल दिसंबर में मोदी सरकार ने, एक इंडियन सार्स-सीओवी-2 ऑन जिनॉमिक्स (इंसाकॉग) का गठन किया था- जो 10 राष्ट्रीय लैबोरेट्रीज़ का समूह था- जिसका काम प्रचलित कोविड-19 वायरसों की जिनॉमिक सीक्वेंसिंग और विश्लेषण करना था. तब से विश्लेषण किए गए 10,787 पॉज़िटिव सैम्पल्स में से 771 में चिंता वाले वेरिएंट्स पाए गए हैं, जिसका मतलब है कि म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन के आसपास है. इनमें 736 पॉज़िटिव सैम्पल्स में, वायरस के यूके वेरिएंट मिले हैं, 34 में दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट मिले हैं, और एक सैम्पल ब्राज़ीली स्ट्रेन के वायरस का है. इनकी पहचान देश के 18 राज्यों में की गई है.
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कोई सीख नहीं ली
पिछली कोविड लहर के साथ समानताएं हैं- पहले की तरह ही, ऐसा लगता है कि वायरस कुछ राज्यों की अपेक्षा दूसरे राज्यों में ज़्यादा तेज़ी से फैल रहा है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, और छत्तीसगढ़ सबसे अधिक प्रभावित हैं, जबकि पंजाब राष्ट्रीय औसत से दोगुनी मृत्यु दर से जूझ रहा है, और वहां पिछले लगभग एक महीने में, कुल मामलों में चार गुना इज़ाफा हुआ है. इसके जवाब में राज्य रात के कर्फ्यू और वीकएंड लॉकडाउंस का सहारा ले रहे हैं, जबकि केंद्र का मानना है कि इनसे कोई फायदा नहीं होता.
हालांकि पिछली बार के उलट, इस बार टेस्टिंग को लेकर कोई सीमाएं या कड़ी पाबंदियां नहीं हैं कि कौन टेस्ट करा सकता है, कौन नहीं. क्लीनिकल प्रबंधन के पहलुओं की समझ विकसित हो गई है और वेंटिलेटर्स के लिए शोर मचाने की बजाय, डॉक्टर्स अब ऑक्सीजन, सस्ते स्टिरॉयड्स और विटामिन सी तथा ज़िंक सप्लीमेंट्स का ज़्यादा सहारा ले रहे हैं.
लेकिन दूसरी तरह की सीमाएं अभी भी बरकरार हैं. मसलन, प्रशंसित इंसाकॉग समय पर जिनोम विश्लेषण परिणाम देने में संघर्ष कर रहा है. पंजाब में, जो पहले पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरॉलजी और नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ जिनॉमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलजी को सैम्पल्स भेजता था, प्रतीक्षा की अवधि इतनी ज़्यादा थी कि नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल को मजबूरन सिर्फ पंजाब के नमूनों के लिए, एक बैच विश्लेषण करना पड़ा. ये क़दम राज्य के बक़ाया को निपटाने के लिए उठाया गया. नतीजे चकित करने वाले थे- 401 नमूनों में से 81 प्रतिशत कोरोनावायरस के नए यूके वेरिएंट के पॉज़िटिव पाए गए.
लेकिन पिछली लहर के बाद से, सबसे बड़ा बदलाव ये आया है कि अब हम वास्तव में हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के क़रीब हो सकते हैं. 16 जनवरी को शुरू हुआ टीकाकरण कार्यक्रम, अपने साथ काफी उम्मीदें लेकर आया था, लेकिन ये कई पैमानों पर खरा नहीं उतरा है. 35 लाख वैक्सीन डोज़ के एक आकस्मिक ‘रिकॉर्ड’ प्रयास के अलावा, रोज़ाना टीकाकरण का रिपोर्ट कार्ड, औसतन 20 लाख के आसपास मंडराता रहा है और रविवार को तो इसके पांचवें तक रह जाता है.
सिलेब्रिटी होने के नाते सार्स-सीओवी2, वीकएंड पर ब्रेक नहीं लेता लेकिन हमारे टीका लगाने वालों को उनका ब्रेक ज़रूर चाहिए.
फिर से लालफीता शाही
कुछ अनुमानों में संकेत दिया गया है कि इस रफ्तार से- और जहां भारत 1 अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए, टीकाकरण खोलने जा रहा है- भारत को इस सीमित आबादी को टीका लगाने में भी कई साल लग सकते हैं.
मोदी सरकार ने कई बार इस बात को स्पष्ट किया है कि वो सभी को टीका लगाने के पक्ष में नहीं है.
थोड़ा बेवजह ही, बीते ज़माने के इंस्पेक्टर राज की याद दिलाते हुए टीकाकरण कार्यक्रम और वैक्सीन्स की मार्केटिंग दोनों, केंद्र सरकार के कड़े नियंत्रण में हैं. न केवल एक आम आदमी बाज़ार से वैक्सीन्स नहीं ख़रीद सकता, जब तक कि वो सरकार के ‘पात्रता’ के मानदंड पर पूरा न उतरता हो, बल्कि राज्य सरकारें भी ख़ुद से वैक्सीन्स नहीं ख़रीद सकतीं. यही वजह है कि ख़ासकर चुनावी राज्यों में, वैक्सीन की कमी के आरोप सामने आते रहते हैं. अब जाकर फैसला लिया गया है कि निर्यात को सीमित करके, घरेलू मांग को पूरा किया जाएगा.
कोविड-19 की पहली लहर के दौरान, महामारी विज्ञानियों ने सरकार पर आरोप लगाया था कि वो कोविड-19 रणनीति तय करने में, मॉडलर्स और नौकरशाहों की बात ज़्यादा सुन रही थी. अब फिर वही नौकरशाह टीकाकरण को नियंत्रित कर रही है, जिससे से फिर से उठ खड़े हुए वायरस के सामने, भारत के हाथ से बाज़ी खिसकती हुई दिख रही है. पिछले एक साल में, इसने साबित कर दिया है कि वो विकास के सिद्धांत ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ का चतुराई से अभ्यास करता है.
इसके खिलाफ मानवता के पास बस यही एक रास्ता है कि चतुराई के साथ फुर्ती का भी मुज़ाहिरा करे.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
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