बेल्लारी का बड़ा नाम है या यों कह लीजिए कि बेल्लारी कई बातों के लिए बदनाम है, जैसे बेल्लारी बंधु, खनन घोटाला, सोनिया गांधी बनाम सुषमा स्वराज का चुनाव. लेकिन इस फेहरिश्त में आप निश्चित ही बेल्लारी की कृषि उपज मंडी का जिक्र नहीं करेंगे. जिला मुख्यालय में एक जानी-मानी जगह पर मौजूद यह मंडी वैसी ही है जैसी की कर्नाटक की बाकी कृषि मंडियां. अपने आकार, बुनियादी ढांचे, नीलामी की रीत-नीत और दस्तावेजों को सहेजकर रखने के मामले में बेल्लारी की कृषि मंडी पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों की कृषि मंडियों को अपवाद स्वरुप छोड़ दें तो देश की बाकी मंडियों से निश्चित ही बीस पड़ेगी. दक्षिण भारत के ज्यादातर राज्यों की तरह कर्नाटक में भी शासन-प्रशासन उत्तर भारत या पूर्वी भारत के ज्यादातर राज्यों की तुलना में कहीं बेहतर है. याद रखने की एक बात ये भी है कि कर्नाटक देश में अपना कृषि मूल्य आयोग स्थापित करने वाला पहला राज्य है.
जाहिर है, फिर प्रधानमंत्री ने जो शानदार वादा किया था कि ‘एमएसपी था, है और रहेगा’ उसकी सच्चाई को परखने के लिए बेल्लारी की सरकारी कृषि मंडी एक बेहतर जगह साबित हो सकती है. मैं 6 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा के ‘एमएसपी दिलाओ’ अभियान की शुरुआत करने के लिए मंडी गया था. अभियान की शुरुआत कर्नाटक से करने की कई बेहतर वजहें हैं. देश के बाकी हिस्सों की तुलना में यहां फसल की कटाई और उपज की आमद दो-तीन हफ्ते पहले हो जाती है. इसके अतिरिक्त, एक बात ये भी है केंद्र की तरफ खड़े होकर राज्य पर दोषारोपण करने या फिर राज्य की तरफ खड़े होकर केंद्र पर दोष मढ़ने का जो सदाबहार खेल चलता है, उसकी यहां कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि सूबे और केंद्र दोनों ही जगहों पर एक ही पार्टी की सरकार है.
यह भी पढ़ेंः कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के चार महीने होने पर किसान यूनियन का 26 मार्च को भारत बंद
क्या है ज़मीनी हकीकत
हमने मांगा तो मंडी के अधिकारियों ने तुरंत ही प्रिन्ट आउट निकाल कर दे दिया कि आज के दिन किसानों ने मंडी में अलग-अलग फसलों को किन भावों पर बेचा है. हमारे मंडी पहुंचने यानि 6 मार्च के दिन किसानों ने जो 11 किस्म की फसल बेची थी उनमें से 8 फसलें उस 23 फसलों वाली सूची में शामिल हैं जिनपर सरकार एमएसपी देती है. इनमें 8 फसलों में मात्र एक उड़द ही थी जो एमएसपी या उससे ज्यादा कीमत पर बिकी. अब आप चाहें तो इस हिसाब को यों भी कर सकते हैं कि बेल्लारी की कृषि मंडी में 6 मार्च के दिन बिकी 9 फसलों में 2 की बिक्री एमएसपी या उससे ज्यादा कीमत पर हुई क्योंकि हमें पता चला कि कुसुम्बी की फसल भी एमएसपी से ज्यादा कीमत पर बिकी है लेकिन यह फसल आधिकारिक सूची में दर्ज न थी. शेष सात फसलें एमएसपी यानि भारत सरकार द्वारा निर्धारित उस न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम में बिकीं जिसके बारे में आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि किसी फसल की इतनी कीमत तो किसानों को हर हाल में मिलनी चाहिए और सरकार इतनी कीमत दिलाने के लिए किसानों की मदद करेगी. एमएसपी से कम कीमत पर बिकने वाली फसलों में इलाके की सभी पांच बड़ी फसलें— अरहर, मक्का, ज्वार, बाजरा और चना शामिल हैं. बेल्लारी में 6 मार्च के दिन फसलों की कीमत की तालिका कुछ यों रही:
फसल | एमएसपी | औसत मूल्य | औसत – एमएसपी |
बाजरा | 2150 | 1460 | – 690 |
चना | 5100 | 4182 | – 918 |
ज्वार | 2620 | 1728 | – 829 |
मक्का | 1850 | 1459 | – 391 |
अरहर | 6000 | 4943 | – 1057 |
कुसुम्बी | 5327 | 4010 | – 1317 |
मूंग | 7196 | 7116 | – 80 |
उड़द | 6000 | 6166 | +166 |
नोट: सभी मूल्य रुपये प्रति क्विंटल में. स्रोत: कृषि उपज विपणन मंडी, बेल्लारी.
अगर आपको लगता है कि बेल्लारी की मंडी एक अपवाद की तरह है तो फिर आप गलत सोच रहे हैं. कर्नाटक की ज्यादातर मंडियों में अधिकतर फसलें कमोबेश बेल्लारी मंडी वाले भाव से ही बिक रही हैं. दरअसल, फरवरी में सूबे में बाजरे की फसल का औसत भाव बेल्लारी मंडी की तुलना में नीचे रहा. सिर्फ अरहर की फसल को सूबे की अन्य जगहों की मंडियों में बेल्लारी की तुलना में बेहतर कीमत मिली.
यह भी पढ़ेंः दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया- शांतनु मुलुक ने अफवाह फैलाने के इरादे से किसानों पर टूलकिट बनाया
काल्पनिक मूल्य न कि समर्थन मूल्य
अगर आपको लगता है कि फसलों की बिक्री के लिहाज से यह साल बाकी सालों की तुलना में अपवाद कहा जायेगा तो एक बार फिर से आपका सोचना गलत है. कर्नाटक के कृषि मूल्य आयोग से हासिल बीते तीन साल ( 2017-18 से 2019-20) का औसत बताता है कि सूबे में 72 फीसद कृषि उत्पाद एमएसपी से कम कीमत पर बिके. डाक्टर टी.एन प्रकाश कम्मारडी का आकलन है कि मजबूरी में एमएसपी से कम कीमत पर फसल बेचने के कारण कर्नाटक के किसानों को बीते साल 3119 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.
ये तो हुई कर्नाटक की कृषि मंडियों की बात लेकिन देश के बाकी हिस्सों की मंडियों का क्या हाल है? जवाब जानने के लिए मैंने अपने दोस्त सुनील तांबे से पूछा. कृषि मंडियों का जायजा करते तांबे को अब एक दशक से ज्यादा का वक्त हो रहा है. उन्होंने Agmarknet के आंकड़ों को खंगाला. इस आधिकारिक वेबसाइट पर देश की हर कृषि मंडी के हर दिन के भावों का लेखा-जोखा मिल जाता है. आंकड़ों के आकलन के आधार पर तांबे जिस निष्कर्ष पर पहुंचे वह कर्नाटक की कृषि मंडियों से उभरती तस्वीर से कहीं ज्यादा निराश करने वाली है.
धान को छोड़कर खरीफ की अन्य किसी प्रमुख फसल को कृषि मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल न हुआ. धान की बिक्री एमएसपी पर अगर हो पायी तो इसलिए कि सरकार ने कई राज्यों में इसका उपार्जन किया है. अच्छे किस्म के लंबे दाने वाले धान की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई क्योंकि ऐसे धान को एमएसपी के दायरे में नहीं रखा गया है और इन्हें एमएसपी से कम कीमत पर सामान्य किस्म के धान के रुप में बेचना पड़ा. हरियाणा को छोड़कर अन्य किसी राज्य, यहां तक कि गुजरात में भी बाजरे की खरीद एमएसपी पर नहीं हो पायी है. नतीजतन, बाजरे की एमएसपी तो 2150 रुपये है लेकिन वह बिका 1300 रुपये के भाव. मूंग की फसल की सबसे ज्यादा आवक नवंबर के माह में होती है. इस भरपूर आवक वाले माह में मूंग 5556 रुपये के औसत भाव से बिका यानि अपने एमएसपी से 1600 रुपये कम की कीमत पर. हमने देखा कि बेल्लारी में उड़द एमएसपी से ज्यादा कीमत पर बिका है. लेकिन देश के बाकी हिस्से में ऐसा न हो पाया. उड़द का भरपूर आवक वाला माह नवंबर है और नवंबर के माह में उड़द औसतन 4789 रुपये के भाव से बिका जबकि उसकी एमएसपी 6000 रुपये है. इसी तरह अरहर की बिक्री का औसत मूल्य 4500 से 5000 रुपये रहा जबकि एमएसपी 6000 रुपये है. मक्के की एमएसपी 1850 रुपये है लेकिन उसकी बिक्री का औसतन मूल्य रहा 1354 रुपये.
रबी की फसल की बिक्री का मौसम अभी बस शुरु ही हुआ है लेकिन आसार अच्छे नहीं दिख रहे. रबी के मौसम की सबसे प्रमुख फसल है गेहूं और इसकी कटाई होनी अभी शेष है. धान की ही तरह, जिन राज्यों में गेहूं का सरकारी उपार्जन होगा वहां इस फसल को ठीक-ठाक कीमत मिल जायेगी . अन्य जगहों पर किसानों को गेहूं एमएसपी (1975 रुपये) से 300 से 500 रुपये कम पर बेचना पड़ सकता है. सरसों की फसल इस मामले में अपवाद साबित हो सकती है. इस फसल का बाजार भाव अभी 4625 रुपये की एमएसपी से 200-300 रुपये ज्यादा चल रहा है. जहां तक बाकी फसलों का सवाल है, उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भर हासिल हो जाये तो यही बहुत कहा जायेगा. रागी की फसल की बिक्री का समय तकरीबन समाप्त हो चला है और उसे 3295 रुपये की एमएसपी से 1000 रुपये कम पर बेचना पड़ा. जाड़े के दिनों में लगायी गई मक्के की फसल अब तैयार होकर बाजार में आ चुकी है और एक बार फिर उसे एमएसपी(1850 रुपये) से कम कीमत (1300 रुपये) पर बेचना पड़ रहा है.
जौ की फसल भी आनी शुरु हुई है और राजस्थान से आ रहे शुरुआती रुझान में दिख रहा है कि 1600 रुपये की एमएसपी की जगह उसकी बिक्री 1300 रुपये के भाव से हो रही है. बाजार में ज्वार की आवक भी हो रही है और इसकी संकर प्रजाति को 2620 रुपये की एमएसपी से 1000 रुपये कम पर बेचा जा रहा है. इस मौसम की एक अन्य प्रमुख फसल चना अभी 4400 रुपये से 4800 रुपये के बीच बिक रहा है। इसका मतलब हुआ कि चने की फसल को प्रति क्विंटल 300 से 700 रुपये कम पर बेचना पड़ रहा है क्योंकि फसल की एमएसपी 5100 रुपये रखी गई है.
माफ कीजिएगा कि मैंने आपके सामने फसलों की बिक्री का यह लंबा और उबाऊ ब्यौरा पेश किया. लेकिन तफ्सील में गये बगैर यह बताया ही नहीं जा सकता कि जिसे एमएसपी कहा जाता है वह किसानों की मेहनत के साथ किये जाने वाले एक खिलवाड़ से ज्यादा नहीं है. ज्यादातर मामलों में होता यही दिखता है कि जिसे न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जा रहा है वही फसल की बिक्री का वांछित अधिकतम मूल्य बन जाता है और इस तरह सरकार फसल की बिक्री पर जो मदद देने का वादा करती है वह मदद दरअसल किसान को कभी हासिल नहीं हो पाती. किसान अगर कागजी वादे पर विश्वास नहीं कर रहे और चाहते हैं कि एमएसपी की कानून में गारंटी हो जाये तो उनकी इस बात को समझने का यही तरीका है कि हम फसलों की बिक्री के भाव पर गौर करें.
ये बात ठीक है कि पिछली सरकारों के वक्त भी हालत कुछ बेहतर न थी. बीते पचास सालों से एमएसपी ज्यादातर किसानों के लिए सिर्फ कागजी वादा साबित हुई है. अन्तर बस इतना भर आया है कि अब देश में एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो पूरे दमखम से कहते हैं कि एमएसपी था, है और रहेगा !
जाहिर है यह ज्यादातर किसानों के लिए एक मजाक है.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(योगेंद्र यादव जय किसान आंदोलन और संयुक्त किसान मोर्चा के को-ऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्य हैं. वह स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
यह भी पढ़ें: दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया- शांतनु मुलुक ने अफवाह फैलाने के इरादे से किसानों पर टूलकिट बनाया