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Saturday, 21 December, 2024
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सत्ता पक्ष लोकसभा में शिरकत के मामले में विपक्ष से ज़्यादा गंभीर, राहुल की हाज़िरी केवल 56%

PRS विधायी अनुसंधान डेटा के अनुसार, जून 2019 और सितंबर 2020 के बीच, जिन 26 सांसदों की पूरी हाज़िरी थी, उनमें 21 बीजेपी के थे, जबकि कांग्रेस के सिर्फ 2 थे.

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नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि 17वीं लोकसभा में, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसदों ने, संसद को विपक्ष की अपेक्षा अधिक गंभीरता से लिया है, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है, जिसका कर्त्तव्य है कि सरकारी नीतियों पर सवाल उठाए और क़ानूनों को चेक करे.

दिप्रिंट द्वारा संकलित PRS विधायी अनुसंधान डेटा के अनुसार, जिन 26 सांसदों ने जून 2019 और सितंबर 2020 के बीच पूरी हाज़िरी कराई थी, उनमें 21 (81 प्रतिशत) का ताल्लुक़ बीजेपी से था, जिसके निचले सदन में 303 सांसद हैं.

उनमें से बस्ती के सांसद जगदंबिका पाल और गोड्डा से सांसद निशिकांत दूबे तथा 13 पहली बार के सांसद शामिल हैं, जो ज़्यादातर उत्तर प्रदेश से हैं.

सदन में 52 सांसद रखने वाली कांग्रेस के पास पूरी हाज़िरी वाले केवल दो सांसद हैं- असम के बारपेटा से अब्दुल ख़लीक़ और केरल से के मुरलीधरन.

100 प्रतिशत हाज़िरी वाले बाक़ी सांसदों का संबंध, द्रविड़ मुनेत्र कझ़गम (दो), और जनता दल –युनाइटेड (एक) से है.

हालांकि इस अवधि के लिए पार्टी औसत, तुरंत रूप से उपलब्ध नहीं थी, लेकिन ऐसा लगता है कि ये रुझान पिछली लोकसभा का ही दोहराव है.

2014 से 2019 के बीच, 16वीं लोकसभा में बीजेपी सांसदों की औसत उपस्थिति 86 प्रतिशत थी. कांग्रेस सांसदों ने 75 प्रतिशत हाज़िरी दर्ज कराई. केवल 65 प्रतिशत उपस्थिति के साथ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली पार्टियों में थी.

वर्तमान लोकसभा में भी पार्टी का प्रदर्शन ख़राब ही बना रहा है, जिसमें पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे, अभिषेक बनर्जी की हाज़िरी केवल 14 प्रतिशत थी- वो सदन में सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वालों में थे.

पूर्व कांग्रेस प्रमुख और वायनाड सांसद, राहुल गांधी की उपस्थिति केवल 56 प्रतिशत थी- जो पिछली लोकसभा के 52 प्रतिशत पर थोड़ा सा सुधार थी.

चूंकि प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद के सदस्यों के लिए, किसी रजिस्टर पर दस्तख़त करना अनिवार्य नहीं है, इसलिए उनकी उपस्थिति का पता नहीं चल सका.


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हालांकि राहुल गांधी ने कृषि क़ानूनों से लेकर सीमा विवाद तक, बहुत सारे मुद्दों पर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमले किए हैं, लेकिन वो सदन की लगभग आधी बैठकों में शरीक नहीं हुए. उन्होंने केवल दो बहसों में हिस्सा लिया और कुल 50 सवाल पूछे.

अभिषेक बनर्जी, जो डायमंड हार्बर से सांसद हैं, सिर्फ दो चर्चाओं में शरीक हुए और उन्होंने सिर्फ एक सवाल पूछा. उनके टीएमसी सहयोगी और घटक सांसद, अधिकारी देव की हाज़िरी भी केवल 14 प्रतिशत रही.

सबसे कम हाज़िरी वाले सांसद थे बहुजन समाज पार्टी के घोसी से सांसद अतुल कुमार सिंह, जिन्होंने सदन की कुल 3 प्रतिशत बैठकों में हिस्सा लिया. वो बलात्कार के आरोप में जेल में बंद हैं और उन पर एक केस है कि अपने चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपने अपराधिक केस को छिपाया था.

लेकिन, सबसे बुज़ुर्ग लोकसभा सांसद शफ़ीक़ुर रहमान बारा ने, जो 90 वर्ष के हैं और समाजवादी पार्टी (एसपी) के टिकट पर संभल से जीते थे, 99 प्रतिशत की ज़बर्दस्त हाज़िरी दर्ज कराई, जबकि 81 वर्षीय एसपी प्रमुख मुलायम सिंह यादव का 63 प्रतिशत हाज़िरी का रिकॉर्ड, उनके बेटे अखिलेश यादव से बेहतर है, जिनकी हाज़िरी सिर्फ 34 प्रतिशत रही.

दिप्रिंट से बात करते हुए बारा ने कहा, ‘मैं चौधरी चरण सिंह के साथ राजनीति में आया था. मैं 1974 में चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल से, विधानसभा में चुना गया था और मैंने मुलायम सिंह सरकार में भी बतौर मंत्री अपनी सेवाएं दीं, लेकिन उम्र के बावजूद संसद में आना मेरा कर्त्तव्य है. लोग हमें मुद्दों को उठाने और संसद में नीतियां बनाने के लिए चुनते हैं. अगर में शिरकत नहीं करूंगा तो ये उन लोगों का अपमान होगा, जिन्होंने मुझे चुना है’.

लेकिन उन्होंने अखिलेश यादव की कम उपस्थिति का बचाव किया. ‘वो विधान सभा की तैयारियों में व्यस्त हैं, इसलिए उन्हें सूबे में मौजूद रहने की ज़रूरत है’.

उन 24 सांसदों में, जिनकी हाज़िरी 50 प्रतिशत से नीचे है, जो कि 70 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से कम है, चार-चार टीएमसी और बीजेपी से हैं. उनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं सनी देओल (बीजेपी, 31 प्रतिशत), और उदयन राज भोंसले (बीजेपी, 16 प्रतिशत).

विपक्ष के प्रदर्शन पर बात करते हुए अकेडमिक शमिका रवि ने दिप्रिंट से कहा, ’विपक्षा का कर्तव्य है कि लोकसभा के अंदर वो सरकार से सवाल करे, लेकिन विडंबना ये है कि सत्ता पक्ष, विपक्ष से ज़्यादा गंभीर नज़र आता है, जिसका मुख्य काम सरकार को चेक करना और उससे सवाल करना है. इन रुझानों से पता चलता है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी कितनी गंभीर है’.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स के त्रिलोचन शास्त्री ने कहा, ‘एक सांसद का काम नीतियों पर क़ानून बनाना है, लेकिन जब वो संसद में उपस्थित नहीं होता तो न तो वो अपने लोगों के साथ इंसाफ कर रहा होता है और न ही देश के साथ. हर बार हम देखते हैं कि न्यूनतम उपस्थिति की कमी है और सरकार शोर-शराबे के बीच बिल पास करा लेती है. ऐसे में आप सरकार के ग़लत कामों और विपक्षी राय की अनदेखी पर सवाल कैसे खड़े कर सकते हैं?’

सुप्रिया सुले एक बार फिर सबसे जिज्ञासु सांसद

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले, जो पार्टी प्रमुख शरद पवार की बेटी और महाराष्ट्र के बारामती से सांसद हैं, सदन के अंदर सबसे जिज्ञासु सांसद हैं.

जून 2019 और सितंबर 2020 के बीच उन्होंने कुल 286 सवाल पूछे और 122 डिबेट्स में हिस्सा लिया. 2014 से 2019 के बीच पांच वर्ष के कार्यकाल में, 1,184 सवालों के साथ उन्होंने 16वीं लोकसभा में भी टॉप किया था.

इस बार दूसरे सबसे जिज्ञासु सांसद भी महाराष्ट्र से हैं- बीजेपी के सुभाष भामरे, जिन्होंने 277 सवाल पूछे.

दस सबसे जिज्ञासु सांसदों में पांच का ताल्लुक़ महाराष्ट्र से था. लोकसभा में भी 10 सांसदों में से आठ जिज्ञासु सांसद पश्चिमी सूबे से थे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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