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Thursday, 21 November, 2024
होमराजनीतिसहयोगी के तौर पर अखिलेश पहली पसंद, अगर वो मना करते हैं तो छोटी पार्टियों के साथ जाएंगे- चाचा शिवपाल

सहयोगी के तौर पर अखिलेश पहली पसंद, अगर वो मना करते हैं तो छोटी पार्टियों के साथ जाएंगे- चाचा शिवपाल

प्रगितशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव ने कहा, 'अगर अखिलेश दूसरों को साथ लेकर नहीं चलते, तो 2022 में उनके लिए राह बहुत मुश्किल हो जाएगी’.

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नई दिल्ली : समाजवादी पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव, अपने भाई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) प्रमुख शिवपाल यादव और बेटे एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव को 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले गठबंधन के लिए साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं.

पूर्व एसपी राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव ने एक इंटरव्यू में दिप्रिंट से कहा, ‘नेता जी (मुलायम सिंह यादव) ने मेरे और अखिलेश के बीच, कुछ फोन कॉल्स में मध्यस्थता की है. जब भी अखिलेश उनके पास जाते हैं, वो मुझे फोन पर ले लेते हैं. पिछली बार जब मेरी अखिलेश से बात हुई थी, उसे 4 महीने हो गए हैं’.

लेकिन, 66 वर्षीय नेता ने कहा कि अखिलेश वैसे उनसे कभी नहीं मिलते.

‘नेताजी के सामने अखिलेश अच्छे से बात करते हैं, लेकिन कई बार उन तक पहुंचने की कोशिश करने के बाद भी, वो व्यक्तिगत रूप से मुझसे कभी नहीं मिलते’.

2022 विधान सभा चुनावों के लिए अपनी योजनाओं के बारे में बात करते हुए शिवपाल ने कहा, ‘बीजेपी ने 2019 के आम चुनावों से पहले मुझे ऑफर किया था लेकिन मैंने उसकी पेशकश ठुकरा दी, क्योंकि हमारी विचारधाराएं नहीं मिलतीं. मैंने तब अखिलेश से पूछा था कि मैं कुछ मांग नहीं रहा हूं, लेकिन चलो एक गठबंधन कर लेते हैं. उन्होंने मना कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘इस बार भी, पहली पसंद अखिलेश और परिवार हैं, लेकिन अगर उनका मन नहीं बदलता तो फिर हम छोटे दलों के साथ (गठबंधन में) जाएंगे’.

उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने अख़बारों में इस बारे में पढ़ा है कि 2022 चुनावों के लिए एसपी उन्हें एक सीट पेश कर रही है और इससे उन्हें अपमान महसूस हुआ.

मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल, एसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती सरकार के दौरान नेता प्रतिपक्ष और यूपी विधानसभा में पांच बार विधायक रहे हैं. एसपी में कई महीने चली अंदरूनी लड़ाई के बाद, 2018 में उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया है.

‘अखिलेश के नेतृत्व में एसपी में सम्मान और स्थान नहीं है’

अखिलेश के नेतृत्व पर टिप्पणी करते हुए शिवपाल ने कहा, ‘नेताजी के समय में हर किसी को सम्मान दिया जाता था. पार्टी में समाज के हर तबक़े के लिए जगह थी. (लेकिन) अखिलेश के नेतृत्व में दोनों नहीं हैं.

‘बुज़ुर्ग नेताओं को लगता है कि उन्हें दरकिनार कर दिया गया है. राजनीतिक फैसलों में भी वो अपने पिता की सुझाव नहीं लेते’.

शिवपाल ने आरोप लगाया कि अखिलेश के दर्जनों सहयोगियों ने उन दोनों के बीच दुश्मनी पैदा की है.

उनके अनुसार वो ‘तथाकथित सलाहकार’, जिनसे अखिलेश घिरे हुए हैं, परिवार में फूट के लिए ज़िम्मेदार हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये लोग इस बात के ज़िम्मेदार हैं कि हमारी कोशिशों के बावजूद, परिवार एक साथ नहीं आ रहा है. ये भविष्य में भी एसपी की सियासत को नुक़सान पहुंचाएगा’.

‘2022 में अखिलेश की राह बहुत कठिन है’

शिवपाल की पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनावों में 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उन्हें 0.307 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. 2022 के प्रदेश चुनावों में पार्टी ने सभी 403 विधान सभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा, ‘हम पहले से ही (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी प्रमुख ओम प्रकाश) राजभर और कुछ अन्य नेताओं के (गठबंधन के लिए) संपर्क में हैं, कुछ योजनाएं बन रही हैं’.

शिवपाल के अनुसार, छोटे दलों के गठबंधन को भले ही ज़्यादा सीटें न मिलें, लेकिन वो निश्चित रूप से एसपी के जनाधार को नुक़सान पहुंचाएंगे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मायावती का 20 प्रतिशत वोट कहीं नहीं जा रहा लेकिन (एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन) ओवैसी और अन्य फैक्टर्स के आने के बाद नुक़सान एसपी का ही होगा. अगर अखिलेश दूसरों को साथ लेकर नहीं चलते, तो 2022 में उनके लिए राह बहुत मुश्किल हो जाएगी’.

ऐसे में जब राम मंदिर मुद्दा, यूपी की राजनीति के केंद्र में आ गया लगता है अखिलेश और कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, राज्य में प्रमुख मंदिरों का दौरा करते देखे गए हैं.

ओबीसीज़ और छोटी उपजातियों के हिंदुत्व की ओर चले जाने के बारे में पूछने पर शिवपाल ने कहा, ‘ये एक बड़ी चुनौती है, लेकिन अगर अखिलेश दूसरों का ख़याल रखते हैं, तो हमें भी एक राजनीतिक विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है’.

उन्होंने ये भी कहा, ‘(यूपी की राजनीति में) मुद्दों की कोई कमी नहीं है. तेल और सिलेंडर गैस के दाम बढ़ गए हैं और बीजेपी सरकार के अंतर्गत महंगाई बढ़ी है. इन समस्याओं को बड़े सियासी मुद्दों में बदलना चाहिए लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि लोग हमें एकजुट देखें, बंटे हुए नहीं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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