scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमराजनीतिअसम में सहयोगी BPF का BJP से अलग होना 'कांग्रेस की मदद करेगा पर रूलिंग पार्टी को चिंता की जरूरत नहीं'

असम में सहयोगी BPF का BJP से अलग होना ‘कांग्रेस की मदद करेगा पर रूलिंग पार्टी को चिंता की जरूरत नहीं’

भाजपा और बीपीएफ ने पिछले कई महीनों से जारी तनाव के बाद अपने रास्ते अलग-अलग कर लिए हैं जो कि पहली बार जनवरी 2020 में तब खुलकर लोगों के सामने आया था जब बीपीएफ ने तीसरा बोडो समझौता नामंजूर कर दिया था.

Text Size:

गुवाहाटी: क्षेत्रीय दल बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के भाजपा से अलग होने और पूर्व सहयोगी कांग्रेस के पास लौटने के फैसले को राजनीतिक विश्लेषक असम विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए एक बड़ा सकारात्मक संकेत मान रहे हैं.

हालांकि, विश्लेषकों को ऐसा नहीं लगता है कि इस घटक का साथ छोड़ना—जिसका ऐलान बीपीएफ प्रमुख हागरामा मोहिलरी ने शनिवार को किया था—भाजपा के लिए नुकसानदेह होगा, जो 2016 में राज्य में पहली बार जीत हासिल करके सत्ता में आई थी.

असम में 27 मार्च से विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसके नतीजे आगामी 2 मई को आएंगे.

भाजपा और बीपीएफ ने पिछले कई महीनों से जारी तनाव के बाद अपने रास्ते अलग-अलग कर लिए हैं जो कि पहली बार जनवरी 2020 में तब खुलकर लोगों के सामने आया था जब बीपीएफ ने तीसरा बोडो समझौता नामंजूर कर दिया था. क्षेत्र में उग्रवाद को खत्म करके शांति और विकास की राह पर आगे बढ़ने के लिए केंद्र और असम सरकार ने इस समझौते पर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) के चार उग्रवादी घटकों के साथ हस्ताक्षर किए थे.

ये मतभेद अप्रैल 2020 में उस समय और बढ़ गए जब बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) का कार्यकाल पूरा हो गया लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण चुनाव तय समय पर नहीं हो सके. बीपीएफ ने जहां कार्यकाल छह महीने बढ़ाने की मांग की थी, वहीं भाजपा ने ट्राइबल काउंसिल की निगरानी वाले इस क्षेत्र में राज्यपाल शासन लागू कर दिया.

दिसंबर में जब 40 सदस्यीय क्षेत्रीय परिषद के लिए चुनाव हुआ तो बीपीएफ से किनारा करके भाजपा ने एक अन्य क्षेत्रीय दल यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के साथ गठबंधन कर लिया. 2003 में क्षेत्रीय परिषद के गठन (शुरुआती बोडो समझौते के बाद) के समय से ही यहां पर बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट का दबदबा रहा है और पिछले कुछ सालों में इसका सीट शेयर सिमट गया है. दिसंबर 2020 में पार्टी को जरूरी बहुमत से मात्र चार सीटें कम मिली थीं. नतीजा यह हुआ कि 17 सालों तक सत्ता में रहने के बाद बीटीसी प्रमुख मोहिलरी को हार माननी पड़ी.

2005 में जब पहला बीटीसी चुनाव हुआ था तो बीपीएफ ने 35 सीटें जीती थीं, जो इसके बाद लगातार घटकर 2010 में 26, 2015 में 20 और 2020 में 17 सीटें रह गईं.

इस बीच, भाजपा ने बीटीसी चुनाव नतीजों के साथ इस क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल की. पार्टी ने नौ सीटें हासिल कीं जबकि इसकी सहयोगी यूपीपीएल ने 2015 में 7 की तुलना में अपनी सीट संख्या 12 पर पहुंचा दी.

कोकराझार गवर्नमेंट कॉलेज में प्रोफेसर भास्कर नारजरी ने कहा, ‘बीटीसी चुनावों में जब भाजपा ने यूपीपीएल का समर्थन किया तो बीपीएफ का कांग्रेस और एआईयूडीएफ (एक क्षेत्रीय पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) से संपर्क साधना स्वाभाविक ही था.’

बीपीएफ के सदस्यों ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान भाजपा की तरफ से दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी उन लोगों को बार-बार ‘अपमानित’ कर रही थी.

हालांकि, भाजपा ने बीपीएफ के बाहर जाने को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है जबकि कांग्रेस ने भरोसा जताया है कि बीपीएफ की वापसी इसका संकेत है कि पार्टी असम में फिर उभरने की राह पर है.


यह भी पढ़ें: TMC का भाजपा पर निशाना, कहा- उसके डबल इंजन की ट्रेन में नहीं होंगे आम आदमी के लिए डिब्बे


बीपीएफ प्रमुख मोहिलरी ने शनिवार को ट्वीट करके कहा था कि पार्टी ‘महाजोत’ यानी कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो रही है.

विशेषज्ञ इस फैसले को महाजोत के लिए तो एक फायदे के तौर पर देखते हैं लेकिन कहते हैं कि इसकी संभावना ‘थोड़ी कम’ ही है कि मोहिलरी असम में कांग्रेस की स्थिति को सुधार पाएंगे.

राजनीतिक विश्लेषक श्यामकानु महंता कहते हैं, ‘हागरामा का महागठबंधन के साथ आना उनके लिए बड़ा फायदा है क्योंकि राज्य भर के बोडो मतदाताओं पर हागरामा का खासा प्रभाव है. यह महागठबंधन के लिए एक सकारात्मक बदलाव है.’

साथ ही जोड़ा, ‘लेकिन जमीनी स्तर का फीडबैक मुझे यही बताया है कि भाजपा-एजीपी (असोम गण परिषद) की ही सरकार बनेगी. बोडो लोग भी सत्ताधारी गठबंधन के साथ रहना पसंद करेंगे.’

महंता कहते हैं है कि भाजपा ने महसूस किया होगा कि मोहिलरी अब चुक गए हैं और उनके राजनीतिक कैरियर का ग्राफ अपने चरम पर पहुंचने के बाद ढलान पर आता लग रहा है.

उन्होंने आगे कहा, ‘यही वजह है कि वे एक उभरती क्षेत्रीय ताकत पर दांव लगाना चाहते थे.’

भास्कर नारजरी ने कहा, ‘कांग्रेस को उन कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में जरूर फायदा मिलेगा जहां बीपीएफ का अपना वोट बैंक है. बीपीएफ के समर्थन से इसका प्रदर्शन केवल 20 प्रतिशत बेहतर होगा लेकिन भाजपा स्वतंत्र रूप से अन्य दलों के साथ मिलकर पर्याप्त फायदा हासिल कर लेगी.’

बीपीएफ के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का आकलन भी कुछ यही कहता है.

यूपीपीएल के एक वरिष्ठ सदस्य और पूर्व सांसद उरखाओ ग्वारा ब्रह्मा ने कहा, ‘बीपीएफ के कांग्रेस नीत गठबंधन में शामिल होने का आगामी राज्य विधानसभा चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’

उन्होंने कहा, ‘बीटीसी चुनावों में भी बीपीएफ की रणनीतियों का कोई असर नहीं पड़ा था.’

भाजपा ने कहना है कि मोहिलरी तो पहले भी दो बार कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुके हैं.

असम भाजपा के उपाध्यक्ष स्वप्निल बरुआ ने कहा, ‘वह केवल फिर से इसमें शामिल हुए हैं. मोहिलरी संभवतः भूल गए हैं कि वह पहले भी कांग्रेस नीत गठबंधन के ही सदस्य थे. बीटीसी चुनाव में उन्होंने अल्पसंख्यकों के समर्थन से 17 सीटें जीतीं थी. अगर अल्पसंख्यक उन्हें ही वोट दें तो भी उनकी पहुंच कोकराझार से आगे नहीं बढ़ेगी.’

इस बीच, कांग्रेस ने बीपीएफ के साथ अपने गठबंधन को ‘एक विनिंग कॉम्बिनेशन’ करार दिया है.

कांग्रेस सांसद प्रद्युत बोरदोलोई ने कहा, ‘हागरामा के कांग्रेस से हाथ मिलाने और महागठबंधन में शामिल होने से भाजपा के हाथ से सत्ता निकलने की शुरुआत हो गई है.’

बीपीएफ बीटीआर के चार जिलों के अंदर आने वाली 12 विधानसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ने का मन बना रहा है. लेकिन कम से कम 28 अन्य सीटों पर बोडो मतदाता निर्णायक हैं, जिनमें गौरीपुर, ईस्ट बिलासिपारा, सोरभोग, भवानीपुर, गोहपुर, रंगापारा, ढेकियाजुली, बिहाली, धेमाजी, लखीमपुर, गोलाघाट, दुधोई और बोको आदि शामिल हैं.

असम की आबादी में बोडो का अनुमानित प्रतिशत 5 से 6 के बीच है.

दिसंबर में राज्य के वित्त मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि गठबंधन ‘चुनावों तक’ बरकरार रहेगा।

सर्बानंद सोनोवाल सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में काम करने वाले तीन बीपीएफ सदस्यों—प्रमिला रानी ब्रह्मा, चंदन ब्रह्मा और रिहान डेमरी—ने सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ने से इनकार कर दिया था.

प्रमिला रानी ब्रह्मा ने कहा, ‘हमें इस्तीफा क्यों देना चाहिए? यह स्वाभाविक है कि गठबंधन पांच साल तक रहेगा जब तक सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर लेती.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने हमारी कद्र नहीं की और बार-बार हमें अपमानित किया है—हमें उनके बारे में क्यों सोचना चाहिए? उन्होंने हमें एक कुत्ते की तरह खिलाया, अपने फायदे के लिए साथ रखा और एक बार जब काम निकल गया तो हमें खदेड़ने लगे.’


यह भी पढ़ें: पुणे की युवती की मौत के मामले में नाम आने के बाद महाराष्ट्र के मंत्री संजय राठौड़ ने दिया इस्तीफा


रिश्तों में टकराव

भाजपा ने 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद सदन में 12 सीटें हासिल करने वाले बीपीएफ की मदद लेकर राज्य में पहली बार अपनी सरकार बनाई थी. अपनी 60 सीटों के साथ भाजपा ने एजीपी के साथ भी गठबंधन किया, जिसके पास 14 विधायक थे. ताकि 126 सदस्यीय असम विधानसभा में वह आराम से बहुमत की स्थिति में आ जाए.

हालांकि, भाजपा और सहयोगी दल बीपीएफ के बीच तब टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई जब सहयोगी दल ने 27 जनवरी 2020 को हस्ताक्षरित तीसरे बोडो समझौते को खारिज कर दिया.

समझौते पर हस्ताक्षर के साथ बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट्स, जिसमें उदालगुरी, चिरांग, कोकराझार और बक्सा जिले शामिल हैं—का नाम बदलकर फिर से बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) कर दिया गया. समझौते ने तहत आसपास के बोडो बहुल गांवों को बीटीआर में शामिल करने और गैर-आदिवासी क्षेत्रों को उससे बाहर करने की रूपरेखा भी तैयार की जाएगी.

हालांकि, मोहिलरी ने कहा कि इस समझौते से बोडो को कोई लाभ नहीं हुआ है.

अप्रैल 2020 में एक बार फिर दोनों दलों ने खुद को अलग-अलग पालों में खड़ा पाया जब बीटीसी में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया. इसके बाद बीपीएफ ने घोषणा की कि यह दूसरे विकल्पों की तलाश करेगा, जबकि भाजपा ने प्रमोद बोडो के नेतृत्व वाले यूपीपीएल से नजदीकी बढ़ा ली.

महंता ने कहा, ‘भाजपा ने यूपीपीएल को इसलिए चुना क्योंकि वे प्रमोद बोडो के माध्यम से बीटीआर समझौता लागू करना चाहते थे, जिन्हें एनडीएफबी गुटों का समर्थन हासिल है. हागरामा इसके समर्थन में नहीं थे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: BJP थिंक टैंक ने चुनाव से पहले दी रिपोर्ट- बंगाल में रोजगार की स्थिति सुधारें, पुचका और पर्यटन को बढ़ावा दें


 

share & View comments