scorecardresearch
Monday, 25 November, 2024
होममत-विमतजब महुआ मोइत्रा बोलती हैं तो उनका बेबाक दोटूक अंदाज़ लोकसभा को ध्यान से सुनने पर मजबूर करता है

जब महुआ मोइत्रा बोलती हैं तो उनका बेबाक दोटूक अंदाज़ लोकसभा को ध्यान से सुनने पर मजबूर करता है

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ममता बनर्जी के शहरी संस्करण के समान हैं, जिन्हें आज के युवाओं की भाषा में बोलना आता है.

Text Size:

महुआ मोइत्रा आज के युवाओं की भाषा बोलती है, यही वजह है कि उनके भाषणों के वीडियो भारत के सर्वाधिक अराजनीतिक लोगों के बीच भी लोकप्रिय हैं. हमारी संसद में अधसोये नेताओं के बीच बैठी एक दमकती प्रतिभा को कौन नहीं देखना चाहेगा? हमारी स्क्रीनों पर बिखरती उनकी ऊर्जा लोकसभा टीवी को मानो लो डेफिनिशन टीवी से अल्ट्रा एचडी बना देती है. लोग लोकतंत्र के सही मायने, गिरफ्तारी के सहारे आवाज़ों को दबाए जाने, झूठे दावों और सत्ता के दंभ, दुष्प्रचार को ‘कुटीर उद्योग‘ का रूप दिए जाने और सिर्फ अमीरों का हित साधने वाली अर्थव्यवस्था के जश्न की निर्लज्ज धृष्टता के बारे में सोचने पर बाध्य हो जाते हैं.

कृष्णानगर से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने पिछले सप्ताह मास्क के पीछे छुपे मर्दों से भरे सदन में सत्ता के समक्ष सच बोलने का काम किया था. संसद में यौन उत्पीड़न का मुद्दा उठाने की हिम्मत केवल उनकी जैसी शख्सियत ही कर सकता है, जिस पर नाराज़ उनके कुछ पुरुष सहयोगियों ने कुछ दिनों के बाद उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किया.

मोइत्रा संसद में एक तीखे भाषण के लिए फिर से चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और 2019 से राज्यसभा सदस्य (भाषण में उनका नाम लिए बिना) द्वारा कथित यौन उत्पीड़न के मामले की चर्चा की थी. उनकी टिप्पणियों को बाद में रिकॉर्ड से हटा दिया गया. उल्लेखनीय है कि सीजेआई के एक कर्मचारी ने उच्चतम न्यायालय को लिखकर अपने पीड़ादायक अनुभवों और कथित यौन उत्पीड़न की बात बताई थी. दिलचस्प बात ये है कि मामले की विशेष सुनवाई खुद मुख्य न्यायाधीश ने की, जोकि नैसर्गिक न्याय के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ था – जिसे मोइत्रा ने अपने भाषण में स्पष्टता के साथ रेखांकित किया. आखिरकार, बहुत हंगामे के बाद, मामले को सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य पैनल ने खारिज कर दिया और किसी ने फिर से इस मुद्दे पर बोलने की जहमत नहीं उठाई. लेकिन मोइत्रा ने ऐसा किया. और उनका भाषण वायरल हो गया है.


यह भी पढ़ें: दो गुजरातियों का ‘बंगाली अभिमान’ BJP के लिए काम नहीं आएगा, TMC के लिए भी ‘बाहरी’ एक समस्या है


बाकियों से अलग नेता

महुआ मोइत्रा के भाषण हमेशा सही निशाने पर लगते हैं क्योंकि वो ऐसी बातें कह जाती हैं जिसे बोलने की हममें से बहुतों को शायद हिम्मत नहीं होगी, या ऐसे मुद्दे जो खबरों के सतत चक्र में दफन होकर रह गए हों, खासकर जब इन दिनों आक्रोशित करने वाले अनेकों हास्यास्पद विषय मौजूद हैं. लेकिन मोइत्रा ने वास्तविक महत्व के मुद्दे को याद रखा. अपने खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में जीत हासिल करने वाली पत्रकार प्रिया रमानी के संदर्भ में देखा जाए, तो भारत के पूर्व सीजेआई द्वारा कथित यौन उत्पीड़न के मामले में अनाम महिला के बारे में मोइत्रा का भाषण ‘सत्ता से सच बोलने’ के थीम के अनुकूल था. वैसे, मोइत्रा ने राजनीति में पदार्पण के बाद से हमेशा ऐसा ही किया है.

जेपी मॉर्गन में निवेश बैंकर रही मोइत्रा ने लंदन से दिल्ली वापस लौटकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की जो, अपेक्षा के अनुरूप ही, उनकी प्रतिभा या क्षमता की पहचान नहीं कर सकी. पिछले हफ्ते उनके भाषण के दौरान, बिल्कुल खामोश सदन उनके हरेक शब्द को गौर से सुन रहा था, और मास्क बंधे चेहरों पर आंखों में उत्सुकता देखी जा सकती थी. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और अधीर रंजन चौधरी भी इस मंत्रमुग्ध भीड़ में शामिल थे, जिन्होंने ध्यान से उनकी बातें सुनी. मोइत्रा ने 2010 में राहुल गांधी के प्रोजेक्ट ‘आम आदमी का सिपाही‘ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन भारतीय युवा कांग्रेस के साथ उनकी प्रतिभा यों ही बेकार होने दी गई.

कांग्रेस का नुकसान, टीएमसी का फायदा

कांग्रेस के साथ एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद, मोइत्रा ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का दामन थाम लिया, जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने न केवल उनकी संभावनाओं को पहचाना, बल्कि आगे बढ़कर 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान करीमपुर से उन्हें टिकट की पेशकश की. हालांकि उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं की बहुत आलोचना सुननी पड़ी जिनके हिसाब से मोइत्रा कुछ ज़्यादा ही ‘सुसंस्कृत’ थीं. लेकिन महुआ ने चुनौती को स्वीकार किया, करीमपुर में एक घर किराए पर लिया, जमीनी स्तर पर काम किया, और चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद ममता बनर्जी ने 2019 में कृष्णानगर से उन्हें लोकसभा का टिकट दिया, और मोइत्रा फिर जीतीं. उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के कल्याण चौबे को 60,000 से अधिक वोटों से हराया.

ममता बनर्जी जहां जुझारू और ज़मीन से जुड़ी हैं, महुआ मोइत्रा शायद दीदी का शहरी-संस्करण है, जो अमेरिकी लहजे में अंग्रेज़ी बोलती हैं, राष्ट्रीय टेलीविजन पर एंकर को चुप करा सकती हैं और ‘फासीवाद’ शब्द का इस्तेमाल करने से कतराती नहीं हैं, भले ही नरेंद्र मोदी सरकार नाराज़ होती हो. और ये सब करते हुए, वह हमेशा बिंदास और निडर रहते हुए दोटूक लहजे में बात करती हैं.

उन्होंने संसद के मीडिया गलियारे की ओर देखते हुए पत्रकारिता — शायद भारत के लोकतंत्र का सबसे बीमार स्तंभ — के ‘गोस्वामियों’ को भी ललकारा, और उन्हें फेक रिपोर्टिंग एवं घटिया पत्रकारिता के दलदल से बाहर निकल अपनी अंतरात्मा को टटोलने का आग्रह किया.


यह भी पढ़ें: वाजपेयी और मोदी के दौर के बीच आरएसएस ने सीखे कई राजनीतिक सबक  


ऐसी ही महिला नेत्री की ज़रूरत

कइयों ने इसी तरह के विषयों पर संसद में भावपूर्ण भाषण दिए हैं. लेकिन महुआ मोइत्रा को बाकियों से अलग स्थान दिलाने वाली बात ये है कि वर्तमान संसद की लैंगिक जनसांख्यिकी को देखते हुए, वह शायद मोदी सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ इतनी आक्रामकता से बोलने वाली विपक्ष की इकलौती महिला सांसद हैं. पुरुषों के वर्चस्व वाले विपक्षी खेमे में महुआ मोइत्रा सबसे अलग दिखती हैं और वास्तव में भाषण कौशल में वह उन सभी को पीछे छोड़ती हैं. यही कारण है कि उनका भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के कथित यौन दुर्व्यवहार के मामले को उठाना हमारी संसद में और अधिक संख्या में महिला नेताओं की ज़रूरत को रेखांकित करता है.

महुआ मोइत्रा इसलिए भी अलग दिखती हैं क्योंकि उन्होंने खुद को केवल बंगाल की राजनीति का प्रतिनिधित्व करने तक सीमित नहीं रखा है. वह पूरे देश को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाती हैं, चाहे बात कृषि कानूनों की हो या सांठगांठ वाले पूंजीवाद या फिर फासीवाद की. सांसदों की अहम ज़िम्मेदारी होती है देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने वाले सिद्धांतों और विचारों का समर्थन करना. महुआ मोइत्रा के भाषणों में केवल अनुकरणीय आदर्शों वाले महान राष्ट्र का विचार भर नहीं होता. वह इन्हें वास्तविक धरातल पर रखती हैं. मुद्दों को बिना लाग लपेट के उठाती हैं. और, व्यवस्था की सड़ांध से अनभिज्ञ रहने के लिए श्रोताओं को शर्मिंदा होने पर मजबूर करती हैं.

लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक और लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेक को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अर्णब गोस्वामी चिल कर सकते हैं, महात्मा सिंड्रोम के कारण कांग्रेस उन्हें घेरने नहीं जा रही


 

share & View comments