नई दिल्ली/लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 फरवरी को बहराइच में एक म्यूजियम और टूरिस्ट सर्किट की आधारशिला रखी, जिसे इस क्षेत्र के मध्यकालीन हिंदू नायक और श्रावस्ती के महाराजा सुहेलदेव को समर्पित किया गया है.
मोदी ने कहा कि ‘न्यू इंडिया’ उन इतिहासकारों की गलतियां सुधार रहा है जिन्होंने 11वीं शताब्दी में महमूद गजनी के भतीजे गाजी सैयद सालार मसूद की आक्रमणकारी सेना को परास्त कर देने वाले महाराजा सुहेलदेव जैसी शख्सियतों के साथ न्याय नहीं किया है.
वर्चुअल संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि महाराजा की 40 फुट की कांस्य प्रतिमा के अलावा इस टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स में एक म्यूजियम, बच्चों के लिए पार्क, एक ऑडिटोरियम, एक टूरिस्ट होम, कार पार्किंग, कैफेटेरिया और अपने उत्पाद बेचने की सुविधा देने के उद्देश्य से स्थानीय शिल्पकारों के लिए दुकानें भी होंगी.
उन्होंने कहा कि बहराइच में जिस मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर सुहेलदेव के नाम पर रखा गया है, उसे विस्तारित किया जा रहा है ताकि शहर और उसके आसपास के इलाकों के लोगों के लिए जिंदगी आसान हो जाए.
मोदी का भाषण उत्तर प्रदेश के एक महत्वपूर्ण ओबीसी समुदाय राजभर को साथ जोड़ने की भाजपा की व्यापक कवायद का हिस्सा था, जो खुद को सुहेलदेव और अन्य भर शासकों के वंशज बताते हैं. यहां तक कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार ने उसी दिन सभी जिला मुख्यालयों में सुहेलदेव की जयंती मनाई, जब प्रधानमंत्री मोदी के म्यूजियम और टूरिस्ट सर्किट की वर्चुअल आधारशिला रखी.
दिप्रिंट यहां पर आपको बता रहा है कि भाजपा अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों से पहले राजभरों को क्यों लुभा रही है.
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राजभरों का महत्व
सुहेलदेव जयंती समारोह भाजपा के लिए सिर्फ एक सांस्कृतिक मामला नहीं है क्योंकि यूपी के कुल मतदाताओं में राजभर समुदाय की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है और राज्य की 425 सीटों में से 49 पर उनका प्रभाव है.
उन्हें अपने पाले में लाने की कवायदें 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले ही शुरू हो गई थीं— 2016 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सुहेलदेव की एक प्रतिमा के अनावरण के लिए बहराइच का दौरा किया था और राजभरों से अपील की थी कि उनकी पार्टी को इस क्षेत्र के विकास और पूर्व शासक की प्रतिष्ठा को बहाल करने का मौका दें.
राजभर समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण नेता सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर ने 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन किया और राष्ट्रीय पार्टी की जबर्दस्त जीत के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री बने. एसबीएसपी ने जिन आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें से चार पर उसे जीत हासिल हुई.
लेकिन यह गठबंधन 2019 के आम चुनावों से पहले ही टूट गया क्योंकि भाजपा ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ने की एसबीएसपी की मांग को नकार दिया था.
चूंकि उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए थे, भाजपा ने राजभरों को तरजीह देना तेज कर दिया और अनिल राजभर को योगी सरकार में मंत्री बनाया और उन्हें राजभरों की अच्छी-खासी तादात वाले बलिया और बहराइच जिलों का प्रभारी बनाया. पार्टी ने इसी समुदाय के एक अन्य नेता सकलदीप राजभर को राज्य सभा सांसद भी बनाया.
वहीं, एसबीएसबी ने अब असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बना लिया है.
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भाजपा की सांस्कृतिक राजनीति
यूपी में भाजपा की चुनावी सफलता का एक बड़ा कारण गैर-जाटव दलित-ओबीसी वोटबैंक दोनों का एक साथ उसके पक्ष में रहना है, और इसे हासिल करने के लिए यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विकास के मिले-जुले फॉर्मूले का इस्तेमाल करती रही है जिसका श्रेय अमित शाह को जाता है.
यह इस बात से ही स्पष्ट है जिस तरह से पार्टी ने वंचित समुदायों और उनके नायकों के नाम पर टूरिज्म सर्किट बनाए हैं, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव, वाराणसी में संत रविदास और संत कबीर नगर में मौर्य समुदाय. ये सर्किट इस उद्देश्य से बने हैं कि आने वाले समय में इन क्षेत्रों के लोगों को रोजगार और विकास का फायदा मिलना सुनिश्चित हो सके.
प्रयागराज स्थित जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. बद्री नारायण ने कहा, ‘इन वंचित समुदायों में सामाजिक चेतना जगाना भाजपा का कम्युनिटी मेमोरी प्रोजेक्ट है.’
उन्होंने कहा, ‘यद्यपि यह विचार कांशीराम (बसपा के संस्थापक) का था कि मौर्य, भील और राजभर जैसे हाशिये पर पड़े समुदायों को सम्मानित जगह दिलाई जाए लेकिन उनकी पार्टी ने खुद को केवल प्रतिमाएं बनाने तक ही सीमित रखा. भाजपा ने नायकों के सम्मान को टूरिज्म सर्किट के जरिये रोजगार से जोड़कर एक अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया है.’
प्रो. नारायण ने स्पष्ट किया कि यह भाजपा, अपने नायकों और विकास के बीच एक संबंध होने के कारण लोगों के दिमाग में लंबे समय तक अमिट रहेगा.
यूपी भाजपा के उपाध्यक्ष विजय पाठक ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम राजभर के नाम पर राजनीति नहीं कर रहे, जो कि कुछ पार्टियां कर रही हैं…हम काम कर रहे हैं राजभर समुदाय के लोगों को उनका हक दिलाने के लिए, उनका गौरव बहाल करने के लिए और उन्हें विकास का लाभ दिलाने के लिए. इसीलिए महाराजा सुहेलदेव के नाम पर मेडिकल कॉलेज और टूरिस्ट सर्किट विकसित किया जा रहा है.’
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राजभरों पर बसपा, एआईएमआईएम, आप की भी नज़र
बहरहाल, भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी नहीं है जो राजभरों को लुभाने की कोशिश कर रही है.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले साल मुनकाद अली को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर उनकी जगह भीम राजभर को नियुक्त किया और इस तरह पार्टी के पारंपरिक दलित वोट के साथ राजभरों को भी साधने की कोशिश की.
इस बीच, ओपी राजभर, जिनकी एसबीएसपी का गाजीपुर, मऊ, बलिया, चंदौली, वाराणसी और मिर्जापुर में खासा प्रभाव है, को उम्मीद है कि एआईएमआईएम और आप के साथ गठजोड़ से 22 फीसदी मुसलमानों को मिलाकर उनका वोट बैंक चुनावों में एक अच्छी खासी बढ़त हासिल कर लेगा.
ओपी राजभर के बेटे और एसबीएसपी महासचिव अरुण राजभर ने दिप्रिंट से कहा, ‘भाजपा कुछ भी कोशिश कर ले उसे राजभरों का वोट नहीं मिलेगा क्योंकि वे इसकी वास्तविकता जानते हैं. हम अल्पसंख्यकों, दलितों और ओबीसी को एकजुट करने के लिए एक गठबंधन बना रहे हैं और इसके लिए विभिन्न छोटे दलों के साथ बातचीत चल रही है.’
2017 के विधानसभा चुनाव में एसबीएसपी ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनका कुल वोट शेयर लगभग 34 प्रतिशत है. लेकिन अगले साल, गठबंधन का लक्ष्य 20 जिलों में फैली लगभग 120 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का है.
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