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Tuesday, 19 November, 2024
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गांधी, संजय दत्त, कसाब—आम जनता के लिए खुली पुणे की यरवदा जेल के पास बताने को बहुत सारे किस्से हैं

यरवदा जेल 26 जनवरी को जनता के लिए खोल दी गई, और ऐसा करने वाली यह महाराष्ट्र की पहली जेल है. ‘जेल टूरिज्म’ को बढ़ावा देने के लिए ऐतिहासिक महत्व की ऐसी अन्य जेलों को भी खोले जाने की संभावना है.

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मुंबई: 1932 में जब महात्मा गांधी पुणे की यरवदा जेल में थे तो दलित वर्गों के लिए प्रस्तावित पृथक निर्वाचक मंडल के विरोध में उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया था क्योंकि उनका मानना था कि इसे हिंदू समुदाय बंट जाएगा.

बी.आर. आम्बेडकर 16 अगस्त 1932 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैक डोनाल्ड द्वारा घोषित प्रस्ताव, जिसे कम्युनल अवॉर्ड कहा गया था के पक्ष में थे. दोनों पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं थे और अनशन के कारण गांधी का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा था ऐसे में आम्बेडकर पर समझौते के लिए दबाव बढ़ गया था.

दोनों नेता अंततः यरवदा जेल, जहां गांधी उसे समय बंद थे के परिसर में ही स्थित आम के पेड़ के नीचे एक समझौते पर पहुंचे.

पूना पैक्ट के नाम से चर्चित हुए इस समझौते पर हिंदुओं और गांधी की ओर से मदन मोहन मालवीय और दलितों की ओर से आम्बेडकर के हस्ताक्षर किए जाने के बाद 24 सितंबर 1932 को गांधी का उपवास समाप्त हुआ.

आम का यह विशाल पेड़ आज भी उस परिसर में सुरक्षित है और हाई सिक्योरिटी वाली यरवदा जेल के हल्के नीले रंग के प्रवेश द्वार के पास ही स्थित इस छोटे से बाड़े वाली जगह को अब ‘गांधी यार्ड’ के नाम से जाना जाता है.

महाराष्ट्र सरकार ने इस साल 26 जनवरी को ऐतिहासिक ‘गांधी यार्ड’ और बहुचर्चित आम के पेड़ सहित यरवदा जेल के कुछ हिस्से को पर्यटकों के लिए खोल दिया है जो कि राज्य में आम लोगों के देखने के लिए खुली पहली जेल है. उसके बाद से अब तक 281 स्कूल-कालेज छात्र परिसर को देखने के लिए पहुंच चुके हैं.

हाई-प्रोफाइल कैदी

1866 में निर्मित यरवदा जेल भारत की सबसे पुरानी और सबसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाली जेलों में से एक है. 500 एकड़ में क्षेत्र में फैली इस जेल में मौजूदा समय में लगभग 5,000 कैदी हैं. इसमें एक अलग महिला जेल और एक ओपन जेल भी है.

पिछले कुछ दशकों से यरवदा जेल हाई-प्रोफाइल कैदियों जैसे अभिनेता संजय दत्त, कार्यकर्ता अन्ना हजारे, फर्जी स्टांप पेपर घोटाले में आरोपी अब्दुल करीम तेलगी और डॉन से नेता बने अरुण गवली के कारण सुर्खियों में रही है.

हालांकि, देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई प्रमुख नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के इस जेल में कैद रहने का एक समृद्ध इतिहास भी है.

महाराष्ट्र जेल विभाग में जनसंपर्क अधिकारी शाहू दराडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन नेताओं के जेल में बंद रहने के दौरान के कई दस्तावेज, फोटो, कलाकृतियां, हस्तलिखित पत्र आदि जेलकर्मियों ने वर्षों से संजोकर रखे हैं. ये सभी जेल पर्यटन की पहल का एक हिस्सा बनेंगे.’


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150 साल पुरानी जेल का इतिहास

गांधी तीन बार यरवदा जेल में कैद रहे थे. सबसे पहले मार्च 1922 से फरवरी 1924 के बीच, जब उन्हें साबरमती आश्रम के पास कथित रूप से तीन बगावती लेख लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया था. दूसरी बार जनवरी 1932 से मई 1933 तक और फिर तीसरी बार उसी साल अगस्त में 22 दिनों के लिए उन्हें यहां रखा गया था.

यरवदा जेल में बिताए अपने समय के दौरान था कि गांधी ने अपनी प्रसिद्ध आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ लिखनी शुरू की थी और पारंपरिक चरखे का एक नया फोल्डेबल वर्जन तैयार किया, जिसे 2013 में ब्रिटेन में 1,10,000 पाउंड में नीलाम किया गया था.

यह भी कहा जाता है कि यरवदा में बिताए दिनों के दौरान ही उनकी तारों को निहारने और खगोल विज्ञान में रुचि बढ़ी.

यरवदा जेल के साथ गांधी के जुड़ाव ने जेल में एक गांधीवादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है.

2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती या पूना पैक्ट की सालगिरह पर कैदियों का एक समूह ’गांधी यार्ड’ में आम के पेड़ के नीचे बैठता है और भजन गाता है.

2002 में पुणे निवासी अधिवक्ता असीम सरोदे ने यरवदा जेल में ‘गांधीवादी वैचारिक पहल’ की शुरुआत की, जिसके तहत वकील जेल परिसर में गांधी के संदेशों को प्रचारित करने के लिए कक्षाएं आयोजित करते.

2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर गांधी के संदेशों पर कैदियों की परीक्षा ली जाती जो कि 100 अंकों की होती थी. यह पहल 2011 तक चलती रही.

गांधी के अलावा यरवदा जेल में कैद रहने वाली अन्य प्रमुख हस्तियों में मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरोजिनी नायडू और बाल गंगाधर तिलक शामिल थे.

‘गांधी यार्ड’ की तरह यरवदा जेल में ‘तिलक यार्ड’ भी है जिन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया. तिलक जनवरी 1898 से फरवरी 1899 तक जेल में रहे थे.

वर्षों बाद 1936 में इसी जेल में बंद बोस ने तिलक द्वारा स्थापित किए गए अखबार केसरी के संपादक डी.वी. दिवाकर के साथ पत्राचार किया.

बोस ने यरवदा जेल में रहते समय थोड़ी मराठी सीखने की इच्छा जताई थी और उसके लिए उन्हें कुछ बुनियादी किताबों की तलाश थी. पुणे स्थित तिलक संग्रहालय केसरीवाड़ा में प्रदर्शित पत्रों के अनुसार, बोस ने यह इच्छा भी जताई थी कि केसरी अखबार उनका साक्षात्कार ले.

पर्यटन की पहल

512-एकड़ में स्थित जेल के तीन हिस्से, ‘गांधी यार्ड’, ‘तिलक यार्ड’ और ‘फांसी यार्ड’ को पर्यटन के लिए खोला गया है. ‘गांधी यार्ड’ और ‘तिलक यार्ड’ में कैदियों को नहीं रखा जाता है.

जेल अधिकारियों ने गांधी के चरखे और उनकी कुछ वस्तुओं को संरक्षित करके यार्ड को एक स्मारक में बदल दिया है. जिन कमरों में नेहरू और वल्लभभाई पटेल रहे थे, उनको भी उनकी तस्वीरों के साथ सुसज्जित किया गया है.

‘तिलक यार्ड’ में उनके प्रसिद्ध वाक्य, ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर लेकर रहूंगा’ को प्रवेश द्वार के पास ही मराठी में मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा गया है.

इसके बाद नीले दरवाजे के पीछे स्थित रैंप के बाद थोड़ी ऊंचाई पर ‘फांसी यार्ड’ है, जहां कैदियों को मृत्युदंड दिया जाता है. 1899 में पुणे के ब्रिटिश प्लेग कमिश्नर डब्ल्यू.सी. रैंड की हत्या को अंजाम देने वाले वाले चापेकर बंधुओं को यहीं पर फांसी दी गई थी.

राज्य सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, आजादी के बाद यहां पहली बार मौत की सजा 15 दिसंबर 1952 को दी गई थी और आखिरी बार इस जगह का इस्तेमाल 21 दिसंबर 2012 को किया गया, जब 26/11 मुंबई हमले के दोषी आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी पर चढ़ाया गया.

फिलहाल पर्यटन की यह पहल केवल स्कूल और कालेज के छात्रों और पंजीकृत संगठनों के सदस्यों के लिए है, जो पूर्व अनुमति लेने के बाद ही यहां आ सकेंगे. परिसर में एक समय में 50 से अधिक लोगों के आने की अनुमति नहीं है. कड़ी निगरानी के बीच जेल कर्मचारी टूरिस्ट गाइड के तौर पर लोगों को सारी जानकारी मुहैया कराते हैं.

हालांकि, नई दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल और पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल पहले ही इस तरह खुल चुकी हैं लेकिन यरवदा महाराष्ट्र की पहली ऐसी जेल है जिसे जेल पर्यटन के लिए खोला गया है.

इस पहल को जल्द ही ठाणे, नासिक, धुले और रत्नागिरी जैसी ऐतिहासिक महत्व की कुछ अन्य जेलों में भी लागू किया जाएगा.

नाम न छापने की शर्त पर जेल विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने अभी यरवदा जेल में जेल पर्यटन नि:शुल्क शुरू किया है, लेकिन राज्य सरकार अभी इस पर चर्चा कर रही है कि क्या कुछ मामूली शुल्क लगाया जाए और यदि हां तो यह शुल्क कितना होना चाहिए. यह मुद्दा सरकार के स्तर पर हल होने के बाद अन्य जेलों में भी जेल पर्यटन शुरू किया जाएगा.’


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‘शोकेस जेल’

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) के सेंटर फॉर क्रिमिनोलॉजी एंड जस्टिस में प्रोफेसर डॉ. विजय राघवन ने कहा कि यरवदा जेल के इतिहास, अवधि और आकार ने इसे कई मायनों में महाराष्ट्र की एक ‘शोकेस जेल’ बना दिया है और इसने एक नई पहल की राह भी खोली है.

जेलों में जमीनी स्तर पर चलने वाले टीआईएसएस के प्रोजेक्ट प्रयास के प्रमुख डॉ. राघवन ने कहा, ‘व्यावसायिक कार्यक्रम के संदर्भ में, चूंकि कैदियों की संख्या काफी ज्यादा होती है, यहां पर चलने वाली गतिविधियों और प्रशिक्षण में काफी विविधता होती है. इसमें कई तरह की फैक्ट्रियां हैं. अच्छी-खासी तादात में पुस्तकों के साथ एक बड़ा पुस्तकालय है. किसी प्रशिक्षु जेल अधिकारी या अन्य राज्य के मेहमान को यहां आने पर सुविधाएं दिखाने के लिए यरवदा और समस्याएं दिखाने के लिए मुंबई की आर्थर रोड जेल ले जाया जाता है.’

महाराष्ट्र में पहला जेल कम्युनिटी रेडियो स्टेशन यरवदा में शुरू किया गया था. किसी जेल में पहली टेलीमेडिसिन सुविधा भी यहां ही शुरू की गई थी.

ऊपर उद्धृत जेल विभाग के अधिकारी ने कहा कि यरवदा जेल ने स्कूटर के लिए लॉक सेट और कार के लिए वायरिंग यहां पर ही बनवाने के लिए कॉरपोरेट कंपनियों के साथ करार कर रखा है. जूते बनाने और निर्यात के लिए भी एक समझौता किया गया है.

यरवदा महाराष्ट्र की उन पांच केंद्रीय जेलों में से एक है, जहां सामाजिक कार्यकर्ताओं को तीन साल के लिए नियुक्त किया जाता है और इसके लिए वित्तीय मदद टाटा ट्रस्ट से मिलती है और प्रयास की ओर से तकनीकी सहायता मुहैया कराई जाती है.

डॉ. राघवन ने कहा, ‘कुछ हद तक यह एक ऐतिहासिक जेल होने के नाते यरवदा के तौर-तरीकों को दर्शाता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन कैदियों के पुनर्वास की एक बेहद बुनियादी समस्या सुलझाने के लिए जेल में स्थायी रूप से सामाजिक कार्यकर्ता और निरंतर काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए. जो कि देशभर की जेलों में नदारद है और यरवदा भी इसका अपवाद नहीं है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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