नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म और टेलीविजन न्यूज चैनलों की निगरानी के लिए एक नए कानून पर विचार कर रही है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार नया कानून प्रेस काउंसिल एक्ट की तर्ज पर बनाया जाएगा, जो प्रिंट मीडिया के प्रकाशनों को नियंत्रित करता है.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, इस कानून के तहत गैर-समाचार टेलीविजन चैनलों के साथ-साथ फिल्में और वेबसीरिज प्रसारित करने वाले ओटीटी प्लेटफार्मों को भी कवर किया जा सकता है.
मौजूदा समय में ऑनलाइन न्यूज या वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने वाले कोई विधायी प्रावधान नहीं हैं. टीवी न्यूज चैनलों के मामले में मोटे तौर पर सेल्फ रेग्युलेशन या इंडस्ट्री ओवरसाइट की ही व्यवस्था लागू होती है. हालांकि, सरकार कार्यक्रम और विज्ञापन संबंधी संहिता के उल्लंघन पर केबल टीवी एक्ट के तहत कार्रवाई कर सकती है.
अधिकारियों ने कहा कि हालांकि सरकार की योजना अभी एकदम ‘अस्थिर’ स्थिति में है लेकिन बताया कि उन्हें डिजिटल न्यूज प्लेटफार्म पर ‘फेक न्यूज’ और ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रसारित होने वाली सामग्री को लेकर तमाम शिकायतें मिली हैं.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय फिलहाल ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रसारित सामग्री के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने की तैयारी कर रहा है लेकिन अधिकारियों ने कहा कि अंतिम योजना ऑनलाइन और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए एक अलग विधायी फ्रेमवर्क तैयार करना है. यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या रेडियो भी प्रस्तावित कानून के तहत आएगा या नहीं.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘इसके ब्यौरे पर अभी चर्चा चल रही है और आगे इस पर क्या होगा यह हर स्तर पर मंजूरी मिलने के आधार पर तय होगा.’
एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि ऑनलाइन कंटेंट और मीडिया कंटेंट—जो आंशिक रूप से सेल्फ रेग्युलेटरी प्लेटफॉर्म द्वारा विनियमित होता है—सबको एक ही अंब्रेला के तहत लाने का उद्देश्य इसे लेकर आने वाली शिकायतों को दूर करना है.
अधिकारी ने आगे कहा कि ये योजना यह भी सुनिश्चित करेगी कि प्रिंट मीडिया प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) एक्ट 1978 के तहत ही काम करता रहे. पीसीआई एक स्वायत्त, वैधानिक, अर्ध-न्यायिक निकाय है जो बतौर प्रहरी अखबारों और समाचार एजेंसियों पर नजर रखने का काम करता है और कंटेंट संबंधी उल्लंघनों पर संबंधित मीडिया को फटकार लगाता है. पीसीआई कई बार सरकार के समक्ष प्रस्ताव रख चुका है कि सभी मीडिया प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने के लिए पीसीआई जैसी मीडिया काउंसिल परिषद का गठन किया जाए.
हालांकि, अधिकारी ने जोर देकर कहा कि यह विचार अभी बहुत ठोस रूप नहीं ले पाया है और विधायी ढांचे की व्यापक रूपरेखा पर विचार-विमर्श चल रहा है.
ऑनलाइन और टीवी मीडिया के लिए प्रस्तावित समान कानून को लेकर कुछ सवालों—मसलन क्या ऐसे किसी प्रस्ताव पर विचार चल रहा है—के साथ दिप्रिंट ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रवक्ता से संपर्क साधा, लेकिन प्रवक्ता ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया
यह भी पढे़ं: हिचकिचाहट, धीमा इंटरनेट, बर्फबारी- कोविड वैक्सीन कवरेज कम रहने पर क्या तर्क दे रही है राज्य सरकारें
कंटेंट संबंधी दिशा-निर्देश तैयार
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को राज्यसभा को बताया कि ओटीटी प्लेटफार्मों के संबंध में ‘दिशा-निर्देश और निर्देश’ लगभग तैयार हैं और जल्द ही लागू किए जाएंगे.
दिशा-निर्देश काफी हद तक निजी सेटेलाइट चैनलों के लिए मौजूदा प्रोग्राम कोड की तर्ज पर होने की संभावना है. अभी यह पता नहीं चल पा है कि वे ऑनलाइन न्यूज पर लागू होंगे या नहीं.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय पिछले साल डिजिटल न्यूज पोर्टल और ओटीटी प्लेटफार्म को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत ले आया था.
हालांकि, सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि डिजिटल न्यूज वेबसाइट या ओटीटी प्लेटफार्मों के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में कोई कार्रवाई इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को करनी होगी क्योंकि उनमें इंटरनेट इस्तेमाल होता है. हालांकि, उन्होंने कहा, कार्रवाई सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की सिफारिश पर की जा सकती है.
मौजूदा नियम
डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म अभी किसी भी नियामक ढांचे के तहत नहीं आते हैं.
वहीं, न्यूज चैनलों के लिए समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन जैसे उद्योग निकाय हैं.
हालांकि, सभी निजी उपग्रह चैनल इन सेल्फ-रेग्युलेटरी निकायों के सदस्य नहीं हैं.
टेलीविजन चैनलों के लिए केबल टीवी नेटवर्क नियम, 1994 के तहत प्रोग्राम कोड का पालन करना अनिवार्य होता है.
कुछ असामान्य स्थितियों में सरकार की ओर से ऐसे मामलों पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाली मीडिया इकाई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर की नजर रहती है जो स्वत: संज्ञान अथवा मंत्रालय की तरफ से भेजी शिकायतों के आधार पर मामले में उपयुक्त कदम उठाता है. खास मामलों में एक अंतर-मंत्रालय समिति चैनल पर कार्रवाई की सिफारिश करती है जो उल्लंघन की सीमा के आधार पर तय होती है.
डिजिटल न्यूज प्लेटफार्म की तरह वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाने वाली सामग्री भी अभी किसी नियमन के तहत नहीं आती है.
हालांकि, उद्योग निकाय इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने गुरुवार को 17 ओटीटी कंपनियों द्वारा पिछले साल सितंबर में हस्ताक्षरित सेल्फ-रेग्युलेशन कोड पर अमल सुनिश्चित करने के लिए ‘इम्प्लीमेंटेशन टूलकिट’ की घोषणा की.
इस दस्तावेज का उद्देश्य अधिक पारदर्शिता लाने और इस पर हस्ताक्षर करने वालों को रोडमैप मुहैया कराने के अलावा सेल्फ-रेग्युलेशन कोड के संदर्भ में सरकार की तरफ से उठाए जा रहे मुद्दों को हल करना भी है.
उद्योग निकाय इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) के तहत ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल (बीसीसीसी) किसी भी आपत्तिजनक सामग्री के प्रसारण को लेकर गैर-समाचार और सामान्य मनोरंजन चैनलों पर नजर रखती है.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘अधिक मूल्यांकन, महंगे विज्ञापन, विकास के झूठे अनुमान’- रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ ये हैं आरोप