scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशरिहाना, ग्रेटा और दूसरे लोगों को किसानों के प्रदर्शन पर ट्वीट करने के लिए पैसा नहीं दिया- कनाडाई फर्म PJF

रिहाना, ग्रेटा और दूसरे लोगों को किसानों के प्रदर्शन पर ट्वीट करने के लिए पैसा नहीं दिया- कनाडाई फर्म PJF

पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन का कहना है कि वो ‘भारत में किसान विरोध के दौरान, मानवाधिकारों का उल्लंघन देखकर स्तब्ध रह गए और इस बारे में जागरूकता फैलाने के लिए उन्होंने अपने मंचों का इस्तेमाल करने का फैसला किया.

Text Size:

नई दिल्ली: एक टूलकिट बनाने में कथित रूप से शामिल होने के कारण, भारतीय जांच एजेंसियों की जांच के घेरे में आए संगठन, पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीजेएफ) ने, जिसे पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने पहले ट्वीट किया और फिर हटा दिया, शनिवार को खंडन किया कि उसने किसान विरोध पर ट्वीट करने के लिए पॉपस्टार रिहाना को पैसा दिया था.

लेकिन कनाडा स्थित संगठन ने कहा कि उसने ‘पूरी दुनिया को इस मुद्दे को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया’.

संगठन ने ईमेल के ज़रिए दिप्रिंट को इस आरोप का जवाब दिया कि उसके संस्थापक मो धालीवाल ने रिहाना को उसकी ट्वीट के लिए 25 लाख डॉलर दिए थे. पीजेफ ने अपनी वेबसाइट पर भी एक बयान जारी किया.

दिप्रिंट ने ट्विटर संदेश के ज़रिए धालीवाल से, इन आरोपों पर टिप्पणी करने के लिए संपर्क किया था कि पीआर फर्म स्काईरॉकेट ने रिहाना को पैसा दिया था. अपने जवाब में उन्होंने पीजेएफ की ओर से भेजे गए बयान को, ईमेल के ज़रिए दिप्रिंट के साथ साझा किया.

धालीवाल और कनाडा स्थित विश्व सिख संगठन की निदेशक, तथा पीजेएफ की सह-संस्थापक, अनिता लाल की ओर से साइन किए इस बयान में कहा गया, ‘पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन ने रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग, या किन्हीं दूसरी बड़ी हस्तियों से, किसान विरोध पर ट्वीट करने के लिए समन्वय नहीं किया. हमने किसी को भी ट्वीट करने के लिए पैसा नहीं दिया और निश्चित रूप से किसी को भी, इसके लिए 25 लाख डॉलर अदा नहीं किए’.

बयान में कहा गया, ‘लेकिन, हमने आमतौर से पूरी दुनिया को, इस मुद्दे को साझा करने को प्रोत्साहित किया. आयोजकों के अंतरराष्ट्रीय समूह के ज़रिए, हमने दुनिया भर को इस संदेश की ओर ध्यान देने और इसे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया.’

बयान में आगे कहा गया: ‘हमारी आवाज़ें एक वैश्विक सहगान में शामिल हो गईं, जिसने साथ मिलकर इस संदेश को फैलाने में मदद की होगी कि किसान विरोध के दौरान मानवाधिकार उल्लंघनों से स्तब्ध होकर, जागरूक लोगों ने भारत में हाशिए पर पड़े लोगों के बारे में, जागरूकता फैलाने के लिए अपने मंच इस्तेमाल किए’.

उसमें कहा गया, ‘हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय मीडिया और सरकार, आज के वास्तविक मुद्दों पर तवज्जो देकर, अपने समय और संसाधनों का इस्तेमाल करेंगे: किसानों और उनके समर्थकों के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकेंगे, जो अपने अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे हैं’.

उसमें आगे कहा गया, ‘अलबत्ता, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इतना नाज़ुक नहीं है कि उसे किसी विरोध से खतरा महसूस हो जाए. निश्चित रूप से, अपनी महानता का निरंतर बखान कर रही सरकार को कनाडा के एक गैर-लाभकारी संगठन की आलोचना से कोई खतरा नहीं होगा, जिसका वजूद सिर्फ 9 महीने पुराना है’.


यह भी पढ़ें: सरकार को लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर की प्रतिष्ठा को दाव पर नहीं लगाना चाहिए: राज ठाकरे


‘किसी विरोधी गतिविधि का संयोजन नहीं किया’

बयान में ये भी कहा गया कि संगठन ने भारत के अंदर हो रहीं विरोधी गतिविधियों का कोई संयोजन नहीं किया है.

बयान में कहा गया, ‘भारत के गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2021 तक और उससे आगे भी- चाहे वो दिल्ली का लाल किला हो, या देश की कोई दूसरी जगह- हम भारत के अंदर किसी भी विरोधी गतिविधि को निर्देशित करने, या उसे हवा देने में शामिल नहीं थे’.

संगठन ने ये भी कहा कि उसने कभी नफरत की पैरवी नहीं की है और वो अपने लोगों से जुड़ाव और प्यार की वजह से ही इस किसान आंदोलन का हिस्सा बने हैं.

‘हमने नफरत की पैरवी न तो की है और न कभी करेंगे. लेकिन हमें नफरत भरे संदेश भेजे जा रहे हैं, हमारे इनबॉक्स मारे गए सिखों की तस्वीरों से भर गए हैं और खुद हमें जान से मारने की धमकियां मिली हैं. हम सदमे की संस्कृति में पले बढ़े हैं. स्व-घोषित भारतीय राष्ट्रवादियों की एक समन्वित सेना इसी सदमे को हमारे खिलाफ नफरत के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है’.

बयान में ये भी कहा गया, ‘हम कभी भी ये वकालत नहीं करेंगे कि दूसरों के अधिकार उनसे छीने जाएं. हम कभी किसी को नुकसान पहुंचाने की पैरवी नहीं करेंगे. अपने खुद के लोगों की पैरोकारी करने का मतलब, दूसरों को नुकसान पहुंचाना नहीं होता’.

‘हमारे अपने घर कनाडा में भी अन्याय होते हैं. हम उनके खिलाफ बोलते हैं. दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी नाइंसाफियां हो रही हैं. हम उनके खिलाफ भी आवाज़ उठाएंगे.

बयान में कहा गया, ‘हम अपने लोगों से जुड़ाव और प्यार की वजह से #FarmersProtest की ओर आकर्षित हुए. इसने हमें विशेष रूप से, भारत में हो रहे बहुत से मानवाधिकार उल्लंघनों से अवगत करा दिया है’.


यह भी पढ़ें: कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी दो अक्टूबर तक बैठे रहेंगे: राकेश टिकैत


आस्कइंडियाव्हाई लोगों के देखने के लिए

बयान में ये भी कहा गया कि ये संगठन उन लोगों से जुड़ा है, जो ‘समान सोच के हैं और जो भारत में हमारे लोगों की दुर्दशा से, भावनात्मक रूप से एक ही तरह प्रभावित हुए हैं’ और ये भी कि आस्कइंडियाव्हाई, जिसे पुलिस सूत्र यूके में संगठन का फ्रंट बताते हैं, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है और उसे कोई भी देख सकता है.

ट्विटर पर, पीजेएफ सक्रियता से हैशटैग ‘आस्कइंडियाव्हाई’ के साथ, किसानों के विरोध के बारे में पोस्ट कर रहे हैं, जिससे इसी नाम से एक वेबसाइट भी तैयार हो गई है. वेबसाइट में कहा गया है, ‘भारत के किसानों और नागरिकों को ज़रूरत है कि वैश्विक समुदाय उन्हें तवज्जो दे’.

उसमें ये भी कहा गया है, ‘इन विरोध प्रदर्शनों पर अंतर्राष्ट्रीय तवज्जो ही, वो एकमात्र चीज़ हो सकती है, जो देश में राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा और नरसंहार के एक और सिलसिले को रोक सकती है’.

बयान में कहा गया, ‘एक ग्लोबल कलेक्टिव के संयोजक होने के नाते, हमने ऐसे सभी विचारों को एक जगह जमा किया, और आस्कइंडियाव्हाई नाम की एक वेबसाइट पर, उसे सार्वजनित रूप से उपलब्ध करा दिया. हमने जो सामग्री तैयार की, उसे सबके लिए उपलब्ध करा दिया. बल्कि, ये सब सामग्री अभी भी ऑनलाइन उपलब्ध है. हमने उसे नहीं हटाया है, क्योंकि हमें उस काम में विश्वास है’.

‘हमने देखा कि दुनियाभर में हमारे दूसरे प्रवासी भारतीयों को, जागरूकता फैलाने में संघर्ष करना पड़ता है और समर्थन जुटाने में भी जूझना पड़ता है. इसके अलावा, हमने देखा कि हमारे समुदाय के बहुत से सदस्यों को, इसमें भी परेशानी होती है कि जटिल मुद्दों के लिए एक स्पष्ट संदेश कैसे भेजा जाए.’

बयान में कहा गया, ‘हमने बैठकें कीं. आपस में विचार-विमर्श किया. लोगों से फीडबैक इकट्ठा किया. जब हम काम कर रहे थे, तो एक खयाल पैदा हुआ. हमने तय किया कि हम भारत के लोकतंत्र से एक सवाल करेंगे. हम कहेंगे आस्कइंडियाव्हाई यानी भारत से पूछिए क्यों’.

उसमें आगे कहा गया कि आस्कइंडियाव्हाई.कॉम पर फिलहाल मौजूद सामग्री को बहुत से संदेशों और दस्तावेज़ों में शामिल किया गया है, जिन्हें दुनियाभर में मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने तैयार किया है, चाहे वो ग्रेटा थनबर्ग की टीम हो, या दूसरे कोई भी लोग हों, जो मानवाधिकारों पर भारत के रिकॉर्ड से हैरान परेशान हैं.

‘ये सामग्री सबके लिए उपलब्ध है, जो इस तक पहुंचने में दिलचस्पी रखते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार कृषि कानून की लड़ाई हार चुकी है, अब सिख अलगाववाद का प्रेत जगाना बड़ी चूक होगी


 

share & View comments