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Sunday, 22 December, 2024
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किसान आंदोलन के दौरान रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर FIR, एक जुट हुई मीडिया कहा-प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है

चीन, टर्की, मिस्र और सऊदी अरब जैसे देशों में सबसे ज़्यादा पत्रकारों को जेल में डाला गया है. भारत भी जल्द इसी लिस्ट में शामिल होने वाला है. सेडिशन का तो महत्व ही ख़त्म कर दिया है.

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नई दिल्ली: मीडिया संगठनों ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ‘ट्रैक्टर परेड’ और उस दौरान यहां हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकियां दर्ज किये जाने की कड़ी निंदा की. साथ ही, उन्होंने इस कार्रवाई को मीडिया को ‘डराने-धमकाने’ की कोशिश बताया है.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मांग की कि ऐसी प्राथमिकियां तुरंत वापस ली जाएं तथा मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए.

एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया.

शनिवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, महिला प्रेस क्लब और एडिटर्स गिल्ड ने सामूहिक प्रेस वार्ता में उन पत्रकारों के समर्थन में एक बैठक की, जिन पर 26 जनवरी की घटना में देशद्रोह का आरोप लगाया गया है. पत्रकारों के अपने राजनीतिक विचारों के बावजूद एक रेजोल्यूशन पास किया और पत्रकारों से उन्हें अपना समर्थन देने की बात कही.एडिटर्स गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, शेखर गुप्ता, जयशंकर प्रसाद गुप्ता तथा कई संपादको ने कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है.

इस दौरान आईडब्ल्यूपीसी की विनीता पांडेय ने कहा, ‘चीन, टर्की, मिस्र और सऊदी अरब जैसे देशों में सबसे ज़्यादा पत्रकारों को जेल में डाला गया है. भारत भी जल्द इसी लिस्ट में शामिल होने वाला है. सेडिशन का तो महत्व ही ख़त्म कर दिया है. सरकार जब क़ानून का ग़लत इस्तेमाल कर रही है.’

इसी दौरान जय शंकर गुप्ता ने कहा, ‘आपातकाल में पता होता था कि क्या सेंसर होने वाला है. आने वाले दिन ख़तरनाक होने वाले हैं. ज़रा सी असहमति पर लोगों को नौकरियों से निकाल दिया जा रहा है.’ गुप्ता ने आगे कहा कि यह लड़ाई लंबी चलने वाली है. मैं कहना चाहता हूं कि पत्रकारों को एकजुट होने की जरूरत है.

गिल्ड ने पत्रकारों के साथ हो रही कार्रवाई पर विरोध जाहिर करते हुए कहा, ‘यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं. अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें. यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था.’


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गिल्ड ने कहा कि वह ‘उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश पुलिस के डराने-धमकाने के तरीके की कड़ी निंदा करता है’ जिन्होंने किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कीं. इन वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों में गिल्ड के पूर्व एवं मौजूदा पदाधिकारी शामिल हैं.

गिल्ड ने रेखांकित किया कि इन प्राथमिकियों में आरोप लगाया गया है कि ट्वीट इरादतन दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर हुए उपद्रव का कारण बने. उसने कहा कि कि इससे ज्यादा कुछ भी सच्चाई से परे नहीं हो सकता है.

गिल्ड ने कहा, ‘उसी दिन ढेर सारी सूचनाएं मिल रही थीं. ईजीआई ने पाया कि विभिन्न राज्यों में दर्ज ये प्राथमिकियां मीडिया को चुप कराने, डराने-धमकाने तथा प्रताड़ित करने के लिए थीं.’

गिल्ड ने कहा कि ये प्राथमिकियां 10 अलग-अलग प्रावधानों के तहत दर्ज की गई हैं जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं.

गिल्ड ने पहले की गई अपनी यह मांग भी दोहराई कि उच्चतर न्यायपलिका को इस बात पर गंभीर संज्ञान लेना चाहिए कि देशद्रोह जैसे कई कानूनों का इस्तेमाल ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’’ को बाधित करने के लिए किया जा रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए कि इस तरह के कानूनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल स्वतंत्र प्रेस के खिलाफ प्रतिरोधक के तौर पर नहीं किया जाए.

इंडियन वूमंस प्रेस कोर (आईडब्ल्यूपीसी) ने भी वरिष्ठ पत्रकार एवं आईडब्ल्यूपीसी की संस्थापक अध्यक्ष मृणाल पांडे और अन्य पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के उत्तर प्रदेश पुलिस के फैसले की निंदा की है. यह प्राथमिकी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान कथित तौर पर उनके ‘‘असत्यापित’’ खबरें साझा करने को लेकर दर्ज की गई है.

आईडब्ल्यूपीसी ने कहा कि उसका मानना है कि पांडे के खिलाफ आरोप वास्तविक स्थिति से ध्यान भटकाने के लिए जानबूझ कर की गई एक कोशिश है.

आईडब्ल्यूपीसी ने कहा, ‘यह मीडिया को डराने-धमकाने और उसके अपने कहे मुताबिक चलने के लिए बाध्य करने की कोशिश है. ’ साथ ही, पांडे और अन्य पत्रकारों पर यह आरोप उनकी छवित धूमिल करने की दुर्भावनापूर्ण कोशिश है.

‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ ने कहा कि वह इस बारे में जान कर स्तब्ध है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस ने प्रतिष्ठित पत्रकारों एवं अन्य के खिलाफ देशद्रोह सहित अन्य आपराधिक कानूनों के आरोपों में प्राथमिकियां दर्ज की हैं.

प्रेस क्लब ने कहा, ‘हम लखनऊ और भोपाल के अधिकारियों से अपने इस कदम को वापस लेने की अपील करते हैं. हम केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी स्थिति का पुन:आकलन करने की अपील करते हैं और उप्र तथा मप्र सरकार को आगाह करने को कहते हैं.’

अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को बताया था कि किसानों की ट्रैक्टर परेड और उस दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है.

जिन पत्रकारों के नाम प्राथमिकी में हैं, उनमें मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाथ शामिल हैं. एक अनाम व्यक्ति के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई है.

मध्य प्रदेश पुलिस ने भी थरूर और छह अन्य पत्रकारों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की है. यह प्राथमिकी हिंसा की घटना पर उनके कथित तौर पर गुमराह करने वाले ट्वीट को लेकर दर्ज की गई है.


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