नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि केंद्र सरकार ने अभी तक उन 16 नामों को हरी झंडी नहीं दी है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने, हाईकोर्ट में नियुक्तियों के लिए मंज़ूरी दी थी और जिनमें सबसे पुरानी सिफारिशें जुलाई 2019 की हैं.
केंद्र सरकार ने अभी उन 103 प्रस्तावों को भी प्रॉसेस नहीं किया है, जो अलग-अलग हाईकोर्ट्स की ओर से, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय को भेजे गए थे, जिन्हें और मंज़ूरी के लिए शीर्ष अदालत के कॉलेजियम को भेजा जाना था. इसके नतीजे में उच्च न्यायालयों में, रिक्तियों का संकट गहरा गया है.
कॉलेजियम एक तीन सदस्यीय उच्च अधिकार संपन्न पैनल है, जिसकी अगुवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) करते हैं.
सरकार नामांकित व्यक्तियों के जज बनने की अधिसूचना तभी जारी कर सकती है, जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उनकी नियुक्ति को मंज़ूरी दे दे. सुप्रीम कोर्ट सूत्रों के अनुसार, ये फाइलें सरकार के पास एक वर्ष से अधिक समय से लंबित पड़ी हैं.
फिलहाल, 24 उच्च न्यायालयों में 668 जज काम कर रहे हैं, जबकि उनकी स्वीकृत संख्या 1,079 है. इस हिसाब से उच्च न्यायालयों में, 38 प्रतिशत पद रिक्त पड़े हुए हैं.
शीर्ष अदालत के कॉलेजियम की ओर से तय किए गए, 16 नामों के बारे में सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार ने उन नामों को अपनी आपत्तियों, अथवा राय के साथ वापस नहीं किया है, जैसा कि न्यायिक नियुक्तियों को शासित करने वाले, मेमोरेंडम ऑफ प्रॉसीजर (एमओपी) के तहत करना होता है.
दिप्रिंट ने मेल के ज़रिए, केंद्रीय क़ानून एवं न्याय मंत्रालय से टिप्पणी लेने की कोशिश की, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.
बुधवार को सीजेआई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने, न्यायिक नियुक्तियों को लेकर शीर्ष अदालत की कॉलेजेयिम के फैसलों पर अमल करने में, सरकार की ओर से हो रही देरी पर चिंता का इज़हार किया.
उच्च न्यायालयों में रिक्तियों के मामले में एक याचिका की सुनवाई करते हुए बेंच ने- जिसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कॉल, और न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी थे- इस बात पर भी चिंता जताई कि सरकार, उच्च न्यायालयों की ओर से भेजे गए प्रस्तावों का जवाब देने में भी बहुत समय लगाती है.
कोर्ट ने केंद्रीय क़ानून एवं न्याय मंत्रालय से, उसे बताने के लिए कहा है कि शीर्ष अदालत से फाइल मिलने के बाद, सरकार को नियुक्तियों को अंतिम रूप देने में कितना समय लगेगा.
जस्टिस कॉल ने कहा, ‘अगर आप पांच महीने तक कॉलेजियम की सिफारिशों पर कोई टिप्पणियां नहीं देते, तो ये एक गंभीर चिंता का विषय है’.
कोर्ट ने ये भी जानना चाहा कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए, उच्च न्यायालयों की ओर से जिन 100 से अधिक नामों की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी गई थी, उनकी क्या स्थिति है.
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16 नाम, 4 हाईकोर्ट्स
एमओपी के तहत हाईकोर्ट्स में नियुक्तियों की सिफारिशें, अलग अलग हाईकोर्ट कॉलेजियम्स की ओर से इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के इनपुट्स के लिए, पहले केंद्र सरकार को भेजी जाती हैं.
सरकार फिर उन फाइलों को आईबी इनपुट्स के साथ, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजती है. अगर शीर्ष अदालत की कॉलेजियम उन नामों को मंज़ूरी दे देती है, तो फाइलें फिर केंद्र सरकार के पास वापस जाती हैं, जो या तो उनकी अधिसूचना जारी कर देती है या फिर अपनी अपत्तियों या विचारों के साथ, उन्हें वापस भेज देती है.
इस स्टेज पर, शीर्ष अदालत की कॉलेजियम सरकार की राय पर और अधिक जानकारी मांग सकती है. उसी हिसाब से, वो प्रस्ताव को ख़ारिज कर सकती है या फिर उसे दोहरा सकती है.
अगर कॉलेजियम सरकार की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अपने निर्णय को फिर से दोहराती है तो फिर एमओपी के तहत सरकार उन नियुक्तियों की अधिसूचना जारी करने के लिए बाध्य हो जाती है.
लेकिन एमओपी में केंद्र सरकार के लिए कॉलेजियम के किसी फैसले पर अमल करने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है.
दिप्रिंट से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में एक अधिकारी ने कहा कि सरकार ‘बस उन नामों पर बैठी हुई है, जिन्हें सीजेआई की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने इंटेलिजेंस इनपुट्स मिलने के बाद मंज़ूरी दी थी’.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा मंज़ूर 16 नामों की सिफारिश की बात करते हुए अधिकारी ने आगे कहा, ‘मौजूदा एमओपी के अनुसार अगर सरकार को किसी नाम पर आपत्ति है, तो फाइल को कॉलेजियम के पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हुए उसे लिखित में इसका इज़हार करना चाहिए. इन सभी मामलों में ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया गया है’.
शीर्ष अदालत की कॉलेजियम से मिली सबसे पुरानी सिफारिश जो सरकार के पास लंबित पड़ी है, जुलाई 2019 में भेजी गई थी, जिसमें पांच वकीलों की कलकत्ता हाईकोर्ट में नियुक्ति को मंज़ूरी दी गई थी.
एक महिला वकील की जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में तरक़्क़ी भी, सरकारी मंज़ूरी के इंतज़ार में है. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि उनका नाम 17 अक्टूबर 2019 को तीन अन्य वकीलों के नाम के साथ सरकार के पास भेजा गया था. उनमें से दो जज बन गए हैं, जबकि एक की फाइल कॉलेजियम के पास फिर से विचार करने के लिए भेज दी गई.
एक सूत्र ने कहा, ‘लेकिन, सरकार ने उनकी फाइल पर कोई विचार व्यक्त नहीं किए हैं’.
इसी तरह केरल हाईकोर्ट के लिए भेजे गए चार नामों और दिल्ली के लिए भेजे गए छह नामों पर जिन्हें क्रमश: 17 और 18 अगस्त 2020 को भेजा गया था केंद्र सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है.
शीर्ष अदालत ने ताज़ा स्थिति पूछी
सरकार के पास लंबित नामों के अलावा सूत्रों ने बताया कि 23 और नाम, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास लंबित पड़े हैं. सूत्रों ने आगे कहा कि इन फाइलों को पहले भी टाला गया था और कॉलेजियम सदस्यों को इन पर फिर से विचार-विमर्श करना है.
दिसंबर 2020 में, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालयों से प्राप्त 47 ताज़ा फाइलें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास उसकी टिप्पणियों और मंज़ूरी के लिए भेजीं.
बुधवार को सुनवाई के दौरान, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बेंच को बताया कि सरकार लंबित सिफारिशों की संख्या, ‘150 से घटाकर 104’ पर ले आई है और उन्होंने माना कि ‘बहुत सी सिफारिशें हैं, जो काफी लंबे समय से लंबित पड़ी हैं’.
इसके बाद बेंच ने सरकार से ‘29 जनवरी तक लंबित पड़े नामों की ताज़ा स्थिति’ बताने को कहा.
बेंच ने आगे कहा, ‘मान लीजिए आपको कुछ आपत्तियां हैं और आप नामों को वापस भेजते हैं, तो फिर हम उन्हें दोहरा सकते हैं. लेकिन अगर आप कॉलेजियम की सिफारिशों पर पांच महीने तक टिप्पणी ही नहीं करेंगे तो ये एक गंभीर चिंता का विषय है’. बेंच ने ये भी कहा, ‘आपको देखने की ज़रूरत है कि क्या अड़चनें हैं, और उन्हें दूर करना है’.
कोर्ट ने कहा कि वो उन प्रस्तावों पर सरकार का जवाब नहीं मांग रही है, जिन्हें कॉलेजियम ने विचार विमर्श के लिए स्थगित किया था.
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