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Friday, 22 November, 2024
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Covid के बाद के दशक में भारत दोहरे अंक में वृद्धि कर सकता है पर और सुधारों की जरूरत है-पनगढ़िया

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने दिप्रिंट से बातचीत में सार्वजनिक कंपनियों के निजीकरण, व्यापार उदारीकरण और राज्यों की तरफ से श्रम कानूनों में और अधिक ढील दिए जाने की बातें कहीं.

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नई दिल्ली: नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि भारत कोविड बाद के दशक में दोहरे अंक में वृद्धि हासिल कर सकता है लेकिन सुधारों के मोर्चे पर थोड़ा और काम करने की जरूरत है, जैसे सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों का निजीकरण, व्यापार उदारीकरण और श्रम कानूनों में और ढील दिया जाना आदि.

दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यूर में पनगढ़िया ने कहा कि पिछले दशक में औसत वृद्धि ने इसमें सुधारों की भूमिका को रेखांकित किया है.

उन्होंने कहा, ‘पहेली पूरी तरह सुलझ चुकी है. भारत को कोविड बाद के दशक में दोहरे अंकों में वृद्धि हासिल करनी चाहिए. सीमित सुधारों के साथ हमने 7-8 फीसदी की दर से वृद्धि की है. यदि आप 2003-04 से 2019-20 तक औसत वृद्धि दर देखें तो यह 7 प्रतिशत से अधिक है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर हम सुधारों को थोड़ा और आगे बढ़ाएं तो इस आंकड़े में 2-3 फीसदी का और इजाफा कर सकते हैं…कोविड के बाद के दशकों में भारत की संभावनाएं उत्कृष्ट हैं.’

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया ने कहा, ‘राज्यों की तरफ से श्रम कानूनों में और बदलाव और व्यापार का उदारीकरण ‘अपेक्षित’ सुधारों में रह गई कमियों को पूरा कर देंगे.’

उन्होंने कहा, ‘यह एक पुख्ता कानून है कि यदि आप कम आयात करते हैं, तो आप कम निर्यात करेंगे. इंडस्ट्रियल गुड्स पर टैरिफ का सामान्य औसत पिछले कुछ वर्षों में 12 प्रतिशत से बढ़कर 14 प्रतिशत हो गया है. हमें इसे 10 फीसदी तक लाने की जरूरत है.’

पनगढ़िया ने टेक्सटाइल और फुटवियर जैसे श्रम-प्रधान सेक्टर में बड़ी कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों की तरफ से श्रम कानूनों में बदलाव की वकालत भी की. उन्होंने कहा कि केंद्रीय श्रम कानूनों में बदलाव ने 300 श्रमिकों वाली कंपनियों को कर्मचारियों को हटाने की अनुमति दी थी, जो पहले 100 श्रमिकों की सीमा से अधिक है.

उन्होंने कहा, ‘राज्यों द्वारा इन बदलावों को लागू किए जाते समय उम्मीद है कि वे इस सीमा को 10,000 या 15,000 तक बढ़ा दें या कुछ वर्षों के लिए इस प्रावधान को निलंबित ही कर दें. हमारे पास श्रम प्रधान क्षेत्रों में बड़े उद्यमों की कमी है. हमें कम कुशल श्रमिकों के लिए अच्छे रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत है.’


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‘कोविड सेस अच्छा विचार नहीं है’

माना जा रहा है कि आगामी 1 फरवरी को पेश होने वाले 2021-22 के आम बजट में नरेंद्र मोदी की सरकार की तरफ से कोविड सेस लगाना राजस्व बढ़ाने का एक विकल्प हो सकता है.

हालांकि, पनगढ़िया ने कहा कि कोविड सेस लगाना कोई अच्छा विचार नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘यह कर प्रणाली को बिगाड़ता है. जहां तक संभव हो कर प्रणाली को साफ-सुथरा रखना चाहिए. टैक्स पर सेस लगाना ‘प्रोत्साहन विरोधी’ है.’

पनगढ़िया ने इसके बजाये छूट खत्म करके और कर दरों को तर्कसंगत बनाकर व्यक्तिगत आयकर की व्यवस्था सुस्पष्ट करने का पक्ष लिया.

मांग प्रोत्साहन ज्यादा कारगर साबित होने के आसार

पनगढ़िया ने कहा कि वैक्सीन कवरेज धीरे-धीरे बढ़ने के साथ श्रमिक अपने कार्यस्थलों पर लौटना शुरू कर देंगे. साथ ही जोड़ा कि मांग प्रोत्साहन ऐसे में ज्यादा कारगर हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हम अब एक ऐसी स्थिति पहुंच चुके हैं जहां कामगार अपने कार्यस्थलों में लौट रहे हैं. इससे आपूर्ति को पूरा करना संभव हो गया है. ऐसे में मांग को प्रोत्साहन देना एक अच्छा मौका साबित हो सकता है. पहले जब लोग बाहर नहीं निकल रहे थे भले ही आप उन्हें घर बैठे आय उपलब्ध कराते, वे खर्च करने के लिए बाहर नहीं जा सकते थे.’

पनगढ़िया ने कहा कि पैसों का ट्रांसफर भी केवल तभी कारगर हो सकता है जब इसे निचले तबके वाली 30-40 फीसदी आबादी को मुहैया कराया जाए और राशि पर्याप्त होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘अगर एक राजकोषीय घाटा थोड़ा बढ़ाया जाए…तो यह कोविड न होने की स्थिति में भी हम जो अतिरिक्त खर्च करते उसकी तुलना में जीडीपी के 1-2 प्रतिशत अंक के बीच ही रहेगा.’

लेकिन साथ ही उन्होंने बताया कि फ्रंट-लोडिंग एक्सपेंडिचर कोविड पूर्व के स्तर पर लाना ही पर्याप्त हो सकता है और किसी अतिरिक्त प्रोत्साहन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यों को जीएसटी बकाये का भुगतान, करदाताओं को रिइम्बर्समेंट का रिफंड, कंपनियों को सरकारी विभागों की तरफ से समय पर भुगतान और पीएम-किसान योजना के तहत तीन चरणों के बजाये किसानों को एकमुश्त पैसा ट्रांसफर करने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं.


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अलग विनिवेश मंत्रालय की आवश्यकता पर

पनगढ़िया ने एक अलग विनिवेश मंत्रालय का समर्थन किया, जिसका प्रदर्शन उस धनराशि से आंका जाता है जो वह हिस्सेदारी बेचने के माध्यम से जुटा पाता है.

उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की पहचान की गई है और कैबिनेट की तरफ से हरी झंडी भी मिल चुकी है. कई मामलों में सरकारी स्वामित्व 60 प्रतिशत से कम है और ये फर्म शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं. नौकरशाही को सिर्फ 10 प्रतिशत या उससे कम की बिक्री करनी है और फिर प्रबंधन का प्रभार निजी क्षेत्र को सौंप देना है.’

उन्होंने कहा, ‘हमें 2000 के शुरुआती दिनों में (तत्कालीन प्रधानमंत्री) अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सफलता के साथ स्थापित विनिवेश मंत्रालय को फिर से बनाने की आवश्यकता है. जब कोई मंत्रालय इसका आकलन करेगा कि विनिवेश से क्या हासिल होगा तो शायद इसमें ज्यादा सक्रियता आ जाए.

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की मंशा 2016 से ही निजीकरण की रही है, लेकिन चार वर्षों में शायद ही कोई प्रगति हुई हो.

उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत आशावादी था कि हम विनिवेश (2016 में) होता देखने जा रहे हैं. तब से चार साल बीत चुके हैं और कुछ भी नहीं हुआ है. इसने मेरी उम्मीदें घटा दी हैं.’

बैंकों और बैड बैंक के पुनर्पूंजीकरण पर

पनगढ़िया ने कहा कि राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों का पुनर्पूंजीकरण ‘अपरिहार्य’ है और यह बाद में करने के बजाये पहले ही कर लिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘हमेशा यही प्रवृत्ति रही है कि जब तक क्रेडिट ग्रोथ ढह न जाए इंतजार करते रहो. मैंने पहले भी ऐसा ही देखा है. ओवरकैपिटलाइजेशन से बैंकों को नुकसान नहीं होगा, लेकिन अंडरकैपिटलाइजेशन से विकास दर में गिरावट आ सकती है.’

पनगढ़िया ने एक बैड बैंक के विचार का भी समर्थन नहीं किया क्योंकि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड बैंकों को अपने बैड लोन की समस्या सुलझाने में मददगार हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘मैंने 2015 में बैड बैंक का प्रस्ताव दिया था लेकिन फिर विचार बदल लिया. हम किसी इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड को दो सालों में एक साथ नहीं रख सकते. मुझे इसमें संदेह है कि हम एक बैड बैंक बनाने में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं. वास्तव में अभी बैड बैंक की कोई आवश्यकता नहीं है. अब हमारे पास आईबीसी है और एक प्रक्रिया है जिसका उपयोग किया जा सकता है.’

‘कृषि सुधारों पर लचीलापन अच्छा’

मोदी सरकार की ओर से किसानों को नए कृषि कानून को 18 महीने के लिए स्थगित करने संबंधी प्रस्ताव दिए जाने के बाबत पूछे जाने पर पनगढ़िया, जो कृषि सुधारों के पैरोकार रहे हैं, ने कहा कि अच्छी बात है कि सरकार ये लचीलापन दिखा रही है. हालांकि, उन्होंने कहा कि अधिकांश किसान कृषि सुधारों का विरोध नहीं करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘अंतत: तो हम एक लोकतंत्र का हिस्सा हैं और राजनीतिक समझौते करने पड़ते हैं. मैं यह लचीलापन दिखाने के लिए सरकार की सराहना करता हूं. किसी भी सुधार को उसकी घोषणा करने के साथ ही लागू नहीं किया जा सकता है. इन सुधारों को लागू करने में समय लगेगा.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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