नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी के कुछ हल्कों में कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्लूसी) और केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) के चुनाव कराए जाने की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही है.
शुक्रवार को सीडब्ल्यूसी की बैठक में आनंद शर्मा और गुलाम नबी आज़ाद समेत पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव की मांग को फिर दोहराया जिसका इज़हार पिछले साल पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे गए पत्र में भी किया गया था.
पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बाद में ऐलान किया कि इस साल जून तक कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुन लिया जाएगा लेकिन सीडब्ल्यूसी और सीईसी चुनाव कराने की तारीख और उसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है.
एआईसीसी के एक सदस्य ने, जो उस पत्र को लिखने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं में शामिल थे, दिप्रिंट से कहा, ‘हमारी मांग हमेशा यही रही है कि पार्टी के संविधान को कायम रखा जाए और संविधान यही कहता है कि सीडब्ल्यूसी और सीईसी के एक हिस्से का चुनाव किया जाएगा, उनको नामांकित नहीं किया जाएगा’.
कांग्रेस के संविधान के अनुभाग XIX (ए) में सीडब्ल्यूसी की संरचना को लेकर स्पष्ट रूप से कहा गया है- ‘कार्यसमिति में कांग्रेस का अध्यक्ष शामिल होगा, संसद में कांग्रेस पार्टी का नेता शामिल होगा, तथा 23 अन्य सदस्य होंगे जिनमें से 12 का चुनाव एआईसीसी द्वारा किया जाएगा, जो कार्यसमिति द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार होगा और बाकी सदस्य अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किए जाएंगे’.
फिर आगे चलकर सीडब्लूसी को ‘कांग्रेस की सर्वोच्च कार्यकारी अथॉरिटी’ बताया गया है, जिसके पास कांग्रेस द्वारा निर्धारित की गई नीतियों और कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के अधिकार होंगे’. इस तरह सीडब्ल्यूसी पार्टी के भीतर, एक बहुत प्रभावशाली इकाई बन जाती है.
एआईसीसी के एक सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘लेकिन आज, इसकी शक्तियां तकरीबन खत्म कर दी गई हैं और अध्यक्ष की मर्ज़ी और इच्छा का पालन करने के अलावा, उनके पास कोई विकल्प नहीं रह गया है. सीडब्ल्यूसी अब पार्टी अध्यक्ष कार्यालय का विस्तार मात्र है’.
नेता ने कहा, ‘एक चुनी हुई सीडब्ल्यूसी और एक नामांकित सीडब्ल्यूसी का हिस्सा होने में वही अंतर है, जो एक लोकसभा सांसद और एक मनोनीत राज्य सभा सांसद के बीच होता है. मैं ये नहीं कह रहा हूं कि चुना हुआ सीडब्ल्यूसी सदस्य बगावत शुरू कर देगा लेकिन वो कम से कम अपने पैरों पर खड़ा हो पाएगा और उसे ज़रा-ज़रा सी बात पर झिड़का नहीं जा सकेगा और उसके पास कुछ शक्तियां और विवेकाधिकार होंगे’.
लेकिन, एक दूसरे एआईसीसी सदस्य व वरिष्ठ नेता ने कहा कि ‘असली बात’ तो तब होगी जब सीडब्ल्यूसी के चुनाव, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से पहले कराए जाएं. उनका कहना था, ‘सांसदों का चुनाव पीएम से पहले कराना होता है, इसके उलट नहीं होना चाहिए’.
शुक्रवार की प्रेस वार्त्ता में, सीडब्ल्यूसी चुनावों की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर, वेणुगोपाल ने कहा था कि इस बात पर ‘स्पष्टता की ज़रूरत’ है कि संविधान सीडब्ल्यूसी और अध्यक्ष के चुनाव, एक साथ कराए जाने की इजाज़त देता है कि नहीं.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता जनार्द्धन द्विवेदी ने दिप्रिंट से कहा कि पार्टी की परंपरा के अनुसार, पहले पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होता है और उसके बाद सीडब्ल्यूसी चुनाव कराए जाते हैं.
द्विवेदी ने कहा, ‘दोनों चुनाव एक साथ कराने पर कोई पाबंदी नहीं है लेकिन परंपरा ये है कि अध्यक्ष पद के चुनाव, सीडब्ल्यूसी चुनावों से पहले कराए जाते हैं’.
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संसदीय बोर्ड फिर से जीवित करना
सीईसी को भी पार्टी के अंदर, एक बहुत ताकतवर इकाई होना चाहिए था- जिसका काम एसैम्बली और लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का अंतिम चयन करना और चुनाव प्रचार का संचालन करना है. लेकिन नेताओं का कहना है कि इसकी ‘अहमियत मात्र एक रबर स्टांप’ की है.
एक अन्य कांग्रेस नेता ने कहा, ‘सीईसी के सदस्यों को बहुत अहम फैसले लेने होते हैं, इसलिए इस इकाई में सिर्फ कुछ चहेते नेताओं को ही, शामिल नहीं किया जाना चाहिए. उसके अंदर कुछ ऐसी सार्थक आवाज़ें भी होनी चाहिएं, जिनमें उम्मीदवारों के चयन को लेकर, कुछ बड़े बदलाव कर पाने का साहस हो’.
पार्टी संविधान के हिसाब से, सीईसी के अंदर केंद्रीय संसदीय बोर्ड (सीपीबी) के सदस्य और नौ अन्य सदस्य होने चाहिए जिन्हें एआईसीसी द्वारा चुना जाता है.
सीपीबी को, जिसके अंदर पार्टी अध्यक्ष समेत 10 सदस्य होते हैं, सीडब्ल्यूसी का गठन करना होता है. लेकिन, अब पिछले कई दशकों से पार्टी में कोई सीपीबी नहीं रही है, जिससे ये अवधारणा अब पुरानी पड़ गई है.
एक अन्य पार्टी नेता ने कहा, ‘संसदीय बोर्ड आखिरी बार, 90 के दशक की शुरूआत में वजूद में था. उसके बाद से शीर्ष नेतृत्व से कई बार, उसे पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ’.
1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव ने, कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला तो उन्होंने केंद्रीय संसदीय बोर्ड, यानी सीपीबी को भंग कर दिया था.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने संसदीय बोर्ड को जून 2019 में, पहली बार पुनर्जीवित करने की मांग की थी, जब कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा था.
अगस्त में लिखे गए पत्र में भी, इस मांग का ज़िक्र किया गया और हाल ही में ये सुझाव फिर सामने आया, जब पत्र लिखने वाले कुछ नेताओं ने पिछले साल दिसंबर में सोनिया गांधी से उनके आवास पर मुलाक़ात की.
एक पार्टी नेता ने कहा, ‘सीपीबी को फिर से जीवित करने का असर नीचे तक जाएगा और उम्मीद है कि उससे सीईसी को भी मजबूरन संविधान का पालन करते हुए, चुने हुए सदस्य लाने होंगे’.
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1997 के बाद से कोई सीडब्ल्यूसी चुनाव नहीं
पत्र लिखने वालों का ये कहना गलत नहीं है कि पार्टी संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि सीडब्ल्यूसी और सीईसी के चुनाव कराए जाएं लेकिन ऐसी कोई परंपरा नहीं रही है.
2018 में गुलाम नबी आज़ाद ने, जो अब सीडब्ल्यूसी चुनावों की मांग करने वाली, सबसे मुखर आवाज़ों में से एक हैं, चुनावों के खिलाफ राय ज़ाहिर की थी.
राष्ट्रीय राजधानी के तालकटोरा स्टेडियम में हुए 84वें एआईसीसी के पूर्ण अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष को, आज़ाद ने एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष को सीडब्ल्यूसी के सदस्यों को, मनोनीत करने का अधिकार देने की वकालत की गई थी.
आज़ाद ने कहा, ‘हमारी पार्टी के संविधान में, कांग्रेस कार्यसमिति के चुनावों का प्रावधान है. 135 वर्षों के हमारे इतिहास में बहुत से चुने हुए नेता अध्यक्ष बने लेकिन वर्किंग कमेटी के चुनाव, एक दर्जन से भी कम बार हुए हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अधिकतर यही हुआ है कि एआईसीसी ने, सीडब्ल्यूसी गठित करने का अधिकार अध्यक्ष को दे दिया. हमारे विशाल देश को देखते हुए, उनके ऊपर ज़िम्मेदारी है कि सभी क्षेत्रों के नेताओं को शामिल किया जाए. ये हमारी संस्कृति रही है कि सीडब्ल्यूसी के गठन का काम, अध्यक्ष पर छोड़ दिया जाता है. मैं एक प्रस्ताव पेश करता हूं कि आईएनसी अध्यक्ष को कार्य समिति को मनोनीत करने का अधिकार दिया जाए. मुझे खुशी है कि इस प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया है’.
आज़ाद के भाषण का वीडियो, जो कांग्रेस की वेबसाइट पर मौजूद है, उस समय फिर सामने आया जब उन्होंने सीडब्ल्यूसी चुनावों के लिए अगस्त में भेजे गए पत्र पर दस्तखत किए.
ध्वनिमत के बाद आज़ाद के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया, जिसके बाद एक सीडब्ल्यूसी प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें तब के पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी कार्य समिति गठित करने के लिए अधिकृत कर दिया गया.
आज़ाद सही थे जब उन्होंने कहा कि बहुत कम ऐसा हुआ है कि सीडब्ल्यूसी का गठन, चुनाव के रास्ते किया गया हो. सीडब्ल्यूसी के लिए आखिरी बार चुनाव, 1997 में कोलकाता अधिवेशन में कराए गए थे और उससे पहले 1992 में तिरुपति सेशन में. 1997 के बाद से सीडब्ल्यूसी के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ है.
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने शुक्रवार को सीडब्ल्यूसी बैठक में इसी तरह के तर्क दिए, जहां उन्होंने आज़ाद और शर्मा के चुनाव के अनुरोध को गलत ठहराया.
बैठक में मौजूद एक सूत्र ने, गहलोत का हवाला देते हुए कहा, ‘यहां हम में से सभी मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, और सीडब्ल्यूसी सदस्य रहे हैं, किसी चुनाव के आधार पर नहीं बल्कि इसलिए कि पार्टी नेतृत्व ने हमें उन भूमिकाओं के लिए चुना. अब अचानक, हर कोई चुनाव कराने की बात कर रहा है’.
द्विवेदी ने, जो सीईसी के सदस्य भी हैं, कहा कि पार्टी के संविधान को, पार्टी की मौजूदा परंपरा के साथ पढ़ा जाना चाहिए.
द्विवेदी ने कहा, ‘पार्टी संविधान के अंदर कुछ ऐसी धाराएं हैं, जो एक दूसरे को ढकती हैं और परस्पर विरोधी हैं लेकिन उन्हें उस परंपरा के साथ देखने और पढ़ने की ज़रूरत है, जो पार्टी में लंबे समय से मौजूद रही है’.
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‘शान का भ्रम’
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई के अनुसार, सीडब्ल्यूसी और सीईसी चुनावों की मांग सिर्फ ‘धुएं की एक परत’ है.
किदवई ने कहा, ‘चुनाव की मांग सिर्फ एक बहाना है. असली मकसद राहुल गांधी के नेतृत्व और कामकाज की शैली को निशाने पर लेना है, जो समावेशी नहीं है. वो पार्टी अनुक्रम की परवाह नहीं करते और उनका अंदाज़ बहुत रूखा है, जो सोनिया के नेतृत्व से बिल्कुल उलट है. ये सब शोर मचाकर नेता लोग, उनसे हिसाब चुका रहे हैं’.
किदवई ने ये भी कहा कि एक ‘गतिरोध’ दिखाई पड़ता है और गांधी परिवार के नर्म न पड़ने और मांगों से सहमत न होने के पीछे वजह ये है कि वो ‘शान के भ्रम’ में हैं.
किदवई ने कहा, ‘वो अभी भी मानते हैं कि कांग्रेस अगर अभी खड़ी है, तो ये उन्हीं की वजह से है. वो अभी भी शान के भ्रम में जी रहे हैं और आसानी से हथियार डालने वाले नहीं हैं’.
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के फेलो, राहुल वर्मा ने कहा कि नेताओं की सीडब्ल्यूसी और सीईसी चुनावों की मांग, ‘खुद उनके अपने और पार्टी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ज़रूरी है’.
वर्मा ने कहा, ‘एक जायज़ शिकायत ये है कि अहम पदों पर बैठे बहुत से लोग, पार्टी अध्यक्ष द्वारा ऐसे ही नियुक्त किए गए हैं, जिनका उस अनुपात से राष्ट्रीय कद नहीं है और जिनका वजूद हल्का है’.
वर्मा ने ये भी कहा कि ‘इस तथ्य को देखते हुए कि कांग्रेस का चुनावी ग्राफ नीचे आ रहा है, ये नेता उबाल लाने की कोशिश कर रहे हैं, और कोई ऐसा मिकेनिज़म शुरू करना चाहते हैं, जिससे पार्टी को फिर से खड़ा किया जा सके. ये दोनों के लिए है- उनकी अपनी सियासी तरक्की भी और पार्टी की भी’.
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