बहुत समय पहले- 2005 में- अमेरिका ने तब के गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को, 2002 के दंगों में उनकी कथित भूमिका को देखते हुए वीज़ा देने से इनकार कर दिया था, जिनमें अधिकारिक अनुमान के मुताबिक़, क़रीब 1,000 लोग मारे गए थे. उसके बाद से बहुत समय बीत चुका है और इस बीच बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप दोनों ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी गर्मजोशी से मेज़बानी की और बदले में मोदी ने भी 2016 और 2019 में, उनकी मेहमान नवाज़ी की- भले ही ओबामा बीजेपी के ‘विभाजनकारी राष्ट्रवाद’ के बारे में पीछे देखते हुए अब कुछ भी कहें.
इसलिए पिछले हफ्ते उन्हें एक मीठे प्रतिशोध सा अहसास हुआ होगा, जब पीएम मोदी ने अमेरिका के कैपिटल में मची अफरा-तफरी और हिंसा पर ट्वीट के ज़रिए अपनी पीड़ा का इज़हार किया. ऐसा लगा जैसे वो कह रहे हों कि अब उन्हें नहीं बल्कि अमेरिकी नेताओं को सावधान रहने की ज़रूरत है.
Distressed to see news about rioting and violence in Washington DC. Orderly and peaceful transfer of power must continue. The democratic process cannot be allowed to be subverted through unlawful protests.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 7, 2021
फिर भी, अमेरिकी संकट का एक छोटा सा नतीजा ये हुआ है- उसकी घटती हुई ताक़त की प्रतिष्ठा पर चोट के अलावा- कि डोनाल्ड ट्रंप (8.8 करोड़ समर्थकों के साथ) को स्थायी रूप से ट्विटर से हटा दिए जाने से, मोदी (6.3 करोड़ समर्थक) दुनिया में सबसे ज़्यादा फॉलो किए जाने वाले राजनेता बन गए हैं.
निश्चित रूप से मोदी अपने रोल को गंभीरता से लेते हैं. प्रवासी भारतीय दिवस के सालाना आयोजन में बोलते हुए जिसमें विदेशों में रह रहे भारतीय समुदाय की उपलब्धियों की सराहना की जाती है, मोदी ने कहा कि अपनी दो मेड-इन-इंडिया वैक्सीन्स के साथ, भारत ‘मानवता को बचाने’ को तैयार है.
यह भी पढ़ें: फाइज़र ने कहा- ‘बेहद’ कम नोटिस की वजह से Covid पर मोदी सरकार की बैठकों में शरीक नहीं हो पाया
मोदी और एशिया में उनकी हैसियत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समझते हैं कि दुनिया उन्हें कम से कम दो मामलों में, कहीं अधिक गंभीरता से लेगी- सिर्फ ऐसे नेता को रूप में नहीं, जो ‘लव जिहाद’ अत्याचार या किसान आंदोलन के सामने ख़ामोश रहे. एक, भारत लद्दाख में चीन की चुनौती को कैसे टाल पाता है. और दो, दक्षिण एशिया के लोग किस हद तक क्षेत्र के लीडर के तौर पर उन्हें स्वीकार करते हैं.
यही वजह है कि दक्षिण एशिया को लेकर, एक नया प्रयास होने जा रहा है. पिछले दो-एक सालों में की गईं अनुचित टिप्पणियां- नागरिकता संशोधन अधिनियम पर बहस में बांग्लादेशियों को ‘दीमक’ कहना, नेपाल से उसके नक़्शे पर बहस करना, जिसमें भारतीय इलाक़ों को शामिल किया गया है और बेशक, पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत- नहीं की नीति को जारी रखना- 2021 को एक ऐसा साल बना सकती हैं, जिसमें भारत ने अपने पड़ोस को फिर से जीतने की कोशिश की.
यही वजह है कि संभावित रूप से बांग्लादेश के सम्मान में, सीएए के नियम नहीं बनाए जा रहे हैं. इसीलिए भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक आख़िरकार 15 जनवरी को होने जा रही है, ताकि नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावाली, यहां आकर अपने मतभेद व्यक्त कर सकें. और इसी कारण से, विदेश मंत्री एस जयशंकर को श्रीलंका भेजा गया, व्यापार, सुरक्षा- चीन पढ़ें- और वैक्सीन्स पर बात करने के लिए.
तो, एक ओर भारत अपनी आबादी को टीका लगाने की तैयारी कर रहा है, दूसरी ओर वो अपनी दो कोविड-19 वैक्सीन्स- भारत बायोटेक की देश में ही विकसित कोवैक्सिन, और पुणे के सीरम संस्थान में बनाई जा रही कोविशील्ड- के सहारे अपने पड़ोस से रिश्ते सुधारने की कोशिश भी कर रहा है. आने वाले हफ्तों में, वैक्सीन राष्ट्रवाद का उपहार दक्षिण एशिया के सभी रंगों में लिपटा हुआ आएगा, सिवाय पाकिस्तान के.
वैक्सीन कूटनीति
माना जा रहा है कि भारत दक्षिण एशिया के सभी देशों– अफगानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मॉलदीव्स- और साथ ही विस्तृत पड़ोस के देशों, जैसे म्यानमार, मॉरीशस और सीशिल्स को- वैक्सीन के क़रीब एक करोड़ डोज़ उपहार में देने जा रहा है.
इनमें से कई वैक्सीन समझौतों को, समयोचित ढंग से अंतिम रूप दिया जा रहा है, जबकि इसी बीच चीन भी अपनी कोविड-19 वैक्सीन को, दक्षिण एशिया में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. 6 जनवरी को चीनियों की ओर से आयोजित एक ऑनलाइन वार्ता में, आठ में से पांच देशों ने हिस्सा लिया- भारत, भूटान और मॉलदीव्स शरीक नहीं हुए.
वैश्विक स्तर पर, चीन खुले तौर पर अपने पांच वैक्सीन कैंडिडेट्स को, अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के हथियार के रूप में, इस्तेमाल कर रहा है. दक्षिण पूर्व एशिया में, उसने मलेशिया और फिलीपीन्स से वैक्सीन देने का वादा किया है- हालांकि उसके एक क़रीबी सहयोगी कंबोडिया ने कहा है, कि वो अंतर्राष्ट्रीय कोवैक्स कार्यक्रम का विकल्प चुनेगा. दुबई में, यूएई के शासक शेख़ मोहम्मद बिन राशिद अल मक़तूम ने ख़ुद से, चीन के नेशनल बायोटेक ग्रुप द्वारा किए जा रहे ट्रायल का हिस्सा बनने के लिए वॉलंटियर किया है. उधर टर्की, ब्राज़ील, और मैक्सिको को भी, चीन ने अलग से लाख़ों डोज़ देने का वादा किया है.
फिलहाल के लिए, कम से कम प्री- ऑर्डर्स के मामले में, साइनोवैक और साइनोफार्म जैसी चीनी वैक्सीन्स (मिलकर 50 करोड़ डोज़), होड़ में फाइज़र (50 करोड़ डोज़), और एस्ट्राज़ेनेका (250 करोड़ डोज़) जैसी पश्चिमी वैक्सीन्स से, पिछड़ रही हैं.
लेकिन ये एक लंबा खेल है, जो लंबी दूरी के धावकों के लिए है, और ये बस शुरू भर हुआ है. बेहतर स्वास्थ्य स्थितियों की मांग ने, राष्ट्रों की विदेश नीतियों को एक नई धार दी है. महामारी शायद हम सब को मजबूर कर रही है कि ख़ुद को एक नई और साहसी दुनिया के नियमों के अनुसार ढाल लें.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: Covaxin पर ICMR के शीर्ष विज्ञानी बोले-महामारी के समय Vaccine की मंजूरी प्रक्रिया बदलनी होगी
कितनी घटिया मानसिकता है तुम्हरे यह वैक्सीन मोदी की नहीं देश की है।।।इस बात को मत भूलो ओर नहीं देश के वैज्ञानिकों का अपमान करो।।।।।।देश है तो तुम हो।।।कचरा दिमाग है तुम लोगो का।।।।।