रायपुर: निजी स्कूलों से टक्कर लेने के लिए छ्त्तीसगढ़ सरकार ने इंग्लिश मीडियम के स्कूल खोले हैं. राज्य में पहली बार 50 से अधिक सरकारी अंग्रेजी स्कूल खोले गए जिसके बाद से इसमें एडमिशन कराने वालों की होड़ लग गई.
इस मारामारी को देखते हुए शिक्षा विभाग को एडमिशन बीच में ही रोकना पड़ा है. इतना ही नहीं सरकारी अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में भर्ती के लिए अभिभावकों ने नेताओं की सिफारिशों का भी सहारा लिया है.
छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पहले ही साल दाखिले में भारी मांग देखने को मिली. अधिकारियों के मुताबिक, इसका मुख्य कारण, सस्ती और निजी पब्लिक स्कूलों से भी अच्छी मानी जा रही शिक्षा, योग्य शिक्षकों का स्टाफ, स्कूलों में अत्याधुनिक लाईब्रेरी, कंप्यूटर और साइंस लैब की सुविधाएं हैं.
यही नहीं राज्य में खोले गए इन इंग्लिश मीडियम स्कूलों में नौकरी पाने के लिए प्रदेश के कई निजी स्कूलों के योग्य शिक्षकों ने भी इस स्कूल की तरफ रुख कर लिया है.
राज्य में अब तक छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा संचालित 52 शासकीय अंग्रेजी मीडियम स्कूल पूर्व शिक्षाविद और आईएएस अधिकारी स्वामी आत्मानंद के नाम से खोले गए हैं. इन आधुनिक सुविधा वाले स्कूलों का लोकार्पण सरकार द्वारा 1 नवंबर 2020 को राज्य स्थापना दिवस के दिन किया गया था. लेकिन एडमिशन की प्रक्रिया अगस्त में शुरू कर दी गई थी.
महज दो-तीन महीनों के भीतर करीब 60-65 हजार आवेदन आए लेकिन एडमिशन सिर्फ 28,000 छात्रों को मिला. एडमिशन के लिए ऐसी होड़ लगी कि पेरेंट्स अपने बच्चों के दाखिले के लिए नेताओं के चक्कर भी काटते नजर आए. अधिकारियों ने बताया कि एडमिशन के लिए बढ़ती मांग और स्कूलों में सीमित सीटों को देखते हुए इस वर्ष एडमिशन को रोक दिया गया है.
राज्य स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला ने बताया, ‘सरकारी अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोलने का प्रयास पहले ही साल में बहुत लोकप्रिय रहा. करीब 28,000 छात्रों के दाखिले के बाद लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए एडमिशन रोकना पड़ा.’
शुक्ला आगे कहतें हैं, ‘लगातार एडमिशन के लिए बढ़ती होड़ और सिफारिशों को देखते हुए हमें नए एडमिशन नवंबर में ही रोकने पड़े. इन स्कूलों की गुणवत्ता के मापदंड राज्य में निजी पब्लिक स्कूलों में उपलब्ध सुविधाओं और छात्रों के प्रदर्शन के मद्देनज़र निर्धारित किए गए हैं. निर्धारित संख्या से ज्यादा एडमिशन देकर शिक्षा की गुणवक्ता से समझौता करना भी उचित नही होगा.’
स्कूल शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर आशुतोष चौरे ने बताया, ‘सरकार ने इन स्कूलों में इस शिक्षा सत्र के लिए 1 से 12वीं कक्षा तक करीब 500 सीटें ही निर्धारित की थीं. औसतन 40 सीट प्रत्येक क्लास के लिए रखी गई थीं. लेकिन आवेदकों की तादात काफी ज्यादा होने से दबाव बढ़ने लगा था जिसकी वजह से हमें यह कदम उठाना पड़ा.’
भूपेश बघेल सरकार का अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बारे में विचार का नतीजा यह था कि निजी स्कूलों की उच्च लागत को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से माता-पिता की अक्षमता के एक बड़े हिस्से के कारण सार्वजनिक मांग लगातार बढ़ रही थी.
शुक्ला कहते हैं, ‘आधुनिक दुनिया के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए छात्रों के लिए अंग्रेजी भाषा की अघोषित अनिवार्यता हो गई है. अभिभावकों द्वारा प्राइवेट स्कूलों की फीस वहन कर पाने की असमर्थता के कारण बच्चों को उनकी मनचाही शिक्षा के माध्यम से वंचित नहीं रखा जा सकता. सरकारी अंग्रेजी मीडियम खोलने के पीछे यही मंशा है. हालांकि नए स्कूल खोलने की कोई जल्दी नहीं है. हम योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. स्कूलों के अन्य संस्करणों का बुनियादी ढांचा खड़ा होने के बाद ही रोल आउट किया जाएगा.’
बता दें कि छत्तीसगढ़ से पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2018 में लगभग 5000 सरकारी प्राथमिक अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोला था. योगी सरकार का हिंदी माध्यम स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित करना जल्दबाजी में लिया गया निर्णय साबित हुआ क्योंकि इसके लिए सरकार ने कोई बुनियादी ढांचा तैयार नही किया था.
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सभी 52 स्कूलों में प्रयाप्त बुनियादी सुविधाएं और शिक्षण स्टाफ पहले से ही मौजूद हैं. इसके अलावा यहां 1 से 12वीं क्लास तक पढ़ाई अंग्रेजी में ही होगी.
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स्कूलों में दाखिले के लिए राजनीतिक दबाव
दिप्रिंट द्वारा पूछे जाने पर सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेताओं ने माना कि उनके पास कई अभिभावकों के फोन लगातार दाखिले के लिए आते रहें हैं, कइयों की तो उन्होंने मदद भी की है.
रायपुर के कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय के अनुसार उनके पास एडमिशन की सिफारिश लेकर कई पैरेंट्स आए जिनकी स्थानीय विधायक होने के नाते मदद भी करनी पड़ी.
उपाध्याय ने बताया, ‘यह मेरे लिए भी आश्चर्यजनक बात थी कि रायपुर और दूसरे जिलों को मिलाकर सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में एडमिशन के लिए तकरीबन 100 अभिभावकों ने मुझसे सिफारिश करवाई. हालांकि सभी का एडमिशन नहीं हो पाया. एडमिशन के अलावा बड़ी संख्या में पैरेंट्स ने राज्य भर में इन स्कूलों की संख्या बढ़ाने की मांग भी की है.’
कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है, ‘मैंने स्वयं करीब 50 पैरेंट्स के आग्रह पर स्कूल में एडमिशन के लिए सिफारिश की थी. यदि शासकीय अंग्रेजी मीडियम स्कूल का यह प्रयोग सफल रहा तो मैं यह कह सकता हूं कि आने वाले कुछ सालों के भीतर प्रदेश में 25 प्रतिशत निजी स्कूल बंद हो जाएंगे.’
कहां, कितने स्कूल खुले
अभिभावकों की सरकारी स्कूल के प्रति रुझाव को देखते हुए सरकार अब और स्कूल खोलने की योजना बना रही है. छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पहले प्रयास में 52 स्कूल खोले गए हैं जहां पढ़ाई इसी सत्र 2020-21 से चालू है.
ये स्कूल प्रदेश के 28 जिलों में खोले गए हैं. सबसे ज्यादा 10 स्कूल दुर्ग जिले में, 4-4 स्कूल बिलासपुर और बलरामपुर में और 3-3 स्कूल रायपुर और कोरबा जिलों में खोला गया है. इसके अलावा बेमेतरा, सरगुजा, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही और कोरिया जिलों में 2-2 सरकारी अंग्रेजी मीडियम स्कूल खुले हैं. बाकी सभी जिला मुख्यालयों में एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोला गया है.
हालांकि कक्षाएं ऑनलाइन ही चल रही हैं. चौरे के अनुसार, ‘मांग को देखते हुए विभाग, राज्य में करीब 156 नए अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोलने के लिए बजट का प्रस्ताव भेजेगा. एडमिशन प्रक्रिया भी 15 जून के पहले खत्म कर ली जाएगी. और शैक्षणिक सत्र 2021-22 को भी शुरू कर दिया है.’
बता दें कि प्रदेश में अभी कुल 55 हजार से अधिक प्राथमिक, मिडिल और हायर सेकेंडरी स्कूल हैं लेकिन ये सभी हिंदी मीडियम के हैं.
पहली से आठवीं तक मुफ्त शिक्षा, उसके बाद न्यूनतम फीस
शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में कक्षा एक से कक्षा 8 तक की शिक्षा मुफ्त होगी और उससे ऊपर की कक्षाओं में फीस ₹500-600 के बीच रहेगी.’
अधिकारियों ने यह भी कहा, ‘सरकारी अंग्रेजी स्कूल का स्तर निजी पब्लिक स्कूलों से भी बेहतर होगा.’
स्कूल शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर आशुतोष चौरे दिप्रिंट से कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री स्वयं कई बार कह चुके हैं कि सरकारी अंग्रेजी मीडियम स्कूलों का स्तर निजी स्कूलों से किसी मायने में कम नहीं होना चाहिए. इसलिये अध्यापकों के चयन पर विशेष बल दिया गया है. इन स्कूलों के प्रति विश्वसनीयता का एक मुख्य कारण अध्यापन की गुणवत्ता भी है.’
बता दें की छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार की तर्ज पर ही राज्य में सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने और शिक्षा सस्ती करने के उद्देश्य से राज्य में पहली बार अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोलने का निर्णय 2020 के शुरुआत में लिया था. लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसमें देरी हुई और तारीख को आगे बढ़ा दिया गया.
इसी कड़ी में पहले 52 स्कूल भवनों का लोकापर्ण 1 नवंबर को किया गया.
‘मील का पत्थर साबित होंगे ये स्कूल’
जानकारों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार की अंग्रेजी मीडियम स्कूल की अवधारणा एक मील का पत्थर साबित हो सकती है, जिसमें शासकीय शिक्षा प्रणाली को एक नया आयाम दिया जा रहा है.
शिक्षा का अधिकार फोरम के प्रदेश कन्वीनर गौतम बंदोपाध्याय कहते हैं, ‘इन स्कूलों का स्तर राज्य के किसी भी प्राइवेट स्कूल से कम नहीं है. यह सभी आय वर्ग के अभिवावकों के बच्चों के लिए मुफ्त या सस्ती शिक्षा सुनिश्चित करने का एक बड़ा प्रवेश द्वार है. ये स्कूल दूसरे राज्यों के लिए ट्रेंड सेंटर्स और प्रदेश की शिक्षा प्रणाली के लिए मील का पत्थर साबित होंगे. हालांकि, राज्य सरकार को इसे बनाए रखने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है.’
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