कोलकाता: एक प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरू ये सुनिश्चित करने को तैयार हैं, कि कोलकाता से क़रीब 45 किलोमीटर दूर स्थित, एक प्रभावशाली दरगाह फुरफुरा शरीफ, इस साल होने वाले पश्चिम बंगाल चुनावों में एक अहम भूमिका निभाए.
पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी, 33, ने दिप्रिंट को बताया, कि वो एक राजनीतिक पार्टी बनाएंगे, और चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुक़ाबला करेंगे, क्योंकि ‘उन्होंने सूबे के सांप्रदायिक रूप से बांट दिया है’.
दिप्रिंट को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में, सिद्दीक़ी ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया, कि वो ‘मुसलमानों का उत्थान नहीं बल्कि तुष्टिकरण कर रही हैं’, और ये भी कहा कि वो राज्य में ‘बीजेपी जैसी सांप्रदायिक ताक़त के, घुसने का रास्ता साफ कर रही हैं’. रविवार को ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया, असदुद्दीन ओवैसी ने दरगाह का दौरा किया था, और सिद्दीक़ी से मुलाक़ात की थी.
सिद्दीक़ी ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये उनकी सस्ती तुष्टिकरण नीतियां हैं, जिन्होंने बंगाल में हिंदू-मुसलमानों के बीच एक खाई पैदा कर दी है. हमारे हिंदू भाइयों को लगता है, कि सत्ताधारी पार्टी की हमारे ऊपर कुछ इनायत होती है, और वो वंचित रह जाते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘यही वो धारणा है जिसके चलते तृणमूल कांग्रेस ने, मुसलमानों को एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है. मेरा हिंदू भाई अब मुझसे नफरत करता है, जबकि मेरा कोई दोष नहीं है. और यही वजह है जिसके चलते, वो बीजेपी जैसी सांप्रदायिक ताक़त का सहारा लेते हैं’.
ये पहली बार है जब किसी मुसलमान नेता ने मुख्यमंत्री पर, सांप्रदायिक सियासत करने का आरोप लगाया है. ये एक ऐसा आरोप है जो उनके सियासी विरोधी उनपर लगाते रहते हैं, जिनमें बीजेपी, कांग्रेस और सीपीआई(एम) शामिल हैं.
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एक प्रभावशाली आलोचक
फुरफुरा शरीफ हुगली ज़िले के जांगीपाड़ा में स्थित है. इस दरगाह में सूफी संत हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ी के उपदेशों का पालन किया जाता है, जो ‘दादा हुज़ूर’ के नाम से भी लोकप्रिय हैं. सूबे के मुसलमानों के बीच, इसे एक प्रमुख दरगाह माना जाता है.
पीरज़ादा सिद्दीक़ी सूफी संत के चौथी पीढ़ी के वंशज हैं. कोई राजनीतिक पार्टी बनाने वाले वो पहले धार्मिक नेता होंगे. उनसे ऊंचे दर्जे के उनके चाचा तोहा सिद्दीक़ी ने, 2011 के विधान सभा चुनावों में ममता की हिमायत की थी, लेकिन वो कभी औपचारिक रूप से राजनीति में शामिल नहीं हुए.
माना जाता है कि इस दरगाह का सूबे के, हावड़, हुगली, दक्षिण 24 परगना और दीनजपुर ज़िलों के मुसलमानों पर ख़ासा असर है. इन पांच ज़िले में कम से कम 90 विधानसभा सीटें आती हैं, जहां मुसलमान एक बड़ी ताक़त में हैं.
पिछले एक दशक में, सभी सियासी पार्टियों के नेता, जिनमें सीपीएम, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, यहां तक कि बीजेपी भी शामिल है, दरगाह में हाज़िरी लगाते रहे हैं.
सिद्दीक़ी ने दिप्रिंट से कहा कि राजनीतिक संरक्षण से, उनकी क़ौम को कोई फायदा नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘हर सियासी पार्टी ने, जिसमें कांग्रेस और सीपीएम शामिल हैं, हमें इस्तेमाल किया. लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने ख़ुद से हमारी रक्षक बनकर, हमारा सबसे ज़्यादा नुक़सान किया. हक़ीक़त में उन्होंने हमें ऊपर उठाने के लिए कुछ नहीं किया’. उन्होंने आगे कहा, ‘हमने 2019 में मुख्यमंत्री से अपील की थी, कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ें. लेकिन उसी दिन उन्होंने हमारी पवित्र दरगाह में पुलिस भेज दी, हमारे ऊपर संगीन इल्ज़ाम लगाए, और हम में से बहुत सों को सलाख़ों के पीछे भेज दिया. ये हैं उनकी सियासत’.
सिद्दीक़ी ने कहा कि वो उस गठबंधन का चेहरा होंगे, जो उन्होंने एआईएमआईएम और ‘आठ दूसरी तंज़ीमों’ के साथ मिलकर बनाया है. उन्होंने कहा, ‘हम कई जनजातीय, दलित, और अन्य मुस्लिम संगठनों के साथ बात कर रहे हैं. हमने दबे-कुचले माटुआ समुदायों से भी, हमसे हाथ मिलाने की अपील की है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अभी तक नौ संगठन हैं, जो हमारे साथ आने को सहमत हो गए हैं. अपने मोर्चे के नाम का ऐलान, हम अगले हफ्ते करेंगे’.
सिद्दीक़ी ने कहा कि उनकी पार्टी, कम से कम 44 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी, जबकि नए मोर्चे के दूसरे घटक, दूसरी 45 से 50 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं.
टीएमसी पर हो सकता है दबाव
दिप्रिंट से बात करने वाले राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा, कि नया मोर्चा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की संभावनाओं को नुक़सान पहुंचा सकता है, चूंकि दक्षिण बंगाल की सभी 90 मुस्लिम-बहुल सीटें उसी के पास हैं.
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रबर्ती ने कहा, ‘मालदा और मुर्शिदाबाद में कांग्रेस मज़बूत है. इन ज़िलों में मुसलमानों के बीच सीपीएम का भी अपना वोट बैंक है. ममता का गढ़ दक्षिण बंगाल के मुस्लिम-बहुल ज़िले हैं, और वो कुल मतों का क़रीब 30 प्रतिशत हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर एआईएमआईएम और अब्बास सिद्दीक़ी हाथ मिला लेते हैं, तो दक्षिण बंगाल में ममता का मुस्लिम वोट बैंक बिखर सकता है’.
जाधवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अब्दुल मतीन के अनुसार, जिन्होंने फुरफुरा शरीफ पर व्यापक रिसर्च की है, राज्यभर में क़रीब 2,200 मस्जिदें हैं,जो दरगाह की कमान में हैं, और उनमें से कुछ तो सीधे दरगाह से जुड़ी हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये बंगाल राजनीति का एक प्रमुख स्थल बनी रही है…सभी पार्टियों के वरिष्ठ नेता, चुनावों से पहले पीर साहेब का आशीर्वाद लेने, और मुसलमानों का समर्थन अपने पक्ष में सुनिश्चित करने के लिए, दरगाह आते हैं. पिछले दस सालों में ये रुझान और बढ़ गया है’.
लेकिन, तृणमूल कांग्रेस को लगता है, कि इस सबका उसके चुनावी अवसरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने कहा, ‘बंगाल के मुसलमान ममता बनर्जी के साथ हैं. वो बाहरी लोगों के चक्कर में नहीं पड़ेंगे…वो जानते हैं कि एआईएमआईएम कैसे काम करती है. वो बीजेपी की बी-टीम है’.
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