नई दिल्ली: भारत में स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन कैंडीडेट के संबंध में देश के ड्रग-वॉच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की ओर से नियुक्त विषय विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की है कि इसका सीमित आपातकालीन इस्तेमाल किया जा सकता है, हालांकि, यह अनुमति प्रभावकारिता संबंधी कोई डाटा जारी किए बिना दी गई है.
अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि विषय विशेषज्ञ समिति की मंजूरी का मतलब है कि कोवैक्सिन को सरकार के टीकाकरण अभियान में तब तक शामिल किया जा सकता है, जब तक टीकाकरण के बाद एक निर्धारित समयावधि में प्रतिकूल प्रतिक्रिया की कोई भी घटना सामने न आए. केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने कोविड-19 टीकों के संबंध में सरकार को सलाह और अपनी सिफारिश देने का जिम्मा एसईसी को सौंपा था.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के सहयोग से हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक द्वारा निर्मित यह वैक्सीन 29 जून को ह्यूमन ट्रायल शुरू करने के समय से ही कई बार विवादों में रही है, और आपातकालीन इस्तेमाल की सिफारिश इसमें नवीनतम है.
दिप्रिंट आपको कोवाक्सिन के बारे में वो सारी जानकारी दे रहा है जो आपके लिए जानना जरूरी है—ये कैसे काम करती से लेकर इससे जुड़े विवादों तक..
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यह कैसे काम करती है
कोवैक्सिन एक निष्क्रिय वैक्सीन से बनी है, जिसका अर्थ है कि टीका एक ऐसे वायरस से बना है जिसे मारा जा चुका है और जो अब संक्रमण का कारण नहीं बन सकता. जब शरीर में इंजेक्शन के जरिये इसे लगाया जाता है, तो प्रतिरक्षा कोशिकाएं निष्क्रिय होने के बावजूद इस वायरस को पहचान सकती हैं, और एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सक्रिय हो जाती है.
इस वैक्सीन को एनआईवी, पुणे ने वायरस के एक भारतीय स्ट्रेन को अलग करके बनाया था.
ट्रायल के अब तक के नतीजे
22 दिसंबर को भारत बायोटेक ने अपने पहले चरण के ट्रायल के फॉलोअप के साथ दूसरे चरण के ट्रायल का डाटा एक नॉन पीर रिव्यूड वेबसाइट पर जारी किया था.
डाटा दर्शाता है कि टीका सुरक्षित है, जिसमें कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया. इस अध्ययन में ये ‘परिकल्पना’ भी शामिल की गई कि वैक्सीन के कारण उत्पन्न टी-सेल और बी-सेल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ‘टीकाकरण की दूसरी खुराक के बाद कम से कम 6 से 12 महीने तक बनी रह सकती है.”
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सुरक्षित होने संबंधी नतीजों के मूल्यांकन के लिए तीसरे चरण का ट्रायल व्यापक स्तर पर किए जाने की जरूरत होगी.
भारत बायोटेक को 23 अक्टूबर को 25,800 वालंटियर पर तीसरे चरण का ट्रायल करने की अनुमति दी गई थी—जो देश में प्रभावकारिता के आकलन का अब तक सबसे बड़ा परीक्षण बन गया.
22 दिसंबर को कंपनी ने घोषणा की कि उसने 13,000 से अधिक वालंटियर की भर्ती के बाद आधा रास्ता पार कर लिया है.
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विवाद
वैक्सीन को लेकर 2 जुलाई को उस समय विवाद खड़ा हो गया जब आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव के हस्ताक्षर वाला एक पत्र सामने आया. पत्र में उन्होंने मुख्य जांचकर्ताओं से 15 अगस्त तक वैक्सीन को लॉन्च करने के उद्देश्य से परीक्षण के सारे चरण पूरे करने को कहा था.
बाद में कोई समयसीमा निर्धारित किए जाने की बात से इनकार करते हुए आईसीएमआर ने कहा, ‘हमारे आंतरिक पत्राचार को गलत समझा गया. हमने केवल ये कहा था कि हम 15 अगस्त तक टीका उपलब्ध होने की आकांक्षा रखते हैं और यह कोई समयसीमा नहीं है.’
दिप्रिंट ने 28 दिसंबर को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया था कि भारत बायोटेक ने प्रमुख जांचकर्ताओं को वालंटियर को यह बताकर नामांकन के लिए प्रोत्साहित करने की सलाह दी कि तीसरे चरण के ट्रायल से उन्हें कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा हासिल हो जाएगी.
प्रमुख जांचकर्ताओं को सरकार की तरफ से भेजे दस्तावेज में कहा गया है, ’50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को कोविड-19 वैक्सीन लगाने में कई महीने लग सकते हैं.’ साथ ही जोड़ा गया है, ‘इसलिए, कोवाक्सिन के तीसरे चरण की प्रभावकारिता में भाग लेना उचित होगा और कोविड-19 से खुद को बचाने के लिए टीका लगवाएं.’
एसईसी ने शनिवार को सिफारिश की कि प्रभावकारिता संबंधी डाटा जारी नहीं किए जाने के बावजूद वैक्सीन का सीमित आपातकालीन उपयोग किया जा सकता है—इसका मतलब है कि अब तक वैक्सीन की प्रभावकारिता साबित करने वाले अंतरिम विश्लेषण समेत कोई भी डाटा पब्लिक डोमेन में नहीं है,
भारत बायोटेक ने ईयूए के लिए पहली बार 7 दिसंबर को आवेदन किया था, और तब ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की तरफ से नियुक्त सरकारी विशेषज्ञ पैनल ने तीसरे चरण के विभिन्न परीक्षणों से संबंधित अतिरिक्त डाटा लेकर आने को कहा था.
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