नई दिल्ली: स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के भतीजे, जो केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ, सिंघु बॉर्डर पर जमे हज़ारों आंदोलनकारी किसानों के साथ शामिल हो गए, ने कहा कि किसानों को किसी ने गुमराह नहीं किया, चूंकि वो ‘पढ़े लिखे और अपने अधिकारों से भलि भांति अवगत हैं’.
64 वर्षीय अभय सिंह संधू, जो चंडीगढ़ में एक बाग़बानी विशेषज्ञ हैं, अपनी पत्नी के साथ पिछले दस दिन से सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
सत्तारूढ़ व्यवस्था के इन दावों के बारे में पूछने पर, कि प्रदर्शनकारियों को गुमराह किया जा रहा है, संधू ने कहा कि किसान अपने अधिकारों से भलि भांति अवगत हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये किसान पहले के किसानों की तरह नहीं हैं, जो अशिक्षित थे. ये किसान पढ़े लिखे हैं, अधिकारों से भलि भांति जागरूक हैं, और कोई इन्हें गुमराह नहीं कर रहा है’.
संधू ने कहा कि ये प्रदर्शन उस विरोध का प्रतिबिंब हैं, जो ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के नाम से लोकप्रिय हुआ, और जिसे उनके दादा, और भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने, 1906-1907 में अंग्रेज़ों द्वारा पारित, तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ शुरू किया था.
संधू ने दिप्रिंट से कहा, ‘इनक़लाब मेरे परिवार की विरासत का हिस्सा रहा है. 1906 में, अभी की तरह, अंग्रेज़ों ने कुछ ऐसे क़ानून पास किए थे, जो किसानों के लिए हानिकारक थे. उस समय मेरे दादा अजीत सिंह ने, लाला लाजपत राय और कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन क़ानूनों को वापस कराने के लिए, ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन शुरू किया था. इन तीन क़ानूनों के साथ वही चीज़ अब फिर हो रही है’.
2020 के विरोध 1906 के आंदोलन का प्रतिबिंब हैं
1906 में अंग्रेज़ों ने जो तीन क़ानून पास किए थे, वो थे- दोआब बाड़ी एक्ट, पंजाब भूमि उपनिवेशन एक्ट, और पंजाब भूमि हस्तांतरण एक्ट.
उन क़ानूनों से किसानों में नाराज़गी फैल गई, जिन्हें लगा कि इनसे वो अपनी ही ज़मीनों पर, बंधुआ मज़दूर बनकर रह जाएंगे. इसके नतीजे में पूरे पंजाब में अशांति फैल गई, और ब्रिटिश सरकार को आख़िरकार उन तीन क़ानूनों को रद्द करना पड़ा.
उस आंदोलन की अगुवाई अजीत सिंह, किशन सिंह (भगत सिंह के पिता) और घसीटा राम ने की, जिसने अंग्रेज़ों के खिलाफ इनक़लाब की चिंगारी सुलगा दी. बाद में ये आंदोलन पगड़ी संभाल जट्टा के नाम से लोकप्रिय हुआ, जब बांके दयाल की इसी नाम की कविता, 1907 में एक रैली में पढ़ी गई.
सिंघु बॉर्डर पर भगत सिंह, और पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन को, अभी भी अभिव्यक्ति मिलती रहती है. प्रदर्शन स्थलों पर स्वतंत्रता सेनानी पर पोस्टर और किताबें उपलब्ध हैं, और हर कोने से रह रहकर, विशेष व्यक्ति विषयक गीतों की आवाज़ गूंजने लगती है.
संधू ने कहा, ‘उस आंदोलन की गूंज पंजाब के लोगों में आज भी सुनाई देती है, और यहां के आंदोलनकारी भी भगत सिंह से प्रेरित हैं’.
उन्होंने ये भी कहा, ‘शहीद भगत सिंह के परिवार का सदस्य होने के नाते, हम उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाने, और आंदोलन जारी रखने के लिए उनका हौसला बढ़ाने यहां आए हैं’.
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प्रदर्शन में शामिल होने वाले भगत सिंह परिवार के अकेले सदस्य
भगत सिंह पांच भाईयों में सबसे बड़े थे- उनके दूसरे भाई थे कुलदेव सिंह, कुलतार सिंह, राजेंदर सिंह और रणबीर सिंह.
संधू, जो कुलदेव सिंह के बेटे हैं, स्वतंत्रता सेना के परिवार के अकेले सदस्य हैं, जो प्रदर्शन में शामिल हुए हैं.
संधू ने कहा, ‘मेरे परिवार के कुछ सदस्य अभी भी खेती में लगे हैं, और केवल मैं अपनी पत्नी के साथ, किसानों का समर्थन करने के लिए यहां आया हूं’.
उनके अनुसार, उनके चाचा कुलतार सिंह के दो बेटे, उत्तर प्रदेश में खेती करते हैं.
भगत सिंह के भाई राजेंदर सिंह के दो बेटे थे, और दोनों की मौत हो चुकी है. सबसे छोटे भाई रणबीर सिंह का बेटा, सेना का एक पूर्व मेजर है, और बेटी कनाडा में रहती है.
ख़ुद संधू के तीन भाई-बहन हैं- एक बड़े भाई, जो गुज़र चुके हैं, और दो छोटी बहनें, जिनमें एक पंजाब में रहती है, और दूसरी कनाडा में है.
संधू ने कहा कि ये क़ानून ‘किसान विरोधी हैं और इसीलिए, मैं किसानों के समर्थन में, और उनके अधिकारों की लड़ाई के लिए यहां आया हूं’.
उन्होंने कहा, ‘एक बाग़वान विज्ञानी होने के नाते, मेरा मंडी व्यवस्था के साथ कोई अनुभव नहीं रहा है, लेकिन बरसों से मंडी व्यवस्था ने किसानों को, न केवल उनकी उपज के सही दाम दिलाए हैं, बल्कि फसल कटने और उसकी बिक्री के बीच के छह महीने के दौरान, उन्हें सहारा भी दिया है’.
संधू ने कहा, ‘हमने देखा है कि अनुबंध खेती में, ठेकेदार उपज तभी ख़रीदते हैं जब बाज़ार भाव ऊंचे होते हैं. अगर बाज़ार भाव नीचे हों, तो किसान की उपज नहीं खरीदी जाती, और वो लाचार हो जाता है’. संधू सिंघू बॉर्डर के पास एक होटल में रह रहे हैं, लेकिन अपना पूरा दिन प्रदर्शन स्थल पर गुज़ारते हैं.
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