scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमविदेशनेपाल में राजनीतिक संकट के बीच चीनी राजदूत प्रचंड से मिले, लगाए जा रहे अलग-अलग कयास

नेपाल में राजनीतिक संकट के बीच चीनी राजदूत प्रचंड से मिले, लगाए जा रहे अलग-अलग कयास

‘माय रिपब्लिका’ समाचारपत्र ने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के करीबी सूत्रों के हवाले से बताया कि प्रचंड के आवास, खुमलटार में हुई यह बैठक करीब 30 मिनट चली. एनसीपी में टूट के बाद मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर इसमें चर्चा हुई.

Text Size:

काठमांडू: चीनी राजदूत होउ यांकी ने बृहस्पतिवार को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ से मुलाकात की.

उल्लेखनीय है कि प्रचंड ने प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली को पार्टी के संसदीय दल के नेता और अध्यक्ष के पदों से हटाने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी पर अपना नियंत्रण होने का दावा किया है.

‘माय रिपब्लिका’ समाचारपत्र ने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के करीबी सूत्रों के हवाले से बताया कि प्रचंड के आवास, खुमलटार में हुई यह बैठक करीब 30 मिनट चली. एनसीपी में टूट के बाद मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर इसमें चर्चा हुई.

प्रचंड गुट के एक करीबी नेता विष्णु रिजाल ने ट्वीट किया, ‘चीन की राजदूत होउ यांकी ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ से आज सुबह मुलाकात की. उन्होंने दोनों देशों की द्विपक्षीय चिंताओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की.’

‘काठमांडू पोस्ट’ ने प्रचंड के सचिवालय के एक सदस्य के हवाले से अपनी खबर में दावा किया है कि चर्चा अवश्य ही ‘समकालीन राजनीतिक घटनाक्रमों के इर्द-गिर्द केंद्रित रही होगी.’

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से उनके शीतल निवास में मंगलवार को मिलने के दो दिनों बाद चीनी राजदूत ने प्रचंड से मुलाकात की है.

‘माय रिपब्लिका’ की खबर में कहा गया है कि समझा जाता है कि होउ ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने के कदम और मध्यावधि चुनावों की घोषणा के बाद के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की होगी.

यह पहला मौका नहीं है जब चीनी राजदूत ने संकट के समय में नेपाल के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप किया है.

होउ ने मई में, राष्ट्रपति भंडारी, प्रधानमंत्री और प्रचंड सहित एनसीपी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ अलग-अलग बैठकें की थी. उस वक्त भी ओली पर इस्तीफे के लिए दवाब बढ़ रहा था.

जुलाई में, ओली की कुर्सी बचाने के लिए चीनी राजदूत ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रचंड, माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनल और बामदेव गौतम सहित कई शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी. दरअसल, ओली चीन के प्रति झुकाव रखने को लेकर जाने जाते हैं.

कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने चीनी राजदूत की सत्तारूढ़ दल के नेताओं के साथ सिलसिलेवार मुलाकातों को नेपाल के आंतरिक राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप बताया है.

नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के विरोध में दर्जनों छात्र कार्यकर्ताओं ने यहां चीनी राजदूत के सामने प्रदर्शन किया. उन्होंने चीन विरोधी नारे लिखे तख्तियां ले रखी थी.

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में नेपाल में चीन की राजनीतिक पैठ बढ़ी है. दरअसल, चीन ‘ट्रांस-हिमालयन मल्टी डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क’ बनाने सहित ‘बेल्ट एंड रोड इनिश्एिटव’ (बीआरआई) के तहत अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है.

निवेश के अलावा, नेपाल में नियुक्त चीनी राजदूत होउ ने ओली के लिए समर्थन जुटाने की खुली कोशिश की है.

नेपाल में बीते रविवार को राजनीतिक संकट पैदा हो गया जब राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और प्रधानमंत्री ओली की सिफारिशों पर मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी. इसपर, सत्तारूढ़ दल के एक हिस्से ने और नेपाली कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने अपना विरोध दर्ज कराया.

सत्तारूढ़ पार्टी में अंदरूनी कलह चरम पर पहुंच जाने के बाद यह कदम उठाया गया था. एनसीपी में दो गुटों के बीच महीनों से सत्ता के लिए रस्साकशी चल रही थी, जिनमें से एक गुट का नेतृत्व ओली (68), जबकि दूसरे गुट का नेतृत्व प्रचंड (66) कर रहे हैं.

नेपाल के उच्चतम न्यायालय ने संसद को भंग करने के प्रधानमंत्री ओली के कदम को चुनौती देने वाली सभी रिट याचिकाओं को बुधवार को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया.

सत्तारूढ़ दल के प्रचंड नीत गुट ने प्रधानमंत्री ओली की जगह उन्हें (प्रचंड को) संसदीय दल का नया नेता चुना है.

इससे पहले, मंगलवार को प्रचंड नीत गुट की केंद्रीय समिति की एक बैठक में ओली को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था. प्रतिनिधि सभा को असंवैधानिक तरीके से भंग करने को लेकर ओली के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का भी बैठक में फैसला लिया गया.

सत्तारढ़ पार्टी एक तरीके से अब विभाजित हो गई है. ओली नीत सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड नीत सीपीएन-माओवादी सेंटर के 2018 में विलय के बाद इस पार्टी का गठन हुआ था.

दोनों गुटों ने पार्टी की आधिकारिक मान्यता एवं चुनाव चिह्न को अपने पास रखने के लिए पार्टी पर नियंत्रण की रणनीतियां बनाने की कोशिशें तेज कर दी है.

share & View comments