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Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंससेना का प्रस्तावित ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ भर्ती मॉडल नौसेना और भारतीय वायुसेना में भी अपनाया जा सकता है

सेना का प्रस्तावित ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ भर्ती मॉडल नौसेना और भारतीय वायुसेना में भी अपनाया जा सकता है

सेना के प्रति ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करने, अधिकारियों की रिक्त जगहें भरने और पेंशन का बोझ घटाने के उद्देश्य से तीन वर्षीय स्वैच्छिक भर्ती योजना तैयार की जा रही है.

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नई दिल्ली: सेना की तरफ से पहली बार ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ मॉडल प्रस्तावित किए जाने के कुछ महीने बाद ही भारत के रक्षा प्रतिष्ठान वायु सेना और नौसेना में भी भर्ती के लिए यही मॉडल अपनाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

एक रक्षा अधिकारी ने बताया, ‘हम इस मॉडल का विस्तार कर तीनों सेवाओं को इसके दायरे में लाने की योजना बना रहे हैं. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को इसी योजना या किसी समान योजना के ही तहत लाने पर भी विचार हो रहा है.’ साथ ही जोड़ा कि विस्तृत ब्यौरा तैयार करने और आकलन का काम चल रहा है, इसलिए इसे अगले साल के मध्य तक लागू किया जा सकता है.

सूत्रों ने कहा कि आने वाले समय में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होने की क्षमता को देखते हुए भारत का राजनीतिक नेतृत्व इस योजना को लेकर खासा उत्सुक है, इसलिए इसकी रूपरेखा तैयार करने पर जोर दे रहा है. उन्होंने कहा कि अगले कुछ वर्षों में योजना का इस तरह विस्तार करने का विचार है कि कुल सैन्य बल की 40 प्रतिशत भर्ती इसके माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सके.

हालांकि, सैन्य सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि योजना लागू करने पर अभी कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है और विचार-विमर्श की प्रक्रिया ही चल रही है.

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने इस साल के शुरू में कहा था कि ये अवधारणा अभी आरंभिक चरण में है और इस पर अध्ययन की जरूरत है कि यह कितनी व्यावहारिक होगी.


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प्रस्तावित मॉडल क्या है?

अभी सशस्त्र बलों का हिस्सा बनने के लिए नियमित परमानेंट कमीशन के अलावा एकमात्र विकल्प शॉर्ट सर्विस कमीशन है, जिसमें 14 साल की अवधि के लिए अधिकारियों की भर्ती होती है. बड़ी संख्या में एसएससी अधिकारी अंततः पात्रता के आधार पर पर्मानेंट कमीशन का विकल्प चुनते हैं.

सेना ने मई में भर्ती के लिए ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ मॉडल का प्रस्ताव रखा था, जो युवाओं को तीन वर्ष के लिए स्वेच्छा से अस्थायी तौर पर सेना में शामिल होने का मौका देगा. इसका उद्देश्य सेना में भर्ती के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करना, अधिकारियों की रिक्तियां भरना और अंतत: रक्षा पेंशन का बोझ घटाना है, जो ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना लागू होने के बाद बढ़कर रक्षा बजट का लगभग 30 प्रतिशत हो गया है.

रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस योजना के लिए जिन नामों पर विचार किया जा रहा है उनमें से एक ‘अग्निपथ’ है, जिसमें वालंटियर्स को ‘अग्निवीर’ कहा जाएगा.

जैसा दिप्रिंट ने रिपोर्ट दी थी शुरुआत में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी है, जिसमें पहले बैच में 100 अधिकारियों और 1,000 अन्य रैंक के कर्मियों को शामिल किए जाने की संभावना है. इस पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर ही मॉडल का मूल्यांकन और परीक्षण किया जाएगा.

‘सेना में इसके जरिये करीब 40% भर्ती की जा सकता है’

रक्षा पेंशन बिल घटाने के लिए सीडीएस रावत की अध्यक्षता वाले सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने प्रस्ताव दिया था कि 20-25 वर्षों की सेवा के साथ पीएमआर (समयपूर्व सेवानिवृत्ति) लेने वाले अब मौजूदा पेंशन के केवल 50 प्रतिशत के हकदार होंगे. अब तक, नियमानुसार अधिकारियों को आखिरी में उठाए गए अपने वेतन के 50 फीसदी के बराबर पेंशन मिलेगी जिसके लिए उन्हें 20 साल की सेवा पूरी करनी होगी.

टूर ऑफ ड्यूटी के मूल प्रस्ताव में कहा गया है कि योजना के तहत भर्ती किए जाने वाले हर एक अधिकारी पर कुल 80-85 लाख रुपये की राशि खर्च होगी, जिसमें कमीशन पूर्व प्रशिक्षण, वेतन, भत्ते, ग्रेच्युटी, प्रस्तावित सेवेरेंस पैकेज, छुट्टियों के बदले भुगतान, और अन्य व्यय शामिल हैं. अभी एसएससी अधिकारी पर 5.12 करोड़ रुपये की राशि व्यय की जाती है, जो 10 साल बाद सेवानिवृत्त होता है, और 14 साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी पर 6.83 करोड़ रुपये खर्च आता है. प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे केवल 1,000 जवानों को तैयार करने पर ही 11,000 करोड़ की बचत हो सकती है और इस राशि को सेना के आधुनिकीकरण पर लगाया जा सकता है.

एक दूसरे रक्षा अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पेंशन बिल और घटाने के लिए कुछ वर्षों में योजना के विस्तार पर भी विचार हो रहा है ताकि इसके माध्यम से सेना के 40 प्रतिशत कर्मियों की भर्ती सुनिश्चित की जा सके. अधिकारी ने सेना का जिक्र एक उदाहरण के तौर पर किया क्योंकि यह तीनों सेवाओं में सबसे बड़ी है, जिसकी कुल ताकत लगभग 14 लाख है.

अधिकारी ने कहा, ‘सेना के लगभग 65,000 कर्मचारी हर साल सेवानिवृत्त होते हैं. इस पर विचार किया जा रहा है कि इस योजना के तहत कुछ निश्चित संख्या में कर्मियों की भर्ती की जाए और यह संख्या सशस्त्र बलों में एक तय प्रतिशत पर पहुंचने तक हर साल लगातार बढ़ाई जाती रहे.

अधिकारी ने कहा कि इस तरह से बड़े पैमाने पर भर्ती में लगभग 15 वर्षों का समय लग सकता है.

‘टूर’ के लिए क्या करना होगा

हालांकि, चयन के तौर-तरीके को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है, लेकिन सूत्रों ने बताया कि लिखित परीक्षा और एक कट-ऑफ प्रतिशत-अधिकारियों के लिए स्नातक और जवानों के लिए 12वीं में—निर्धारित करने पर विचार किया जा रहा है लेकिन साक्षात्कार भर्ती प्रक्रिया का हिस्सा होगा.

शुरुआती चरण में चयनित अफसरों को चेन्नई स्थित ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी और जवानों को संबंधित रेजिमेंटल सेंटरों में प्रशिक्षण देने की योजना है. पायलट प्रोजेक्ट के लिए चयनित रेजिमेंटल सेंटरों का नाम तय किया जाना बाकी है.

एक बार प्रशिक्षण पूरा होने पर इन कर्मियों को उनकी संबंधित इकाइयों और मैदान में भेजा जाएगा. हथियार आवंटन और जिम्मेदारी तय करने के बाबत तौर-तरीकों पर अलग से विचार होगा, और यह स्वीकृत अंतिम आंकड़ों या प्रतिशत पर निर्भर करेगा.

एक सूत्र ने कहा, ‘दरअसल, यह एक ऐसा कदम हो सकता है जिसका उद्देश्य देश में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करना होगा.’

हालांकि, प्रशिक्षित किए जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के साथ प्रशिक्षण पर कुल व्यय बढ़ जाएगा.

ऊपर उद्धृत दूसरे सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘यद्यपि एक पूरे देश के तौर पर इस काम के लिए तमाम प्रशिक्षित, अनुशासित और प्रेरित युवा होंगे, बलों में निरंतरता और रेजिमेंटेशन की कमी सामने आ सकती है. यह देखना होगा कि इस पर कैसे काबू पाया जाएगा.

एक अन्य सूत्र ने कहा कि सीएपीएफ के लिए भी इसी तरह की योजना पर विचार किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हमने इस कदम पर सीएपीएफ से टिप्पणियां मांगी हैं, जो कि आगे किसी फैसले में निर्णायक होंगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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