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Friday, 22 November, 2024
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मेडिकल विशेषज्ञों ने कहा- MBBS कोर्स की अवधि कम करने से गुणवत्ता होगी खराब

सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में एक मंत्री समूह ने साढ़े पांच साल के एमबीबीएस कोर्स को एक साल कम करने की सिफारिश की है.

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नई दिल्ली: एक सरकारी समिति ने साढ़े पांच साल के एमबीबीएस कोर्स की अवधि, एक साल कम करने की सिफारिश की है. लेकिन देश भर में मेडिकल एक्सपर्ट्स और शिक्षकों का मानना है कि इस कोर्स को अब और छोटा नहीं किया जा सकता.

फिलहाल, एमबीबीएस डिग्री पूरी करने के लिए साढ़े चार साल की पढ़ाई और एक साल की इंटर्नशिप करनी पड़ती है. लेकिन आयुष मंत्री श्रीपद येसो नायक की अध्यक्षता में स्वास्थ्य पर बने एक मंत्री समूह (जीओएम) ने सुझाव दिया है कि कोर्स को घटाकर साढ़े चार साल का कर दिया जाना चाहिए जिसमें छह महीने की इंटर्नशिप अवधि शामिल हो.

जैसा कि दिप्रिंट ने 8 दिसंबर को खबर दी थी, ये सिफारिशें ‘कोविड-19 के बाद के भारत में, हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने के लिए, विपत्ति को अवसर में बदलना’ शीर्षक से एक रिपोर्ट में दी गई हैं, जो अक्टूबर में सरकार को पेश की गई.

कोर्स की अवधि कम करने के अलावा, रिपोर्ट में सभी डॉक्टरों के लिए ग्रामीण इलाक़ों में दो साल की अनिवार्य सेवा की सिफारिश भी की गई है.

लेकिन मेडिकल एक्सपर्ट्स मंत्री समूह की सिफारिशों से सहमत नहीं हैं.

एम्स भुवनेश्वर की निदेशक डॉ बी गीजांतलि के अनुसार, कोर्स पहले ही बहुत छोटा है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘अभी तो मुझे नहीं लगता कि हम एमबीबीएस कोर्स को और छोटा कर सकते हैं. ये अभी सबसे छोटा है क्योंकि बहुत सारा चीज़े हैं जिसे सिखाया जाना होता है’.

डॉ गीतांजलि ने आगे कहा, ‘पाठ्यक्रमों को आत्मसात करना होता है और बहुत से कौशल सीखने होते हैं. उसके अलावा सही रवैया सिखाने की भी ज़रूरत होती है’.

उन्होंने कहा कि मेडिकल डिग्री के लिए, समग्र शिक्षण की ज़रूरत होती है. ‘हम एक पूर्ण-विकसित कोर्स की तलाश में हैं, जो समग्र हो और छात्रों को सिखा सके कि सही इलाज कैसे किया जाए, बीमारियों को कैसे रोका जाए और अच्छे स्वाथ्य को कैसे बढ़ावा दिया जाए. ये सिर्फ इलाज की बात नहीं है, हम ऐसे डॉक्टर्स चाह रहे हैं जो बढ़ावा दें, रोकथाम करें और इलाज करें’.


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‘इंसानी जीवन के मामले में क्वॉलिटी से समझौता नहीं होना चाहिए’

कैंसर विशेषज्ञ और दिल्ली एम्स के पूर्व डीन, डॉ पीके जुल्का ने दिप्रिंट से कहा कि एमबीबीएस बस एक बेसिक मेडिकल डिग्री है और इसे छोटा करना कोई अच्छा विचार नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘एमबीबीएस के लिए 4.5 साल और एक साल इंटर्नशिप का विचार सही है. कोर्स छोटा करने का ये मतलब नहीं है कि आप अच्छे डॉक्टर तैयार कर रहे हैं’.

डॉ जुल्का ने ये भी कहा कि मेडिकल छात्रों में तनाव का स्तर पहले ही बहुत ऊंचा है और शिक्षा की क्वॉलिटी से समझौता करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है.

उन्होंने कहा, ‘हमारा वास्ता इंसानी ज़िंदगी से है, हमें क्वॉलिटी से समझौता नहीं करना चाहिए’.

कई हेल्थ एक्सपर्ट्स ने भी रिपोर्ट की सिफारिश की आलोचना की है जिसमें इंटर्नशिप अवधि को एक साल से घटाकर, छह महीना करने को कहा गया है.

महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज इंदौर की डीन, डॉ ज्योति बिंदल का कहना था, ‘अगर आप देखें कि इंटर्नशिप के इन 12 महीनों को कैसे बांटा गया है तो आप पाएंगे कि छात्रों को अलग-अलग विभागों में भेजा जाता है’.

उन्होंने आगे कहा: ‘आप इंटर्नशिप को घटाकर छह महीना कैसे कर सकते हैं? जब तक आप कुछ विभागों पर समझौता न करें. इसलिए, इंटर्नशिप एक साल की ही रहनी चाहिए’.


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ग्रामीण इलाकों में तैनाती

लेकिन कुछ डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में अनिवार्य तैनाती के पक्ष में थे जिसकी सिफारिश मंत्री समूह ने भी की थी.

असम में गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ अभिजीत सरमा ने कहा, ‘ये एक अच्छा कदम है. मैं इसकी वकालत करता हूं कि डॉक्टरों को देहात में जाकर मरीज़ों को देखना चाहिए’.

उन्होंने आगे कहा, ‘डॉक्टर-मरीज़ अनुपात में भारी अंतर है. लेकिन अगर हम अपनी ग्रामीण आबादी का डॉक्टरों से इलाज करा पाएं तो ये एक बहुत अच्छा कदम साबित होगा’.

लेकिन, डॉ गीतांजलि ने कहा कि डॉक्टरों को ग्रामीण इलाकों में तैनात करने का सिस्टम पहले से ही मौजूद है.

मौजूदा सिस्टम के मुताबिक, सरकारी कॉलेजों के पोस्टग्रेजुएट कोर्स में दाखिला लेने के समय, छात्रों को एक बांड भरना होता है कि कोर्स पूरा करने के बाद वो सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में सेवाएं देंगे. लेकिन ये सिस्टम सभी राज्यों में एक समान नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘बांड तो होता है लेकिन समस्या ये है कि आप कुछ भी नियम बना सकते हैं लेकिन लोग उन्हें तोड़ने या उनसे बच निकलने का रास्ता निकाल लेंगे’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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