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Wednesday, 1 May, 2024
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जामिया हिंसा के 1 साल बाद – 4 मामलों में दायर की गई चार्जशीट, छात्रों को पुलिस के खिलाफ कार्रवाई का है इंतजार

जामिया छात्रों के मार्च में पत्थर-बाज़ी हुई, और पुलिस ने आंसू गैस का सहारा लिया. लेकिन फिर पुलिस ने लाइब्रेरी में छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया.

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नई दिल्ली: ये एक साल पहले, 15 दिसंबर 2019 था, जब नए नागरिकता (संशोधन) एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान, दिल्ली पुलिस जामिया मिल्लिया इस्लामिया परिसर की लाइब्रेरी में घुस आई, और छात्रों पर लाठी-चार्ज कर दिया.

सीएए और भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, एक्ट के संसद में पारित होने के कुछ समय बाद ही, पहली बार 13 दिसंबर 2019 को शुरू हुए थे. 15 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया से संसद तक छात्रों का एक मार्च निकाला गया, जबकि जामिया टीचर्स एसोसिएशन ने भी, परिसर में एक प्रदर्शन किया.

लेकिन, जल्द ही स्थिति हिंसक हो गई, जब पत्थरबाज़ी होने पर, पुलिस ने आंसू गैस के गोले इस्तेमाल किए. पचास छात्रों को हिरासत में ले लिया गया; बहुत से छात्रों ने इल्ज़ाम लगाया, कि पुलिस ने उनके खिलाफ बहुत ज़्यादा बल प्रयोग किया.

और इस तरह शुरू हुआ, सीएए और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ महीनों तक चलने वाला आंदोलन, जो तब जाकर थमा जब कोविड-19 महामारी का प्रकोप सामने आ गया. लेकिन एक साल हो जाने के बाद भी, 15 दिसंबर को हुए लाठीचार्ज की यादें घूमिल नहीं हुई हैं- ख़ासकर मोहम्मद मिनहाजुद्दीन जैसे शख़्स के लिए, जिन्होंने उस रोज़ अपनी एक आंख गंवा दी.

मिनहाज, जो उस समय क़ानून के छात्र थे, जामिया में पुरानी लाइब्रेरी के दूसरे फ्लोर पर, अपना एक पेपर पूरा कर रहे थे, जब उन्हें लोगों के पीटे जाने, और शीशों के टूटने की आवाज़ें सुनाई दीं. उन्होंने अपनी किताबें छोड़ीं और छिपने की जगह ढूंढने लगे. लेकिन उनका आरोप है कि दिल्ली पुलिस के लोग अंदर घुस गए, और उन छात्रों को भी मारने लगे, जो विरोध नहीं कर रहे थे.

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मिनहाज ने तो यहां तक कहा, कि सीएए के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन का ‘वांछित परिणाम नहीं निकला था’. लेकिन उनका ज़्यादा बड़ा सवाल ये है, कि कोई अपराध किए बिना, वो इसका शिकार कैसे बन गए.

उसने कहा, ‘सीएए-एनआरसी की बहस बाद के लिए है. छात्रों को इस तरह घायल करना कहां तक जायज़ है? सरकार हर किसी को दबाने की कोशिश करती है, जो उसके खिलाफ बोलता है’.


य़ह भी पढ़ें: दिल्ली में हिंसक हुआ ‘नागरिकता कानून’ विरोधी प्रदर्शन, जामिया छात्रों ने लगाया बदनाम करने का आरोप


बर्बरता

दिल्ली पुलिस की ‘बर्बरता’ का विरोध करने वाले, मिनहाजुद्दीन अकेले नहीं हैं

जामिया की पूर्व छात्रा अख़्तरिस्ता अंसारी, जिनका अपने दोस्त को दिल्ली पुलिस से बचाने का, 15 दिसंबर का विडियो वायरल हो गया था, ने कहा: ‘हम उसकी बिल्कुल अपेक्षा नहीं कर रहे थे. बहुत भयानक था. हमने बहुत विरोध प्रदर्शन देखे हैं, लेकिन इस तरह की बर्बरता पहले कभी नहीं देखी, ऐसा नहीं था कि वो बस हमें तितर-बितर करने की कोशिश कर रहे थे, वो सच में छात्रों को पीट रहे थे.

लदीदा फरज़ाना ने, जो उस विडियो में भी थीं, आगे कहा: ‘जब उन्होंने (पुलिस) ने छात्रों पर हमला किया, वो हमें पाकिस्तानी और आतंकवादी कह रहे थे. वो हमारी पहचान पर एक हमला था, और मुस्लिम क़ौम के लिए एक निर्णायक मोड़ था’. जामिया में दूसरे वर्ष की छात्रा फरज़ाना, अब चार महीने की गर्भवती हैं, और अपनी पढ़ाई ऑनलाइन जारी रखे हुए हैं.

जामिया के प्रॉक्टर वसीम अहमद ख़ान ने भी पुलिस पर, अंधाधुंध तरीक़े से छात्रों को पीटने का आरोप लगाया.

ख़ान ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक कॉनफ्रेंस चल रही थी, वीसी ऑफिस में एक चयन समिति बैठी हुई थी, सेमेस्टर इम्तिहान चल रहे थे…माहौल बहुत शांत था’.

उन्होंने याद किया, ‘लेकिन जल्द ही, आंसू गैस के गोले छोड़े जाने लगे, जिससे मजबूरन सब तितर-बितर हो गए. मैंने जामिया नगर एसएचओ को फोन भी किया, और उनसे कहा कि पुलिस बिना इजाज़त कैंपस में घुस गई है. इतने सारे छात्रों को पीटा गया; उन्होंने ये भी नहीं देखा, कि वो किसी लड़की को मार रहे थे या लड़के को’.

उन्होंने कहा, ‘आज तक, क्राइम ब्रांच हमारे छात्रों को बयान लेने के लिए बुलाती रहती है, लेकिन पुलिस ने अभी तक (अपने) लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की है’.

मामलों की स्थिति और अब तक की कार्रवाई

17 दिसंबर 2019 को, दिल्ली पुलिस ने जामिया हिंसा के लिए 10 गिरफ्तारियां कीं, और उन लोगों की हिरासत दिल्ली क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई, जो स्थानीय पुलिस से अलग कम करती है.

क्राइम ब्रांच डीसीपी मोनिका श्रीवास्तव के अनुसार, अभी तक की गईं 22 गिरफ्तारियों में से, दो छात्र हैं जबकि बाक़ी स्थानीय निवासी हैं.

अभी तक, दिल्ली क्राइम ब्रांच पिछली सर्दियों में जामिया में हुई हिंसा से जुड़े चार मामलों की जांच कर रही है. मोनिका भारद्वाज ने दिप्रिंट को बताया, ‘दंगों के तीन मामले हैं, जिनमें 22 गिरफ्तारियां की गईं हैं, और जेएनयू छात्र शरजील इमाम की एक गिरफ्तारी, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून के तहत हुई है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘सभी मामलों में आरोप पत्र दाखिल कर दिए गए हैं, जबकि एक पूरक आरोप पत्र अब दाखिल किया जा रहा है. सभी मामलों की जांच जल्द पूरी कर ली जाएगी’.

लेकिन, 15 दिसंबर को पुलिस कार्रवाई के बारे में, बहुत से सवाल उठाए जाने के बावजूद, अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है.

वकील नबीला हसन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का दरवाज़ा खटखटाया, और 100 से अधिक गवाहियों के साथ, पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, लेकिन उनका मानना है कि गवाहियों को ‘नज़र-अंदाज़’ किया गया.

घटना पर एनआचआरसी की अपनी रिपोर्ट में, जो सात महीने बाद जारी की गई, ज़्यादा तवज्जो इस बात पर दी गई कि ‘15 दिसंबर 2019 को, जामिया छात्रों की ओर से नागरिकता (संशोधन) एक्ट के खिलाफ आयोजित प्रदर्शन, किस तरह एक ‘ग़ैर-क़ानूनी जमावड़ा’ था, और उसने ख़ुद अपने खिलाफ पुलिस कार्रवाई को दावत दी थी’. हालांकि, उसने ये ज़रूर कहा कि छात्रों को पीटने से ‘बचा जा सकता था’.

उसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए, सितंबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से पूछा, कि वो ग़लती करने वाले अधिकारियों को, किस तरह दंडित कर रही है.

डीसीपी भारद्वाज ने कहा, ‘दिल्ली हाईकोर्ट में इससे जुड़ी कई याचिकाएं हैं. सभी को एक जगह करके हाईकोर्ट में सुनाई हो रही है. अदालत में इस मामले की अगली तारीख़ 21 दिसंबर 2020 की है, इसलिए ये मामला अभी विचाधीन है’.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ‘क्राइम ब्रांच जांच कमेटी ने पृथम दृष्टया, किसी अधिकारी को दोषी नहीं पाया, और उसने अपने कर्मियों के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की’.

ABVP की कथित सहभागिता

जामिया के छात्रों ने पिछले साल होने वाली हिंसा में, आरएसएस की युवा विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के शामिल होने का भी दावा किया है. लेकिन, एबीवीपी लगातार इससे इनकार करती रही है.

उसने अपने एक बयान में कहा था, ‘विरोध प्रदर्शनों की हिंसक प्रवृति से ज़ाहिर होता है, कि माओवादी ताक़तें देश भर के विश्वविद्यालयों में, छात्रों को हिंसा के लिए भड़का रही हैं. एबीवीपी इसका विरोध करती है’.

जामिया में एबीवीपी सदस्य और पीएचडी छात्र, सुभम राय ने दिप्रिंट से कहा: ‘पिछले दिसंबर जामिया में हुई हिंसा में, कोई एबीवीपी सदस्य शामिल नहीं था. हिंसा के लिए पास के इलाक़ों के स्थानीय लोग ज़िम्मेदार थे’.

पिछले साल की घटनाओं की राय की यादें, उसके साथियों की यादों से अलग थीं- उसने कहा कि छात्र पुलिस के बैरिकेड्स को तोड़ रहे थे, हालांकि उन्हें संसद तक मार्च करने की अनुमति नहीं थी’.

उन्होंने कहा, ‘धार्मिक नारे लगाए गए, जिसके बाद स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई. जब कोई भीड़ जमा हो जाती है, तो वो किसी की नहीं सुनती, और बिल्कुल यही हुआ. वो सब 90 मिनट्स तक चला, लेकिन हम (एबीवीपी सदस्य) पीछे चले गए थे, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया. कुछ छात्र ख़ुद को कार्यकर्ता दिखा रहे थे, लेकिन अब वो बेनक़ाब हो गए हैं’.

राय ने ये भी कहा, कि पुलिस परिसर में केवल इसलिए घुसी, ताकि ‘स्थानीय लोगों को बाहर निकाल सके’.

‘विरोध फिर शुरू करेंगे, जब देश तैयार होगा’

जामिया के विरोध और हिंसा ने, आख़िरकार शाहीन बाग़ धरना प्रदर्शन को जन्म दिया, जो तब तक चला जब तक कि देश, कोविड-19 महामारी की वजह से, लॉकडाउन में नहीं चला गया.

फरज़ाना का मानना है कि सीएए-विरोधी आंदोलन, लोगों की यादों में क़ायम रहेगा, भले ही कोरोनावायरस की वजह से वो अचानक बंद हो गया हो.

उन्होंने आगे कहा,‘सरकार की मुख्य चिंता ये रही है, कि विरोध की सभी लोकप्रिय ताक़तों को गिरफ्तार कर लिया जाए, और हर कोई ये जानता है. मुझे पूरा यक़ीन है कि विरोध फिर से शुरू होगा, जब देश तैयार हो जाएगा. तब तक, हम ऑनलाइन चर्चाओं और लेखों के ज़रिए, जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं’.

लेकिन मिनहाजुद्दीन जैसे कुछ लोगों के लिए, 2019 की यादें आसानी से धूमिल नहीं होंगी. मिनहाज, जिन्होंने इस साल जामिया से पढ़ाई पूरी की, और अब बिहार के समस्तीपुर में एक स्वतंत्र वकील हैं, ने कहा: ‘सड़क पार करना मुश्किल है, अंधेरे में चलने में दिक़्क़त है, कोर्ट के अंदर- जहां भीड़ होती है- कभी कभी मैं लोगों से टकरा जाता हूं. मैं ज़्यादा लंबे समय तक स्क्रीन को नहीं देख सकता. लेकिन मेरे अंदर भी काफी ऊर्जा और लड़ाई बची हुई है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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