नई दिल्ली: केंद्र और पश्चिम बंगाल आजकल एक और विवाद में उलझे हुए हैं और इस बार ये तकरार तीन आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को लेकर है. लेकिन दिप्रिंट को पता चला है कि केंद्र में तैनात आईएएस और आईपीएस अधिकारियों में बंगाल की संख्या सबसे कम है, चूंकि राज्य सरकार नियमित रूप से अधिकारियों को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से मना करती आई है, जो उनके डेपुटेशन के लिए ज़रूरी होते हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने शनिवार को पश्चिम बंगाल के तीन आईपीएस अधिकारियों को- जो बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सुरक्षा के इंचार्ज थे, जब पिछले हफ्ते उनकी कार पर हमला किया गया- केंद्रीय प्रतिनियुक्ति कि लिए एक तरफा समन जारी कर दिए. एक दिन बाद ममता बनर्जी सरकार ने कहा कि वो इन अधिकारियों को नहीं भेज सकती.
ऑल इंडिया सर्विस एक्ट के नियमों के अनुसार, हर राज्य को एक न्यूनतम संख्या में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को- जो उसकी काडर शक्ति का लगभग 25 प्रतिशत होती है- केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए भेजना होता है. इस संख्या को राज्य का सेंट्रल डेपुटेशन रिज़र्व (सीडीआर) कहा जाता है.
बंगाल के लिए आईएएस अधिकारियों का सीडीआर 78 है लेकिन दिप्रिंट के हाथ लगे कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल राज्य से केवल आठ आईएएस अधिकारी केंद्र में डेपुटेशन पर हैं. राज्य में कुल 307 आईएएस अधिकारी हैं.
बड़े काडर्स वाले अन्य राज्य जैसे यूपी, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और बिहार ने क्रमश: 44, 20, 27 और 36 आईएएस अधिकारी केंद्र को भेजे हुए हैं.
आईपीएस मोर्चे पर बंगाल ने अपने 281 आईपीएस अधिकारियों में से केवल 12 को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए छोड़ा हुआ है. 25 प्रतिशत की न्यूनतम ज़रूरत के आधार पर बंगाल को कम से कम 86 आईपीएस अधिकारी केंद्र में भेजने चाहिए. राज्य में आईपीएस अधिकारियों की कुल संख्या 347 है जो देश में सबसे अधिक है.
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बंगाल काडर में ‘कमी’
बंगाल काडर के एक आईपीएस अधिकारी ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘पश्चिम बंगाल में अधिकारियों की एक आम शिकायत है कि हमें सेंट्रल डेपुटेशन पर नहीं भेजा जाता. अधिकारी अपने नाम भेजते हैं लेकिन अधिकारियों की कमी या किसी और कारण से राज्य सरकार उन्हें क्लियर नहीं करती’.
अधिकारी ने कहा, ‘ये मामला अलग है क्योंकि इसमें सियासत शामिल है लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार केंद्र को नियमित तैनातियों से भी इनकार कर देती है. ये इस काडर की बहुत बड़ी खामी है क्योंकि किसी भी अधिकारी के लिए केंद्र में तैनाती एक खास आकर्षण होती है. उसके अलावा ये आईएएस और आईपीएस के अखिल भारतीय चरित्र की भावना के भी खिलाफ है’.
लेकिन बंगाल काडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि ये राज्य का विशेषाधिकार है कि वो खासकर राज्य-स्तर पर अधिकारियों की कमी को देखते हुए अधिकारियों को केंद्र में भेजने से मना कर सकता है.
आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल में आईएएस की काडर शक्ति 379 है और फिलहाल उसके यहां कुल 307 अधिकारी हैं इसलिए ज़ाहिर है कि ये राज्य सरकार का विशेषाधिकार है कि वो अधिकारियों को भेजे या न भेजे’.
उन्होंने आगे कहा, ‘केंद्र जो खुद (अधिकारियों की) भारी कमी से जूझ रहा है, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि डेपुटेशन काफी हद तक राज्य सरकारों का अधिकार है’.
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‘मिसाल कायम हो सकती है’
डीओपीटी के पूर्व सचिव सत्यानंद मिश्रा के अनुसार, ऑल इंडिया सर्विस रूल्स में कहा गया है कि प्रतिनियुक्ति के मामले में केंद्र और राज्य के बीच मतभेद की स्थिति में, मामले पर फैसला केंद्र सरकार लेगी लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि केंद्र किन्हीं अधिकारियों के नाम लेकर मांग करे.
मिश्रा ने कहा, ‘ऐसा बहुत कम होता है कि केंद्र ये कहे कि मैं चाहता हूं कि अमुक अधिकारी केंद्र में आए. अगर अधिकारी नहीं आता तो फिर क्या होगा? नियमों के अनुसार अंतिम अधिकार केंद्र का होगा लेकिन उनमें ये नहीं कहा गया है कि तब भी यदि राज्य किसी विशेष अधिकारी को छोड़ने से मना कर दे, तो क्या होगा’.
उन्होंने इस बात को दोहराया, ‘तो ऐसी स्थिति में जो होगा, उससे एक तरह की मिसाल कायम हो सकती है क्योंकि केंद्र ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता, जो किसी राज्य सरकार के आधीन काम कर रहा हो. अधिक से अधिक हम राज्यों को टहोका मार सकते हैं कि वो ज़्यादा से ज़्यादा अधिकारियों को सेंट्रल डेपुटेशन पर भेजें लेकिन जब तक कोई अधिकारी राज्य सरकार के आधीन है केंद्र उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता’.
एक डीओपीटी अधिकारी ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि इस मामले पर उच्च-स्तर पर चर्चा हो रही है और सरकार संभावित रूप से कानूनी रास्ता अपना सकती है.
अधिकारी ने आगे कहा, ‘केंद्र सरकार के पास आधार है कि वो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जा सकती है या फिर वो इन अधिकारियों के पांच वर्ष या उससे अधिक के लिए केंद्र में आने पर रोक लगा सकती है’.
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