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Thursday, 21 November, 2024
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सरकार को एयर इंडिया के लिए ‘तमाम बिड’ मिलीं, बोलीदाताओं में टाटा और एयरलाइंस के कर्मचारी शामिल हैं

2018 में एयर इंडिया को बेचने के शुरुआती प्रयासों के बाद सरकार की तरफ से करार की शर्तें थोड़ी आसान किए जाने से इसे लेकर निवेशकों ने दिलचस्पी दिखानी शुरू की है.

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नई दिल्ली: सालों के इंतजार और कई असफल प्रयासों के बाद आखिरकार सरकार घाटे में चल रही राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेचने के अपने प्रयास में आगे बढ़ने में सफल रही है.

निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग में सचिव तुहिन कांता पांडे ने ट्वीट किया कि सरकार को एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश के लिए कई बोलियां मिली हैं. उन्होंने लिखा, ‘सौदे की प्रक्रिया अब दूसरे चरण में पहुंचेगी.’

जिन दो बोलीदाताओं की तरफ से इस सौदे में रुचि दिखाए जाने की घोषणा की गई है कि उनमें टाटा समूह के अलावा एयर इंडिया कर्मचारियों और यूएस-बेस्ड इंटरअप्स इंक का कंसोर्टियम शामिल है.

1953 में एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण से पहले टाटा समूह ने ही इसकी स्थापना की थी और मौजूदा समय में विमानन क्षेत्र के दो ज्वाइंट वेंचर चला रहा हैं—इनमें एक विस्तारा, जो सिंगापुर एयरलाइंस के साथ यह ज्वाइंट वेंचर एयर इंडिया की तरह ही पूर्ण विमानन सेवा है और दूसरा एयर एशिया इंडिया है, एयर एशिया के साथ यह ज्वाइंट वेंचर एक सस्ती विमानन सेवा है.

हालांकि, एयर इंडिया के लिए लगी कुल बोलियों की संख्या और अन्य बोलीदाताओं की पहचान अभी तक सामने नहीं आई है.


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बेचने के लिए कई प्रयास

एयर इंडिया के पास तमाम देशों और भारतीय विमानन क्षेत्र में हवाई मार्गों और महंगे स्लॉट का अच्छा-खासा नेटवर्क है और अगर इस पर लदा कर्ज खत्म हो जाए तो विमानों का शानदार बेड़ा और प्रशिक्षित, अनुभवी कर्मचारी इसे एक प्रतिष्ठित एयरलाइन बना सकते हैं. एयर इंडिया पर अनुमानत: 60,000 करोड़ रुपये का कर्ज है और इसे चालू रखने के बार-बार इसमें पैसे लगाना सरकार की बाध्यता रही है.

नरेंद्र मोदी सरकार ने सबसे पहले 2017 में एयर इंडिया को बेचने की योजना को मंजूरी दी थी. 2018 में सरकार ने यह प्रक्रिया आगे बढ़ाई और एयरलाइन में अपनी 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का इरादा जताया. हालांकि, सरकार के प्रयास पर किसी संभावित निवेशक ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. आंशिक तौर पर वजह ये थी कि उन्हें 24 फीसदी हिस्सेदारी के कारण सरकारी हस्तक्षेप बने रहने की आशंका थी और साथ ही कर्ज का बोझ भी संभावित बोलीदाता पर ही पड़ना था.

सरकार ने इस साल जनवरी में एयर इंडिया को बेचने के अपने प्रयास फिर शुरू किए, लेकिन कई बदलावों के साथ. इसने अपनी पूरी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव किया और कर्ज का रिटेंशन भी निर्धारित किया.

हालांकि, कोविड-19 महामारी और विमानन उद्योग पर इसके असर के कारण यह बिक्री फिर से सवालों के घेरे में आ गई. संभावित खरीदारों की प्रतिक्रिया के आधार पर सरकार ने इस साल अक्टूबर में सौदे को लेकर कुछ और बदलाव किए. इसमें कहा गया कि एयर इंडिया का मूल्य उसके उद्यम मूल्य के आधार पर तय होगा, जिससे इसके मूल्यांकन में एयरलाइन का कर्ज पर विचार करना एक अहम फैक्टर होगा.

सरकार ने निवेशकों की एक और प्रमुख चिंता पर भी ध्यान दिया और कर्मचारी लागत घटाने को आसान बना दिया. एयरलाइंस अब अपने कर्मचारियों को पांच साल तक बिना वेतन के छुट्टी पर रहने के लिए कह सकती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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