गुवाहाटी: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) चुनावों में 40 में से नौ सीटें जीतकर एक तरह से 2021 के बहुप्रतीक्षित असम विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल ही जीत लिया है, और क्षेत्रीय दलों यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) के साथ चुनाव बाद गठबंधन की घोषणा की है.
गत 7 और 10 दिसंबर को दो चरण में हुए चुनावों के नतीजे रविवार तड़के घोषित किए गए और खंडित जनादेश के कारण इसके बाद घंटों अटकलों और बैठकों का दौर चलता रहा. यूपीपीएल ने जहां 12 सीटें जीतीं, वहीं जीएसपी के खाते में एक ही सीट आई.
राज्य में भाजपा की गठबंधन सहयोगी, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने 17 सीटें जीतीं, जो बहुमत के आंकड़े 21 से चार कम थीं. चुनाव में भाजपा और बीपीएफ दोनों ने अकेले उतरने का फैसला किया था. भाजपा ने बीपीएफ के 37 के मुकाबले अपने 26 उम्मीदवार ही मैदान में उतारे थे.
बीपीएफ को खुद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद इसका पूरा भरोसा था कि भाजपा उसके साथ ही आएगी लेकिन किंगमेकर बनी राष्ट्रीय पार्टी ने केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से मिले निर्देश के मुताबिक यूपीपीएल का हाथ थामने का फैसला कर लिया.
महामारी के बीच बोडोलैंड टेरीटोरियल रीजन (बीटीआर) में प्रचार अभियान की कमान संभालने वाले असम के मंत्री और पूर्वोत्तर में भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ‘गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने जीएसपी के साथ परिषद के गठन के लिए यूपीपीएल का स्वागत किया है. और यूपीपीएल ने एनडीए और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) में शामिल होने में भी रुचि दिखाई है. हम इस विचार को आगे बढ़ाएंगे.’
सरमा ने गुवाहाटी में मुख्यमंत्री आवास के बाहर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की.
विधानसभा चुनाव से पूर्व इस पहली परीक्षा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और एआईयूडीएफ का सूपड़ा ही साफ हो गया है. गठबंधन सहयोगियों ने 20 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा लेकिन केवल कांग्रेस एक सीट जीत सकी.
यूपीपीएल को इस साल उस समय खासी ताकत मिली थी जब जनवरी में तीसरे बोडो समझौते पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद पूर्व ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) के अध्यक्ष प्रमोद बोडो पार्टी में शामिल हो गए. प्रमोद ने बोडोलैंड राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया था. पार्टी ने 2015 में सात सीटें जीती थीं और सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
कोकराझार से लोकसभा सदस्य और उल्फा के पूर्व कमांडर हीरा सरानिया के नेतृत्व वाली जीएसपी ने 35 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
बीटीसी एक स्वायत्त स्वशासी निकाय है जिसका गठन 2003 में संविधान की छठी अनुसूची के तहत किया गया था. यह परिषद बीटीआर के तहत आने वाले चार जिलों—बक्सा, उदलगुरी, कोकराझार और चिरांग की प्रशासनिक व्यवस्था को देखती है, जिन सबमें बोडो समुदाय की एक बड़ी आबादी है.
बीपीएफ-भाजपा गठबंधन 2021 के लिए?
इस क्षेत्रीय परिषद के चुनाव नतीजों ने बीपीएफ नेता और पूर्व बीटीसी प्रमुख हगराम मोहिलरी के भाग्य का फैसला कर दिया है, जो पूर्व में राज्य भाजपा नेतृत्व से अपनी पार्टी को चुनने की अपील करते नजर आए थे. अब इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बीपीएफ के साथ गठबंधन करेगी.
हालांकि, सरमा ने कहा कि चुनाव तक मौजूदा गठबंधन बरकरार रहेगा.
सरमा ने कहा, ‘बीटीसी में यूपीपीएल और जीएसपी के साथ हमारा गठबंधन है, और राज्य स्तर पर 2021 के चुनाव तक बीपीएफ और असोम गण परिषद के साथ हमारा गठबंधन जारी रहेगा. हमने साथ जीत हासिल करके पांच साल के लिए सत्ता में आने पर लोगों से यही वादा किया था.’
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परिषद बनने के बाद से ही मोहिलरी यहां सत्ता में थे. पहला बीटीसी चुनाव 2005 में हुआ था जब मोहिलरी ने बीपीएफ का गठन किया था और उसके पहले अध्यक्ष चुने गए थे.
मोहिलरी ने रविवार सुबह कोकराझार में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, ‘राज्य स्तर पर हमारा गठबंधन बरकरार था, और ऐसा ही रहेगा. अगर भाजपा को लगता है कि बीटीसी में कोई अन्य पार्टी उनकी मदद कर सकती है, तो यह उनका फैसला है. राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है.’
मोहिलरी चौथे कार्यकाल की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें अपनी सहयोगी पार्टी की तरफ से ही भ्रष्टाचार और कुशासन के आरोपों का सामना करना पड़ा.
2015 के बीटीसी चुनाव में बीपीएफ ने 20 परिषद सीटें जीती थीं जबकि भाजपा ने एक ही सीट जीती थी. एआईयूडीएफ को चार सीटें मिली थीं और 15 निर्दलीय जीते थे.
राजनीतिक विश्लेषक श्यामकानु महंत के अनुसार, मोहिलरी ने इस परिणाम के साथ एक सशक्त बयान दिया है और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ‘उन्हें साथ रखने’ की कोशिश करेगा.
महंत ने कहा, ‘17 साल शासन के बाद सत्ता विरोधी लहर के बीच भाजपा ने सारी बंदूकें उनकी तरफ ही कर रखी थीं और वह यूपीपीएल के साथ रणनीतिक गठजोड़ की ओर बढ़ रही थी, यह बीपीएफ के लिए बहुत कठिन था. लेकिन फिर भी वह इससे उबर आई और अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन गई. इसलिए असम की राजनीति में उनका महत्व बना रहेगा.’
विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठबंधन नाकाम
गैर-बोडो के बीच पैठ बनाने की विपक्षी दलों की उम्मीदों के विपरीत कांग्रेस केवल एक सीट ही जीत सकी, जबकि एआईयूडीएफ 2015 की चार सीटों के मुकाबले गिरकर शून्य पर चली गई.
मरियानी से कांग्रेस के विधायक रूपज्योति कुर्मी ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी पार्टी बीटीसी चुनावों में ‘बिग लूजर’ साबित हुई है और राज्य नेतृत्व को इस हार से सबक सीखना चाहिए.
कुर्मी ने कहा, ‘एआईयूडीएफ के साथ हमारा गठजोड़ इसकी एक वजह है, वे खुद एक भी सीट नहीं जीत पाए और हमारी भी स्थिति को बिगाड़ दिया. इस फैक्टर को भाजपा ने अच्छी तरह से भुनाया था–गैर-बोडो वोटों का ध्रुवीकरण और मुस्लिम वोटों का विभाजन उनकी रणनीति थी. कांग्रेस के राज्य नेतृत्व को बीटीसी चुनावों से सबक लेना चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम बुरी तरह हारे हैं लेकिन भाजपा के लिए भी यह किसी घाटे से कम नहीं है. उन्होंने 40 सदस्यीय परिषद में 26 उम्मीदवार उतारे. केंद्र और राज्य दोनों जगह में सत्ता में हैं. ऐसे में उन्हें तो कम से कम 15 सीटें मिलनी चाहिए थीं. धनबल और प्रभाव का पूरा इस्तेमाल करके वाली बड़ी रैलियों के आयोजन के बावजूद उन्हें 10 सीटें नहीं मिल पाईं. हेलीकॉप्टर की सवारी, नाच-गाना, बड़े कार्यालय, पैसा, दावत और जमकर खर्च, इस सबका कोई बड़ा नतीजा नहीं निकला है.’
विधायक ने कहा कि ऊपरी असम में कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठबंधन को खारिज कर दिया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘असम में हमारे पास 126 निर्वाचन क्षेत्र हैं, जिनमें से 36 में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. बाकी 90 सीटों में अल्पसंख्यक नहीं हैं—उन्हें हिंदू और अन्य जातीय समुदायों का समर्थन हासिल है. इन सीटों पर जीतने के लिए हमें अकेले चुनाव लड़ना होगा.
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