पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में नई सरकार के शपथग्रहण के तीन हफ्ते बाद भी कोई गतिविधि नजर नहीं आ रही है, कैबिनेट की पहली बैठक अब तक नहीं हुई है.
नीतीश को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करना भी अभी बाकी है, जिसमें वह जदयू और भाजपा के मंत्रियों की 50:50 हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं.
विपक्ष का तर्क है कि नीतीश अपनी सहयोगी भाजपा से डर गए हैं, वही जदयू का कहना है कि ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता तो है नहीं कि कैबिनेट बैठक साप्ताहिक आधार पर बुलाई जाए. लेकिन जदयू के ही सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि इतने लंबे समय के बाद भी कैबिनेट बैठक नहीं होना ‘नीतीश की ताकत घटने का संकेत है.’
इस बीच, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश को अभी विधानसभा चुनावों में अपनी और अपनी पार्टी को लगे झटकों से उबरने में समय लगेगा.
विधानसभा में कांग्रेस के नेता अजीत शर्मा ने कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि उनके शपथ ग्रहण के एक सप्ताह के भीतर ही मंत्रिमंडल विस्तार होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’
उन्होंने कहा, ‘हर मंत्रालय बड़ा है और उनके लिए अलग से मंत्रियों की आवश्यकता है. प्रत्येक मंत्री को 4 से 5 विभाग दिया जाना यह बताता है कि केवल कुछ नियमित कार्य किए जा रहे हैं. नीतीशजी को यह महसूस करना चाहिए कि उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, रोजगार और उद्योग जैसे क्षेत्रों में अभी बहुत काम करना है. मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करें और शासन व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियमित बैठकें और समीक्षा बैठकें करें.’
राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘आत्मविश्वास के अभाव से अधिक ऐसा लगता है कि नीतीश भाजपा के मंत्रियों से डरते हैं. उन्हें डर है कि उनके प्रस्तावों को मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्यों की तरफ से खारिज कर दिया जाएगा.’
कैबिनेट विस्तार क्यों नहीं हो रहा
243 विधायकों वाले बिहार में कैबिनेट क्षमता मुख्यमंत्री समेत 37 मंत्री बनाने की हो सकती है. अभी मुख्यमंत्री समेत केवल 14 मंत्री हैं.
भाजपा सूत्रों ने कहा कि बिहार मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले भाजपा कोटे के मंत्रियों की सूची को केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘जदयू कैबिनेट में 50:50 की हिस्सेदारी पर जोर दे रहा है और यह मसला सुलझाया जाना बाकी है. राज्य विधान परिषद में राज्यपाल द्वारा नामित किए जाने वाले 12 सदस्यों का मामला भी अनसुलझा है.’
नेता ने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि विधानसभा चुनाव के बाद केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने बिहार को ‘एकदम भुला दिया’ है.
बहरहाल, जदयू नेताओं का कहना है कि इतने लंबे समय बाद भी कैबिनेट की बैठक नहीं होना ‘नीतीश की ताकत घटने को ही दर्शाता है जो भाजपा नेतृत्व की मंजूरी के बिना कोई फैसला नहीं ले सकते.
जदयू के एक विधायक ने कहा, ‘2019 में जब उन्हें केंद्र में जदयू का अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं मिला था तो नीतीश ने एकतरफा (भाजपा के साथ चर्चा के बिना) अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया था.’
सुशील मोदी की अनुपस्थिति नीतीश को भारी पड़ रही
जदयू नेताओं ने यह भी कहा कि बिहार सरकार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी की अनुपस्थिति कैबिनेट विस्तार को प्रभावित कर रही है और कैबिनेट की बैठक में भी देरी हो रही हैं.
ऊपर उद्धृत जदयू विधायक ने कहा कि मोदी यह सुनिश्चित करा पाते थे कि भाजपा के मंत्री मुख्यमंत्री के भेजे सभी प्रस्तावों से सहमत हों.
साथ ही जोड़ा, ‘उनके उत्तराधिकारी तारकिशोर प्रसाद भाजपा के मंत्रियों के बीच उस तरह का रुतबा नहीं रखते हैं जैसा मोदी का था. उन्होंने कई फैसलों पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय किया और नीतीश के फैसलों को लागू करने के लिए विभिन्न विभागों की समीक्षा बैठकें कीं.’
लेकिन यह व्यवस्था नहीं रही है. अब जबकि मोदी राज्यसभा सांसद बन चुके हैं तब भाजपा से ज्यादा तो जदयू इसकी उम्मीद कर रहा है कि उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया जाए.
विधायक ने कहा, ‘मोदी हो सकता है कि अरुण जेटली के निधन के कारण खाली हुई जगह को भरने में सक्षम हो पाएं जो नीतीश सरकार की जरूरतों को पूरा कराने में अहम भूमिका निभाते थे. नीतीशजी की किसी अन्य भाजपा नेता के साथ जेटली जैसी निकटता नहीं रही है.’ साथ ही कहा कि अगर पूर्व वित्त मंत्री जीवित होते, तो मंत्रिमंडल विस्तार में कोई बाधा नहीं आती.
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पिछली कैबिनेट के फैसलों पर काम हो रहा : जदयू
हालांकि, जदयू के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता निहोरा प्रसाद यादव ने कहा कि कैबिनेट की साप्ताहिक बैठकें करना कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘कैबिनेट की बैठकें सरकार के प्रस्तावों को मंजूरी देने के लिए होती हैं. अभी पिछली कैबिनेट बैठकों में पारित कई प्रस्तावों पर काम किया जा रहा है. जब जरूरत पड़ेगी तो कैबिनेट की बैठकें होंगी.’
कैबिनेट विस्तार के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा कि यह भाजपा और जदयू नेताओं के बीच चर्चा के बाद होगा.
हालांकि, पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एन.के. चौधरी का कहना कि ऐसा प्रतीत होता है कि नीतीश के पास निर्णय लेने के लिए आत्मविश्वास की कमी है.
उन्होंने कहा, ‘कैबिनेट की बैठकें साप्ताहिक आधार पर होती हैं जिसमें नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं. लेकिन कैबिनेट की बैठकें न होना यह दर्शाता है कि नीतीश कुमार अभी विधानसभा चुनावों में उन्हें और उनकी पार्टी को मिली हार के झटके से उबरे नहीं है. पहले सरकार नीतीश के इर्द-गिर्द केंद्रित रहती थी. अब ऐसा लगता है कि नीतीश में निर्णय लेने का आत्मविश्वास कम हो गया. यह राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है.’
इस बीच, राज्य में बढ़ते अपराधों को लेकर भी मुख्यमंत्री घिर गए हैं. बुधवार को दरभंगा में दिनदहाड़े एक दुकान से 7 करोड़ रुपये के आभूषणों की डकैती के बाद नीतीश को समीक्षा बैठक करनी पड़ी. यह घटना निकटतम पुलिस स्टेशन से बमुश्किल 250 मीटर की दूरी पर हुई.
मुख्यमंत्री ने पुलिस अधिकारियों के साथ उच्च-स्तरीय बैठक की और बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति का जायजा लिया, जिसे लेकर न केवल विपक्ष हमलावर है बल्कि सहयोगी दल भाजपा भी चिंता जताने लगी है.
दरभंगा के भाजपा विधायक संजय सरोगी ने कहा, ‘बिहार में पुलिस व्यवस्था लगता है एकदम ध्वस्त हो गई है और अपराधियों के हौसले बुलंद हैं.’
बैठक में नीतीश ने उन क्षेत्रों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया जहां अपराध बढ़ गए हैं और गश्त बढ़ाने का निर्देश भी जारी किया.
नाम न देने की शर्त पर भाजपा के एक विधायक ने कहा, ‘समीक्षा बैठक करने का फैसला तब लिया गया है जब इसे लेकर उन्हें चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही थी.’
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