नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख के भयंकर ठंड की चपेट में आने के बीच सरकार ने सेना, नौसेना और वायु सेना को यहां मजबूती से डटे रहने और पूरी तरह चौकस रहने को कहा है और गतिरोध पूरी तरह खत्म हुए बिना कैलाश रेंज में पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट से वापसी की किसी भी संभावना से साफ इनकार किया है, जहां भारत ने चीन के सामने अपनी स्थिति मजबूत बना रखी है.
शीर्ष सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मई में तनाव की शुरुआत के समय ही सशस्त्र बलों को किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा गया था. उन्होंने यह भी कहा कि गतिरोध अनुमान से ज्यादा लंबे समय तक खिंच सकता है और अगर अस्थायी सैन्य वापसी हो भी जाए तब भी हालात तनावपूर्ण ही बने रहने के आसार हैं.
सूत्रों ने बताया कि चीन अपने उस आक्रामक तेवर के खिलाफ भारत की सशक्त प्रतिक्रिया से हैरान है जो उसने बीजिंग को अमेरिका के खिलाफ एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए अपनाया और जो सीमा पर भारत का बुनियादी ढांचा तेजी से विकसित होने के खिलाफ प्रतिक्रिया का नतीजा भी है.
सूत्रों ने कहा कि भारत अपनी तरफ से चीन के साथ कोई तनाव नहीं बढ़ा रहा है लेकिन चीन को भी पता है कि ‘भारत को दबाना आसान नहीं है.’ उन्होंने कहा कि भारत यद्यपि बीजिंग के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है लेकिन वह रक्षा समेत सभी क्षेत्रों में मजबूती से डटा रहेगा.
एक सूत्र ने कहा, ‘सशस्त्र बलों और सत्ता में बैठे सभी लोगों को शौर्य और संयम का ही संदेश दिया गया है— चीनी आक्रामकता का मुकाबला पूरे ‘शौर्य’ के संग करना है और इस मसले पर अपनी बात रखने के दौरान पूरा ‘संयम’ बरतना है.’
सूत्र ने बताया कि यह संदेश सरकार में सभी को उस समय ही दे दिया गया था जब पहली बार तनाव सामने आया था.
सूत्र ने कहा, ‘इसमें कोई दो-राय नहीं हैं कि चीनी सेना बड़ी है. लेकिन अब तो चीन को भी पता चल चुका है कि भारतीय सेना कमजोर नहीं है. हम अपनी तरफ से तनाव बढ़ाना नहीं चाहते लेकिन हम पर जबरन कुछ थोपने की कोशिश की गई तो भारतीय सेनाएं भी करारा जवाब देंगी. मामला एकतरफा नहीं रहेगा. हमने सेना को दृढ़ता से डटे रहने और पूरी तरह सतर्क रहने को कहा है. उन्होंने किसी भी स्थिति में तत्काल जवाब देने की साहसिक क्षमता को दर्शाया भी है.’
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गतिरोध कब तक चलेगा?
यह पूछे जाने पर कि लद्दाख गतिरोध कब तक जारी रह सकता है, सूत्रों ने माना कि यह शुरुआती अनुमान से कहीं अधिक लंबा खिंच सकता है.
ऊपर उद्धृत सूत्र ने कहा, ‘दो बातें तो मई में ही एकदम स्पष्ट हो गई थीं. यह घटनाक्रम सीमित युद्ध जैसी स्थिति में बदल सकता है और इसके पूरी सर्दियों तक खिंचने के आसार हैं क्योंकि भारत ने इस पर सैन्य प्रतिक्रिया दी थी.’ उन्होंने साथ ही जोड़ा कि गलवान घाटी की घटना इस बात का संकेत थी कि जमीनी स्तर पर हालात कितनी तेजी से बदल सकते हैं.
हालांकि, सूत्रों ने गतिरोध खत्म होने की कोई विशेष समयसीमा बताने से इनकार करते हुए कहा कि अस्थायी तौर पर सैन्य वापसी की स्थिति में भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव कायम रह सकता है.
यह पूछे जाने पर कि क्या मई में ही चीनी आक्रामकता का अंदाजा लगाने और उसे रोकने में नाकाम रहना सेना की चूक थी, सूत्र ने कहा कि इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि सुरक्षाबलों ने आखिरकार कैसे जवाब दिया.
सूत्र ने कहा, ‘जब दो अनुभवी पहलवान लड़ रहे हों तब उनमें से भी कोई एक गलती कर सकता है. लेकिन यह देखना ज्यादा अहम है कि उसके बाद क्या हुआ. भारतीय बलों ने एकदम दृढ़ता से जवाब दिया है और पीछे हटने से इनकार कर दिया है.’
सूत्र ने कहा कि उदाहरण के तौर पर यदि गलवान घाटी संघर्ष और 29-30 अगस्त की रात सैन्य कार्रवाई वाली घटना, जब जवानों ने चीनी सैनिकों को पीछे छोड़कर कैलाश रेंज की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था, को लें तो भारतीय सेनाओं ने शानदार क्षमता का प्रदर्शन किया है.
सूत्र ने बताया, ‘यह कार्रवाई काफी तीव्र और आक्रामक थी. हां, गलवान घाटी में हमने अपने जांबाजों को गंवाया लेकिन चीनियों को संदेश देने से पहले नहीं कि उनके लोग भी हताहत होंगे. चीन ने सार्वजनिक रूप से अपने हताहतों की संख्या नहीं स्वीकारी लेकिन हम जानते हैं. अगस्त में भी भारत की शानदार कार्रवाई से चीन हतप्रभ रह गया था.’
सूत्रों ने कहा कि कैलाश रेंज से बिना सोचे-समझे सैन्य वापसी का सवाल ही नहीं उठता है, जैसा चीन चाहता है.
एक सूत्र ने बताया, ‘जब यह लगा कि चीन का पीछे हटने का कोई इरादा नहीं है, तो सेना से ऐसी योजना बनाने को कहा गया जिससे भारत के लिए बातचीत करने की स्थिति में आना सुनिश्चित हो सके. एलएसी पर लगभग सात या आठ ऐसे स्थानों को चिह्नित किया गया जहां भारत भारी पड़ने की स्थिति में आ सकता था. और ऐसे में गतिरोध पूरी तरह खत्म होने से पहले दक्षिणी तट (पैंगोंग त्सो) से वापसी का सवाल ही नहीं उठता है.’
यह पूछे जाने पर कि भारत किस नतीजे के लिए बातचीत कर रहा है, सूत्र ने कहा कि 14वीं कोर कमांडर वार्ता आगे बढ़ा रहे हैं और इसके ब्योरे पर सार्वजनिक चर्चा नहीं की जाएगी. लेकिन सूत्र ने कहा कि भारत का अंतिम उद्देश्य यथास्थिति बहाल कराना है.
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‘कमजोर पक्ष शांति बहाली नहीं करा सकता’
सूत्रों ने कहा कि सरकार ने सशस्त्र बलों से वादा किया है कि उनकी सभी जरूरतों को पूरा किया जाएगा.
एक सूत्र ने कहा, ‘हमने सैन्य बलों को विशेष वित्तीय शक्तियां दी हैं जिसमें पूंजीगत खरीद प्रक्रिया भी शामिल है. सैन्य बलों की हर तात्कालिक मांग को प्राथमिकता दी जा रही है और जल्द से जल्द इसे पूरा किया जा रहा है.’
सूत्र ने कहा कि कमजोर पक्ष शांति बहाली नहीं करा सकता है. सूत्र ने कहा, ‘हमारे पास मजबूत रक्षा व्यवस्था होनी चाहिए जो एक निरोधक क्षमता के तौर पर काम कर सके. शांति बहाल कराने के लिए किसी के पास मजबूत सैन्य क्षमता और ताकत होनी चाहिए. यही वजह है कि सैन्य आधुनिकीकरण एक प्राथमिकता है.’ साथ ही जोड़ा कि सशस्त्र बलों को उनके लिए आवश्यक उपकरण मुहैया कराने का काम पहले से ही काफी तेजी से चल रहा है.
एक सूत्र ने कहा, ‘हमारे सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण सालों तक काफी धीमा रहा है. सैन्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के नतीजे सामने आने में अभी कम से कम चार साल और लगेंगे. बहुत कुछ किया जा रहा है और बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है.’
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