बहुत अरसा नहीं बीता जब पाकिस्तान सरकार ने सबको पछाड़कर कोरोनोवायरस वर्ल्ड कप जीत लिया था. हर तरफ से मुबारकबाद मिल रही थी. हमें कहा गया कि यह सारी सफलता एक आकर्षक प्रधानमंत्री इमरान खान की तरफ से लागू स्मार्ट लॉकडाउन का नतीजा थी. दुर्भाग्यशाली पड़ोसी भारत के विपरीत पाकिस्तान के भाग्यशाली साबित होने पर हर कोई फूला नहीं समा रहा था. यह कुछ ऐसा था जैसे महामारी पूरी तरह खत्म हो गई हो. लेकिन कोविड-19 ने फिर करवट और अब लोग सरकार से पूछ रहे हैं, कोरोनावायरस? ये कोरोनावायरस क्या है?
पिछले दो माह में पाकिस्तान में कोरोनावायरस के संक्रमण में फिर तेजी आई है और अब तक 400,000 से ज्यादा केस दर्ज किए जा चुके हैं. 2 दिसंबर को देश में 75 मरीजों ने दम तोड़ा, जो 9 जुलाई के बाद से किसी एक दिन में सबसे ज्यादा मौतों का आंकड़ा हैं. महामारी की दूसरी लहर में अब पॉजिटिविटी रेट 8.04 प्रतिशत पर पहुंच गया है. संक्रमण में तेजी और मृत्यु दर बढ़ना इमरान खान सरकार के लिए चिंता का विषय है.
महामारी को लेकर राजनीति
उछाल की वजहें तमाम हैं. महामारी को लेकर राजनीति भी इन्हीं से एक है. एक वजह तो यह धारणा थी कि नोवेल कोरोनावायरस केवल विपक्षियों के जलसों से फैलता है. कोविड पर अपनी सफलता के गुणगान में व्यस्त पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की सरकार लगता है यह भूल ही गई थी कि हम अभी महामारी की चपेट में ही हैं. विपक्षी दलों के गठबंधन ने जैसे ही सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए सार्वजनिक रैलियां शुरू कीं, प्रधानमंत्री खान ने भी अच्छी-खासी भीड़ वाले जलसे आयोजित करने शुरू कर दिए, जिसमें मानक सुरक्षा उपायों का पूरी तरह पालन नहीं हो रहा था. पिछले महीने हाफिजाबाद के स्वात में हुए जलसे और टाइगर फोर्स के कन्वेंशन को देखकर तो ऐसा लग रहा था कि कोरोनावायरस प्रधानमंत्री के समक्ष मौजूद सबसे अंतिम चुनौती है. लेकिन अब प्रधानमंत्री को समस्या क्यों और कैसी नजर आ रही है.
प्रधानमंत्री ने लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में डालने के लिए विपक्ष की संवेदनहीनता को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि कोरोनावायरस वायरस फैलने की जड़ वही हैं. वहीं, विपक्ष का कहना है कि वायरस बस एक बहाना है और असली निशाना तो पीटीआई सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर जारी आंदोलन को दबाना है. विपक्ष का सवाल है कि आखिर सरकार ऐसा क्यों सोचती है कि कोरोनावायरस केवल उनके जलसों से ही फैलता है सरकारी स्तर पर होने वाले सामूहिक समारोहों से नहीं? इनकी राय में कोरोनावायरस की तुलना में तो इमरान ज्यादा घातक हैं. एक तरफ जहां दुनिया कोविड-19 से लड़ रही है, उनका कहना है कि वे कोविड-18 यानी प्रधानमंत्री इमरान खान से जूझ रहे हैं.
सरकार ने इस हफ्ते के शुरू में मुल्तान जलसे से पहले ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और उनके खिलाफ कोरोनावायरस एसओपी के उल्लंघन के मामले दर्ज किए. विपक्ष इसे महामारी के नाम पर बदले की कार्रवाई बता रहा है. दो साल तक पीटीआई सरकार की ओर से सख्त कार्रवाई झेलने और आखिरकार अपने लिए कुछ राजनीतिक जगह बना पाने वाले विपक्ष के लिए इस तरह सब छोड़ना आसान नहीं होगा. लेकिन जब सरकारी बयानों से ऐसा माहौल बन रहा हो कि विपक्ष लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहा है, तो उनके लिए यह आंदोलन जारी रखना भी मुश्किल होगा. सवाल है कि क्या जनवरी में इस्लामाबाद तक प्रस्तावित लांग मार्च योजना के मुताबिक निकलेगा या फिर विपक्ष इसकी रूपरेखा फिर से तैयार करेगा?
लेकिन, अभी तो यही लगता है कि अच्छे जलसे और बुरे जलसे के बीच खुद कोरोनावायरस भी भ्रमित ही होगा.
जलसे, अच्छे और बुरे
सुपरस्प्रेडर साबित होने वाले आयोजन को लेकर जिम्मेदार ठहराने के मामले में सरकार का रवैया पाखंड भरा ही नजर आता है. राजनीतिक विरोधियों की बात हो तो सरकार काफी तीखे सुर अपनाती है. लेकिन जब मजहबी राजनीतिक दलों के प्रदर्शन या किसी सामूहिक आयोजन का मामला आए तो चुप्पी साध लेती है. पिछले महीने पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में शार्ली एब्दो कैरीकेचर के समर्थन करने वाली फ्रांस सरकार के खिलाफ तमाम रैलियां निकाली गईं.
इस्लामाबाद में तहरीक-ए-लब्बैक के नेतृत्व में दो दिन चले धरने में हजारों प्रदर्शनकारियों ने कोरोनावायरस प्रोटोकाल की जमकर धज्जियां उड़ाईं. इसके बाद लब्बैक के प्रमुख खादिम हुसैन रिजवी की मौत होने पर लाहौर स्थित मीनार-ए-पाकिस्तान में उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किए जाने के दौरान भी हजारों की संख्या में भीड़ जुड़ी, जो इस शहर के इतिहास में पहला इतना बड़ा जमावड़ा था. हालांकि, किसी ने भी इस पर पीटीआई सरकार की तरफ से कोई टिप्पणी नहीं सुनी.
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सवाल यह है कि विपक्ष को कोसने और हमें यह बताने कि सरकार क्या नहीं करने जा रही है, के अलावा प्रधानमंत्री खान ने कोरोनावायरस की दूसरी लहर से निपटने के लिए क्या योजना बनाई है? सच कहूं तो इसका जवाब किसी के पास नहीं है. मामलों में तेजी के बाद 16 नवंबर को प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रैलियों पर पाबंदी लगा दी थी, फिर भी रिजवी का भव्य तरीके से अंतिम संस्कार और पेशावर और मुल्तान में विपक्ष की रैलियां हुईं. तो, यह किस तरह की पाबंदी है? शायद सिर्फ एक स्मार्ट बैन लगा है.
ठहरिये, इसका एक दूसरा पहलू भी है. कोरोनावायरस की पहली लहर में पाकिस्तानियों को प्रधानमंत्री खान की तरफ से तुर्की सीरिज एतुरुल देखने की सलाह मिली थी. दूसरी लहर में भी एक तुर्की सीरिज- यूनुस एमरे की सलाह दी गई है चो सूफीवाद में रुचि रखने वाले हम सभी लोगों के लिए पाकिस्तानी टेलीविजन पर चल रही है. यह अलग बात है कि पाकिस्तान में सूफीवाद नहीं, बल्कि नेटफ्लिक्स की प्रस्तुति ‘फैबुलस लाइव्स ऑफ बॉलीवुड वाइव्स’ ट्रेंडिंग में है. लेकिन कौन जाने तुर्की के शो ही पाकिस्तान में कोविड-19 की आने वाली सभी लहरों के दौरान अपना अस्तित्व बचाने का आधार बन जाएं.
लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.
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