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Friday, 15 November, 2024
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शिक्षकों की राय बच्चों को अभी स्कूल भेजना बुद्धिमानी नहीं, लेकिन विशेषज्ञ क्रमबद्ध तरीके से खोलने के पक्ष में हैं

दिल्ली ने भी अभी ऐसा न करने का फैसला किया है. राज्य के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 वैक्सीन आने तक राष्ट्रीय राजधानी में स्कूल फिर से नहीं खुलेंगे.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार भले ही कोविड-19 महामारी के बीच क्रमबद्ध तरीके से स्कूलों को फिर खोलने की अनुमति दे चुकी हो, लेकिन शिक्षक अभी तक छोटी कक्षाओं के बच्चों को स्कूल बुलाने के पक्ष में नहीं हैं.

छोटे बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित स्कूल प्रिंसिपलों ने दिप्रिंट से कहा कि यह देखते हुए कि कोविड के मामले ‘दिन-प्रतिदिन’ बढ़ रहे हैं इस शैक्षणिक सत्र में अभी निचली कक्षाओं के लिए स्कूल खोलना ‘विवेकपूर्ण’ नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि जूनियर छात्र घर पर ऑनलाइन कक्षाएं लेने के आदी हो गए हैं और वे इसे तब तक जारी रख सकते हैं जब तक कि कोविड संकट खत्म नहीं होता.

यद्यपि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अक्टूबर में स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दे दी थी, लेकिन इसने अंतिम निर्णय राज्यों पर छोड़ दिया था.

अधिकांश राज्य अभी स्कूल खोलने के लिए तैयार नहीं है. तमिलनाडु और तेलंगाना के साथ-साथ कर्नाटक ने भी अभी स्कूलों को फिर न खोलने का फैसला किया है.

दिल्ली ने भी अभी ऐसा न करने का फैसला किया है. राज्य के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 वैक्सीन आने तक राष्ट्रीय राजधानी में स्कूल फिर से नहीं खुलेंगे.

वही, हरियाणा में स्कूल खुलने के कुछ ही दिनों बाद छात्रों और शिक्षकों के पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें से फिर से बंद कर दिया गया. राज्य में 30 नवंबर तक स्कूल बंद हैं.

उत्तर प्रदेश, असम, आंध्र प्रदेश और हाल ही में इसमें शामिल महाराष्ट्र आदि कुछ ही राज्यों ने स्कूलों को फिर खोलने का फैसला किया है. असम ने जहां कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों को स्कूल आने की अनुमति दी है, वहीं अन्य ने केवल 9वीं से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई स्कूल में कराने की अनुमति दी है. कक्षा 8 से नीचे के छात्रों के लिए पहले की तरह घर पर ऑनलाइन कक्षाएं चलाने की ही व्यवस्था जारी रहेगी.

हालांकि, इस पर दिप्रिंट से बातचीत के दौरान स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय विभाजित नजर आई. कुछ ने कहा कि बच्चों की प्रतिरक्षा कमजोर होती है इसलिए उन्हें स्कूल नहीं जाना चाहिए, जबकि अन्य ने क्रमबद्ध तरीके से इन्हें खोलने की जरूरत बताई.

‘ये नहीं चाहते कि हमारे शिक्षक या छात्र संक्रमित हों’

देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित स्कूलों के प्रिंसिपल स्पष्ट तौर पर नहीं चाहते कि स्कूलों को छोटे बच्चों के लिए फिर से खोला जाए.

मुंबई के बिड़ला ओपन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल हिना देसाई ने कहा कि कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों के लिए स्कूल अभी नहीं खोले जाने चाहिए.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ज्यादातर स्कूल बोर्ड परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए कक्षा 9 से 12 के लिए स्कूल शुरू करने पर विचार कर रहे हैं. जहां तक बात है कि क्या कक्षा 1 से 8 तक के स्कूल फिर खोले जाने चाहिए तो सीधा जवाब है ना.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ज्यादातर स्कूल और कक्षा 1 से 8 तक के छात्र ऑनलाइन कक्षा के आदी हो गए हैं, जिसमें सीखने में निरंतरता बनी हुई है. इसके अतिरिक्त, स्कूलों का उद्देश्य है छात्रों की सुरक्षा और यही सबसे ज्यादा मायने रखती है. कोविड की महामारी जब तक पूरी तरह नियंत्रण में नहीं आ जाती, तब तक छोटी कक्षा के छात्रों के लिए वर्चुअल पढ़ाई जारी रखी जा सकती है.

दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मॉडर्न पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल अलका कपूर ने कहा कि इस शैक्षणिक सत्र में छोटे बच्चों के लिए स्कूल फिर खोलना बहुत मुश्किल लग रहा है.


यह भी पढ़ें : पेरेंट्स चाहते हैं कि स्कूल फिर से खुलें, ऑनलाइन कक्षाएं कारगर नहीं- अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की स्टडी


उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि इस शैक्षणिक सत्र में स्कूलों को फिर से खोलना संभव या विवेकपूर्ण होगा. एक बड़ी वजह यह है कि कोविड-19 के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, दुनियाभर में अब तक 5.92 करोड़ केस आए हैं और 14 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने देखा है कि स्कूल खोलने की हिम्मत करने वाले अन्य देशों में कोविड के मामले कैसे आसमान छूने लगते हैं.’

कपूर ने यह भी बताया कि उनके स्कूल की तरफ से किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 90 प्रतिशत अभिभावक इस समय स्कूल फिर खोलने के पक्ष में नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि हमारे स्कूल का कोई शिक्षक या छात्र संक्रमण की चपेट में आए या किसी अन्य को संक्रमित करने में वायरस का वाहक बने. इसलिए, जब तक इसकी वैक्सीन नहीं आती, मुझे नहीं लगता कि माता-पिता अपनी सबसे मूल्यवान संपत्ति यानी अपने बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार होंगे. ऐसे में इस शैक्षणिक सत्र में स्कूल फिर खोलना मुश्किल ही लगता है.’

महू स्थित कर्नल्स एकेडमी में प्रिंसिपल करण बहादुर भी इस शैक्षणिक सत्र में स्कूलों को फिर खोलने से सहमत नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब तक स्थिति बेहतर नहीं हो जाती तब तक स्कूल फिर से नहीं खुलने चाहिए और ऐसा लगता है कि हम इस शैक्षणिक सत्र में फिर से इन्हें खोलने जा भी नहीं रहे हैं. अब दिसंबर आने वाला है और स्कूलों के पास मार्च में परीक्षाएं कराने से पहले शायद ही कोई समय बचा है.’

बेंगलुरु स्थित नींव अकादमी की संस्थापक और स्कूल की हेड कविता गुप्ता सभरवाल हालांकि कुछ अलग ही राय रखती हैं. उनका कहना है कि जिन स्कूलों के पास अपने छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा है, उन्हें फिर से खोलना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘दुनिया में कहीं भी गैप इयर नहीं हो रहा है, इसलिए भारतीय छात्रों के लिए भी ऐसा नहीं किया जा सकता. हमें उन स्कूलों को फिर खोलने की अनुमति देनी चाहिए जो तीन फैक्टर उम्र, स्थान और संसाधनों के आधार पर ऐसा करने को तैयार है. सरकारी अधिकारियों को समझना चाहिए कि हर जगह एक जैसी व्यवस्था नहीं हो सकती और जोखिम को तो खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन जरूरत के हिसाब से व्यवस्थाएं करनी होंगी.’

छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के बाबत गुप्ता ने कहा, ‘बोर्ड के साल मायने रखते हैं. भले ही बहुत ज्यादा न हो फिर भी छोटे बच्चों का स्कूल लौटना भी काफी महत्वपूर्ण है. प्रीस्कूल और प्राइमरी छात्रों की पढ़ाई में यह अंतराल भविष्य में सीखने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है.’

स्कूलों को धीरे-धीरे खोले जाने की राय

इस बीच, बच्चों के लिए स्कूल फिर से खोलने को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है.

स्कूली स्वास्थ्य पर काम करने वाले एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. आनंद लक्ष्मण ने कहा कि जब लॉकडाउन था स्कूल बंद था तब भी बच्चों के संक्रमण की चपेट में आने का एक ट्रेंड था इसलिए क्रमबद्ध तरीकों से स्कूलों को फिर खोलने वाला दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में सीरो सर्वेक्षण बताता है कि 35 प्रतिशत बच्चे कोविड संक्रमित थे, ऐसा स्कूल बंद होने के बाद भी हुआ. ऐसे में हमें एक क्रमबद्ध दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, प्रत्येक राज्य/जिले में कोविड के ट्रेंड का पता लगाने के लिए स्थानीय स्तर पर सीरो सर्वेक्षण या डाटा जुटाने की जरूरत है.’

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल और भारतीय बाल चिकित्सा केंद्र दोनों का ही सुझाव है कि यदि पॉजिटिविटी रेट 5-8 प्रतिशत है और कोविड मामलों में गिरावट का रुख है, तो स्कूल खोले जा सकते हैं. यह स्कूलों में आवश्यक सुरक्षात्मक उपाय किए जाने और क्षेत्र में परीक्षणों की संख्या निरंतर बढ़ाते जाने के साथ किया जा सकता है.’

अगस्त में दिल्ली के दूसरे सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण में 5-17 वर्ष के आयु वर्ग लगभग 35 प्रतिशत बच्चों में एंटीबॉडी के लिए परीक्षण पॉजिटिव पाया गया था जो बाकी प्रतिभागी वर्गों में सबसे अधिक है.

अगस्त में इंदौर में हुए एक सर्वेक्षण में भी बच्चों में सीरोप्रिवेलेंस वयस्कों के समान ही लगभग 7 प्रतिशत पाया गया.

ये आंकड़े बताते हैं कि स्कूल बंद होने के बावजूद बच्चे संक्रमण की चपेट में आए.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में जीवनरक्षक महामारी विज्ञान विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर गिरिधर आर. बाबू कई मौकों पर स्कूलों को फिर खोलने पर असहमति जता चुके हैं.

पूर्व में दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘भारत में हर तीन में एक बच्चा कुपोषण का शिकार है, उस पर महामारी के कारण मानसिक और शारीरिक तनाव अलग से है. यह बताता है कि भारतीय बच्चों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बहुत अच्छी नहीं है. अगर वे सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते हैं तो संक्रमण फैलने का जोखिम भी बढ़ जाएगा.’

‘हम अपने बच्चों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?’

अध्ययनों से संकेत मिला है कि बच्चों के सार्स-कोव-2 वायरस की चपेट में आने की संभावना कम होती है लेकिन एक बार संक्रमित होने के बाद वे इस बीमारी के एसिम्पटमैटिक वाहक बन सकते हैं, जो ज्यादा बड़ी चिंता का विषय है.

नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में बाल रोग विभाग के निदेशक डॉ. कल्याण रामलिंगम का मानना है कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि हाल में कोविड मामलों में आई तेजी को देखने के बाद भी स्कूलों को फिर से खोलने की बात सोची जाए.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने पाया है कि इस बीमारी की चपेट में आने वाले किशोर बच्चों की संख्या बढ़ी है. जब पूरा-पूरा परिवार पॉजिटिव पाया जा रहा हो तो हम अपने बच्चों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?’

उन्होंने कहा, ‘यद्यपि छोटे बच्चों में इस बीमारी के प्रति संवेदनशीलता काफी कम है, लेकिन अभी हम यह नहीं जानते कि बच्चों को दिया जाने वाला कौन सा प्राथमिक टीका ऐसा है जिससे उनमें सार्स-कोव-2 के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है. ऐसी कई धारणाएं हो सकती है कि बीसीजी या एमएमआर वैक्सीन छोटे बच्चों को इस बीमारी के खिलाफ जरूरी प्रतिरक्षा प्रदान कर सकती हैं, लेकिन मोटे तौर पर इसके बारे में अभी तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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