नई दिल्ली: नई दिल्ली के अलकनंदा इलाके में रहने वाली एक बुजुर्ग 4 नवंबर को कोविड-19 पॉजीटिव पाई गईं. चूंकि उनमें हल्के लक्षण ही थे इसलिए घर में ही आइसोलेशन में रहने की सलाह दी गई. लेकिन 12 नवंबर तक उनकी हालत बिगड़ गई. लेकिन परिवार को सबसे ज्यादा मुश्किल तब आई जब उन्होंने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की.
नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बातचीत में उनकी बेटी ने कहा कि सरकारी एप- दिल्ली कोरोना- तो यह दिखा रहा था कि कई बड़े अस्पतालों में बेड उपलब्ध हैं. लेकिन उन्हें अस्पतालों की तरफ से बेड खाली होने की पुष्टि किए जाने के लिए लगभग पूरे दिन इंतजार करना पड़ा. बेटी ने बताया कि इसके बाद भी उन लोगों को ‘केवल द्वारका (लगभग 25 किमी दूर) और नोएडा (40 किमी से अधिक दूर) में बिस्तर उपलब्ध होने संबंधी ब्योरा ही मिल पाया.’
उन्होंने बताया, ‘हमने आखिरकार 12 नवंबर की शाम उन्हें नोएडा के एक अस्पताल में भर्ती कराया और कुछ मशक्कत के बाद हम अगले दिन उन्हें दिल्ली के एक जाने-माने अस्पताल लाने में सक्षम हुए.’
दिवाली वाले सप्ताहांत में लाजपत नगर के एक दुकानदार 23 वर्षीय सोमेश को भी कुछ ऐसी ही स्थितियों से गुजरना पड़ा. उन्हें अपनी सास को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए एक बेड की जरूरत थी क्योंकि उनका ऑक्सीजन स्तर 80 पर पहुंच गया था जो उस स्तर से 10 अंक नीचे था जब तत्काल अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी होता है.
उन्होंने बताया, ‘मेरी पत्नी ने कई अस्पतालों को फोन किया हालांकि उसकी एक दोस्त सरकारी अस्पताल में नर्स है, लेकिन हर जगह से यही जवाब मिला कि कोई बेड खाली नहीं है. सोमेश के अनुसार, आखिरकार उन्हें एक प्रमुख सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए हमें अपने संपर्कों का इस्तेमाल करना पड़ा.
भारत में कोविड-19 के 80 प्रतिशत मरीजों को एसिम्पटोमैटिक माना जाता है लेकिन उनमें से कुछ गंभीर रूप से बीमार होने की स्थिति में अस्पताल में भर्ती होने में मुश्किल होने की शिकायत करते हैं. एक सामान्य शिकायत यह है कि दिल्ली सरकार के एप पर बेड की उपलब्धता संबंधी जानकारी जमीनी हालात को नहीं दर्शाती है.
ऐसे मामलों में जहां समय बहुत मायने रखता है चिकित्सा सहायता में जरा-सी भी देरी जीवन-मरण का सवाल बन सकती है.
लेकिन अस्पतालों का कहना है कि वे मजबूर हैं और विकल्पों के अभाव में उन्हें मरीजों को लौटाना पड़ रहा है. उनके मुताबिक, तमाम मरीज ऐसी हालत में आते हैं जब उन्हें आईसीयू बेड की आवश्यकता होती है, जिनकी उपलब्धता पहले ही नियमित बेड की तुलना में काफी कम होती है और इसीलिए वे जल्दी भर जाते हैं. उन्होंने बताया कि अस्पताल से लौटने वाले ज्यादातर मरीज वही होते हैं जिन्हें आईसीयू बेड की जरूरत होती है.
यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली ऐसी स्थिति से जूझ रही है. कोविड मामलों में पूर्व में आई तेजी के बीच सितंबर में भी आईसीयू बेड की कमी एक चिंता का विषय बन गई थी. दिल्ली सरकार ने बाद में 33 बड़े निजी अस्पतालों को अपने 80 फीसदी आईसीयू बेड कोविड मरीजों के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया था.
अस्पताल में बेड मिलने में आ रही परेशानी से जुड़े सवालों के बाबत दिप्रिंट ने दिल्ली की स्वास्थ्य महानिदेशक नूतन मुंडेजा से कॉल, टेक्स्ट मैसेज और ईमेल के जरिये संपर्क किया लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक बैठक के बाद बताया था कि केंद्र सरकार ने कोरोनावायरस मरीजों के इलाज के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की तरफ से स्थापित अस्पतालों में 750 और आईसीयू बेड उपलब्ध कराने का वादा किया है.
इस बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मंगलवार को अपनी ब्रीफिंग में कहा कि आने वाले दिनों में दिल्ली की आईसीयू बेड क्षमता 80 प्रतिशत बढ़कर 6,000 की जाएगी क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी संक्रमण के ऐसे दौर से गुजर रही है जिसे तीसरी लहर कहा जा रहा है.
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आईसीयू में मरीजों की भरमार
आप सरकार के दिल्ली कोरोना एप के अनुसार, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि रियल टाइम में अपडेट होता है, दिल्ली में सोमवार दोपहर तक 16,689 कोविड-19 बेड थे जिनमें से 7,715 खाली थे. इनमें से 1,342 वेंटिलेटर वाले आईसीयू बेड (ऐसे मरीजों के लिए जिन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट की जरूरत होती है) हैं जिनमें 164 खाली हैं. वेंटिलेटर के बिना 2,184 कोविड-आईसीयू बेड में से 233 खाली थे.
मंगलवार तक दिल्ली में कुल 4,95,598 कोविड-19 मामले दर्ज किए गए थे जिनमें से 7,812 की मौत हो चुकी है और 4,45,782 ठीक हो चुके हैं जबकि अभी सक्रिय केस की संख्या 42,000 से अधिक है.
दिप्रिंट से बातचीत में दिल्ली के कई अस्पतालों ने कहा कि पिछले एक पखवाड़े में गंभीर या अत्यधिक गंभीर रूप से बीमार कोरोनावायरस मरीजों के भर्ती होने की संख्या बढ़ी है.
दिल्ली के नोडल कोविड अस्पताल लोक नायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने कहा, ‘जैसे-जैसे मामले बढ़े हैं, हम उन रोगियों की संख्या बढ़ती देख रहे हैं जिन्हें वेंटिलेटर वाले बेड की जरूरत है. ज्यादा संख्या में गंभीर मरीजों के भर्ती होने के कारण नॉन-वेंटिलेटर की तुलना में वेंटिलेटर वाले बेड तेजी से भर जा रहे हैं.’
दिल्ली कोरोना एप के आंकड़े बताते हैं कि सोमवार दोपहर तक एलएनजेपी में 200 वेंटिलेटर बेड में से केवल 8 खाली थे. इसकी तुलना में 1511 नॉन-आईसीयू बेड खाली थे.
दिल्ली सरकार के एक अन्य प्रमुख कोविड अस्पताल राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने बताया कि पिछले दो सप्ताह में हर दिन 30 से 49 के बीच मरीजों को भर्ती कराया गया है जिनमें से 70 प्रतिशत गंभीर हैं.
चिकित्सा निदेशक बी.एल. शेरवाल ने कहा, ‘अधिकांश मरीज देरी से आ रहे हैं या संक्रमण इतना गंभीर है कि स्थिति घातक है. साथ ही जोड़ा कि इससे इन मामलों में मृत्यु दर (सीएफआर) भी बढ़ गई है.
दिल्ली में सीएफआर, जो कोविड से जान गंवाने वाले मरीजों के आंकड़े को प्रतिशत में दर्शाता है, अब 1.58 फीसदी है जो मौजूदा राष्ट्रीय औसत 1.47 से ज्यादा है.
इसी तरह, केंद्र सरकार संचालित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हर दिन आ रहे सभी कोविड मरीजों को ‘गंभीर’ की श्रेणी में रखा गया है. लेडी हार्डिंग में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एनएन माथुर ने कहा, ‘हर रोज करीब 20 नए मरीज आ रहे हैं और ये सभी गंभीर श्रेणी के हैं.’ उन्होंने बताया कि यहां 90 फीसदी बेड सामान्य रूप से भरे हुए हैं जबकि आईसीयू के लगभग सभी बेड भर चुके हैं.
हालांकि, दिल्ली कोरोना एप के अनुसार, अस्पताल के 50 में से 11 आईसीयू बेड सोमवार को खाली थे.
दिल्ली कोरोना एप के अनुसार, सरोज सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल, मैक्स अस्पताल की साकेत और शालीमार बाग स्थित दो शाखाएं, इंद्रप्रस्थ अपोलो और मूलचंद खैराती अस्पताल जैसे शहर के प्रमुख निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर बेड पहले ही फुल हो चुके हैं.
सर गंगाराम अस्पताल में मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.पी. बोएत्रा ने कहा, ‘जिन मरीजों को बेड के लिए इधर-उधर भागदौड़ मच रही है, उनके लिए आईसीयू बेड की आवश्यकता है. यहां तक कि आईसीयू बेड की जरूरत वाले मरीजों को ही दूसरे अस्पतालों से रेफर किया जा रहा है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा हमारे पास अन्य राज्यों, कभी-कभी जम्मू-कश्मीर तक से, गंभीर रूप से बीमार मरीज आते हैं और उन्हें भी आईसीयू बेड की आवश्यकता होती है. नतीजतन, आईसीयू बेड की मांग काफी ज्यादा है और यह उपलब्ध नहीं हैं.’
दिल्ली सरकार के जीटीबी अस्पताल में चिकित्सा निदेशक डॉ. आर.एस. रौतेला ने कहा, ‘जब कोई बेड बचा ही नहीं है तो कोई मरीजों को कैसे भर्ती कर सकता है?’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह हमारी क्षमता से बाहर की बात है और यहां तक कि हम खुद भी परेशान हो जाते हैं.’ सरकार के कोरोना एप के अनुसार, जीटीबी के पास अभी कोई आईसीयू कोविड-19 बेड उपलब्ध नहीं है.
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‘इलाज में देरी जानलेवा हो रही’
डॉक्टरों ने कहा कि आईसीयू बिस्तरों की बढ़ती जरूरत यह बताती है कि घर में आइसोलेशन में रहने वाले मरीजों के इलाज पर समय रहते ध्यान नहीं दिया जाता.
डॉक्टरों के मुताबिक, यह जानने के लिए क्या किसी कोविड मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत है, उसका ऑक्सीजन स्तर जांचना एक सबसे अहम पैरामीटर है. जिसके बारे में उनका कहना है कि इसे बाजार में बड़े पैमाने पर उपलब्ध पल्स ऑक्सीमीटर से आसानी से जांचा जा सकता है.
डॉक्टरों के मुताबिक, मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए ऑक्सीजन स्तर 90 पर गिरने का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि, उनका दावा है कि कई बार मरीज तब यहां आते हैं जब ऑक्सीजन का स्तर 50-60 तक चला जाता है.
कोविड सुविधा में बदले गए निजी अस्पताल सरोज सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. धीरज मलिक ने कहा, ‘घर में आइसोलेशन के कारण लोग देर से अस्पताल आ रहे हैं. मरीज अक्सर कहते हैं कि उन्हें 2-3 दिन तक बुखार था, जो बाद में कम हो गया था. लेकिन कोविड के साथ समस्या यह है कि हम अक्सर दूसरे सप्ताह में ध्यान देते हैं कि ऑक्सीजन का स्तर अचानक गिर गया है. या फिर मरीजों को निमोनिया हो जाता है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘जब ऐसी स्थिति में वे अस्पताल आते हैं तो उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है. अस्पताल में पिछले महीने आईसीयू में भर्ती लगभग 20 फीसदी लोगों की मौत हुई है.’
वहीं, इंद्रप्रस्थ अपोलो के आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. एस. चटर्जी ने कहा, ‘घर में आइसोलेशन ठीक है लेकिन मरीज अक्सर अपने ऑक्सीजन स्तर पर नज़र नहीं रखते और अपने डॉक्टरों के संपर्क में भी नहीं रहते हैं. इसलिए उन्हें पता ही नहीं चलता कि स्थिति कब गंभीर हो सकती है. यहां तक कि अब तो बुजुर्ग भी भर्ती होने के बजाये घर के अलग रहने को प्राथमिकता दे रहे हैं. हमारे अस्पताल के आईसीयू में करीब 15-20 प्रतिशत मौतें इसी वजह से हुई हैं.’
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